लो क सं घ र्ष !
लोकसंघर्ष पत्रिका
मंगलवार, 21 जनवरी 2025
रामराज - - भारतीय न्याय व्यवस्था का स्वर्ण काल .
रामराज्य ...भारतीय न्याय व्यवस्था का स्वर्ण काल .
अभी तक सुना था कि एक धोबी के ताना मारने पर राम ने अपनी गर्भवती पत्नि सीता को घर से निकाल दिया था । आज भारतीय लोकतंत्र की न्याय व्यवस्था तो रामराज्य से भी एक कदम आगे जा चुकी है ।
क्या आप यकीन करेंगे कि एक व्यक्ति के हाथ से घबराहट में दूध की बाल्टी गिरने से उसे 250 रुपए का नुक़सान हो गया और उसने राहुल गाँधी के खिलाफ न सिर्फ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई बल्कि वह हर्जाना दिलाने की अर्जी लेकर अदालत चला गया। और, कमाल यह कि न्यायालय ने उसकी अर्जी स्वीकार कर राहुल गाँधी को भारतीय संविधान की आई पी सी की धारा 152, 299, 197, 352 और 111 के तहत दर्ज मुकदमा पर सुनवाई के लिये नोटिस जारी कर दिया।
मामला यह है कि राहुल गाँधी के 'इंडियन स्टेट से लड़ाई' वाले बयान को लेकर उनके विरुद्ध समस्तीपुर जिले के रोसड़ा थाना क्षेत्र के एक निवासी मुकेश चौधरी ने वहाँ की अदालत में मामला दायर किया है।
भाई श्याम सिंह रावत ने अपनी पोस्ट में बताया है कि याची ने आरोप लगाया है कि काँग्रेस सांसद राहुल गाँधी का भाषण सुनकर न केवल उसकी भावना आहत हुई, बल्कि घबराहट में दूध से भरी बाल्टी भी उसके हाथ से छूट गई। इससे उसे 250 रुपए का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा। याची ने इसे देशद्रोह बताते हुए कोर्ट से राहुल गाँधी के लिए आजीवन कारावास की माँग की है। कोर्ट 17 फरवरी को इस मामले की सुनवाई करेगी।
याची का कहना है कि राहुल गाँधी ने जो बयान दिया उससे उसकी अंतरात्मा को काफी ठेस पहुँची है। वह भारतीय राजव्यवस्था के विरोध में लड़ाई लड़ने की बात कह रहे हैं। उन्होंने भारत की राजव्यवस्था का विरोध किया है। इस वजह से शिकायत को धारा 152, 299, 197, 352 और 111 के तहत दर्ज किया गया है।
देश में न्याय का गजब प्रहसन चल रहा है..
दूसरी तरफ रासस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा संपूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को ख़ारिज कर 22 जनवरी के दिन असली आज़ादी मिलने वाले बयान दे रहे है पर उनके बयान पर कांग्रेस में कोई हलचल नहीं , सभी चुप्पी साधे बैठे हैं।
ऐसे देशद्रोही के बयान पर तो तुरंत मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार करके जेल भेजना चाहिये , जो नहीं हो रहा है?
सोमवार, 20 जनवरी 2025
योगी सरकार में झांसी में दरोगा-सिपाही ने एक दूसरे पर लात-घूसे बरसाए
योगी सरकार में झांसी में दरोगा-सिपाही ने एक दूसरे पर लात-घूसे बरसाए
झांसी में सोमवार को एसएसपी ऑफिस में दरोगा और सिपाही के बीच मारपीट हो गई।
झांसी में सोमवार को एसएसपी ऑफिस में दरोगा और सिपाही के बीच मारपीट हो गई।
झांसी में दरोगा-सिपाही के बीच कहासुनी के बाद मारपीट हो गई। दोनों ने एक-दूसरे पर जमकर लात-घूसे बरसाए। इस बीच साथी पुलिसकर्मियों ने दोनों को छुड़ाने की काफी कोशिश की। लेकिन छुड़ाने के बाद भी बार-बार दोनों एक-दूसरे से भिड़ते रहे। घटना सोमवार दोपहर एक बजे SSP ऑफिस की है।
दरोगा की सिपाही की पत्नी का ट्रांसफर हो गया था। इसी को लेकर हुए विवाद में आज बहस हो गई। देखते-देखते बहस इतनी बढ़ गई कि दोनों अपना आपा खो बैठे। एक-दूसरे को पकड़ लिया। फिर मारपीट शुरू कर दी। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने किसी तरह मामला शांत कराया। पुलिस अफसर पूरे मामले में जांच की बात कह रहे हैं।
दरोगा बांदा जीआरपी और सिपाही एसएसपी ऑफिस में तैनात दरोगा संदीप यादव बांदा जीआरपी में तैनात है, जबकि सिपाही अनुज यादव एसएसपी की रीडर ब्रांच में तैनात हैं। दरोगा की पत्नी अंजू यादव झांसी में सिपाही है। शहर क्षेत्र में साढ़े 3 साल का कार्यकाल पूरा होने पर पिछले दिनों उसका मऊरानीपुर ट्रांसफर हो गया था।
ये दरोगाओं से पैसे मांगता है। ये अपने आपको एसएसपी समझता है। हम लोगों के साथ गाली गलौच करता है कि तुम हो कौन? हमें हटाकर दिखा दो यहां से।
जब से भर्ती हुआ, ये एसएसपी ऑफिस में नियुक्त है। अनावश्यक पैसे लेता है। अभी महिला कांस्टेबलों के ट्रांसफर हुए, उसमें इसने पैसे खाए। जिनको जरूरी है, जिनके छोटे बच्चे हैं। उनकी नियुक्ति न करके मैडम को मिस गाइड करता है। गलत उगाही करता है। मैडम बिल्कुल सही है, लेकिन ये उनके पॉवर का गलत उपयोग करता है।
बुधवार, 15 जनवरी 2025
किसी और देश में भागवत ये बयान दिया होता तो गिरफ्तार हो गए होते-राहुल गांधी
किसी और देश में भागवत ये बयान दिया होता तो गिरफ्तार हो गए होते-राहुल गांधी
कांग्रेस सांसद और लोकसभा नेताप्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर संघ प्रमुख मोहन भागवत और बीजेपी पर हमला बोला है। दिल्ली के 9ए, कोटला रोड पर बने नए कांग्रेस दफ्तर के उद्घाटन कार्यक्रम में रायबरेली सांसद ने कहा कि राहुल गांधी ने कहा कि देश में 2 विचारों के बीच लड़ाई है। एक हमारा विचार है जो संविधान का विचार है और दूसरी तरफ संघ का विचार है जो इसके उलट है।
लोकसभा नेता प्रतिपक्ष ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर निशाना साधते हुए कहा कि उनका यह बयान कि भारत को आजादी राम मंदिर बनने के बाद मिली, राजद्रोह के समान है। उन्होंने यह भी कहा कि भागवत का कहना कि देश को 1947 में आजादी नहीं मिली, हर भारतीय का अपमान है. भागवत ने किसी और देश में यह कहा होता तो वो गिरफ्तार हो चुके होते।
हुए राहुल गांधी ने यह भी कहा, “मोहन भागवत हर 2-3 दिन में देश को यह बताने की हिम्मत रखते हैं कि देश की आजादी के आंदोलन और संविधान के बारे में वह क्या सोचते हैं। उन्होंने कल जो कहा वह देशद्रोह की तरह है क्योंकि इसमें कहा गया कि संविधान अमान्य है. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई अमान्य थी।
उन्होंने आगे कहा, “उन्हें (भागवत को) सार्वजनिक रूप से यह कहने की हिम्मत है, किसी अन्य देश में ऐसा होता तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता और उन पर केस चलाया जाता। यह कहना कि भारत को 1947 में आजादी नहीं मिली, हर एक भारतीय व्यक्ति का अपमान है। अब समय आ गया है कि हम इस बकवास को सुनना बंद करें, क्योंकि ये लोग सोचते हैं कि वे बस रटते रहेंगे और चिल्लाते रहेंगे।
कांग्रेस हमेशा संविधान के लिए खड़ी रही है-राहुल गांधी
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा संविधान और इसके मूल्यों के लिए खड़ी रही है। उन्होंने ये बताया कि इस पार्टी का दृष्टिकोण संविधान को लेकर साफ है और हम इसके मूल्यों का पालन करते हुए देश की सेवा करते हैं। उन्होंने कहा “हमारा दृष्टिकोण, संविधान का दृष्टिकोण यह एक विचारधारा है, जिसे हम हमेशा मानते आए हैं और आगे भी बनाए रखेंगे। राहुल ने कांग्रेस पार्टी के बारे में कहा कि वह हमेशा संविधान के रास्ते पर चलती है और ये पार्टी उस दिशा में अपने कामों को आगे बढ़ाती है।
क्या कहा था मोहन भागवत ने
बता दें कि इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने 2 दिन पहले सोमवार को कहा था कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि कई सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश को असली आजादी इसी दिन हासिल हुई थी।
रविवार, 12 जनवरी 2025
नाम बडे दर्शन थोडे - महाकुंभ का प्रचार ज्यादा कल्पवासियों का समस्याओं को लेकर प्रदर्शन
नाम बडे दर्शन थोडे - महाकुंभ का प्रचार ज्यादा कल्पवासियों का समस्याओं को लेकर प्रदर्शन
संघ नियंत्रित और प्रशिक्षित सरकार ने महाकुंभ को धार्मिक आयोजन की बजाय राजनीतिक कार्यक्रम ज्यादा बना दिया है। महाकुंभ के बहाने आए दिन दोअर्थी संवाद बोलकर समाज में विषवमन किया जा रहा है। समाज में सामाजिक धार्मिक विभाजन कराकर वोट की राजनीति की जा रही है। अब देखिए कल्पवासियों को प्रदर्शन के लिए मजबूर होना पड़ा है।
महाकुंभ में कल्पवासियों ने किया प्रदर्शन:मेला अधिकारियों के खिलाफ की नारेबाजी, पानी और बिजली की समस्या को दूर करने की मांग महाकुंभ मेला क्षेत्र में सेक्टर 8 में प्रदर्शन किया। कल्पवासियों ने कहा, सरकार इतने बड़े पैमाने पर तैयारी कर रही है लेकिन यह पूरी तैयारी वीआईपी लोगों के लिए है
प्रयागराज के महाकुंभ मेले कल्पवासी पहुंचने लगे हैं लेकिन व्यवस्था के नाम पर सिर्फ उन्हें एक तंबू वाला शिविर उपलब्ध करा दिया गया है। ना तो पानी की व्यवस्था है ना ही बिजली की। आज शनिवार को सेक्टर-8 में अनंत माधव मार्ग पर बड़ी संख्या में कल्पवासी सड़क पर आ गए और नारेबाजी करने लगी। कल्पवासी यहां पानी न होने की वजह से 2 km दूर से पानी लाने काे मजबूर हैं। शौचालय तक यहां पानी की व्यवस्था नहीं है। मेला प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
कल्पवासियों ने कहा, सरकार इतने बड़े पैमाने पर तैयारी कर रही है लेकिन यह पूरी तैयारी वीआईपी लोगों के लिए हो रही है। कल्पवासियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
विरोध प्रदर्शन कर रहे कल्पवासी हाथों में खाली बाल्टी लेकर अपना विरोध दर्ज कराया । कहा, सुविधा शुल्क देने के बावजूद हमें सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। ऐसी स्थिति में एक महीने तक कल्पवास कैसे करेंगे। प्रदर्शन करने वालों में महिला कल्पवासी भी शामिल हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के अवसर पर एक ऐसा महासचिव जो पार्टी विनाशक और विभाजनकारी था - बी टी रणदिवे
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के अवसर पर
एक ऐसा महासचिव जो पार्टी विनाशक और विभाजनकारी था - बी टी रणदिवे
इस महासचिव के कारण पार्टी सदस्य संख्या अत्याधिक कम हो गई और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन का कारण भी था। पार्टी के लिए यह भस्मासुर साबित हुआ।
भालचंद्र त्र्यंबक रणदिवे 19 दिसंबर 1904 - 6 अप्रैल 1990, जिन्हें बीटीआर के नाम से जाना जाता है , एक भारतीय कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ और ट्रेड यूनियन नेता थे।
महासचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
कार्यकाल
1948–1950
स्वतंत्रता सेनानी, नेता
के लिए जाना जाता है
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सह-संस्थापक
वे सीपीआई-एम नेता और मुंबई उत्तर मध्य (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से छठी लोकसभा सदस्य अहिल्या रंगनेकर के बड़े भाई थे । वे एक मराठी चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु (सीकेपी) परिवार से थे, लेकिन रणदिवे एक प्रतिभाशाली छात्र थे, जो अपने खाली समय में दलित छात्रों को पढ़ाते थे।
राजनीतिक कैरियर
रणदिवे ने 1927 में अपनी पढ़ाई पूरी की, जिसमें उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ एमए की डिग्री हासिल की और 1928 में वे गुप्त भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए । उसी वर्ष वे बॉम्बे में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बन गए। वे बॉम्बे में कपड़ा मज़दूरों के गिरिनी कामगार यूनियन और रेलवे मज़दूरों के संघर्षों में सक्रिय थे। वे जीआईपी रेलवेमैन यूनियन के सचिव बने। 1939 में, उन्होंने ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता विमल से विवाह किया।
1943 में वे पार्टी की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए। फरवरी 1946 में रणदिवे ने नौसेना रेटिंग विद्रोह के समर्थन में आम हड़ताल के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई ।
फरवरी 1948 में कलकत्ता में आयोजित अपनी दूसरी पार्टी कांग्रेस में पार्टी ने पीसी जोशी की जगह रणदिवे को अपना महासचिव चुना। रणदिवे 1948-1950 तक सीपीआई के महासचिव थे। उस अवधि के दौरान पार्टी तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष जैसे क्रांतिकारी विद्रोहों में लगी हुई थी । 1950 में रणदिवे को पदच्युत कर दिया गया और पार्टी ने उन्हें "वामपंथी दुस्साहसवादी" कहकर उनकी निंदा की।
1956 में पालघाट में आयोजित चौथी पार्टी कांग्रेस में बीटीआर को फिर से केंद्रीय समिति में शामिल किया गया। वे केंद्रीय समिति के वामपंथी धड़े के एक प्रमुख व्यक्ति बन गए।
1962 में भारत-चीन सीमा संघर्ष के समय , रणदिवे सरकार द्वारा जेल में बंद कई प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं में से एक थे। 1964 में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए ।
28-31 मई 1970 को कलकत्ता में भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र के स्थापना सम्मेलन में रणदिवे को अध्यक्ष चुना गया।
शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
मोदी से नहीं डरे राहुल को ,कांग्रेस के नकाब में छिपे संघी डरा रहे हैं
मोदी से नहीं डरे राहुल को ,कांग्रेस के नकाब में छिपे संघी डरा रहे हैं
- - - - - - -
आजकल देख रहा हूँ बहुत कांग्रेस के शुभचिंतक सलाह दे रहे हैं कि कांग्रेस को नेहरू परिवार से बाहर का प्रेसिडेंट लाना चाहिये लेकिन इनको ये कहते हुये नही सुना कि संघ को भी अपना परम पूज्यनीय सरसंघ चालक चितपावन ब्राह्मण से बाहर का होना चाहिये , है न सोच का दोगलापन ? कांग्रेस की ही बात नही कर रहा हूँ ? कौन है देश में जो नेहरू परिवार की तरह कुर्बानी देने वाला, नेहरू ने अपना जीवन ही नही पूरी संपत्ति दे दी,१० साल अंग्रेजों की जेल मे कैदी रहे, तब भी सावरकर की तरह माफी मांगकर बीर नही बने, जिस अमेरिका मोदी तलुआ चाट रहे है उसकी औकात इंदिरा ने बंगला देश की लड़ाई मे बता दिया , राजीव ने अपनी जान दे दी, सोनिया ने अपना सिंदूर दे दिया, राहुल , प्रियंका का बचपन मे पिता का साया उठ गया, फिर भी सेकुलरिज्म से कभी समझौता तो नही किया। आये तो थे बाहर से नरसिम्हाराव , क्या किया? कांग्रेस के सेकुलर चरित्र को संघी अपराधियों के पास गिरवी रखकर बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद करके सांप्रदायिक ताकतों को खुलेआम नंगा नाच करने का आंगन दे दिया । भाई लड़ाई व्यक्तियों का नही , school of thought का है, एक तरफ फासिस्ट संघ परिवार का हिटलर , मुसोलिनी सोच का फासिस्ट school of thought. तो दूसरी तरफ कांग्रेस परिवार का सेकुलर ब्रांड का Demcratic school of thought का नेहरू परिवार । असली तो संघ ही है bjp तो मुखैटा मात्र है। क्यूं नही बात करते संघ के मुखिया कि जो अपने जन्म से ही चितपावन ब्राह्मण को ही मुखिया बनाते है और गांधी की हत्या करने के बाद भी यहां तक आ गये है। कौन है संघ परिवार में जो चितपावनों की जगह लेने की औकात रखता है ? उसी तरह कौन है कांग्रेस मे जो नेहरू परिवार की जगह लेने की औकात रखता है? जरा हमे भी तो बता दो? कांग्रेस मे शुरू से ही नेहरू के समय से ही पटेल के नेतृत्व में हिंदू नेशनलिस्टों की भरमार रही, जो नकाब लगाकर रात के अंधेरे मे संघियों से भाई चारा रखते थे । इंदिरा को मजबूरी में प्र. मंत्री बनाना पड़ा क्यूंकि उनमे आपस मे सहमति नही थी और पूरे देश में कामराज से लेकर , एस. के. पाटिल, अतुल्य घोष , मोरारजी इत्यादि की औकात क्या थी? अत: सभी ने तात्कालिक अस्थायी व्यवस्था के तहत गूंगी गुंड़िया के नाम पर इंदिरा गांधी का नाम आगे किया कि बाद में चुनाव बाद उसे हटाकर सत्ता पर हिंदू नेशनलिस्ट . संघी दलाल कब्जा कर लेंगे? लेकिन इंदिरा नेहरू की बेटी थी , सावरकर की नहीं। आगे क्या हुआ बताना नही, ये वही सोच वाले कांग्रेसी लोग हैं जो नकाब तो कांग्रेस का लगाये हैं और दिल संघियों का, जो मांग कर रहे हैं कि कांग्रेस का प्रेसिडेंट नेहरू परिवार से बाहर का हो, क्यूं भाई? जब संघ परिवार का मुखिया चितपावन बाभन ही रहेगा तो कांग्रेस परिवार का मुखिया नेहरू परिवार से क्यूं नही? संघ परिवार एक विचार है ,उसी तरह नेहरू परिवार एक विचार है न कि व्यक्ति?
क्या करियेगा ,हम समझ रहे हैं कांग्रेस के नेताओं के सब्र का बाँध टूटने लगा है। सत्ता से दूरी कांग्रेसियों से बर्दाश्त नहीं होती है। लेकिन सत्ता की वापसी के लिये जनता में जाने, अपनी कमियां ढूंढने के बदले वे आपस में ही एक दूसरे से लड़ने लगे हैं। ये संघी सोच के हिंदू नेशनलिस्ट कांग्रेसी सेकुलर खोल का नकली नकाब लगाकर कभी राहुल को मंदिर जाने का, कभी जनेऊ धारण कर हिंदू बनने की सलाह देते रहते हैं , ये नही बताते की नेहरू किसी मंदिर में नही गये, फिर भी देश के हीरो रहे। कांग्रेस खासकर नेहरू परिवार सेकुलरिज्म का असली ब्रांड एंबेस्डर रही है , तभी तो गांधी ने कहा था कि मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे मरने के बाद नेहरू ही मेरी भाषा बोलेंगे, वह किस भाषा कि बात कर रहे थे ? यही सेकुलरिज्म वह भाषा थी।यह देश विभिन्न धर्मों ,जातियो, संप्रदायो, विभिन्न बोलियों वाला देश है , सेकुलरिज्म उसकी भाषा ही नही , आत्मा है। नेहरू परिवार ने कभी भी गांधी को निराश नहीं किया और आज ये दलाल कांग्रेसी राहुल को मंदिर जाने और जनेऊ धारण करने की सलाह देकर क्या बताना चाह रहे थे?
कभीदेश की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय सत्ता में रही पार्टी पिछले छह साल से अपनी हार पर विलाप कर रही है, एक दूसरे पर ताने मार रही है और अब तो लगता है कि उसे इसे रोने धोने में मजा आने लगा है। आदत पड़ गई है। वह इस सिलसिले को छोड़ने को तैयार नहीं दिखती।
यूपीए सरकार में मंत्री रहे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट करके जो सवाल उठाए हैं उनसे अधिकांश कांग्रेसी आश्चर्यचकित है कि ये मुद्दे हैं कहां? इनका आज की तारीख में क्या औचित्य है? पिछले कुछ दिनों से फिर
प्याले में तूफान उठा हुआ है! क्या यह इसलिए है कि 10 अगस्त बीच चुका है ? सोनिया गांधी का एक साल पूरा हो गया है। पिछले 2019 का लोकसभा
चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष छोड़ना पड़ा था। उन्हें लगा था कि पार्टी में वे अकेले पड़ गए। पार्टी अध्यक्ष को जो समर्थन मिलना चाहिए था उन्हें नहीं मिला। ऐसे में उत्पन्न हुई असमंजस की स्थिति में कांग्रेस ने कई प्रयोग करने की कोशिशें की। 2014 फिर 2019 की हार के कारणों की पड़ताल के लिए तो कोई कमेटी बनाई नहीं मगर नए अध्यक्ष की खोज, उस खोज की प्रक्रिया के लिए जाने कितनी औपचारिक और अनौपचारिक कमेटियां बना डालीं।
आज ये सलाहकार लोग जिस यूपीए की उपलब्धियों की बिना प्रसंग चर्चा कर रहे हैं उसे तो कभी मीडिया पर बता नहीं पाए मगर नए अध्यक्ष के लिए
परिवार के बाहर का होना क्यों जरूरी है इस पर पचासों स्टोरियां मीडिया में प्लांट करवा दीं ।
अब दस अगस्त के बाद क्या होगा?
सोनिया गांधी को हटने नहीं दिया जायेगा? अस्वस्थता की हालत में ही उन्हें कंटिन्यू करवाया जाएगा? मगर कब तक? राहुल ,प्रियंका को ये स्वीकार नहीं करना चाहते लेकिन मोदी से या संघ परिवार से इनको कोई एतराज नहीं,
कांग्रेस को इन सवालों के जवाब चाहिए कि सोनिया ही क्यूं , राहुल ,प्रियंका क्यों नही , क्या उनमे कांग्रेस के सेकुलरिज्म का जीन नही है?
इस सवाल की जगह वे छह साल पुरानी सरकार जिसे खुद इन सबने मिलकर डुबोया है के लिए एक दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस ऐसी नाव हो गई है कि पार उतारने की चिंता के बदले सब एक दूसरे को धकेलने में लगे हैं। इस बात से बेफिक्र कि कहीं इस चक्कर में नाव ही न डूब जाए।
आज जिस दस साल के शासन का बात कर रहे हैं उसमें और क्या किया? यही किया! दस साल सबसे बड़े मंत्री और राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी ने क्या किया? जिस समय राहुल संघ से सवाल कर रहे थे उस समय प्रणव मुखर्जी नागपुर के संघ मुख्यालय में हाजरी लगा रहे थे। और कांग्रेस के कुछ नेता उनकी इस नागपुर यात्रा का समर्थन कर रहे थे। कांग्रेस के मंत्रियों ने दस साल खूब मजे किए, कभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साफ सुथरी इमेज की चिन्ता नहीं की लेकिन आज अचानक से मनमोहन सिंह की नई प्रतिमा गढ़ने लग गए।
क्या बताएं? भाजपा को सत्ता में आए 8 साल हुए हैं। कभी किसी चुनाव में पैसे की कमी पड़ी? दस साल सरकार में रहने के बाद जब कांग्रेस 2014 का
चुनाव लड़ रही थी तो प्रत्याशियों से कहा जा रहा था कि पैसे नहीं है। एक प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे वहां के कांग्रेस अध्यक्ष और उनके साथ एक
बड़े नेता कांग्रेस मुख्यालय में रो रहे थे। उनसे कहा गया था कि चुनाव के खर्च के लिए खुद व्यवस्था करें!
उस समय कांग्रेस के 24 अकबर रोड मुख्यालय में कहा जाता था कि कांग्रेस गरीब पार्टी है, मगर कांग्रेसी देश के सबसे अमीर नेता! पिछले छह साल में बीजेपी के पास पैसा आया, बीजेपी के नेताओं के पास नहीं। और कांग्रेस के दस साल में कांग्रेस का खजाना नहीं भरा, नेताओं की तिजोरियां भर गईं। कहा जाता था कि अगर कोई कांग्रेस का नेता कहीं से सौ रु. लाता था तो उसमें से दस भी बड़ी मुश्किल से पार्टी फंड में जमा कराता था। जबकि भाजपा का कोई पुराना धाकड़ नेता ही ऐसा होगा जो सौ के सौ ही पार्टी फंड में नहीं देकर 80 या 90 जमा करवाए। बाकी अधिकांश पूरा पैसा पार्टी की जानकारी में लाते
हैं। यूपीए सरकार में प्रणव मुखर्जी के मुकाबले के दूसरे सबसे बड़े मंत्री के पास एक बार संगठन के एक बड़े नेता गए। पार्टी को कुछ पैसों की जरूरत थी। मंत्री जी सुनते ही चिल्लाए “ एम आई ए थीफ? “ क्या में चोर
हूं? वरिष्ठ नेता बेचारे उल्टे पाँव भागे। अपने स्वार्थों में कांग्रेसी नेता इतने पागल हो गए कि आपसी लड़ाई में मनमोहन के उस प्रसिद्ध कथन को हथियार बना रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था इतिहास मेरे साथ ज्यादा
न्यायपूर्ण और उदार होगा। मिलिंद देवड़ा जी यह बात उन्होंने उस समय के विपक्ष और मीडिया के लिए कही थी। कांग्रेस के लोगों के लिए नहीं। मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल करने वाले क्या उन्हें राहुल गांधी या नेहरू गांधी परिवार के सामने खड़ा करने की कोशिश नहीं कर रहे थे ?
क्या वे कांग्रेसी खुद इतिहास भूल गए? सोनिया, राहुल, प्रियंका तीनों ने जैसा मनमोहन सिंह को समर्थन दिया है वैसी मिसाल इतिहास में कम मिलेगी। न्यूक्लीयर डील के समय सोनिया ने कहा था सरकार जाए तो जाए हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ
खड़े हैं। लेफ्ट के समर्थन वापसी की चेतावनी के कारण जब मनमोहन सिंह भारी तनाव में थे तो राहुल और प्रियंका ने भी यही बात दोहराई थी। मनमोहन सिंह के
पहले प्रेस एडवाइजर संजय बारू ने सोनिया और राहुल के खिलाफ कैसी साजिशें कीं। क्या क्या नहीं कहा, लिखा। मगर मनमोहन सिंह के सम्मान की खातिर परिवार ने कभी सच्चाई बताने की भी कोशिश नहीं की। उन मनमोहन सिंह के नाम का इस्तेमाल किसे डराने के लिए किया जा रहा था ? राहुल गांधी को?
जो राहुल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूरी केन्द्र सरकार, मीडिया, ट्रोल आर्मी से नहीं डर रहा हो वह इन कांग्रेसियों से डर जाएगा? कभी नहीं.
कांग्रेस को इस समय लड़ने की जरूरत है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से। मगर उन्हें आपसी लड़ाईयों से फुर्सत नहीं है। कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई कांग्रेसी नेता घर से चना सत्तू बाँध के निकलता है उसकी पत्नी या घर वाले समझ जाते हैं कि अब वह विरोधी को निपटाए बिना घर वापस नहीं आएगा। विरोधी मतलब भाजपा या दूसरी पार्टी का नेता नहीं, बल्कि कांग्रेस में उसका प्रतिद्वंद्वी। कांग्रेसी, कांग्रेसी को निपटाने में माहिर है। कांग्रेस के इस सबसे बुरे समय में भी वह सत्तारूढ़ पार्टी से लड़ने की नहीं सोच रहा बल्कि पार्टी के आन्तरिक गड़े मुद्दे उखाड़कर आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस मे संघी दलाल ,कांग्रेस की टोपी लगाकर आजकल बाहर का, बाहर का प्रेसिंडेंट होने का नारा लगा रहे हैं...अगर कांग्रेस बची है तो नेहरू परिवार से ,और देश टुकड़े टुकड़े होने से बचा है तो कांग्रेस से , नही तो ये पटेल के संघी सोच वाले कब का देश तोड़ चुके होते। जब जब नेहरू परिवार कमजोर हुआ है तब तब संघी मजबूत हुये हैं और इनको मजबूत करने मे सबसे ज्यादा हाथ लोहिया , जे. पी. जैसे संघी सोच वाले समाजवादियों का रहा है ,जो १९६३, ६७, ७७, ८९, ९८ में संघियों के साथ मिलकर कांग्रेस को ही नही ,इस देश के सेकुलर ताना बाना को कमजोर करके देश की सत्ता पर गांधी के हत्यारों को स्थापित कर दिया। जार्ज, शरद, पासवान, नितिश , ये किसकी राजनितिक संतान है ? उसी लोहिया , जे. पी की। आपको शक होगा , हमें कत्तई रत्ती भर भी नहीं।
राहुल अगर किसी दूसरे को भी प्रेसिडेंट बनाते हैं भी तो कल ये हरामी अपनी भाषा को बदल कर कहेंगे कि सोनिया, राहुल , प्रियंका का दरबारी है , स्वतंत्र नहीं हैं। मनमोहन सिंह के बारे में क्या कहते थे ये लोग? अर्जुन सिंह तो कभी मनमोहन सिंह को सलाम तक नही किया प्र. मंत्री रहते। कहते थे कि मेरा चपरासी था , भले ही जोड़ जुगाड़ से p m बन गया तो क्या मैं इसको सलाम करूं। ये सोच है कांग्रेसियों की। फिर भी मनमोहन सिंह ने कभी बुरा नहीं माना। क्या मोदी या भागवत के सामने कोई संघी या bjp वाला ऐसे कहने की हिम्मत कर सकता है? वहां मोदी के सामने अडवानी की क्या हालत है? कभी अडवानी के पेशाब से bjp का चिराग जलता था और वही अडवानी संघ के करिंदे के सामने कैसे गिडगिड़ा रहे है, फोटो तो आपने देखा ही होगा। लेकिन मनमोहन को उनका मंत्री सलाम नही करता, ये है लोकतांत्रिक कांग्रेस और फासिस्ट संघ मे अंतर ।
मेरे सोच से राहुल नहीं चाहते हैं तो प्रियंका को लायें और संघी सोच के दलालों को बाहर करें। ये आस्तीन के सांप हैं कभी भी सिंधिया जितिन की तरह खोल उतारकर सामने आकर कांग्रेस को कमजोर करते रहेंगे, जितिन का बापभी संघी दलाल था ,यह बहुत ही उचित समय है , निर्णय लेने का।
drbn singh
धू-धू जल रहे अमरीका के जंगल, 1100 इमारतें खाक, 40 लाख घरों में अंधेरा
धू-धू जल रहे अमरीका के जंगल, 1100 इमारतें खाक, 40 लाख घरों में अंधेरा
अमरीका के सबसे अधिक आबादी वाले लॉस एंजिलिस काउंटी के जंगल में लगी भीषण आग में पांच लोगों की मौत हो गई और करीब 1,100 इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं। कैलिफ़ोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ़ फॉरेस्ट्री एंड फायर प्रोटेक्शन (कैल फायर) के अनुसार, पैसिफिक पैलिसेड्स में मंगलवार को लगी भीषण आग बुधवार दोपहर तक 15,800 एकड़ (63.9 वर्ग किमी) तक फैल गई। आग में एक हजार अधिक संरचनाएं जलकर नष्ट हो गईं, इनमें सांता मोनिका पर्वत और प्रशांत महासागर के बीच बने कई महंगे घर भी शामिल हैं।
अग्निशमन एवं पुलिस अधिकारियों के अनुसार, मंगलवार शाम को लगी आग में लॉस एंजिल्स के दो पड़ोसी शहरों अल्ताडेना और पासाडेना के पास 10,600 एकड़ (42.9 वर्ग किमी) से अधिक भूमि को जलाकर खाक हो गई। इसमें पांच लोगों की मौत हो गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। अग्निशामक कर्मी आग के प्रसार को धीमा करने और विषम परिस्थितियों में महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं की रक्षा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इस बीच, सिल्मर में रात भर तेज हवाओं के दौरान तेजी से फैली आग में 700 एकड़ (2.83 वर्ग किमी) क्षेत्र झुलसा गया।
अधिकारियों ने बताया कि दक्षिणी कैलिफोर्निया में जंगल में लगी भीषण आग तेजी से फ़ैलने का मुख्य कारण तेज हवाएं, बहुत कम सापेक्ष आद्र्रता और शुष्क वनस्पति है। उन्होंने बताया कि यहां 160 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार से हवाएं चलीं। स्थानीय टीवी स्टेशन केटीएलए ने बताया कि दक्षिणी कैलिफोर्निया में लॉस एंजिल्स, वेंचुरा, ऑरेंज, सैन बर्नार्डिनो, रिवरसाइड और सैन डिएगो काउंटियों में जंगल की आग के कारण व्यापक बिजली कटौती से बुधवार दोपहर तक 40 लाख से अधिक उपभोक्ता प्रभावित हुए। दक्षिणी कैलिफोर्निया में तेजी से बढ़ रही जंगल की आग के कारण हजारों लोगों को वहां से सुरक्षित स्थान पर जाने का आदेश दिए जाने के बाद, कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसोम ने मंगलवार को आपातकाल स्थिति की घोषित कर दी।
तालिबान ने 14 पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण किया,
पाकिस्तान के लिए बड़ी चिंता, टीटीपी ने 14 पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण किया, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ... पाकिस्तान के लिए बड़ी चिंता, टीटीपी ने 14 पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण किया, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ... हाल के हफ्तों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है, खासकर तब से जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर हवाई हमले किए हैं। पाकिस्तान-तालिबान युद्ध: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) आतंकवादी समूह और पाकिस्तानी सेना के बीच चल रहे संघर्ष में एक प्रमुख घटनाक्रम में, टीटीपी आतंकवादियों ने कथित तौर पर इस्लामाबाद पर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव बनाने के लिए 16 पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण कर लिया है। टीटीपी उर्फ पाकिस्तानी तालिबान ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के लिए काम करने वाले अपहृत परमाणु वैज्ञानिक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सरकार से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवादी समूह की मांगों को स्वीकार करने की गुहार लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
बुधवार, 8 जनवरी 2025
संघ नियंत्रित और प्रशिक्षित भाजपा सरकार श्रीजगन्नाथ की 60 हजार एकड़ जमीन बेचेगी,ओडिशा सरकार
ऊ
संघ नियंत्रित और प्रशिक्षित भाजपा सरकार श्रीजगन्नाथ की 60 हजार एकड़ जमीन बेचेगी,ओडिशा सरकार जमीन बेचकर ₹10000 करोड़ जुटाएगी, मुख्य पुजारी की आपत्ति
चार धामों में से एक, ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की जमीन संकट में है। यहां भगवान की जमीन अकेले ओडिशा राज्य में भगवान जगन्नाथ की कुल 60 हजार 426 एकड़ जमीन है।
अब सरकार जमीन बेचकर 8 से 10 हजार करोड़ रुपए फंड जुटाने की तैयारी कर रही है। हालांकि जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी इसका विरोध कर रहे हैं।
512 करोड़ की कीमत वाली 64 एकड़ जमीन बेचने का आरोप श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने 16 नवंबर को पुरी के बसेलिसाही पुलिस स्टेशन में महावीर जन सेवा संघ नाम के संगठन के खिलाफ FIR दर्ज करवाई थी। संगठन से जुड़े लोगों पर माटीतोटा इलाके में 64 एकड़ में फैले 109 प्लॉट की अवैध खरीद-फरोख्त का आरोप है। इन प्लॉट्स की मौजूदा मार्केट वैल्यू करीब 512 करोड़ है।
पुलिस ने 20 दिसंबर को संगठन के अध्यक्ष और इससे जुड़े 6 लोगों को गिरफ्तार किया। इनकी पहचान सिसुला बेहरा, सानिया बेहरा, जसोबंता बेहरा, मोहन बेहरा, रत्नाकर बेहरा और बाबू बेहरा के तौर पर की गई।
पुलिस ने दावा किया कि आरोपियों ने कुल खाता नंबर-38 के 109 प्लॉट में से केवल प्लॉट नंबर-143 की अवैध बिक्री की थी। इसके लिए 28 लाख रुपए का लेन-देन भी हुआ था। आरोपियों के पास से 4.5 लाख रुपए कैश भी जब्त हुए।'
डॉक्यूमेंट पर महावीर जन सेवा संघ का रजिस्ट्रेशन नंबर 5902/119/2002 और निखिल उत्कल विश्वकर्मा समिति का रजिस्ट्रेशन नंबर 224/19/1985 भी दर्ज है। ओडिशा सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर खाता नंबर-38 का प्लॉट नंबर-118 भगवान जगन्नाथ के नाम पर दर्ज है।
आरोपियों ने इस प्लॉट को नोटरी के जरिए निखिल उत्कल विश्वकर्मा समिति को बेच दिया। अब यहां बाउंड्री भी कर दी गई है। जमीन के लेन-देन को वैध दिखाने के लिए इसे अतिक्रमण हस्तांतरण प्रक्रिया (एनक्रोचमेंट ट्रांसफर प्रोसेस) का नाम दे दिया गया।
जमीन माफिया यह दिखाना चाहते थे कि उनका इस जमीन पर सालों से कब्जा है और उन्होंने 3 लाख रुपए लेकर खरीदार को उस जमीन का कब्जा ट्रांसफर कर दिया। जमीन बेचने वालों में शामिल सुशांत बेहरा और भिखारी बेहरा, महावीर जन सेवा संघ का पूर्व अध्यक्ष और पूर्व उपाध्यक्ष रह चुका है। दोनों अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। गिरफ्तार हुए 6 लोगों में सुशांत बेहरा का बेटा भी शामिल है।
प्लॉट नंबर- 118 को बाउंड्री से घेरकर लोहे का गेट लगा दिया गया है।
प्लॉट नंबर- 118 को बाउंड्री से घेरकर लोहे का गेट लगा दिया गया है।
मंदिर की देखरेख के लिए बनाया गया था महावीर जन सेवा संघ जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने माटितोटा में जिन 109 प्लॉट्स को बेचने का आरोप लगाया है, उन पर अभी करीब 200 परिवारों का अतिक्रमण है। यहां एक हनुमान मंदिर भी है, जो श्रीजगन्नाथ की जमीन पर ही बना है। साल 2002 में इस मंदिर की देखरेख के लिए महावीर जन सेवा संघ क्लब बनाया गया था।
इस क्लब में करीब 30 लोग शामिल हैं, जिनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर या मछुआरे हैं। इन्होंने हनुमान मंदिर और उसके आसपास की कई जमीन को हड़प कर अपने परिवार के सदस्यों, क्लब मेंबर्स और बाहरी लोगों को बेच दिया।
पूर्व बीजद सरकार ने 2023 में विधानसभा में बताया था कि ओडिशा के 30 जिलों में से 24 जिलों में भगवान जगन्नाथ की 60 हजार 426 एकड़ जमीन है। राज्य के बाहर महाप्रभु की 395 एकड़ जमीन है। ओडिशा के खुर्दा जिले में भगवान की सबसे ज्यादा 26 हजार 816 एकड़ जमीन है। दूसरे नंबर पर पुरी है, जहां 16 हजार 712 एकड़ जमीन है।
अब सवाल यह है कि भगवान जगन्नाथ की कितनी जमीन बेचकर सरकार 10 हजार करोड़ जुटाएगी? पुरी में भगवान जगन्नाथ की कितनी जमीन पर अतिक्रमण है? क्या अवैध खरीद-फरोख्त का खेल सिर्फ 64 एकड़ में हुआ?
नवंबर, 2024 से दिसंबर, 2024 के दौरान, अरविंद पाढ़ी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने हर बार व्यस्तता का हवाला देकर टाल दिया। बतौर चीफ एडमिनिस्ट्रेटर, पाढ़ी पर मंदिर की संपत्तियों के रिकॉर्ड संभालने और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है। मंदिर का चीफ एडमिनिस्ट्रेटर राज्य सरकार के कानून विभाग के अधीन काम करता है।
कानून मंत्री बोले- कब्जाधारियों को जमीन बेचकर फंड जुटाएंगे कानून मंत्री पृथ्वीराज से मामले पर बातचीत की कोशिश की तो उन्होंने कहा, 'ओडिशा सरकार राज्य के अंदर और बाहर भगवान जगन्नाथ की कब्जे वाली जमीन से जुड़े विवादों को सुलझाने की कोशिश कर रही है। इसके तहत छोटे प्लॉट को सस्ती दरों पर कब्जेधारियों के लिए वैध किया जाएगा, जबकि बड़े प्लॉट मार्केट वैल्यू के हिसाब से बेचे जाएंगे।'
'अवैध कब्जे वाली जमीन को बेचकर 8 हजार करोड़ से 10 हजार करोड़ रुपए का फंड जुटाया जा सकता है। इस फंड का इस्तेमाल मंदिर की जरूरतों को पूरा करने और उसकी अन्य संपत्तियों की देखभाल के लिए किया जाएगा। फर्जी दस्तावेजों के जरिए जमीन खरीदने और बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।'
मुख्य पुजारी बोले- जमीन माफियाओं से मंदिर के लोगों की मिलीभगत जगन्नाथ मंदिर के मुख्य बाड़ग्रही (पुजारी) जगुनी स्वाईं महापात्र ने कब्जाधारियों के जमीन देने के फैसले पर सरकार का विरोध किया। उन्होंने कहा, 'लोगों को भगवान की जमीन देने की क्या जरूरत है।
सौ साल की कम्युनिस्ट पार्टी के भविष्य की चिंता
सौ साल की कम्युनिस्ट पार्टी के भविष्य की चिंता
नागेंद्रनाथ नाथ शिक्षा विभाग के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे हैं। अवकाश ग्रहण पश्चात पटना में रह रहे हैं। बेगूसराय के पदस्थापन काल का परिचय फेसबुक की मित्रता के कारण नवीकृत हो गया।
कम्युनिस्ट आंदोलन के समर्थक हैं। बुढापे में भी अध्ययनरत हैं । इनके पोस्ट और कमेंट्स चालू किस्म के नहीं होते हैं। मेरे पोस्ट से जुड़ ये गंभीर सैद्धांतिक बहस शुरू करते हैं। हल्के -फुल्के ढंग से जबाब देकर इनसे पींड छुड़ा पाना संभव नहीं है।
बिहार के गौरवशाली कम्युनिस्ट आंदोलन में इस कदर गिरावट क्यों है ?
भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन को ह्रासोन्मुख स्थिति से मुक्ति मिलेगी ?
उनके इस प्रश्न का उत्तर देना मुश्किल लगा। उन्हीं से ही इस सवाल का जबाब जानने की जिज्ञासा की। इतना जरुर कहा ,जीवन के जय की चाहत है लेकिन मृत्यु से क्या मुक्ति संभव है ?
एक ' नहीं 'शब्द से उन्होंने बहस का समापन कर दिया ।
यह सवाल उनके अकेले का नहीं है। उनके ,हमारे जैसों लाखों -लाख लोगों को इस प्रश्न ने परेशान कर रखा है।
वैधानिक कम्युनिस्ट अब नहीं रह गया हूँ लेकिन कम्युनिज्म के सिद्धांतों पर अटल विश्वास है। मार्क्सवादी विचारधारा मेरी जीवनदृष्टि है । आजीवन इससे जुड़ा जीवन रहा है। इसके प्रचार -प्रसार केलिए यशपाल के शब्दों में कहूँ तो पहले बुलेट चलाता था और अब बुलेटिन निकालता हूँ। इसलिए बहस में हिस्सा लेने से अलग नहीं रह पाता हूँ।
निम्नपूंजीववादी वर्गीय चेतना का परित्याग किए बिना मार्क्सवादी सिद्धांतों पर अमल करना संभव नहीं है। सिद्धांत को आंख और व्यवहार को पांव नहीं बना पाने से भटकाव तेजी से आती है। पूंजीवादी और सामंती संस्कृति को जीते हुए अगर नेतृत्व अपनी मनमर्जी के मुताबिक पार्टी को चलाएगा तो व्यक्तिवाद स्थापित होगा ।
सिद्धांत और संगठन के प्रति निष्ठा और विश्वास नहीं रहे और व्यक्ति के प्रति कायम हो जाय तो अनर्थकारी परिणाम भुगतना होगा । यही कारण है कि कब्र में गर्दन तक डूबे लोग नेतृत्व में सांप की तरह कुंडली मारे विराजमान हैं। पद पर बने रहना ही उनका लक्ष्य है ,यही उनकी क्रांति है।
फलस्वरूप संगठन गिरोह बन जाता है और नेता सरदार ।
व्यक्तिवाद के वर्चस्व स्थापित होने से सुधार की गुंजाइश नहीं रह जाती है। स्वाभाविक रुप से तब चतुर ,चालाक मक्कार और चापलूसों का संगठन पर वर्चस्व स्थापित हो जाता है।
परिणामस्वरूप अफसरशाही और भ्रष्टाचार के शिकंजे में फंसे संगठन से क्रांतिकारी तत्वों का पलायन होने लगता है या निष्क्रियता पसर जाती है।
समझौता कर गिरोह और सरदार की अधीनता जो कबूल नहीं करते हैं या अंधभक्त बन वहां रहना नापसंद करते हैं तो उनके लिए दरवाजे बंद कर देने की घोषणा आकाशवाणी की तरह प्रसारित कर दी जाती है।
यही कारण है कि संगठित कम्युनिस्टों की तुलना में असंगठित कम्युनिस्टों की संख्या कई गुना ज्यादा है। नेतृत्व ईमानदार हो तो सबो को जोड़ने केलिए जीजान से प्रयास करता । लेकिन हाल है कि रोम जल रहा है और नीरो वंशी बजा रहा है।
आएं ,मूल विषय की ओर , मार्क्स के अनुसार एक ही प्रश्न प्रधान है , दुनिया को कैसे बदला जाए ? मार्क्स और एंजिल्स ने कभी नहीं पसंद किया था कि मार्क्सवाद को लोग सिर्फ विश्वास प्रतीक बनाएं और कट्टरपंथ का रूप दे दें। उनके अनुसार यह कार्य संबंधी पथ प्रदर्शन था , रूढ़िगत निष्ठा नहीं थी ।
मार्क्स सिद्धांत को जनता के जीवन की चुनौतियों के सवालों पर परखते थे। अगर सिद्धांत व्यवहार में नहीं उतरता है तो वह भौतिकवादी नहीं ,भाववादी ही बना रहेगा।भाववादी बनकर भौतिक धरातल पर समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है।
अराजनीतिक नेतृत्व की पहचान है कि वह संगठन को वैचारिक और सैद्धांतिक नहीं बनने देगा । सिद्धांतविहीन ढंग से काल्पनिक संसार में संगठन को फंसाए रखेगा। वर्गसंघर्ष को तिलांजलि देकर संसदीय मकड़जाल और भाषणबाजी में कम्युनिस्ट आंदोलन को सिसकने केलिए मजबूर कर देगा। संगठन को नुमाइशी कर्तव्यों ,तमाशाई हरकतों और लाभ -हानि के चक्रब्यूह में फंसा देगा।
ऐसी स्थिति बना दी जाती है कि पदलोलुपों ,गुटबाजों और प्रपंचियों की मंडली नेतृत्व के शीर्ष स्थानों पर काबिज हो जाती है।
ऐसा बेईमान नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी के ईमानदार कार्यकर्ताओं में अपने प्रति भक्ति भाव उत्पन्न कर पिछलग्गू बना लेता है।
इस दशा में बदलाव की ,व्यवस्था परिवर्तन की छोटी लड़ाई भी कहीं शुरू नहीं हो पाती है। नतीजतन न जनसंगठनों का अस्तित्व बच पाता है और न जनसंघर्षों की योजना बन पाती है।
जनसंघर्षों से ही जननेताओं का जन्म होता है । दुखद है , संगठन को ही बांझ बनाने पर स्वार्थी और अवसरवादी नेतृत्व आमदा रहता है। गाल बजाने वाले नेताओं का आधिपत्य सुनियोजित ढंग से स्थापित किया जाता है।
ऐसे नेतृत्व से उम्मीद करनेवाले अंधानुयायी होते हैं। जो मुखर बन अंदरूनी आलोचनाओं को दबा देते हैं।
लफ्फाजी और चुप्पी की मिलीजुली स्थिति राजनीति में तानाशाही को जन्म देती है। कम्युनिस्ट राजनीति भी इससे अछूता नहीं रहता है।
अपने समय में बुद्ध की विचारधारा अद्भुत क्रांतिकारी और नैतिक बल से युक्त प्रभावशाली बनी हुई थी। बदलाव की चेतना से इसका वैश्विक प्रभाव स्थापित हुआ था। लेकिन नकारात्मक और ध्वंसात्मक प्रयासों और कर्मकांडों ने इसे विनष्ट कर दिया। आज मठों में बुद्ध कैद हैं।
कबीर की क्रांतिकारी वाणी प्रार्थनाओं में बदल गई । बुद्ध की तरह ये भी भगवान बन गए और इनकी जनपक्षधरता भी विनष्ट हो गई।
अतएव कम्युनिस्टों को मार्क्स की चेतावनी को याद कर दुनिया को बदलने की लड़ाई को प्रमुख सवाल बनाना होगा ,विजातीय प्रवृत्तियों और भटकावों को पीछे छोड़ना होगा और सही क्रांतिकारी नेतृत्व को आगे लाना होगा ,नहीं तो सिर्फ नाम रह जाएगा।
कम्युनिस्ट पार्टी के सौ वर्षों की यात्रा गाथा का बखान करने से ज्यादा जरूरी आज यह है कि अनुभवों का वैज्ञानिक विश्लेषण हो और भविष्य की योजना बने। मार्क्सवाद केवल सिद्धांत नहीं व्यवहार है, इस कसौटी पर विचारने का मौजू समय यही है।
विलंव होगा तो फासीवादी राजनीति के बढते कदम को रोकना मुश्किल होगा।
-राजेन्द्र राजन
सोमवार, 6 जनवरी 2025
सनातन में आजतक कोई संन्यासी राजा नहीं हुआ है
सनातन सनातन सनातन ...
सनातन का आज कल बहुत शोर है ।संन्यास सनातन धर्म की बहुमूल्य आध्यात्मिक अवस्था है जिसमें एक पूर्णकाम व्यक्ति जीवित रहते ही जीवन की समस्त वासना का त्याग कर देता है।
हमारे पुराणेतिहास में अनेकानेक राजाओं ने राज्य–भोग से उपरत होकर वानप्रस्थ और संन्यास धर्म को स्वीकार किया है। भगवा यानि गेरुआ रंग केवल इनकी ही शोभा होती थी। बाकी देवताओं का परिधान पीत पट अर्थात पीला रंग बताया गया।
सर्वतोभद्र केश मुंडन भी इनका ही आचार था। बाद में बौद्धों ने इसी वेशभूषा को अपनाया। सनातन समाज में अनधिकारी लोगों में संन्यासी कहलाने, भगवा ओढ़ने और शिखा विहीन मुंडन कराने की बाढ़ आ गई। वृत्ति बदली नहीं, वेश बदल गया।
कबीर ने इन्हें देखकर कब का ये कहा हुआ है, "मन न रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा" गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी जमकर चुटकी ली है,
नारि मुई गृह संपति नासी।
मूड़ मुड़ाइ होहिं संन्यासी।।
लेकिन विमर्श का केन्द्र विंदु यह है कि आदिकाल से बुद्ध पर्यन्त राजा का ही संन्यासी होना श्रेयस्कर पाया गया है। किसी संन्यासी के राजा होने का उदाहरण नहीं है। साथ ही ऐसा होना महा विनाश का सूचक भी है। विलोम वृत्ति है, जैसे स्नातक उत्तीर्ण होकर प्राइमरी में दाखिला लेना। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में नारद मोह कथित मुनीश्वरों के सिर पर प्रेत बाधा की तरह दुःख दे रहा है। जोगी इसके ताजा उदाहरण हैं ।
राजा से सन्यस्त व्यक्ति आर्द्र होगा और दयालु होगा किंतु संन्यासी से शासक बनने वाला क्रूर होगा। जोगी का बुल्डोजर क्या है? शासन की बागडोर किसी सद्गृहस्थ परिवारी के हाथ होना ही कल्याणकारी होता है क्योंकि राजा में वात्सल्य आदि का भाव इसी से आता है।
संन्यासी असली हुआ तो वह राजसत्ता की ओर कदम ही नहीं बढ़ाएगा और नकली हुआ तो भगवा गुदड़ी में इतनी महत्वाकांक्षा, लोकैषणा और भौतिक विमोह को छिपा कर रखेगा कि व्यवस्था उसका ग्रास बनती रहेगी और उसके असल रूप को पहचानना भी दुश्कर होगा। आखिर साधु जो ठहरा वह!
सनातनियों के मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा वह व्यक्ति करेगा जो खुद अपनी पत्नि को गैरकानूनी तरीके से छोड़कर घर से निकाल चुका है. वह महिला जिंदा है . जय हो सनातन के ठीकेदारों...सत्ता के दलाल चाटुकारों , कालनेमियों , तलुआ चाटने में ज़बान बंद हो चुकी है......
drbn singh.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)