tag:blogger.com,1999:blog-8216241735171433424.post4707861878070348573..comments2024-03-25T12:20:31.912+05:30Comments on लो क सं घ र्ष !: फास्ट ट्रैक कोर्ट पर विचरण का एक दृश्यRandhir Singh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8216241735171433424.post-44601169925247093492010-01-06T07:00:24.562+05:302010-01-06T07:00:24.562+05:30भारत में जरूरत की चौथाई अधीनस्थ अदालतें भी नहीं है...भारत में जरूरत की चौथाई अधीनस्थ अदालतें भी नहीं हैं। सरकारें इन्हें स्थापित नही करना चाहतीं। इस कमी को छुपाने के लिए फास्ट ट्रेक लाई गई हैं। उन का कंसेप्ट गलत है इस में आप से भिन्न राय मेरी नहीं है। मूल समस्या तो अदालतों की संख्या बढ़ाने की है। उसे लगातार उठाना होगा। वकीलों और जनता को भी उठाना होगा।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8216241735171433424.post-72891703799851756012010-01-05T16:54:21.240+05:302010-01-05T16:54:21.240+05:30वकील साहेब मेरे विचार मे फास्ट ट्रैक कोर्ट वही भूम...वकील साहेब मेरे विचार मे फास्ट ट्रैक कोर्ट वही भूमिका निभा रहे हैं जो सेसन कोर्ट को निभाना चाहिए । आज से ४० - ५० साल पहले फ़ौजदारी के मुकदमों मे एक साल के भीतर फ़ैसले आ जाते थे और सिविल के मामलों मे २-३ साल मे । अब तो फ़ौजदारी मे १२-१५ साल और सिविल मे २० साल तक लग रहा है। ऐसे मे क्या न्याय क्या व्यवस्था । पूरा सिस्टम क्रिमिनल के पक्ष मे है। क्योंकि सजा तभी होगी जब अपराध बियोंड डाउट साबित होगा । तो प्रोफ़ेसनल अपराधी इसका फ़ायदा उठा रहे हैं और आम आदमी छला जा रहा है । ऐसे मे फास्ट ट्रैक कोर्ट थोड़ी राहत दे रहे है । न्यायिक सुधार मे यह छोटा सा कदम है अभी बहुत कुछ होना बाकी है। जो कमियां हैं, जैसा गौड़ जी ने कहा उसे जागरूकता से रोकना चाहिए । मगर फास्ट ट्रैक कोर्ट की इस व्यवस्था का स्वागत होना चाहिए , यह न्यायिक सुधार की तरफ छोटा से कदम जैसा है।विजय प्रकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8216241735171433424.post-29258255337797912292010-01-05T06:54:07.325+05:302010-01-05T06:54:07.325+05:30अच्छा आलेख।अच्छा आलेख।हास्यफुहारhttps://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8216241735171433424.post-72705950189585261382010-01-04T23:45:08.563+05:302010-01-04T23:45:08.563+05:30बहुत कुछ आप से सहमत हूँ। हमारे यहाँ भी आरंभ में ऐस...बहुत कुछ आप से सहमत हूँ। हमारे यहाँ भी आरंभ में ऐसा ही था। लेकिन बहुत संघर्ष के बाद अब फास्ट ट्रेक अदालतों को बाध्य कर दिया गया है कि वे इन कानूनों का सम्मान करें। वे करने भी लगे हैं। बहुत कुछ वकीलों और बार की ताकत पर भी निर्भर करता है। बाकी आप की बात से सहमत हूँ कि न्यायपालिका को नष्ट किया जा रहा है। लेकिन यह काम व्यवस्था का आत्मघातक काम है। वह खुद नष्ट हो जाएगी। लेकिन हमें इन सब के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए। फास्ट ट्रेक के स्थान पर पर्याप्त न्यायालय हों तो फैसले वैसे ही जल्दी निकलने लगेंगे। फास्ट ट्रेक भी एक सेशन केस में साल भर से अधिक लगा ही देती है। इतना समय बहुत होता है। प्रतिमाह 14 केस करना आदर्श है बाध्यता नहीं। लेकिन वहाँ प्रीमेच्योर लोगों को जज लगाया जाता है जो उसे बाध्यकारी समझते हैं। जज यदि एक साथ बहुत सारे काम करता है तो उसे रोका जा सकता है। वकीलों में दम होना चाहिए। हम नहीं करने देते अपने यहाँ ऐसा कोई काम जिस से न्यायिक कार्य में लापरवाही होती हो।<br />भारत में जरूरत की चौथाई अधीनस्थ अदालतें भी नहीं हैं। सरकारें इन्हें स्थापित नही करना चाहतीं। इस कमी को छुपाने के लिए फास्ट ट्रेक लाई गई हैं। उन का कंसेप्ट गलत है इस में आप से भिन्न राय मेरी नहीं है। मूल समस्या तो अदालतों की संख्या बढ़ाने की है। उसे लगातार उठाना होगा। वकीलों और जनता को भी उठाना होगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com