बुधवार, 29 अगस्त 2012

सिंगुर पर न्यायालयी फैसला और उसका सबक



( फैसले में दरअसल हारा कौन ? ममता बनर्जी या सिंगुर वासी )

इस फैसले में सिंगुर के किसान -- संघर्ष का लाभ लेकर सत्ता की उंचाई पर चढ़ चूकी ममता बनर्जी की हार कत्तई नही हुई है , बल्कि वह हार दरअसल वहा जमीन जीविका की आस खो चुके किसानो की हुई है |

दिनाक 22 जून , 2012 को कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंड पीठ ने बंगाल की वर्तमान तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा पारित '' सिंगुर भूमि पुनर्वास एवं विकास अधिनियम 2011 '' को असंवैधानिक और अमान्य करार दिया है | उच्च न्यायालय के इस निर्णय से सिंगुर के किसानो का अपनी जमीन वापस पाने का रास्ता फिलहाल बंद हो गया है |
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा की बंगाल सरकार द्वारा 2011 में पारित यह कानून असंवैधानिक है | क्योंकि कानून पर राष्ट्रपति की संस्तुति नही ली गयी थी | इसके अलावा न्यायालय का यह भी कहना है की '' यह नया अधिनियम भूमि अधिग्रहण कानून 1894 की धाराओं के प्रतिकूल है | क्योंकि भूमि अधिग्रहण 1894 के मुताबिक़ अगर कोई जमीन सार्वजनिक जरूरतों के लिए अधिग्रहित कर ली जाती है तो उसे मूल मालिक को वापस नही लौटाया जा सकता | '' न्यायालय ने यह भी कहा की किसानो की जमीन उन्हें वापस किए जाने को सार्वजनिक उद्देश्य नही कहा जा सकता है , जैसा की राज्य सरकार ने अपने अधिनियम में दावा किया है |
इस फैसले के बाद बंगाल सरकार क्या करेगी ? अपने सबसे बड़े चुनावी वादे व मुद्दे के अनुरूप सिंगुर के किसानो को जमीन वापस दिलाने के लिए क्या प्रयास करेगी ? यह सब बाद की बात है | लेकिन फैसला आने के बाद प्रचार माध्यमो द्वारा इस फैसले को टाटा की जीत और ममता बनर्जी और उनकी सरकार की हार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है | न्यायालय के फैसले को खासकर हिन्दी के प्रमुख समाचार पत्रों में '' ममता हारी , टाटा जीते , '' सिंगुर पर टाटा की जीत , ममता की फजीहत '' '' ममता को लगा झटका '' जैसे शीर्षक के साथ प्रकाशित एवं प्रचारित किया गया | जबकि प्रचार माध्यमी विद्वान् भी जानते है की असली झटका ममता बनर्जी और उनकी सरकार को नही बल्कि सिंगुर वासियों को , सिंगुर के किसानो को लगा है | क्योंकि 2007 से ही सरकार द्वारा सिंगुर की कृषि भूमि का अधिग्रहण का काम न केवल टाटा मोटर्स के पक्ष में किया जाता रहा अपितु वह के किसानो एवं अन्य ग्रामवासियों के विरोध के वाजुद किया जाता रहा है | सिंगुर के किसानो द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध का आन्दोलन 2007 से ही शुरू हो गया था और फिर बाद में वह पूरे देश में चर्चा का विषय बना रहा था | ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस तो उस आन्दोलन से बाद जुडी | उनका प्रमुख मुद्दा भूमि अधिग्रहण के विरोध के जरिये
वाममोर्चे की सरकार को हटाकर तृणमूल कांग्रेस की सरकार को स्थापित करने का था और वह बंगाल विधानसभा चुनाव में वाममोर्चे की हार और तृणमूल की जीत के साथ पूरा भी हो गया |
भूमि अधिग्रहण को बंगाल के औद्योगिक विकास के नाम पर आगे बढाने में लगी रही वाम मोर्चे की सरकार की हार का एक उल्लेख्य्नीय कारण नन्दी ग्राम और सिंगुर के किसानो व ग्रामवासियों का लगातार चलता रहा आन्दोलन व संघर्ष था | साथ ही इस अधिग्रहण के विरोध में किसानो के साथ खड़ी दिखती रही तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव में मिली जीत का भी एक उल्लेख्य्नीय कारण जरुर था |ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद उस अधिग्रहित जमीन टाटा मोटर्स को न दिए जाने और किसानो को वापस किए जाने का वादा भी किया था | उसी के मुताबिक़ ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के एक माह बाद ही सिंगुर भूमि प्र्न्वास एवं विकास अधिनियम 2011 को बंगाल विधानसभा में पारित कर लागू भी करवा दिया था | टाटा मोटर्स ने इसके विरुद्ध कलकत्ता उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया था | उसी मुकदमे के फैसले में टाटा मोटर्स की जीत हुई है | इस फैसले से उस अधिग्रहित जमीन पर टाटा मोटर्स को वहा का मालिकाना पाने का रास्ता साफ़ हो गया है | लेकिन इस फैसले से सिंगुर के किसान --
संघर्ष का लाभ लेकर सत्ता की उंचाई पर चढ़ चूकी ममता बनर्जी की हार कत्तई नही हुई है , बल्कि वह हार दरअसल वह जमीन जीविका की आस खो चुके उन किसानो की हुई है , जो जमीन वापस पाने की आस लगाए हुए थे | भूमि अधिग्रहण को जारी रखने का यह न्यायालयी फैसला उनकी जीविका पर ग्रामीण जीवन के स्थायी निवास पर पूर्ण विराम लगाने का काम कर देगा | इस संदर्भ में वहा के किसानो की प्रतिक्रियाये देखिये 23 जून के हिन्दी दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड ने न्यायालयी फैसले के बाद वहा की दुखी औरतो के चित्र समेत कई लोगो के बयान भी प्रकाशित किए है| इस अधिग्रहण में 7 बीघा जमीन जवाने वाले गोपाल कथाल ने कहा की '' हमने इस लड़ाई में सब कुछ खो दिया | ममता बनर्जी हमारे कारण मुख्यमंत्री बनी लेकिन हमे कुछ नही मिला | अपनी जमीन गवा चूकी महिला किसान चम्पा दास ने कहा की '' अब हमे चावल के भी लाले पड़े है | राज्य सरकार 2 रूपये किलो के हिसाब से जितना चावल देगी उससे 5 सदस्यों के के परिवार का पेट नही भर पाएगा
चम्पा दास ने यह भी कहा की ममता दीदी ने सिंगुर को भुला दिया | वे अब बहुत उंचाई पर पहुंच गयी है | वह से अब हम लोग उन्हें दिखाई नही देते है | वहा के खेतिहर मजदूरों और बटाईदारो का कहना है की न तो हमे मुआवजा पाने का अधिकार है और न ही भूमि अधिग्रहण के बाद कोई और काम मिल पाने की ही गुंजाइश रह गयी है | हममे से किसी के पास टूटे मकान की मरम्मत के लिए भी पैसे नही है |
ये बयानप्रचार माध्यमी बयान नही है , बल्कि सिंगुर के लोगो के टूटते -- डूबते जीवन के बयान है | देश -- प्रदेश के आधुनिक विकास के नाम पर बेघर -- बेरोजगार होते लोगो के जमीन ,, जीविका और जीवन खोते लोगो के बयान है | लेकिन इसे सुनेगा कौन ? सत्ता सरकारों को आधुनिक विकास की गाडी भगानी है | उन्हें यह गाडी आम मजदूरों , किसानो दस्तकारो , दुकानदारों व अन्य साधारण मध्यम वर्गीय हिस्सों को रौदते हुए भगानी है , ताकि देश दुनिया के धनाढ्य हिस्सों को उच्चस्तरीय शासकीय हिस्सों व गैर शासकीय हिस्सों की चौतरफा चढत -- बढत में तेजी आये | न्यायालयों को सिर्फ कानून देखना है | आधुनिक विकास के नाम पर रौदे जाते रहे जनसाधारण की अनदेखी करते हुए कानून की धाराओं के अनुसार फैसले सुना देना है | भले ही वे कानून राष्ट्र विरोधी , जनविरोधी ब्रिटिश हुकूमत के ही बनाये हुए क्यों न हो ! भले ही उन कानूनों से राष्ट्र और राष्ट्र के बहुसंख्यक जनसाधारण का तब से लेकर आज तक अहित क्यों न होता रहा हो !
अब इस फैसले से टाटा मोटर्स का मालिकाना सही और सार्वजनिक साबित हो जाएगा | जबकि किसानो को उनकी जमीन -- जीविका की वापसी सार्वजनिक हित के विरुद्ध साबित हो जायेगी | टाटा साहब ने तो गुजरात के साणद में नैयनो कार का कारखाना लगा लिया है | दूसरे प्रान्तों में लगाने जा रहे है | लेकिन सिंगुर के किसान आखिर कहा जाए ? इसे कौन सोचेगा ? न्यायालय का काम यह सोचना है ही नही | प्रचार माध्यमी विद्वान् इसे टाटा बनाम ममता बनर्जी बताते हुए सिंगुर के किसानो व ग्राम वासियों को पहले से ही उपेक्षित किए हुए है | सत्ता सरकारे उन उदारीकरणवादी , वैश्वीकरणवादी तथा निजीकरणवादी जनविरोधी नीतियों की घोर पक्षधरता में पिछले 20 सालो से खुलकर जुटी हुई है | वे अपने चुनावी हितो व स्वार्थो के लिए भले ही सिंगुर या किसी अन्य जगह पर किसानो का साथ देती नजर आये , लेकिन सत्ता प्राप्ति के बाद उन्हें जनविरोधी , किसान विरोधी नीतियों को ही बढाते जाना है | टाटा मोटर्स जैसी धनाढ्य कम्पनियों को हर तरह से छूट देनी है |
जब यह काम किसानो , मजदूरों की हिमायती और पुजीपतियो का विरोध करने वाली वामपंथी पार्टियों की वाम मोर्चा सरकार नही कर सकती तो तृणमूल कांग्रेस या किसी भी दूसरी क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर की पार्टी से कोई उम्मीद हरगिज नही की जा सकती है | इसीलिए अब सिंगुर या किसी अन्य जगह के संघर्षरत जनसाधारण के जमीन , जीविका और जीवन का सवाल देश -- प्रदेश के सभी गाँवों के किसानो , ग्रामवासियों समेत अन्य क्षेत्र में विभिन्न कामो , पेशो में लगे जनसाधारण का सवाल बन चुका है | यह जनसाधारण से ही इन नीतियों कारवाइयो के विरुद्ध जनचेतना , जनस्ग्थं और जन आन्दोलन की माग करता है | धनाढ्य कम्पनियों के लिए जारी भूमि अधिग्रहण के विरोध की माँग करता है |
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-सुनील दत्ता
पत्रकार

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