गुरुवार, 21 जनवरी 2021

आर एस एस से गणतंत्र कोेेे फिर वापस लायें-डी राजा

 

 साम्प्रदायिक एवं फासीवाद ताकतों के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा:डी राजा - Hindi  News: हिन्दी न्यूज़, Latest News in Hindi, Breaking Hindi News, लेटेस्ट  हिंदी न्यूज़ ...

महात्मा गांधी पर एक किताब का विमोचन करते हुए, अपनी शुरूआत में ही आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा,  “यदि  कोई  हिंदू  है,  तो  उसे देशभक्त होना चाहिए, यही उसका मूलचरित्र और स्वभाव होगा। कभी-कभी आपको किसी की देशभक्ति को जागृत करना पड़ सकता है लेकिन वह ;हिंदू कभी भी भारत विरोधी नहीं हो सकताहै।‘‘उधत हिस्से ने एक विवाद पैदा कर दिया क्योंकि लोग ऐसे बयानों के पीछे विभाजन के एजेंडे को पहचानने और उसे बोलने में काफी चपल हैं।आरएसएस-भाजपा  के  नेता  ऐसी टिप्पणी  करते    रहते  हैं,  जो  हमारे संविधान की भावना का अनादर करती हैं और आरएसएस-भाजपा के नापाक डिजायन को परिलक्षित करती रहतीहैं। आरएसएस -भाजपा गठजोड के लिए  धर्म  वह  एक  धुरी  बना  रहेगा जिसके चारों ओर वह एक सांप्रदायिक अधिनायकवादी राज्य के अपने एजेंडे को  पूरा  करने  के  लिए  हिंदुत्व  की एकरूपता  लागू  करके  लोगों  के विभिन्न समूहों को इकट्ठा करने की कोशिश करता रहता है। आरएसएस ने मनुस्मृति जैसे ग्रंथों के आधार पर अपना  दृष्टिकोण  तैयार  किया  है,जिसमें  एक  विभाजित  समाज  की कल्पना  की  गई  है,  जिसमें  दलितों और महिलाओं के लिए सम्मान की कोई  जगह  नहीं  है,  लेकिन  स्थायी पीड़ा  और  अपमान  का  भाव  है।1925 में स्थापित, आरएसएस ने अपनी भूमिका को पहचानने में तेजी दिखाई,  और  वह  अल्पसंख्यकों  के खिलाफ घृणा और अंग्रेजों के प्रति एक वफादार निष्ठा का प्रचार करता रहा। देश के विभाजन के चारों ओर घृणा का वातावरण तैयार किया गया और  नाथूराम  गोडसे  ने  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन छीन लिया,जिन्हें  भाजपा-आरएसएस  के  नेता एक महान देशभक्त के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। भागवत की देशभक्ति की परिभाषा के अनुसार, एक नाथूराम गोडसे एक देशभक्त के रूप में योग्यता प्राप्त  करेगा,  लेकिन  बाबा साहेब अम्बेडकर नहीं, क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म के अमानवीय और भेदभावपूर्ण पदानुक्रमित को अस्वीकार कर बौद्ध धर्म को चुनना स्वीकार किया था।किसी राष्ट्र का आरएसएस का विचार विभाजन में निहित है न कि सामंजस्य  में।  धर्म,  जाति,  लिंग,राष्ट्रीयता इत्यादि के नाम दूसरों को अलग करने पर ही संघ परिवार की घृणा करने वाली राजनीति निर्भर है।दूसरे  सरसंघचालक  और  सबसे प्रभावशाली आरएसएस विचारक एम एस गोलवलकर ने लिखा, ‘‘हिंदुस्तान में  गैर-हिंदू  लोगों  ;हिंदुस्तान  से अलग को रहना है तो हिंदू संस्कृति और भाषा को अपनाना होगा, आस्था  और हिंदू धर्म में सम्मान करना सीखना होगा‘‘ या ‘देश में रहना चाहते हैं, तो पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र के अधीनस्थ,उनका कुछ भी दावा नहीं होगा, कोई विशेषाधिकार का हक नहीं होगा, बहुत कम  तरजीही  वाला  व्यवहार होगा-नागरिक के अधिकार भी नहीं होंगे।‘‘यह  हिंदुत्व  की  आक्रामक स्वजातीय राजनीति है जो देश की एक महत्वपूर्ण आबादी को विदेशियोंया ‘अन्य‘ के रूप में देखती है और उन्हें दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक मानदंड  या  दृष्टिकोण  के  संबंध  में केवल एक द्वितीय श्रेणी की नागरिकता प्रदान करना चाहती है, वह नहीं जोह मारे संविधान निर्माताओं ने नागरिकताकी संकल्पना अपनाई।आरएसएस प्रमुख की टिप्पणी का एक  और  एजेंडा  भी  है,  स्वतंत्रता आंदोलन  में  या  अन्य  धर्मों,धर्मनिरपेक्षतावादी और नास्तिक लोगों के लोगों द्वारा स्वतंत्रता के आंदोलन में किए गए योगदान की पहचान खत्म करने  और  मिटाने  के  लिए।  मोहन भागवत  के  अनुसार,  एक  मौलाना आजाद या एक खान अब्दुल गफ्फार खान उनके मुस्लिम होने के कारण देशभक्त नहीं होंगे। दादा भाई नौरोजी या  होमी  जहांगीर  भाभा  ने  भी  वह योग्यता नहीं हासिल की। भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी देशभक्त, नास्तिक होनेके कारण उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाए  जा  सकते  हैं,  परंतु  विडंबना यह है कि सवाल उन पर नहीं उठाये जायेंगे जिन्होंने उपनिवेशवादियों के प्रति अपनी दृढ़ निष्ठा के कारण उन्होंने स्वतंत्रता  आंदोलन  में  कभी  हिस्सा नहीं लिया।देश की नागरिकता के लिए एक विशेष धर्म के मानदंड के रूप में जोड़ने में  एक  बडी  आबादी  और  हमारेस्वतंत्रता  आंदोलन  के  धर्मनिरपेक्षविरासत के लिए खतरनाक निहितार्थ हैं। भारत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक की चाहत वाले ब्राह्मणवादी हिंदू-राष्ट्र केबजाय     एक     धर्मनिरपेक्ष,बहु-सांस्कृतिक, बहु-भाषी लोकतंत्रका चयन किया था और अब सरकारका  नेतृत्व  करने  वाले  आरएसएसप्रचारक के साथ, हमें हमारे संविधान,धर्मनिरपेक्ष  लोकतंत्र  और  हमारेस्वतंत्रता  आंदोलन  की  समावेशी विरासत के साथ के साथ छेडछाड के प्रति हमेशा सर्तक रहना चाहिए।हमारा स्वतंत्रता आंदोलन विचारों और कार्यों की कई धाराओं का संगमथा। कम्युनिस्टों ने न केवल विदेशी शासन से बल्कि सभी प्रकार के शोषणसे मुक्ति का मुद्दा उठाया। गांधी, दक्षिणअफ्रीका  से  लौटने  के  बाद,  उसीअवधि के दौरान साम्राज्यवाद विरोधीस्वतंत्रता आंदोलन के नेता के रूप मेंउभरे।  उन्होंने  हिंदू-मुस्लिम  एकताऔर संबंध के उत्कृष्ट मुद्दे को उठाया।1920  में  लंदन  से  लौटे  डॉ.अंबेडकर ने जाति व्यवस्था पर सवालउठाए  और  सामाजिक  न्याय  औरजाति  के  विनाश  पर  ध्यान  केंद्रितकिया।कम्युनिस्ट, गांधी और अंबेडकरमें विभिन्न महत्वपूर्ण मसलों पर उनकी समझ  के  कारण  मतांतर  थे।  परंतु उन्होंने  औपनिवेशिक  शासन  को समाप्त  करने  के  लिए  एकसाथ मिलकर जनता को एकजुट किया।एक बेहतर भारत बनाने के प्रति उनकी देशभक्ति और प्रतिबधता सवालों से परे थी। उनका विमर्श आज ऐतिहासिक और प्रेरणा का स्रोत था। इन तीनों ने एक महान भूमिका निभाई और नए आधुनिक भारत को बनाने में भारी योगदान दिया।एक बेहतर भारत बनाने के प्रति उनकी  दे1947  में  भारत  को स्वतंत्रता मिलने के बाद और संविधानसभा का गठन किया गया था ताकि जल्द  ही  भारत  के  गणतंत्र  का उद्घाटन  किया  जा  सके,  ये  तीनधाराएँ  हमारे  संविधान  में  समानता,स्वतंत्रता और बंधुत्व के आदर्शों कोमजबूत करने के लिए एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं।आजादी  से  पहले  के  भारत  मेंएक और समूह था, जो आज सत्ता में हैं, अपने पूर्वजों के नेतृत्व में, राष्ट्रीयमुक्ति  और  एकता  की  हर  मांग  कोनुकसान करने की कोशिश में लगा हुआ था। वह समूह हिंदू दक्षिणपंथी था यानी के बी हेडगेवार और एम एस गोलवलकर और वी डी सावरकर केअधीन  हिंदू  महासभा  था।  अपनी स्थापना के बाद से, उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों  के  प्रति  बिना  शर्त वफादारी का प्रचार किया और उन लोगों के खिलाफ संघर्ष किया, जो देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे, जो जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ रहे थे और उन लोगों के खिलाफ जो भारत में आजादी के बाद एक अधिक  समान  और  समता मूलक समाज का निर्माण करना चाहते थे।ये समूह मुसोलिनी की फासीवादी पार्टी और हिटलर की नाजी पार्टी से काफी प्रेरित थे, क्योंकि उनके नेताओंने कई बार इन संगठनों की प्रशंसा की थी। जब पूरा देश उपनिवेशवाद के खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए एकजुट हो रहा था, आरएसएस और महासभा  धर्म  के  नाम  पर  देश  के विभिन्न समूहों के बीच एक विभाजन बनाने  की  कोशिश  कर  रहे  थे।विभाजन  के  बाद  चारों  ओर  फैली घृणा ने अंततः गांधीजी के जीवन को लील लिया था।यह विडंबना है कि आरएसएस,जिसने कभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं  लिया,  और  उसके  सहयोगी,भाजपा आज देशभक्ति के प्रमाण पत्रबांट रहे हैं। आरएसएस की लड़ाईदेश के अल्पसंख्यकों, दलितों औरतर्कवादियों के खिलाफ रही है। केंद्रमें  सत्ता  का  उपयोग  करते  हुए,आरएसएस  और  उससे  जुड़े  लोगघृणा,  गलत  सूचना  फैलाने,मुसलमानों, दलितों, तर्कवादियों औरसभी लोगों के आंदोलनों को देशद्रोही,राष्ट्रविरोधी, शहरी नक्सल, आदि केरूप में घोषित कर भड़का रहे हैं।भारत आज दक्षिणपंथी फासीवादीताकतों से एक बड़ी चुनौती और बड़ेखतरे  का  सामना  कर  रहा  है।आरएसएस  अपनी  विभिन्न  ‘‘शैडोआर्मीज‘‘ के माध्यम से आक्रामक रूपसे  हमारे  राष्ट्र  और  राष्ट्रीयता  को पुनर्परिभाषित करने के लिए अपनी भयावह डिजाइन का इस्तेमाल कररहा है। यह एक बहुत बड़ी विडंबनाहै कि आरएसएस ने किसी भी संगठनके प्रति जवाबदेह नहीं होने के कारणखुद  को  पूरे  हिंदू  समुदाय  काप्रतिनिधित्व मान लिया है और स्वयं ही यह प्रमाणित करने का अधिकार ले लिया है कि है कि कौन राष्ट्रवादीहै और कौन देशभक्त है। 

                                                  यह भारत गणराज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौतीहै। आरएसएस की राजनीतिक शाखा होने के कारण भाजपा ने केंद्र में सत्तापर कब्जा कर लिया है। इससे उन्हेंसंविधान  को  प्रभावित  करने  कीसंभावना दे दी है। डॉ. अंबेडकर नेरेखांकित किया है कि ‘संविधान कोबदले बिना, बगैर इसका रूप बदलेप्रशासन के रूपों में बदलाव करकेऔर इसे असंगत बनाकर संविधानकी भावना का विरोधी व्यवहार पूरीतरह से संभव है‘।इतिहास की मांग है कि कम्युनिस्ट,अम्बेडकरवादी और गांधीवादियों को गणराज्य और संविधान को बचाने केलिए इस चुनौती को स्वीकार करनाहोगा।भारत आज दक्षिणपंथी फासीवादी ताकतों से एक बड़ी चुनौती और बड़े खतरे  का  सामना  कर  रहा  है।आरएसएस  अपनी  विभिन्न  ‘‘शैडोआर्मीज‘‘ के माध्यम से आक्रामक रूप से  हमारे  राष्ट्र  और  राष्ट्रीयता  को पुनर्परिभाषित करने के लिए अपनी भयावह डिजाइन का इस्तेमाल कररहा है। यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि आरएसएस ने किसी भी संगठन के प्रति जवाबदेह नहीं होने के कारण खुद  को  पूरे  हिंदू  समुदाय  का प्रतिनिधित्व मान लिया है और स्वयं ही यह प्रमाणित करने का अधिकार ले लिया है कि है कि कौन राष्ट्रवादी है और कौन देशभक्त है। यह भारत गणराज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती है .

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