बुधवार, 7 सितंबर 2022
आओ सूरज का मातम करें
मशहूर हिंदी साहित्यकार राही की नजर से देखें नेहरू
इसमें राही ने लिखा, ‘इन दिनों नेहरू को भला-बुरा कहने का चलन निकल पड़ा है। गृह मंत्री कहते हैं कि नेहरू ऐसे थे कि उनके हिंदुस्तानी होने पर शरमाना चाहिए। मेरी खाल जरा मोटी है। जब मैं इन गृह मंत्री के होने पर नहीं शरमाता, तो नेहरू के होने पर क्यों शर्माऊंगा? नेहरू का किस्सा यह है कि हम लोग या तो बुत बनाते हैं या फिर बुत तोड़ते हैं।
मशहूर हिंदी साहित्यकार राही मासूम रजा का जन्म आज ही के दिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के गंगौली गांव में हुआ था। एक रोज सुबह-सुबह रजा अखबार पढ़ रहे थे। उसमें तत्कालीन जनता सरकार के गृहमंत्री का बयान छपा था। उसमें लिखा था, ‘नेहरू ऐसे थे कि उनके हिंदुस्तानी होने पर शरमाना चाहिए।’ यह पढ़कर राही गुस्से से उबल पड़े और फौरन ही अखबारों में एक वक्तव्य दे दिया। बाद में यह ‘नेहरू : एक प्रतिमा’ के नाम से प्रकाशित हुआ।
इसमें राही ने लिखा, ‘इन दिनों नेहरू को भला-बुरा कहने का चलन निकल पड़ा है। गृह मंत्री कहते हैं कि नेहरू ऐसे थे कि उनके हिंदुस्तानी होने पर शरमाना चाहिए। मेरी खाल जरा मोटी है। जब मैं इन गृह मंत्री के होने पर नहीं शरमाता, तो नेहरू के होने पर क्यों शर्माऊंगा? नेहरू का किस्सा यह है कि हम लोग या तो बुत बनाते हैं या फिर बुत तोड़ते हैं। मैं नेहरू के बुत की पूजा नहीं करता, मगर मैं महमूद गजनवी भी नहीं हूं, इसलिए मैं उनका बुत तोड़ना भी नहीं चाहता। हमारे रास्ते को सजाने के लिए यह बुत बड़ा ही खूबसूरत है। यात्री सफर में इस बुत को देखने के लिए जरूर रुकेंगे।’
रजा साहब आगे कहते हैं, ‘होश संभालने से पहले मुझे पता ही नहीं था कि जवाहरलाल नेहरू क्या शख्सियत और क्या चीज थे। मगर जब होश संभाला तो खुद को उनके विरोधी खेमे में पाया और जैसे-जैसे होश संभलता गया, विरोध और बढ़ता गया। लेकिन पंडित नेहरू की मौत पर मैं बहुत रोया था, और इस मौत पर एक कविता भी लिखी थी जिसका शीर्षक था- ‘आओ सूरज का मातम करें।’ उस आदमी में कोई तो खास बात रही होगी। मैंने देखा- नेहरू रोमांटिक थे और अपने सपने बुनते थे। पंडित नेहरू को उनकी कुछ कमजोरियों के साथ भी स्वीकार करता हूं और मानता हूं।’
संकलन : हफीज किदवई

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सुमन
लोकसंघर्ष