शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023
बमों की बातें-अनूप मणि त्रिपाठी
बमों की बातें
____________________________________
'हाय!' नया नवेला बम बोला।
'हैलो!' पुराने बम ने जवाब दिया।
'तो तैयार हो!'
'किस बात के लिए!
'फटने के लिए!'
'अगर तुम किसी अस्पताल, खलिहान,कारखाने पर गिरो तो तुम्हें कैसा लगेगा!' पुराने बम ने पूछा।
'मुझे अपना काम करना है,उसका परिणाम नहीं देखना!' नए बम ने जवाब दिया।
'अच्छा, पहले यह बताओ कि तुम्हारे अंदर क्या-क्या है!' कुछ देर चुप रहने के बाद पुराने बम ने पूछा।
'बारूद, केमिकल और बहुत कुछ!' नए बम ने जवाब दिया।
'गलत!'
'फिर!'
'तुम्हारे अंदर किसी मजदूर के हिस्से की चुराई गई रोटी , किसी बुजुर्ग की खत्म की गई पेंशन , किसी बच्चे के हाथ से छीनी गई किताब,कीटनाशक पीया हुआ कोई किसान, प्रसव वेदना से दम तोड़ती हुई किसी महिला की एंबुलेंस की प्रतिक्षा, बड़े सेठ की गहरी अय्यारी, अंतर्राष्ट्रीय नेता की नई चाल की तैयारी और तो और किसी नवजात की ली गईं किलकारी है ...'
'तुम तो बहुत भरे बैठे हो यार! कहीं बैठे-बैठे ही न फट जाना!' नए बम ने व्यंग्य किया।
'मगर एक्सपर्ट तो मुझे सीला हुआ कहते हैं!' पुराने बम ने अपना हाल बताया।
'तुम सीले नहीं हिले हुए हो!' नया बम मस्ती में बोला।
'मैं हिला हुआ कैसे!' पुराने बम ने पूछा।
'क्योंकि मेरे अंदर केमिकल है और तुम्हारे अंदर केमिकल लोचा है!' नया बम यह कर अकड़ा।
'तो मैं हिला हुआ हूं!'
'हां,कोई शक!'
'अगर मैं हिला हुआ हूं, तो तुम पूरे ठस्स हो ठस्स!'
'कैसे!!!'
'तुम फटकर हुक्म बजाते हो!'
'और तुम सीले रहकर क्या करते हो बे!' नए बम ने गुस्से से पूछा।
'मैं फर्ज निभाता हूं!' पुराने बम ने विनम्रता से जवाब दिया।
अनूप मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद भविष्य में भी उत्साह बढाते रहिएगा.... ..
सुमन
लोकसंघर्ष