रविवार, 29 दिसंबर 2013

यहाँ एक बच्चे के खून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ो...1

 अमानवीय, पाष्विक, बर्बर या ऐसी कोई संज्ञा मुज़फ्फरनगर, श्यामली और आस-पास घटित होने वाली घटनाओं को अंजाम देने वालों के लिए पर्याप्त होगी? आचर्य और बेशर्मी की बात तो यह है कि इसे जायज़ ठहराने की उसी तरह की कोशिश की गईं जिस तरह  गुजरात दंगों को गोधरा कांड की प्रतिक्रिया बताने का प्रयास किया गया था। उत्तर-प्रदेश में इस तरह के साम्प्रदायिक षड्यंत्र पिछले कई दंगों के मामले में पहले ही बेनकाब हो चुके हैं। इन दंगों में आमतौर से दंगाइयों ने समाज में विष घोलने और भावनाएँ भड़काने के लिए महिलाओं के साथ अभद्रता को हथियार रूप में प्रयोग  किया है। फैज़ाबाद में तो हिन्दू लड़की से छेड़छाड़ के साथ ही मूर्तियों के खंडित करने की अफवाह भी फैलाई गई थी। बाद में यह तथ्य खुलकर सामने आगया कि मूर्तियाँ सही सलामत थीं। उनकी वीडियो भी जारी हो गई। किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ का कोई मामला कहीं दर्ज नहीं हुआ। यहाँ तक कि कोई यह बताने वाला भी नहीं था कि पीडि़त लड़की कौन और कहाँ की रहने वाली थी। इस बात के भी कई प्रमाण मिले कि दंगा पूर्व नियोजित था और लड़की के साथ छेड़छाड़ या मूर्तियों को खंडित करने की अफवाह जानबूझ कर गढ़ी गई थी। मुज़फ्फरनगर, शामली, मेरठ और बाग़पत में होने वाले दंगे के लिए भी बहाना यही बनाया गया कि जाट लड़की से मुसलमान लड़के ने छेड़छाड़ की थी। हालाँकि यह बात सही नहीं थी। मामला 27, अगस्त को मोटर साइकिल और साइकिल की टक्कर के बाद उपजे विवाद से शुरू हुआ था। बात बढ़ गई और कंवाल ग्राम निवासी शाहनवाज़ की सचिन और गौरव नामक दो जाट युवकों ने चाकू मार कर हत्या कर दी। मुहल्ले के लोगों ने इन दोनों हमलावरों को भी मार डाला। दोनों पक्षों की तरफ से लिखवाई गई एफ.आई.आर. में भी मोटरसाइकिल और साइकिल की टक्कर को ही विवाद का कारण बताया गया है। इस घटना से फिरकापरस्तों को पीढि़यों से चले आ रहे मुसलमान-जाट शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व को दंगों की आग में जलाने का मौका मिल गया। नफरत के सौदागरों ने मोटर साइकिल-साइकिल टक्कर की जगह लड़की के साथ छेड़छाड़ का प्रचार करना शुरू कर दिया। इस आग में घी डालने के लिए यू ट्यूब से पाकिस्तान की एक वीडियों डाउन लोड की गई जिसमें कुछ दाढ़ी टोपी वालों को एक व्यक्ति की पिटाई करते दिखाया गया था। इस वीडियो द्वारा प्रचारित किया जाने लगा कि मुसलमान जाट लड़के की पिटाई कर रहे हंै और विभिन्न माध्यमों से इसका बहुत व्यापक स्तर पर वितरण होने लगा। कथित रूप से यह काम भाजपा  विधायक संगीत सिंह सोम ने किया था। वातावरण इतना दूषित कर दिया गया कि इससे निपटने के लिए विभिन्न खापों ने पंचायतों का दौर शुरू कर दिया और 7, सितम्बर को कई खापों ने मिलकर ’बहू-बेटी बचाओ’ महापंचायत बुलाई जिसमें जमकर साम्प्रदायिक भाषण बाज़ी हुई। उसके बाद बड़े पैमाने पर दंगा भड़क गया। एक बार फिर यह प्रचारित किया गया कि पंचायत से वापसी पर मुसलमानों ने जाटों पर हमला कर दिया जिससे दंगा भड़का। यह बात सही है कि पंचायत से वापसी पर दोनों समुदाय के लोगों में कई स्थानों पर टकराव हुआ जिसमें दोनांे तरफ के लोग हताहत और घायल भी हुए थे। हमले की शुरुआत करने के मामले में परस्पर विरोधी आरोप भी हैं। परन्तु जहाँ तक दंगों की शुरूआत की बात है तथ्य कुछ और ही कहते हैं।
    5, सितम्बर को एक खाप पंचायत के बाद नफीस नामक व्यक्ति को चाकू मार दिया गया। 7, सितम्बर को होने वाली महापंचायत में शामिल होने के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों के साथ मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदयिक नारे लगाते हुए लोग नगला मंदौड़ में इकट्ठा हुए। कहा जाता है कि यह संख्या एक लाख से भी अधिक थी। दोपहर में ही गढ़ी दौलत, कांधला निवासी नफीस अहमद ड्राइवर जो किराए पर महापंचायत में अपनी बोलेरो लेकर गया था उसकी हत्या कर दी गई। 4 बजे शाम में नंगला बुज़ुर्ग निवासी असगर पुत्र अल्लाह बन्दा को मार डाला गया। दिन में ही लपेड़ा निवासी फरीद पुत्र दोस्त मुहम्मद, सलमान पुत्र अमीर हसन, गढ़ी फीरोज़ाबाद निवासी नज़र मुहम्मद पुत्र मूसा, लताफत पुत्र मुस्तफा की भी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं के बाद फैलने वाली अफवाहों से एक बड़े दंगे की पृष्ठिभूमि तैयार हो गई। पंचायत से वापसी पर रास्ते में हथियारों के प्रदर्षन और नारेबाज़ी से कई स्थानों पर टकराव हुए और मुज़फ्फरनगर तथा शामली पूरी तरह दंगे की चपेट में आ गया। इसकी लपटें मेरठ और बाग़पत तक भी पहुँच गईं। करीब डेढ़ सौ गाँव मुसलमानों से खाली हो गए। उनके घरों को जला दिया गया। 7, अगस्त की रात से जो आगज़नी, हत्या, और बलात्कार की घटनाएँ हुईं उसे सही मायने में दंगा कहा ही नहीं जा सकता क्योंकि इसका शिकार वह गरीब मुसलमान मज़दूर हुए जो पीढि़यों से जाट किसानों के यहाँ मज़दूरी करते आ रहे थे। उनके पास अपनी खेती नहीं थी। व्यवसाय के नाम पर लोहारी, बढ़ईगीरी या नाई के काम करते थे और इसके लिए भी उन्हीं जाटों पर आश्रित थे। सामाजिक स्तर पर उनकी जाट किसानों के सामने सर उठाने की भी हैसियत नहीं थी। इस एकतरफा दंगें में नौजवान, बूढ़ों, बच्चों, महिलाओं की निर्मम हत्या की गई। महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की एक साथ इतनी घटनाएँ उत्तर प्रदेश में पहले कभी नहीं हुई। इन घटनाओं को अंजाम देने का जो तरीका इक्कीसवीं सदी के मानव ने अपनाया उसका कोई उदाहरण दुनिया के किसी प्रजाति के जानवरों के इतिहास में नहीं मिलता। बुज़ुर्ग दम्पत्ति को आरा मशीन से काट कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। महिलाओं और कम उम्र लड़कियों के साथ उनके परिजनों के सामने सामूहिक बलात्कार किया गया। दूध पीते बच्चे को गोद में लिए हुए महिला को बच्चे समेत जि़न्दा आग में जला दिया गया। जले हुए शवों को अलग करने का प्रयास जब विफल रहा तो दोनों को एक साथ ही दफन कर दिया गया। कितने ही लोगों की हत्या कर सबूत मिटाने के लिए लाशों को नहर में बहा दिया गया, जला दिया गया या खेतों में मिट्टी के नीचे दबा दिया गया।
 क्रमश:
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मसीहुद्दीन संजरी
 लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित

1 टिप्पणी:

sm ने कहा…

well written this is the story of real india , people die in cold and other side politicians enjoy dance

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