शनिवार, 23 जनवरी 2021

नागेंद्र सकलानीः टिहरी रजवाड़ा-विरोधी विद्रोह के हीरो



नागेन्द्र  सकलानी  का  जन्म  16नवंबर 1920 को वर्तमान उत्तराखंडके  टिहरी-गढ़वाल  क्षेत्र  के  सकलना पट्टी में पुजार गांव में हुआ था। उस वक्त यह इलाका टिहरी-गढ़वाल सामंती रजवाड़े का हिस्सा था। नागेन्द्र की पढ़ाईदसवीं क्लास तक देहरादून में हुई थी।विद्यार्थी जीवन में वे स्टूडेंट्स फेडरेशनके संपर्क में आए।अपने  स्कूली  दिनों  में  ही  वेप्रजा-मंडल के भी संपर्क में आ गए।प्रजा-मंडल सामंत-विरोधी संघर्ष कासंयुक्त संगठन था जिसमें विभिन्न विचारोंके  लोग  शामिल  थे।  यह  कांग्रेस  सेनिकला हुआ एक संगठन था। टिहरीराजशाही ने जंगलों पर सीधा कब्जाकर लिया था। ब्रिटिश भारत में रेलवेप्रसार में लकड़ी के स्लीपरों की मांगबढ़  गई  थी।  राजा  ने  इसका  भरपूरफायदा उठाया और जंगलों की कटाईकरवाई। साथ ही जंगलों में रहने वालोंपर जुल्म ढाए।राजशाही ने 30 मई 1930 कोतिलाड़ी  में  सैंकड़ों  किसानों  का  खूनबहाया था। रवंई में 100 से भी अधिकग्रामीणों को गोली से उड़ा दिया गया।श्रीदेव सुमन ने उत्तरदाई शासनकी मांग की थी जिस पर उन्हें मौत कीसजा  दी  गई।  जेल  में  उन्होंने  84दिनों की भूख-हड़ताल की। मृत्यु केबाद उनके शरीर को बोरे में बंद करकेभिलंगना नदी में बहा दिया गया था।टिहरी-गढ़वाल रजवाड़े कीपृष्ठभूमि1815 की अंग्रेजों के साथ संधिके अनुसार अलकनंदा नदी का बायांइलाका ब्रिटिश गढ़वाल कहलाया औरदायां टिहरी-गढ़वाल। टिहरी-गढ़वालकी  राजधानी  टिहरी  थी  जिसमें17परगना थे। ‘‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफएडवान्स्ड रिसर्च’’ ;2016, अंक 4द्धके अनुसार, ‘खास पट्टी’ के लोग विशेषतौर पर शोषित थे। उन्होंने बार-बारसंघर्ष और विद्रोह किए। आगे चलकरउन्हीं  के  नेता  के  रूप  में  सकलानीतथा  अन्य  कम्युनिस्ट  सामने  आए।मानवेंद्र शाह टिहरी-गढ़वाल के अंतिममहाराजा थे, उनके पिता नरेन्द्र शाहने स्वास्थ्य कारणों से 26 मई 1946को  गद्दी  छोड़ी  थी।  मानवेंद्र  को‘बोलांदा बद्री’ ;विष्णु के अवतारद्ध कहाजाता था। वे द्वितीय विश्वयु( में बर्माके मोर्चे पर भी लड़े थे। उन्होंने 1946  से 49 तक शासन किया।19वीं  सदी  में  गोरखाओं  नेगढ़वाल  पर  दमनकारी  शासन  कियाथा।  जनता  कर  नहीं  चुका  पाने  केकारण खुद को दासों ;गुलामोंद्ध के रूपमें नीलाम कर देती थी। जो इसमें भीसफल  नहीं  होते  थे  उन्हें  हरिद्वार  में‘हर की पौड़ी के पास भीमगोडा में ‘दासबाजार’ में बिक्री के लिए भेज दियाजाता। हर साल तीन वर्ष से तीस वर्षके सैंकड़ों लोगों को चौकियों से पारहोना पड़ता था। उन्हें 10 से 100रुपयों में बेच दिया जाता। कहा जाताहै कि दो लाख से भी अधिक लोग बेचेगए।  उनपर  अन्य  कई  प्रकार  केअत्याचार किए जाते रहे।जन-प्रतिरोध  के  दबाव  में।धीरे-धीरे कुछ सुधार होते गए। आगेगोरख-अंग्रेज यु(ों बाद गढ़वाल कोदो हिस्सों, बिटिश गढ़वाल और टिहरीगढ़वाल में बांटा गया।कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रभावधीरे-धीरे  नागेन्द्र  सकलानीकम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव में आनेलगे।  इलाहाबाद  के  एक  युवामार्क्सवादी आनंद स्वरूप भारद्वाज कोगढ़वाल क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी स्थापितकरने  के  लिए  देहरादून  भेजा  गया।नागेंद्र समेत अन्य युवा कम्युनिस्टों काप्रथम  दल  तैयार  हुआ।  मार्क्सवादीविचारधारा संबंधी प्रशिक्षण स्कूल लगा।नागेन्द्र सकलानी ने ब्रजेन्द गुप्ता केसाथ मिलकर किसानों के बीच कामकिया। उनके साथ भूदेव लखेड़ा, त्रेपनसिंह  नेगी  तथा  इंदर  सिंह  राणा  भीशामिल थे। उन्होंने किसानों को संगठितकिया।  1946  के  पौड़ी  चुनावों  मेंचंद्रसिंह  गढ़वाली  चुनाव  लड़े  थे।सकलानी ने उनके अभियान में सक्रियकार्य किया।1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलनके  सिलसिले  में  जेल  जाने  के  बादजब ब्रजेन्द्र कुमार गुप्त रिहा हुए तबकम्युनिस्ट पार्टी में आ गए। तब तक1942 में नागेंद्र सकलानी भी पार्टीमें आ चुके थे। वे आनंद स्वरूप भारद्वाजऔर रणेश्वर सिंह के साथ मिलकरदेहरादून में पार्टी ऑफिस चला रहे थे।आनंद  स्वरूप  देहरादून  में  पार्टी  केसंयोजक  थे  और  रणेश्वर  प्रादेशिककमिटि के सदस्य। नागेंद्र तथा अन्यसाथियों  ने  नमक,  तेल,  केरोसिन,राशन, इ. को लेकर जन-संघर्ष संगठितकिए।भारत की आजादी के बाद15  अगस्त  1947  को  भारततो  आजाद  हो  गया  लेकिन  टिहरीरजवाडे़ में राजा का शासन बरकराररहा। रजवाड़े ने भारत की आजादी कास्वागत  नहीं  किया।  टिहरी  राज्य  केअंदर सकलाना नामक एक छोटा-साराज्य था। वहीं के जागीरदार तथा टिहरीरजवाड़े ने जनता पर नए टैक्स लाददिए।  इन  टैक्सों  को  लागू  करने  केलिए राजा ने सकलाना में सशस्त्र फौजेंभेजीं। गांवों पर 13,000 रुपयों सेभी अधिक का टैक्स लादा गया। फौजोंकी  कमान  मार्कण्डेय  थपलियाल  केहाथों में थी। उसने लोगों की संपत्तिजब्त करना शुरू कर दिया। अधिकतरग्रामीण  भागकर  स्वतंत्र  भारत  केदेहरादून जिले क्यारा शरणार्थी शिविरचले गए। नागेंद्र सकलानी ने क्यारा मेंशरणार्थी कैम्प के निर्माण में सहायताकी। उन्होंने ग्रामीणों को संगठित किया।वे ग्रामीण पुलिस पार्टी से भिड़ गए।पुलिस को एक बड़े जुलूस की शक्लमें टिहरी पहुंचा दिया। कुछ ही दिनोंबाद  सकलाना  पट्टी  के  मुआफिदर;भूस्वामीद्ध ने रजवाड़े के साथ अपनेसारे समझौते तोड़ लिए। फिर उसनेसकलाना क्षेत्र के भारत में विलय कीघोषणा कर दी।सकलानी द्वारा संघर्षश्री देव सुमन की शहादत की प्रथमवर्षगांठ भा.क.पा. की पहल पर 25जुलाई 1945 को देहरादून में मनाईगई। इसमें कांग्रेस भी शामिल थे। इससेप्रेरित होकर नागेंद्र टिहरी में काम करनेकी  इच्छा  रखने  लगे।  नागेंद्र  ने  नएलोगों को पार्टी से जोड़ा। कॉ. गोविंदसिंह नेगी पहले घोर कम्युनिस्ट-विरोधीथे  लेकिन  नागेंद्र  के  संपर्क  में  वे कम्युनिस्ट बन गए। नेगी के अनुसार,क्या मालूम था कि मात्र दस मिनट की‘‘मामूली-सी मुलाकात मेरी जिंदगी कीपूरी धारा को ही बदल देगी।’’गोविंद  सिंह  नेगी  ने  सुमन  के शहादत आयोजन के संदर्भ में लिखा कि ‘‘कम्युनिस्ट विरोध के उस सैलाब में टिहरी के राजनैतिक कार्यकर्ताओं,प्रजामंडल के साथियों और मुझ सरीखे जोशीले कम्युनिस्ट विरेधी नौजवानों के बीच टिहरी की मुक्ति के लिए एकताकी यह पहली सुनहरी कड़ी थी। मेरे लिए नई जिंदगी की यह एक शुरूआतथी।’’टिहरी राजशाही के खिलाफ नागेंद्र सकलानी और ब्रजेंद्र इस तरह मोर्चा सम्भाले हुए थे कि राजशाही उन्हें एक ही व्यक्ति समझती थी! राजदरबार से जारी वारंट में नाम लिखा थाः नागेन्द्र सकलानी उर्फ ब्रजेंद्र कुमार!टिहरी में इतने कर लगे हुए थे कि कहा  जाता  थाः  20  कलम,  36रकम। बाहर से आने वाले व्यक्ति केहर सामान पर पौन टोटी टैक्स लगता।जमीन का लगान 4 से 5 गुना बढ़ा दिया गया जगह-जगह कैम्प लगाकर लोगों से टैक्स और फंड वसूला जाता।टिहरी  में  ऐसे  फिल्मी  गीतों  और दोहों के गाने सुनने पर, जो राजशाही के खिलाफ लगते थे, लोगों को जेल में डाल दिया जाता। इसके तथा अन्य अत्याचारों के खिलाफ नागेंद्र ने संघर्ष की ठानी। नागेंद्र सकलानी और ब्रजेश गुप्त टिहरी चल पडे़। दादा दौलतराम के साथ उन्हेंने जगह-जगह आम सभाएं कीं। कड़ाकोट और डांगचौरा में नागेंद्रको गिरफ्तार कर टिहरी जेल में बंदकर दिया गया। उन्हें 11 बरस की सजा हुई। अत्याचार का विरोध करते हुए  नागेंद्र ने भूख हड़ताल आरंभ कर दी। उन्हें जबरन खिलाने की कोशिश की  गई।  मुंह  नहीं  खोलने  पर  उनके दांत तोड़ दिए गए। यह सारा विवरण बंबई में ‘जनयुग’ में प्रकाशित किया गया।  आजाद  हिंद  फौज  के  सिपाही जब लौट आए तो ‘जयहिंद’ का नारा लगने और गांधी टोपी पहनने पर जेल भेज दिया जाता।नागेंद्र  सकलानी  को  3  दिसंबर 1946 को रिहा किया गया। सकलानी वापस लौटने के बाद उन्होंने क्यारा,कीर्तिनगर,  ऋषिकेश,  इ.  जगहों  में सत्याग्रही  कैम्प  बनाए।  कीर्तिनगर  मेंकचहरी  में  आग  लगा  दी  गई  औरसभी राजकर्मचारियों को बंदी बना लियागया।धनडाकयह पहाड़ों में जन-प्रतिरोध औरविरोध की आवाज उठाने का एक तरीकाथा। इसके धनडाक कहते थे। प्रजा केप्रत्येक व्यक्ति को अपनी शिकायत राजातक ले जाने का अधिकार था। लेकिनजब  शिकायत  एक  से  अधिक  लोगकरते तो इसे धनडाक कहा जाता था।1946 का चुनाव1946 में सारे देश में आम चुनावसंपन्न  हुए।  इन्हीं  चुनावों  में  देश  कीअंतरिम  सरकार  चुनी  गई।  साथ  हीसंविधान सभा भी जिसने आगे चलकरदेश  का  संविधान  तैयार  किया।कम्युनिस्ट पार्टी ने भी जहां-तहां अपनेउम्मीदवार खड़े किए।गढ़वाल में पार्टी ने चंद्रसिंह गढ़वाली को खड़ा करने का निश्चय किया।इसके लिए उनपर लगा प्रतिबंध हटवाने की जरूरत थी। इस काम के लिएनागेंद्र सकलानी, ब्रजेंद्र गुप्त तथा कुछ अन्य साथियों को जिम्मेदारी दी गई।डिप्टी-कमिश्नर ने कहा, हमारे अधिकार में नहीं है। कॉ. महमूदुज्जफर लखनऊमें गवर्नर से मिले। लैंसडाउन कोर्ट-मार्शल का ऑर्डर लेने गए। लेकिन उन्हेंघुमाया गया। फिर दिल्ली और लखन में वाई.डी.शर्मा, एम. फारूकी तथा साथीएडजूडेन्ट जनरल अब्दुल्ला तथा अन्य अधिकारियो ंसे मिले। चंद्रसिंह पर सेपाबंदी हटा ली गई और उन्हें चुनावों में खड़े होने की इजाजत मिल गई।नागेंद्र सकलानी ने चारों ओर प्रचार कर दियाः दिसंबर 1946 में चंद्रसिंहगढ़वाल आ गए। हजारों लोग इकट्ठा हो गए। एकलानी और ब्रजेन्द्र ने धुआंधारचुनाव-अभियान आरंभ कर दिया। सकलानी के भाषणों का पौड़ी तथा अन्यजगहों पर असाधारण प्रभाव पड़ा।पौड़ी में पार्टी केंद्र1946 में पौड़ी लौटकर नागेंद्र सकलानी ने ब्रजेंद्र और देवीदत्त के साथमिलकर पार्टी-केंद्र का गठन किया। उस वक्त अन्न की भारी कमी हो गई थीऔर अकाल पड़ गया। जो भी अनाज मिल रहा था वह ऊंट के मुंह में जीरे केबराबर था। पार्टी ने संघर्ष किया और दो महीने के भीतर गढ़वाल को अन्न कीकमी वाला क्षेत्र घोषित कर दिया। वहां आंशिक राशन-व्यवस्था बहाल की गई।नागेंद्र सकलानी तथा अन्य साथियों ने प्रशासन के सहयोग से अन्न-वितरण केलिए सहकारी समिति का गठन किया। नागेन्द्र तथा कुछ अन्य साथी इसकेडायरेक्टर बने।कीर्तिनगर की घटनाः सकलानी का अंतिम पत्रनागेन्द्र सकलानी ने 10 जनवरी 1948 को अपना अंतिम पत्र लिखा।उसके दूसरे ही दिन वे मारे गए। पत्र में उन्होंने लिखा कि 10 जनवरी को हमनेकीर्ति नगर में 600 स्वयंसेवकों की मीटिंग आयोजित की। फिर सबडिविजनलमैजिस्ट्रेट को जगह खाली करने का अल्टीमेटम दिया गया। मैजिस्ट्रेट ने जगहखाली कर दी। पुलिस और फौज भी मान गई और गाड़ियों में नरेन्द्रनगर चलेगए। अब कीर्तिनगर मुक्त हो गया और भारत में मिला लिया गया। चारों ओर सेलोग पहुंचने लगे। सकलानी लिखते हैं कि हमने रघुनंदन प्रताप डंगवाल, एम.ए.एल.एल.बी.  को  कीर्तिनगर  का  नया  एस.डी.ओ.  बनाया  है  और  दौलत  रामअध्यक्ष हैं। एक बहादुर किसान मंजू सिंह खंडारी नए पुलिस इंस्पेक्टर हैं। कलहम टिहरी की ओर मार्च करेंगे। योजना है कि 15 जनवरी तक टिहरी पर कब्जाकर लेंगे।लेकिन अगले दिन 11 जनवरी 1948 को जगदीश डोभल की कमान मेंशाही सेना की एक टुकड़ी नरेंद्रनगर से पहुंची। उसे कीर्तिनगर कोर्ट तथा अन्यभवनों पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था। हिंसात्मक झड़पें हईं। डोभल नेमोलूराम भरदारी को गोली मार दी और भाग गया। भीड़ ने उनका पीछा कियाऔर जंगल में उनके भागने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया। नागेंद्र सकलानी नेउनके पैर दबोच लिए। डोभल ने उन्हें गोली मार दी। इस प्रकार नागेंद्र सकलानीऔर मोलू भरदारी शहीद हो गए।यह घटना 12 जनवरी 1948 की थी।शोक जुलूसरजवाड़े के सभी अफसरों को जनता ने पकड़ लिया। उन्हें हाईकोर्ट के कमरेमें पहरे में बंद कर दिया गया। वे उन्हें तुरंत सजा देना चाहते थे। प्रजामंडल और कम्युनिस्ट पार्टी के त्रेपन सिंह नेगी, कम्युनिस्ट देवी दत्त, कांग्रेस के त्रिलोकीनाथ पुरवर ने भीड़ को नियंत्रित और अनुशासित किया।शहीदों को चिता देने का इंतजाम अगली सुबह के लिए किया गया। लेकिन इस बीच सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता चंद्रसिंह गढ़वाली पहुंच गए। उन्होंने सुझाव दिया कि शहीदों के शवों को टिहरी ले जाया जाय। इस पैदल मार्च में पूरे तीन दिन लगे। हजारों लोग शामिल हुए। पुलिस ने रास्ता छोड़ दिया। एस.डी.ओ.डोभल और अन्य पार्टी अफसरों ने भी कैदियों के रूप में पैदल मार्च किया। राजाकी फौज और प्रशासन ने आत्मसमर्पण कर दिया। अब सत्ता क्रांतिकारियों केहाथों  में  आ  गईं।  उन्होंने  1  अगस्त  1949  तक  शासन  किया।  उस  दिनरजवाड़े को भारत में मिला लिया गया।
-अनिल राजिमवाले

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