बाराबंकी। मोदी की किसान विरोधी नीतियों के कारण हरियाणा में ढाई घण्टे तक पुलिस ने आंसू गैस के गोले किसानों पर दागे किसानों को लाठियों से बुरी तरह से पीटा गया, यह बात आल इण्डिया किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने बिशुनपुर में किसान आन्दोलन में शहीद किसानों की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अंगे्रजी सरकार को भी मोदी सरकार ने अत्याचार में पीछे छोड़ दिया है, किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि सरकार किसान नेताओं का दमन कर रही है झूठे मुकदमें लिख रही है, लेकिन देश के किसान पीछे हटने वाले नहीं है, आन्दोलन जारी रहेगा। किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि मोदी सरकार अडानी अम्बानी के हाथों किसानों की जमीनों को देना चाहती है, इसीलिए किसानों के लिए तीन नये कानूनों का निर्माण किया है, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि पार्टी के किसान नेताओं के ऊपर फर्जी मुकदमें कायम किये जा रहे हैं, हद तो यहां तक हो गई है कि मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में किसान नेताओं के ऊपर गुण्डा एक्ट के मुकदमें कायम किये गये हैं सरकार दमन पर उतारू है, हम किसान आन्दोलन से पीछे हटने वाले नहीं हैं। श्रद्धांजलि सभा को किसान नेता महेन्द्र यादव, दीपक वर्मा ने भी सम्बांधित किया, श्रद्धांजलि सभा में अलाउद्दीन अली, अमर सिंह प्रधान, श्याम सिंह, राहुल पाण्डेय, अंकुल तिवारी, अंशुमान तिवारी, रामू रावत, श्यामू रावत, राजेश सिंह, विष्णु त्रिपाठी आदि प्रमुख लोग मौजूद थे।
लो क सं घ र्ष !
लोकसंघर्ष पत्रिका
सोमवार, 11 जनवरी 2021
शुक्रवार, 8 जनवरी 2021
सुहासिनी चट्टोपाध्यायः असाधारण महिला कम्युनिस्ट-अनिल राजिमवाले
सुहासिनी चट्टोपाध्याय भारत की प्रथम महिला कम्युनिस्ट के रूप में जानी जाती हैं। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और माता का नाम बरदा सुन्दरी देवी था। सुप्रसिद्ध नेता सरोजिनी नायडू की वे बहन थी। उनका जन्म 8जून 1901 में हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वे आठ भाई - बहनों में सबसे छोटी थीं। उनकेपिता सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। वे स्वतंत्रता आंदोलन से गहरे रूप से जुड़े हुए थे।वे हैदराबाद कॉलेज के प्रिंसिपल थे।वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय सुहासिनी के ही भाई थे।17 वर्ष की उम्र में सुहासिनी की मुलाकात ए.सी.एन. नम्बियार से हुई जो मद्रास में पढ़ रहे थे। नम्बियार इतिहास के अत्यंत विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं। सुहासिनी की बहन मृणालिनी का घर वहां था।सुहासिनी विविध गुणों वाली महिलाथीं जैसे कला, संगीत, इतिहास, यात्रा,इ.। उनके भाइयों में थे- वीरेन्द्र,हरीन्द्रनाथ, रानेन्द्रनाथ, इ. और बहनोंमें मृणालिनी, सुहालिनी, वगरैह।
इंगलैंड एवं जर्मनी में
सुहासिनी और नम्बियार 1919में विवाह के बाद लंदन चले गए।सुहासिनी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया और नम्बियार पत्रकार के तौर पर काम करने लगे। दो वर्षोंं बाद वे दोनों बर्लिन चले गए। सुहासिनी बर्लिन यूनिवर्सिटी में जर्मन पढ़ने लगीं।उन्होंने अनुवाद का काम भी ले लिया और जर्मनों को अंग्रेजी पढ़ाने लगीं।बर्लिन में सुहासिनी वामपंथी एवं मार्क्सवादी आंदोलनों के संपर्क में आईं।उनके बड़े भाई वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय का सुहासिनी पर गहरा प्रभाव पड़ा।वीरेन्द्र जर्मन कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में थे साथ ही वे कॉमिन्टर्न के संपर्क में भी थे। वीरेन्द्रनाथ ने अक्टूबर1920 में ताशकंद में हुई उस बैठक में भाग लिया जिसमें ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ की स्थापना की घोषणा की थी। यह कोशिश असफल रही और इसका कोई नतीजा नहीं निकला।वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय को केंद्रीय चरित्र बनाकर सुप्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सॉमरसेट मॉम ने एक कहानी ‘गिउलियाला जारी’ शीर्षक से लिखा।सुहासिनी गांधीवादी विचारों से दूर जाने लगी। अनुवाद करने के दौरान उन्हें समाजवादी, कम्युनिस्ट और अराजक विचारों से अवगत होने का मौका मिला। वे जर्मन कम्युनिस्टों के काम से प्रभावित हुईं। उन्हें सोशल डेमोक्रेट्स को देखने-समझने का मौका मिला और उनकी निष्क्रियता उन्हें पसंदन हीं थी।सुहासिनी पहली बार वीरेन्द्रनाथ से बर्लिन में मिली थीं, 25 वर्षों बाद।सुहासिनी के जन्म के बाद ही वीरेन्द्रनाथ बर्लिन चले गए थे। अमरीकी कम्युनिस्ट एग्निस स्मेडली उन दोनों की भेंट का विस्तृत और भावपूर्ण वर्णन करती हैं। वीरेन्द्रनाथ ने कम्युनिस्ट विचारों का सुहासिनी का गहरा प्रभावपड़ा। सुहासिनी अपने भाई से मिलने ऑक्सफोर्ड से आई थी।अंग्रेज सरकार ने उनके पिता को हैदराबाद छोड़ कलकत्ता जाने को मजबूर कर दिया। वहां उन्हें घर में नजरबंद रखा। समय-समय पर पुलिस आकर घर की तलाशी लेती, सुहासिनीके खिलौने, तकिए और घर का सारा सामान तोड़-फोड़कर रख देतीः वह गुप्त सामग्री और संदेशों की खोज में थी। पिता की मृत्यु ऐसी ही हालत में हो गई ।
पूर्व के मेहनतकशों का विश्वविद्यालय
जल्द ही सुहासिनी मास्को स्थित‘‘पूर्व के मेहनतकशों के विश्वविद्यालय’में भर्ती होने के लिए निकल पड़ीं। अगस्त1927 में वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने एम.एन.रॉय को लिखा कि वे सुहासिनी को पूर्व के मेहनतकशों के विश्वविद्यालय’ में भर्ती करने में मदद लिए अनुरोध करें। रॉय ने इसमें उनकी मदद की। इन सब गतिविधियों से नम्बियार और सुहासिनी में दूरियां बढ़ती गई और वे एक दूसरे से अलग हो गए। सुहासिनी केवल एक बार ही बर्लिन वापस गई।भारत वापसी सुहासिनी 17 दिसंबर 1928 को जहाज से मास्को से बंबई वापस आई। उनके साथ सुहासिनी चट्टोपाध्यायः असाधारण महिला कम्युनिस्ट ब्रिटिश कम्युनिस्ट नेता लेस्टर हचिन्सन भी थे। ब्रिटिश खुफिया विभाग की समझ थी कि उन्हें जान बूझकर भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन की सहायता के लिए भेजा था। हचिन्सन अगले ही साल मेरठ षड्यंत्र केस में पकड़े गए। हचिन्सन सुहासिनी के ही निवास में रहने लगे जहां, खार, प. बंबई में,मृणालिनी भी रहा करती। इस बीच सुहासिनी ‘स्पार्क’ ;ेचंता-चिन्गारी नामक पत्रिका के साथ काम करने लगीं। उन्होंने एम.एन. रॉय को पत्रिका के जनवरी 1929 के अंक में लिखने का अनुरोध किया । साथ ही सुहासिनी ने अखबारों में अनुवादिका के रूप में काम करने संबंधी विज्ञापन भी दे दिया। 1929 की फरवरी में नम्बियार ने सुहासिनी को उनसे अलग होने की सूचना दे दी।
मेरठ षड्यंत्र केस में सहायता
सुहासिनी ने मेरठ षड्यंत्र केस;1929 में कैदियों की सक्रिय सहायता करना आरंभ किया। वे स्पार्क का काम तो कर ही रही थीं उन्होंने हचिन्सन द्वारा प्रकाशित न्यू स्पार्क में भी सक्रिय सहायता की। इस बीच हचिन्सन गिरफ्तार हो गए। 20 जून 1929 को सुहासिनी ने मेरठ से मृणालिनी को पत्र में लिखा कि उन्होंने मेरठ जेल में डॉ. अधिकारी, हचिन्सन, ब्रैडले तथा स्प्रैट से मुलाकात की।इस संदर्भ में वे मृणालिनी और सरोजिनी नायडू के संपर्क में भी थीं।उनकी एक अन्य बहन सुनालिनी देवी भी पूर्व के विश्वविद्यालय’, मास्को मेंपढ़ रही थीं और बाद में जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं।
कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल
1929 में सुहासिनी चट्टोपाध्याय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं। उन्होंने ‘लिट््ल बैले ग्रुप’ तथा इप्टा में सक्रिय काम आरंभ किया।1938 में सहासिनी का विवाह आर.एम. जाम्भेकर से हो गया।जाम्भेकर पार्टी और ट्रेड यूनियनों के सक्रिय नेता थे। सुहासिनी और जाम्भेकर ‘फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन’ ;एफ.एस.यू. संस्थापकों में थे। पार्टी ने सोवियत संघ पर हिटलरके हमले के बाद सुहासिनी को बंबई में इस संगठन को गठित करने का निर्देश दिया। उन्होंने बड़ी संख्या में युवाओं को इसमें लाया। जाम्भेकर और सुहासिनी के साथ शशि बकाया भी रहा करते।सुहासिनी के डांग तथा बकाया परिवारों के साथ लाहौर में काफी नजदीकी संबंध थे। सुहासिनी ने विमला बकाया ;डांग,सत्यपाल डांग, रवि बकाया तथा लाहौर एवं अमृतसर के साथियों को राजनैतिक एवं व्यक्ति रूप से प्रभावित किया। सुहासिनी ने आजाद हिंद फौज की लक्ष्मी सहगल को भी गहरे रूप से प्रभावित किया।जब कभी सुहासिनी लाहौर जातीं,वे बकाया परिवार के साथ समय बितातीं। उनकी बहन मृणालिनी के घर में वे सभी शामें गुजारा करते। मृणालिनी उस वक्त गंगाराम स्कूल की प्राचार्य थीं। राजनीति, साहित्य, कविता-पाठ,कला, इ. पर बातें होतीं।आर.एम. जाम्भेकर 1942 में नासिक जेल से रिहा हुए और फरवरी से सुहासिनी और शशि के साथ एफ.एस.यू. गठित करने में लग गए। उन्होंने गांधीजी के आवाहन पर पूना का फर्ग्यूसन कॉलेज छोड़ दिया और साबरमती आश्रम में भर्ती हो गए। फिर वे इलाहाबाद एस.जी. सरदेसाई के पास चले गए। वे दोनों ही नेहरू के प्रभाव में मार्क्सवाद की ओर झुके। एफ.एस.यू. का प्रथम अ.भा.सम्मेलन जून 1944 में बंबई में संपन्न हुआ। इसमें सरोजिनी नायडू अध्यक्ष और जाम्भेकर महासचिव बनाए गए। सुहासिनी इसकी सक्रिय कार्यकर्ता थीं।दिसंबर 1929 में सुहासिनी ने लाहौर में आयोजित अ.भा. नौजवान सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। मार्च 1947 नेहरू की पहल पर सुहासिनी और जाम्भेकर को दिल्लीमें ‘एशियाई संबंध सम्मेलन’ में आमंत्रित किया गया। सरोजिनी नायडू ने अध्यक्षता की। सम्मेलन को गांधीजी ने भी संबोधित किया।
‘बी.टी.आर.’ काल
1947 के अंत में सुहासिनी और जाम्भेकर सोवितय संघ तथ अनय पूर्वी योरपीय देशों की यात्रा पर निकल गए।लेकिन वे तीन वर्षों तक योरप में फंसे रह गए। इसका प्रमुख कारण 1948 में पार्टी पर ‘बी.टी.आर.’ लाइन का हावी होना था। दोनों को पार्टी से आदेश दिया गया कि जब तक उन्हें आदेश न दिया न जाए, वे वापस भारत न आएं! पार्टी में संकट का उनके भावी जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।उन दोनों ने प्राग को अपना हेडक्वार्टर बनाया। उन्होंने 1949 में पैरिस में आयोजित प्रथम विश्व शांति सम्मेलन में भाग लिया। जाम्भेकर विश्व शांति परिषद के नेतृत्व में शामिल किए गए।
वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय का दुखांत
वे वीरेन्द्र का पता भी करने लगे।उल्लेखनीय है कि 1937 के बाद वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय का कोई पता नहीं चला। उनके साथ अबनी मुखर्जी भी गायब हो गए। वे दोनों ही जर्मनीछोड़ सोवियत संघ में रह रहे थे। पं.नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में भी उनकी खोज-खबर की गई थी। आज काफी विस्तार से जानकारियां मिली है।स्तालिन के शासन के दौरान जो दमन-चक्र चला, उसी का शिकार ये दोनों भारतीय कम्युनिस्ट भी बने। बिना किसी कारण और आरोप के उन्हें1937 में गिरफ्तार कर लिया गया।फिर 1938 में उन्हें स्तालिन की जेल में गोली मार दी गई। । समझा जाता है कि उन पर विदेशी एजेंट होने का आरोप लगाया गया। उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया।ये सारी जानकारियां आजादी के बाद भारत सरकार को सोवियत सरकार ने स्तालिन की मृत्यु के बाद दी। अन्य स्रोतों से भी उनकी पुष्टि हुई।जब सुहासिनी और जाम्भेकर सोवियत संघ में पूछताछ कर रहे थे तो उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया।
संकीर्णतावादी राजनीति का कुप्रभाव
सुहासिनी और जाम्भेकर 1951में भारत लौटे। ‘बी.टी.आर.’ काल में उन पर शक किया गया। 1950 में बी.टी.आर. हटा दिए गए थे। लेकिन उस दौर के शक का वातावरण अभी दूर नहीं हुआ। वे दोनों पहले एफ.एस.यू. और फिर ‘इस्कस’ में काम करने लगे। लेकिन किसी पॉलिट ब्यूरो सदस्यके दबाव पर उन्हें ऊपरी कमेटियों मेंनहीं आने दिया गया। सुहासिनी का सक्रिय राजनैतिक जीवन लगभग समाप्त-प्राय हो गया। जाम्भेकर बादमें पार्टी के मराठी साप्ताहिक ‘युगांतरके संपादक भी बने।
सुहासिनी काफी बीमार रहने लगीं।वे व्हील-चेयर’ पर आ गईं। फिर भी उन्होंने भा.क.पा. का कभी साथ नहीं छोड़ा, 1964 में पार्टी में फूट पड़ने के बाद भी। उनका ‘इस्कस’ से भी सक्रिय संबंध बना रहा।सुहासिनी के काम करने का तरीका वे अधिकतर व्यक्तिगत प्रभाव एवं संबंधों के जरिए विशेषकर युवा लोगोंको संगठन में लातीं। उनके प्रभाव से एफ.एस.यू. एवं इस्कस के जरिये बड़ीसंख्या में लोग बंबई तथा अन्य जगहों पर पार्टी में आए।सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजनों,प्रदर्शनियों, इ. के जरिये विविध गुणों वाले व्यक्ति शामिल हुए। उनके भाई हरींंद्र नाथ चट्टोपाध्याय भी कला एवंसाहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्ध हुए और पार्टी में भी सक्रिय रहे।1927 में हरिन ने द इंटरनेशनल गीत का हिंदी अनुवाद किया ;‘‘उठ जाओ भूखे बंदी....’’। सुहासिनी ने इसे अंग्रेजी में बर्लिन में गाया।
अमीर हैदर खान की सहायता
मेरठ षड्यंत्र केस के सिलसिले में गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। इसमें अमीर हैदर खां का भी नाम था। वे विदेश से आकर बंबई में रह रहे थे और घाटे,डांगे तथा अन्य से मिल चुके थे वे भी सुहासिनी के साथ रह रहे थे। वे रिजवीके कमरे में मिले। सुहासिनी ने हैदर को कहा कि उनका बंबई में रहना खतरे से खाली नहीं है? इसलिए वे निकल जाएं। हैदर ने इटालियन पासपोर्ट का इस्तेमाल करके गोवा होते हुए नेपल्स का जहाज पकड़ लिया जिसके बाद उन्हें हैम्बर्ग जाना था।इस प्रकार सुहासिनी की सहायतासे हैदर मेरठ केस के जाल से निकल भागे।इसी प्रकार जब हैदर 1931 में बंबई वापस आए तो उन्हें मद्रास भेजनेकी जरूरत पड़ गई। बंबई पार्टी ने तय किसा कि हैदर बंबई से बाहर चले जाएं। सुहासिनी को हैदर के लिए उचित जगह तय करने के लिए मद्रास भेजा गया। सुहासनी ने पैसों का भी इंतजाम कर दिया।हैदर कुछ समय बाद गिरफ्तार कर लिए गए और मद्रास जेल भेज दिएगए। पार्टी ने उनके मुकदमे की तैयारी के लिए सुहासिनी, उनकी बहन और रणदिवे को भेजा।मेरठ जेल से छूटने के बाद घाटे और मिरजकर की मुलाकात हैदर और सुहासिनी से हुई। इस बीच पार्टी ने कांग्रेस में काम करने का फैसला लिया।सुहासिनी और अन्य साथी कांग्रेस मेंशामिल हो गए।सुहासिनी ने हैदर को कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन ;1940 में भाग लेने में पैसों से भी सहायता की।चीन की यात्रा1954 में सुहासिनी और जाम्भेकर ने चीन की यात्रा की। कहाजाता है कि माओ त्से-तुंग से मिलनेवाले थोड़े-से भारतीयों में वे भी थीं।उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट नेता लिउ शाओ-ची से भी मुलाकात की।सुहासिनी जाम्भेकर की मृत्यु 26नवंबर 1973 को हो गई।
गुरुवार, 7 जनवरी 2021
सुधा राय क्रांति नेत्री - अनिल राजिमवाले
सुधा रॉय का जन्म 1914 में फरीदपुर ;अब बांग्लादेश मेंद्ध हुआ था। वे जमींदार परिवार की थीं। उन्होंने ईडन गार्डन कॉलेज, ढाका में बंग्ला में ऑनर्स किया। मनोरंजन गुहा-ठाकुरता उन्हें राजनीति में ले आए। पिता की असमय मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी मॉं और भाई-बहनों को संभाला। वे दक्षिण कलकत्ता के कमला गर्ल्स स्कूल में 1932 और 1958 के बीच पढ़ाया करतीं थीं। उन्हें ‘बहिनजी’ पुकारा जाता और बंदरगाह मजदूरों में बड़ी ही लोकप्रिय थीं। वे यूनियन के काम से प्रतिदिन दोपहर किद्दरपुर डॉक जाया करतीं। उन्हें उनके भाई शिशिर रॉय ने श्रमिक आंदोलन से परिचित कराया। शिशिर बाद में बोल्शेविक पार्टी के महासचिव बने।
1933 में बंगला लेबर पार्टी ;बी. एल.पी. की स्थापना की गई। दोनों भाई-बहन इसके नेता बने। इसकी स्थापना निहारेंदु दत्त मजूमदार ने की थी। इनके अलावा इसमें विश्वनाथ दुबे, कमल सरकार, नंदलाल बोस इ. शामिल थे।
इस पार्टी ने कई ट्रेड यूनियनों का गठन किया जिनमें सुधा रॉय की सक्रिय भूमिका रही। इनमें बंदरगाह मजदूर, जूट, आयरन एंड स्टील, मेटल एंड इंजीनियरिंग, केमिकल, रेलवे, बर्ड कं., सफाई कर्मचारी, इ. शामिल थे।
तीस के दशक में बंगाल लेबर पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गई लेकिन 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस और सुभाषचंद्र बोस के सवाल पर मतभेद पैदा हो गए। उन्होंने फारवर्ड ब्लॉक के गठन के प्रश्न पर सुभाषचंद्र
बोस का साथ न देने के लिए भा.क. पा. की आलोचना की। इस ग्रुप ने 1939 में पार्टी से अलग होकर बोल्शेविक पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की। बंगाल लेबर पार्टी खुले तौर पर बरकरार रही।
टी.यू. आंदोलन में
सुधा रॉय 1933 में ही लेबर पार्टी ;बाद में बोल्शेविक पार्टी में शामिल हो गईं। उन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ किद्दरपुर-मोटिया बुर्ज इलाके में काम किया। समाज-विरोधी तत्वों के प्रकोप से एक महिला के लिए उस
इलाके में रात में तो क्या दिन में भी घूमना खतरे से खाली नहीं था। वहां बंगला-भाषी मजदूर कम थे,
अधिकतर उर्दू या हिन्दी बोलते थे। मार्च 1934 में पोर्ट एंड डॉक वर्कर्स यूनियन का गठन किया गया। अजीज सरदार इसके अध्यक्ष थे, शिशिर रॉय सचिव। सुधा रॉय ने इस यूनियन में सक्रिय काम किया। 1934 में पोर्ट और डॉक मजदूरों ने मई दिवस मनाया। 20 हजार बंदरगाह मजदूरों में से 15000 ने हड़ताल कर दी।
मटियाबुर्ज के जहाज निर्माण के 5000 में से 2000 ने हड़तालकी। 50 जहाज खड़े रह गए। भा. क.पा के नेता ज्योतिर्मय नंदी लिखते है कि हड़ताल के दिनों में उस इलाके में जाना खतरे से खाली नहीं था। हड़ताल तोड़ने के लिए अपराधी तत्वों का इस्तेमाल किया जा रहा था। वह एक छोटे कमरे में नंदी, सुधा और शिशिर रहा करते और घर नहीं जाते।लेकिन सुधा ने सब परिस्थितियों का सामना किया।
हाजरा लेन ;द. कलकत्ता में अपने निवास से सुधा हर दिन किद्दरपुर डॉक एरिया जाया करतीं। वे मजदूर बस्तियों में जाकर समाजवाद के विचारों का प्रचार और व्याख्या किया करती। उन्होंने उन्हें लेनिन तथा रूसी क्रांति के बारे में बहुत कुछ समझाया। उन्होंने विश्व कमयुनिस्ट आंदोलन के बारे में जानकारी दी। सुधा रॉय उन थोड़े-से मजदूरा नेताओं में थीं जिन्होंने सचेत रूप से मजदूर आंदोलन में राजनीति और विचारधारा फैलाई।
16 दिसंबर 1934 को हड़तालियों के खिलाफ कोई कदम न उठाने की शर्त पर हड़ताल वापस ले ली गई। एक अनौपचारिक जांच कमेंटी का गठन किया गया। सुधा रॉय तथा अन्य की मेहनत से रहीम, युसूफ, शेर खान, अबदर रहमान खान, नारायण राव जैसे मजदूर और कम्युनिस्ट नेता उभरे।
1936 में बोल्शेविक पार्टी भा. क.पा. में शामिल हो गई। सुधा रॉय संभवतः दूसरी ऐसी महिला नेता थीं जो बंगाल में गैर-कानूनी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बनीं बंगाल में प्रथम महिला पार्टी मेंबर लतिका सेन थीं। वे 27 अप्रैल 1949 को पुलिस फायरिंग में शहीद हो गईं।
1939 में सुधा रॉय वापस बोल्शेविक पार्टी में चली गईं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने एटक के नेतृत्व वाली चटकल मजदूर यूनियन में सक्रिय कार्य किया। नंदलाल बोस ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। गुप्त पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार सुधा रॉय कलकत्ता विश्वविद्यालय की ग्रेजुएटथीं और बंगाल लेबर पार्टी तथा भा. क.पा. की सक्रिय कार्यकर्ता थीं। वे नियमित बैठकें आयोजित करतीं और मजदूरों को राजनैतिक चेतना से लैस करतीं। 1938 में सुधा रॉय ने त्रिपुरी कांग्रेस में कम्युनिस्ट प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया। वहां उन्होंने भा.क.पा. की बैठकों में भी भाग लिया।
उन्होंने1938 में जेसोर-खुलना राजनैतिक कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग लिया। वहां एक दुखद घटना घटी। नरेश सेन नामक एक कार्यकर्ता की,जो कम्युनिज्म की ओर झुक रहा था, प्रतिद्वंद्वी गुट ने 28 मई 1938 को हत्या कर दी। 10 जून 1938 को बालीगंज में विरोध सभा हुई। भाकपा की ओर से सुधा रॉय तथा मुजफ्फर अहमद और रायवादियों ने सभा को संबोधित किया। सुधा रॉय ने कहा कि ये झगड़े खत्म होने चाहिए। इससे बंगाल की राजनीति बर्बाद हो रही है। विचारधारा नष्ट नहीं की जा सकती। आतंकवादियों ने लेनिन की हत्या की कोशिश् की लेकिन लेनिनवाद को नहीं मार सके। 1939-40 में वे आसाम रेलवे मेन्स फेडरेशन में काम करने लगीं। उन्होंने जूट मिल वर्कर्स यूनियन में काम किया। वे डॉक लेबर बोर्ड की प्रथम महिला सदस्य थीं।
7 अक्टूबर 1942 को सुधा रॉय ने पटना से मुजफ्फरपुर में उमा घोष को लिखा कि सभी फासिज्म- विरोधियों को एक जगह आना चाहिए रायवादी, बी.एल.पी और भा.क.पा. एक जगह आएें। पी.सी.जोशी ने संयुक्त कार्य पर जोर दिया था।
महिला आंदोलन में
सुधा रॉय 1943 में महिला आंदोलन में शामिल हुईं। वे ऑल इंडिया वीमेन्स कॉन्फ्रेंस में काम करने लगीं। उन्होंने ‘‘बच्चों की रक्षा करो’’ आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने 1945 में वयस्क साक्षरता के लिए ‘‘लोक शिक्षा परिषद’’ का गठन किया। उन्होंने अखिल भारतीय महिला फेडरेशन ;एन.एफ.आई.डब्ल्यू के संस्थापना सम्मेलन ;1954 में
हिस्सा लिया। वे महिला सांस्कृतिक सम्मेलन की ओर से महिला आत्मरक्षा समिति में सक्रिय थीं और बारीसाल में इसके दूसरे सम्मेलन में शामिल हुईं। वहां भाषण भी हुआ। साथ ही देश के विभाजन के बाद शरणार्थी शिविरों में भी उन्होंने काम किया। सुधा रॉय सम्मेलन की स्वागत समिति की सदस्य भी थीं।
सुधा रॉय स्थापना सम्मेलन में ही एन.एफआई.डब्ल्यू की उपाध्यक्ष चुनी गई।
चुनावों में 1951-52 के आम चुनावों में संसद के लिए सुधा रॉय बोल्शेविक पार्टी की एकमात्र उम्मीदवार थीं। वे बरकपुर से खड़ी हुई और उन्हें 25,792 वोट मिले। 1957 में वे प. बंगाल विधान सभा के लिए फोर्ट चुनाव क्षेत्र से खड़ी हुईं और चौथे नंबर पर आईं।
पुनः भा.क.पा. में
वे 1939 में भा.क.पा. से निकलकर बोल्शेविक पार्टी में शामिल हो गई थीं। 1965 में बोल्शेविक पार्टी के सम्मेलन में उन्होंने दोनों पार्टियों के विलयन का आवाहन किया। सम्मेलन ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
इस पर सुधा रॉय अपने सहयोगियों के साथ भा.क.पा.में शामिल हो गईं। वे एटक का काम करने लगी।
यू.टी.यू.सी. का काम1958 में
सुधा रॉय की यूनियन डॉक मजदूर यूनियन में फूट पड़ गई। सुधा और शिशिर एक ओर थे, विश्वनाथ दुबे दूसरी ओर। शिशिर रॉय की मृत्यु के बाद सुधा रॉय यू.टी.सू.सी. की महासचिव बनीं। सुधा रॉय की मृत्यु 7 जून 1987 को लंबी बीमारी के बाद हो गई।
-अनिल राजिमवाले
शुक्रवार, 1 जनवरी 2021
अडानी-अम्बानी के मोह के कारण मोदी सरकार किसानों की मांग को नहीं मान रही है
बाराबंकी। इस शीत लहर में खुली सड़क पर लाखों किसान बैठे हैं, लेकिन अडानी-अम्बानी के मोह के कारण मोदी सरकार किसानों की मांग को नहीं मान रही है, यह बात आॅल इण्डिया किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष रणधीर सिंह सुमन ने ककरहिया गांव में किसान आन्दोलन में शहीद किसानों की श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सरकार आम जनता की नहीं है बल्कि अडानी और अम्बानी की सरकार है। किसान सभा के जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि किसान शक्ति के आगे सरकार को झुकना होगा अन्यथा मोदी सरकार के लिए किसान आन्दोलन उनकी विदाई का आन्दोलन होगा। जिला उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार किसान नेताओं के ऊपर फर्जी मुकदमें कायम कर रही है। जनपद में भी हम लोगों के ऊ मुकदमें कायम किये गये हैं, लेकिन हम लोग डरने वाले नहीं हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव बृजमोहन वर्मा ने कहा कि हमारी पार्टी किसानों के साथ है, और आन्दोलन में हमेशा सक्रिय रहेगी, पार्टी के जिला सह सचिव शिव दर्शन वर्मा ने कहा कि जनपद में किसानों का धान आठ-नौ सौ रूपये प्रति कुन्टल बिक रहा है और सरकार धान खरीद का नाटक कर रही है। सभा का आयोजन आॅल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के जिलाध्यक्ष महेन्द्र यादव ने किया था। जनसभा में मुनेश्वर बक्स, श्याम सिंह, अंकुल वर्मा, राम नरेश माती, गिरीश चन्द्र, विष्णु त्रिपाठी, डाॅ0 अलाउद्दीन, यशवंत सिंह आदि प्रमुख किसान नेता मौजूद थे।
शनिवार, 26 दिसंबर 2020
मोदी के दस वाक्यों में नौ वाक्य झूठ पर आधारित होते है -अतुल कुमार अनजान
बाराबंकी/ न जातिवाद न धर्मवाद और गैर कांग्रेसवाद देश को बचाना है तो अब गैर भाजपावाद के रास्ते पर देश को चलाना होगा।
यह सलाह आल इण्डिया किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव व कम्युनिस्ट पाटी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अतुल कुमार अंजान ने देवा रोड स्थित गाँधी भवन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में दिया उन्होंने कहा देश इस वक्त संकट कालीन दौर से गुजर रहा है। देश का नौजवान व मजदूर किसान का भविष्य अंधकारमय है। देश के हर नागरिक को नई आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए सामने आना होगा और किसानों को इस आन्दोलन को घर-घर पहुँचना होगा। खेत बचेगा तो किसान बचेगा और हिन्दुस्तान बचेगा। अतुल अंजान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधे आक्रमण करते हुए का कि वे सत्ता में बने रहने के लिए देश की जनता को बराबर गुमराह कर रहे है उनके दस वाक्यों में नौ वाक्य झूठ पर आधारित होते है और विडम्बना यह है कि देश की जनता अभी तक झूठ बर्दाश्त करती रही, अज्ञानी ज्ञान बाँट रहें है।
हिन्दी मासिक पत्रिका परिकल्पना के प्रधान सम्पादक और सुप्रसिद्ध ब्लागर रविन्द्र प्रभात ने कहा देश की संस्कृति और समरसता को छिन भिन्न कर सत्ता हथियाने वाली साम्राज्यवादियों के गुलामी की ओर ले जा रहें है। रिहाई मंच के संयोजक एडवोकेट मो0 शुऐब ने कहा कि दिल्ली के बार्डर पर धरना दे रहें किसानों की अकेले की लड़ाई नहीं है। देश के खाद्यन्न को अपने चहेते पूंजीपतियों के हवाले मोदी जी कर देना चाहते है। हरित क्रान्ति के सूरमाओं के परिश्रम की बलि चढ़ा देना चाहते है। अन्न दाताओं को हमें इस लड़ाई में पूर्ण समर्थन देना ही सच्चा राष्ट्रवाद है। कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य कौंसिल के सदस्य रणधीर सिंह सुमन ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि 26 दिसम्बर 1925 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कानपुर में मौलाना हसरत मोहानी ने मुकम्मल आजादी के के नारे के साथ की थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके वजूद के आने से रोकने के लिए देश भर में हजारों की संख्या में लोगों की गिरफ्तारियाँ की गयी थी। बावजूद इसके कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने वसूलों से कभी समझौता नहीं किया और जन मुद्दों पर जमकर संघर्ष किया और आगे भी करते रहेंगें।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव एडवोकेट बृजमोहन वर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि देश आर्थिक गुलामी की ओर अग्रसर है और जो लोग स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेज शासकों की मुखबरी किया करते थे वह साम्राज्यवादियों की ऐजेन्ट की भूमिका में है। अन्त में उन्होंने कार्यक्रम में पधारे समस्त अतिथियों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में वामपंथी विचारधारा के लेखक अनिल राजिमवाले द्वारा रचित पुस्तिका ’’मुखबिर राज और आजादी के महानायक भाग-2 का विमोचन मुख्य अतिथि अतुल कुमार अंजान सहित अन्य अतिथिगणों ने किया। उर्दू दैनिक इंकलाब के जिला संवाददाता तारिक खान द्वारा संचालित कार्यक्रम में डाॅ0 कौसर हुसैन और शिवदर्शन वर्मा ने भी अपने विचार रखे।
इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों में साहित्यकार डाॅ0 विनय राज, पंण्डित राजनाथ शर्मा, मूसा खा ईंसान, डाॅ0 श्याम सुन्दर दीक्षित, डाॅ0 एस0एम0 हैदर, कामरेड प्रवीन कुमार, विनय कुमार सिंह, पत्रकार फैजान मुसन्ना महन्त बी0पी0दास, पर्यावरण विद्य हाजी सलाउद्दीन किदवाई, एडवोकेट विजय प्रताप सिंह, आनन्द सिंह, अरविन्द सिहं, नीरज वर्मा, गौरी रस्तोगी, अंशूलता मिश्रा, गाजी अमान, अलाउद्दीन, श्याम सिंह, भूपेन्द्र पाल सिंह, शिवम सिंह, आशीष शुक्ला, महेन्द्र यादव, अंकित चैधरी, दल सिंगार, अविनाश वर्मा, आदि रहे।