शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

कायर दिवस य शौर्य दिवस

6 दिसंबर 1992 - बाबरी मस्जिद परिनिर्वाण ( विध्वंस ) दिवस । आज ही की तारीख मे अयोध्या मे बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद किया गया था गिराने वाले अपने को हिंदू राष्ट्रवादी कहते हैं । और ये अपने नपुंसक कार्य को शौर्य कहकर हिंदू शौर्य दिवस मनाते है।और कुछ आज के दिन भयभीत होकर घरों मे कैद हो जाते है । हम थोड़ा पीछे चलते है।आजादी की लड़ाई मे बहुत से बिचारों वाले लोग कांग्रेस में थे। कुछ घोर दक्षिण पंथी थे कुछ घोर बामंपथी थे ।कुछ दोनो तरफ से बीच में नरम - मुलायम भी थे। मुलायम वाले कांग्रेस मे थे और घोर दायें -बाये वाले अलग अलग । दायें वाले लोग आज हिंदू राष्ट्रवादी बनकर बी जे पी के रूप मे एक ताकत के साथ और एक होकर दिल्ली पर कब्जा कर लिये , इसमे इनकी मदद कांग्रेस के जो हिंदू राष्ट्रवादी सेकुलरिज्म का लबादा ओढकर सत्ता का मजा लेते रहे और अंदर अंदर सेकुलरिज्म को कमजोर करते रहे। और 2014 मे अपनी सेकुलरिज्म के लबादे खोलकर अपने असली रूप मे आ गये। 167 पूर्व कांग्रेसी सांसद आज बीजेपी सरकार में बीजेपी सांसद हैं। आजादी के बाद देश के प्रधान मंत्री पद पर पं नेहरू गांधी की पहली और अंतिम पसंद थे। जबकि कांग्रेस के हिंदू नेशनलिस्ट और आर एस एस के ब्रांडेड हिंदू नेशनलिस्ट दोनो नेहरू को नहीं , एक हिंदू नेशनलिस्ट सरदार पटेल को चाहते थे । लेकिन बहुत सी बातों पर नेहरू से मतभेद होते हुये भी गांधी ने नेहरू को ही क्यूॅ पी यम बनाया ? जबकि कांग्रेस के प्रदेश कमेटियों ( जो पटेल की प्राईवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नियुक्त थी ) का बहुमत नेहरू के साथ नही था । ऐसा मोदी और उनके पूर्वज चिल्लाते है। मेरे पास नही मोदी जी के पास इसका दस्तावेज है। " नेहरू की छवि पूरे देश मे अनइक्वल्ड आइडल मास लीडर की थी और भारतीय राष्ट्रीयता के पुनरोत्थान के प्रतीक के रूप मे पूरे दुनियां मे विख्यात थे और पटेल का पार्टी मैनेजमेंट पर पकड़ मजबूत थी ऊसका कारण फंड कलक्टर होना था। " pt. Nehru was cultured and refine . Patel was coarse to degree. Nehru had a world view while Patel was fully ignorant of world affairs. Nehru was great despite his serious flaws and grave failures in foreign affairs but he was unchallenged super hero of secularism and indian nationalism , while patel was small.and mean despite his some admirable qualities due to his inclination towards hindu nationalism . Patel was soulmate of RSS of RSS thought. As chief organiser and treasurer of congress party ." पं. नेहरू सुसंस्कृत और परिष्कृत थे।जबकि पटेल पटेल अपरिष्कृत तथा खुरदरे थे। नेहरू की विश्वदृष्टि थी जबकि पटेल विश्व मामलों से पूरी तरह अनभिज्ञ थे। नेहरू अपनी गंभीर खामियों और विदेशी मामलों में गंभीर विफलताओं के बावजूद महान थे, लेकिन वे धर्मनिरपेक्षता और भारतीय राष्ट्रवाद के निर्विवाद सुपर हीरो थे, जबकि पटेल हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति झुकाव के कारण अपने कुछ सराहनीय गुणों के बावजूद कमतर व छोटे थे । पटेल आरएसएस के विचार वाले( soulmate to RSS ) आरएसएस के साथी थे। कांग्रेस पार्टी के मुख्य आयोजक और कोषाध्यक्ष के रूप में जान जाते थे ।" पटेल की पार्टी पर मजबूती का इसी बात से पता चलता है कि पं नेहरू प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल राजाजी जिनको पंडित नेहरू प्रथम राष्ट्रपति बनाना चाह रहे थे । पटेल ने उनको नही बनाकर अपनी सोच वाले दूसरे हिंदू नेशनलिस्ट डा- राजैन्द्र प्रसाद को बनाये ।नेहरू को झुकना पड़ा। दूसरी बार 1950 मे कांग्रेस अध्यक्षता के चुनाव मे पं नेहरू आचार्य कृपलानी को चाहते थे जबकि पटेल अपने दूसरे हिंदू नेशनलिस्ट साथी पी.डी. टंडन को बैठा दिये बकायदा प्रचार करके । नेहरू गरिमा के तहत किसी का प्रचार नही किये न किसी से वोट के लिये कहे। टंडन कांग्रेस अध्यक्ष बन गये। पटेल का हिंदू महासभा और आर एस एस के नेताओं से अंदरूनी संबंध थे । वायसराय लार्ड वावेल ने राजा को अपने 22 अक्टूबर 1946 की रिपोर्ट मे लिखा है कि पटेल फ्रैंक कम्युनल है।( transfer of power.) " क्या ऐसा आदमी भारत की ख्याति की विश्वसनीयता को चमका सकता है? would such a man have brought lustre to India's reputation in the world ? And what kind of legacy would he have bequeathed to a newly independent India in its formative years ? what kind of vision would he have projected to inspire our plural society with its compisite culture and rich traditions ? patel was pri- industrialists and unsympsthitic to labour . his vision was narrow , his concerns are limited and he was intolerant of dissent . HE WAS THE QUINTESSENTIAL HINDU COMMUNALIST . Dr Rajendra Prasad, purusottam das tondon ? k m munshi and GB Pant are the staunch follower of patel. " क्या ऐसा व्यक्ति दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा के लिए चमक ला सकता था? और एक नए स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक वर्षों में उसे किस तरह की विरासत में मिली होगी? उन्होंने हमारे बहुल समाज को उसकी मिली-जुली संस्कृति और समृद्ध परंपराओं से प्रेरित करने के लिए किस तरह की दृष्टि का अनुमान लगाया होगा? पटेल प्रो उद्योगपति थे और श्रम के प्रति उदासीन थे। उनकी दृष्टि संकीर्ण थी, उनके सरोकार सीमित थे और वे असहमति के प्रति असहिष्णु थे। वह सर्वोत्कृष्ट हिंदू सांप्रदायिक थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास टंडन, के. एम. मुंशी और जीबी पंत पटेल के पक्के अनुयायी हैं। " इन सभी ने मिलकर अंबेडकर के सबसे फसंदीदा बिल हिंदू कोड बिल को पास होने नही दिया। आर एस एस और पटेल ग्रुप एक राय के थे। और अंबेडकर को सरकार से बाहर होना पड़ा। नेहरू को एक होनहार मंत्री को खोना पड़ा। गांधी हत्या के बाद नैतिक रूप से पटेल को नेहरू सरकार से इस्तिफा देना चाहिये था क्यूंकि पटेल ही गृह मंत्री थे। सुरक्षा की जिम्मेदारी पटेल की थी। लेकिन नेहरू ने बड़प्पन दिखाया । ईस्तिफा नही लिया जबकि जय प्रकाश नरायन पटेल को लिखित रूप से दोषी ठहरा चुके थे । पटेल को अपने को बचाव के लिये आर एस एस को बैन करना पड़ा। और गोलवलकर को गिरफ्तार करना पड़ा। आर एस एस को फिर कहना कि गोड़से से आर एस एस का मतलब नही वह हिंदू महासभा के सदस्य है पहले थे अब ईस्तिफा दे दिये है जबकि जो थोड़ा भी जानता है आर एस एस को तो जानता होगा कि संघ मे कोई सदस्यता नही होती । भारतीय संविधान को नही मानते थे अब मानेंगे। आर एस एस मे लोकतांत्रिक संविधान के अनुसार चुनाव होगा। आजतक तो हुआ नहीं। बैन पटेल की अंदरूनी अंडरस्टैंडिंग से हटा। कुछ दिन के चुप रहने के बाद हिंदू महासभा जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष सावरकर थे और राष्ट्रीय महांमंत्री और यू पी के अध्यक्ष महंथ दिग्विजय नाथ थे। गोलवलकर आर एस एस के सर संघ चालक थे ।गोबिंद बल्लभ पंत जो कांग्रेस के सेकुलर सरकार के लबादे मे हिंदू नेशॅलिस्ट थे। पटेल के पक्के अनुयायी थे और यू पी के सी यम थे, अत: हिंदू महासभा ने सभी की अपरोक्ष सहयोग से अयोध्या मे बाबरी मस्जिद मे 22 दिसंबर 1949 की आधी रात को रामलला की मूर्ती रखवा दिया ।प्रशासन और यू पी सरकार के अंदरूनी मदद के द्वारा क्या यह संभव था ? अयोध्या विवाद कहने को तो कोर्ट से निपटारा हो गया लेकिन क्या उसके घाव भर गये ? आज भी है मवाद के रूप में। जबकि 06 दिसंबर 1992 को आर एस एस , बी जे पी , विश्व हिंदू परिषद , बजरंग दल इत्यादि के लोगों ने जो सभी एक सोच हिंदू नेशनिलस्ट यानि हिंदू कम्युनलिस्ट लोगों ने प्रदेश मे अपनी सरकार के आड़ मे केंद्र के हिंदू नेशनलिस्ट पी यम नरसिम्हा राव को धोखा देकर या उनकी अंदरूनी सहयोग से बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद कर दिया था। यह तब हुआ जब कांग्रेस का प्र मंत्री नेहरू परिवार से बाहर का था। सेकुलरिज्म के सवाल पर नेहरू गांधी परिवार का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। गांधी हत्या के बाद देश मे आर एस एस और हिन्दू महासभा अछूत हो गयीं थी। कांग्रेस के हिंदू नेशनलिस्ट जो पटेल के साथ मिलकर नेहरू को आम चुनाव मे हटाकर उनकी जगह पटेल को पी यम बनाने की साजिश रच रहे थे उसमे राजेन्द्र प्रसाद सहयोग कर रहे थे। पटेल थे तो कांग्रेस मे लेकिन मुसलमानों के सवाल पर आर एस एस की सोच रखते थे ।मौलाना आजाद को पहली कैबिनेट मे नही रखने के लिये पूरा जोर लगाया लेकिन नेहरू ने उनकी नही सुनी, यहाॅ तक की पटेल ने गांधी से भी कहलवाया कि इनको कही और एडजस्ट कर दें। पटेल का मुसलमान बिरोध जगजाहिर था और हिंदू महासभा तथा आर एस एस के प्रति नरमी भी । एक बार अपने कैबिनेट मंत्री मोहन ला सक्सेना जो रिहैबिलिटेशन विभाग देखते थे को पं नेहरू ने बहुत डांटा था क्यूंकि उन्होने दिल्ली और संयुक्त प्रदेश मे मुसलमानों की दुकान सील करने का आर्डर किया था । पं नेहरू ने कहा कि देख रहा हूॅ " all of us seem to be getting infected with the refugee mentality or worse still , the RSS metality " once pt. Nehru wrote to GB Pant on April,17, 1950, " I have felt for a long time that the whole atmosphere of U.P. is has been changing for the worse from the communal point if view. I ndeed the U.P. is becoming almost a foreign land for me. I do not fit in there. The U.P. congress committee, with which I have been assiciated for 35 yrs. , now functions in a manner which amazes me. Its voice is not the voice of the congress I have known, but something which I have opposed for the greater part of my life " this was written at the time when GB Pant defeated Acharya Narendra dev in Ayodhya constituency in by - election after the resignation of Acharya Narendra dev when he left the congress. Pant took the help of communal forces to defeat aacharya Narendra dev and changed their candidate as per advice of the hindu maha sabha leader digvijai nath. and gave communal speech to get hindu vote in the name of Ram lala. 1950 दिसंबर मे पटेल की डेथ हो गयी। फिर तो कांग्रेस पार्टी और सरकार पर पं नेहरू का पूरा कब्जा हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष पी डी टंडन ने इस्तिफा दे दिया। 1952 के आम चुनाव मे कांग्रेस नेहरू के लीडरसीप मे संसद मे तीन चौथाई सीट जीतकर आयी। आर एस एस ने हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लीडरसीप मे जनसंघ पार्टी का गठन करके चुनाव लड़ा और मात्र दो सीट पाया। कांग्रेस पार्टी और सरकार पर पं नेहरू का पूरा कब्जा हो गया । पं नेहरू के जमाने मे जनसंघ 2 -3 सीट से आगे नही गयी। इसी दौरान समाजवादी डाक्टर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव और जय प्रकाश इत्यादि लोगों ने अपने को कांग्रेस से अलग कर लिया। लोहिया पं नेहरू के नितियों के कट्टर आलोचक थे। देश पं नेहरू के योग्य लीडरसीप मे आगे बढ रहा था और आर एस एस , हिंदू महासभा साजिश और पं नेहरू के चरित्रहनन मे लगे रहे। जो आज भी जारी है। "1957 मे लोहिया चंदौली से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे और जीत पक्की थी लेकिन उनका नेहरू पर कमेंट कि नेहरू चौकीदार का बेटा है वह देश क्या चलायेंगे। जबाब मे नेहरू ने अपने बनारस जिले के बेनिया बाग मिटिंग मे बस इतना कहा कि हमे नही मालूम कि मेरे खानदान मे कोई चौकीदार था लेकिन लोहिया जी ने कहा है तो हमे कोई आपत्ति नही है बल्कि गर्व है कि आजाद भारत का पहला प्रधान मंत्री एक चौकीदार का बेटा है। बस इतने से ही लोहिया रातभर मे जीता चुनाव हार गये। उसके बाद लोहिया वैचारिक आलोचना से व्यक्तिगत आलोचना पर आ गये। उनका स्तर गिरता गया। आर एस एस ने इसका फायदा ऊठाया। और लोहिया को संसद मे जाकर नेहरू का विरोध करने को कहा । और लोहिया संसद मे जाने के लोभ मे गांधी के हत्यारों से 63 मे समझौता किया और फर्रूखाबाद से जनसंघ के समर्थन से चुनाव लड़े और जीतकर संसद मे गये जबकि दीन दयाल जौनपुर से हार गये। यहीं से अछूत जनसंघ लोहिया के लोभ पर सवार होकर राजनिति के मुख्य धारा मे आ गया। लोहिया के सभा मे आर एस एस की भीड़ जाने लगी और लोहिया को भ्रम हो गया कि वह नेहरू से बड़े नेता हैं। " पं नेहरू जान गये थे कि मेरे बाद कांग्रेस मे ज्यादातर हिंदू नेशनलिस्ट है जिनकी प्रतिबद्धता नेशन के प्रति कम धर्म के प्रति ज्यादा है। " Pt. Nehru was known by the world for his love towards Indian nationalusm and its secular credo. According to former foreign secretory YD Gundevia's records : " He asked Pt. Nehru to address officers of the ministry of externsl affairs . The communist party of India CPI had wone power in kerala Gundevia began by asking , " what happens to the services if the communist s are elected to the power, tomorrow at the centre , here in New Delhi ?" pt. Nehru pondered over my long drawn out question and the said , looking across the room , ' communists , communists, communists! ' Why are all of you so obsessed with communists and communism ? What is it that communists can do that we can not do and have not done for the country ? why do you imagine the communists will ever be voted in to power at centre? There was a long pause after this and then he said , spelling it out slowly and very deliberately . " The danger of India , mark you , is not communism . It is hindu right- wing communalism " . Towards the end he repeated his thesis , " danger to India is not communism . It is hindu right - wing communalism" . --A communalism that deceptively masquerades as Indian nationalism as he had noted in 1951. नेहरू को कांग्रेस मे कोई नही दिखा जो उनकी तरह पूरे रूप से भारतीय राष्ट्रवाद और सेकुलरिज्म के प्रति प्रतिबद्ध हो। अत: उन्होने अपने बेटी पर विश्वास किये । और श्रीमती गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर उनको आगे लाये लेकिन पी यम नही बनाया। और पी यम के लिये लालबहादुर को आगे किये और इनकी बाधा को कामराज योजना के तहत दूर कर दिये। लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी हुये। उनके असामयिक निधन के बाद कांग्रेस के हिंदू नेशनलिस्टों मे समझौता न हो सका और गूंगी गुड़िया समझकर कांग्रेस के हिंदू नेशनलीस्टों ने श्रीमती गांधी को अंतरिम पी यम बनाया। और कहते हैं शेर का बच्चा को सिखाने की जरूरत नही होती। घुटे हुये हिंदू नेशनलीस्ट कांग्रेसियों ने सोचा की राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी को बनाकर इंदिरा को हटाकर पी यम की कुर्सी ले लेगें। उसके बाद क्या हुआ सभी जानते है। मोरार जी भाई सबसे सिनियर थे । लेकिन उनको कोई नही चाहता था। कांग्रेस मे विभाजन हुआ । श्रीमती गांधी ने सबकी औकात बताते हुये 1971 मे मध्यावती चुनाव कराके पूर्ण बहुमत हासिल किया। और 1975 मे आपातकाल लगाया । सभी विरोधी नेता जेल मे। इदिरा जी से माफी मांगकर ज्यादातर बाला साहब देवरस के साथ छूट गये । और इंदिरा अम्मा अम्मा करने लगे। अटल- अडवानी नही छूटे क्यूंकि रणनिति के तहत माफी नही मांगे। देश मे जब आपातकाल खतम हुआ तो लोहिया की जगह जे पी ने ले लिया। यहीं से भारतीय राजनिती मे चरित्रहीनता का दौर शुरू हुआ। जनसंघ का जनता पार्टी मे विलय हो गया लेकिन तन से , मन कभी नही मिला। यह फासिस्टों की अछूतपन खतम करने की रणनिति थी। चुनाव हुआ जनता पार्टी की सरकार बनी । अटल - अडवानी मंत्री बने । अटल विदेश और अडवानी सूचना प्रसारण । अपने आर एस एस के लोगों को अडवानी जगह जगह बैठा दिये जो आज भी फासिज्म का झंडा ढो रहैं। 27 महिने मे ये दोहरी सदस्यता के नाम पर अलग हो गये। 1980 मे बी जे पी बनी गांधी वाद समाजवाद का मुखौटा गढा गया। मुंह मे राम बगल मे छुरी। इंदिरा जी की हत्या हूई। राजीव जी की हत्या हुई। बी जे पी अटल - अडवानी के लीडरसीप मे पंजाब मे अकालीदल और तमिलनाडु मे डी यम के से गठजोड़ किया । इंदिरा और राजीव दोनो की हत्या समर्थक बिचार वालो से बी जे पी ने मिलकर सरकार बनायी। और कांग्रेस को रोकने के लिये वी पी सिंह को बाहर से बी जे पी और उसके घोर विरोधी बामपंथी दोनों समर्थन दिया। यह समय भारतीय राजनिती का " बिचार का अंत " का समय था। अब किसी का कोई बिचार नही। कुर्सी लक्ष्य रह गया था। और आर एस एस का मुख्य लक्ष्य दिल्ली की कुर्सी नही बल्कि मनुवादी वर्ण व्यवस्था वाला हिंदू राष्ट्र है जिसमे ब्राह्मण की सत्ता सर्वोच्च हो। शंबूक बध और एकलव्य का अंगूठा काटना जिसमें जायज होगा। जो कल तक कांग्रेस में हिंदू नेशनलिस्ट थे और सेकुलरिज्म का लबादा ओढकर सत्ता सुख भोग रहे थे। कांग्रेस को छोड़कर आज बी जे पी मे मोदी मोदी कर रहे है। वी पी सिंह ने मंडल कमीशन को लागू करके सदियों पुरानी मनुवादी ब्यवस्था को झटके से एक ही बार मे तहस - नहस कर दिया। और आर एस एस खोल के बाहर आ गया अडवानी को आगे करके। नेहरू और इंदिरा जैसे नेता के अभाव मे हिंदू नेशनलिस्ट सनातनी ब्राह्मण पी वी नरसिमहाराव के पी यम होते ही मंडल के खिलाफ अडवानी कमंडल लेकर अयोध्या कूंच कर गये। और देश मे सांप्रदायिक स्तर पर विभाजन हो गया। अटल लखनऊ से अयोध्या की उबड़- खाबड़ जमीन समतल करने लगे , अडवानी बोले एक धक्का और दो । बाबरी मस्जिद सेकेंडों मे भूलुंठित हो गयी.. अंग्रेजों की तलुआ चाटने वाले आज शौर्य दिवस मनाने का ढोंग कर रहे हैं। तमाम लोग दो दो दिन के पी यम बनने लगे। एक दौर आया कि राजनिती मे सिर्फ कमीने और चरित्रहीन ही सम्मानित हो गये। बिचार का अंत हो गया। कट्टर अडवानी अपनी पूरी ताकत लगा लिये 189 से आगे नही जा पाये। और मजबूर होकर उदार फासिस्ट अटल को कुर्सी देनी पड़ी। और लोहिया के दलाल कुर्सी लोभी बंशज अटल को समर्थन देने आगे आ गये । उसमे एक ऐसा भी कमीना कुर्सी लोभी था जो अटल की 13 दिनी सरकार को एक वोट से गिराया था। आज मोदी का तलुआ चाटकर खुदा के यहां रह रहा है। अडवानी जी अटल की राह चलने की कोशिश शूरू किये और पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर नमाज पढने लगे। और आर एस एस ने जो अडवानी से बलराज मधोक को बेइज्जत करके पार्टी से निकलवाया था आज मोदी से अडवानी को बाहर कर दिया। और कल जल्दी ही मोदी को भी उनकी औकात पता चल जायेगी। अडवानी पढे लिखे है उनकी गिरने की सीमा है मोदी तो इतना निम्न स्तर का आदमी है कि वो कितना नीचे गिरेगा ऊसको खुद का पता नही। संघ का तीन एजेंडा है । 1- राम मंदिर का निर्माण । 2- 370 का खातमा । 3- कामन सिविल कोड लागू करना। 1, 2 तो तकनिकी रूप से पूरा हो गया, लेकिन मवाद रिस रहा है , अयोध्या में मंदिर बनाया जा रहा है, कश्मीर मे फौज के बल पर मरघट की शांति है। अब अगला एजेंडा काशी में काशी विश्वनाथ नाम के नाम पर कारीडोर का काम जोरो पर शुरू है, मथुरा मे भी आग सुलगायी जा रही है। नेहरू अंबेडकर में मतभेद बताया जा रहा है। पटेल के बाद अंबेडकर को हड़पने के लिये कल तक को नकारने वाले , तिरंगा को पैरों से कुचलने वाले आज तिरंगा तिरंगा करके संविधान दिवस मनाने का ढोंग कर रहे हैं, मोदी एक बार भी नही कहे कि सावरकर गोलवलकर या हेडगवार या भागवत ने हमे पी यम बनाया। बल्कि चिल्ला - चिल्लाकर कहते है की अंबेडकर नही होते तो हम पी यम नही बनते। भागवत को अब शायद समझ मे आ रहा है तभी तो यू पी मे दिगविजय नाथ जिसने अयोध्या मे 22 दिसंबर की रात को रामलला कि मूर्ती रखवायी , के पोते को यू पी का सी यम बनाया। हो सकता है अयोध्या मे मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है । जोगी रोज रोज अयोध्या का दर्शन कर रहे हैं। अगर बिरोधी 69% होते हुये भी सरकार से बाहर है कहीं देश से भी बाहर न जाना पड़े अगर एक ना हुये तो। नितीश , अठावले, पासवान ,मांझी , उदितराज , उपेंद्र कुशवाहा और स्वामी प्रसाद मौर्या , स्वतंत्र देव सिंह, केशव मौर्या जैसे दलाल दलितों पिछड़ो के पीठ मे छुरा भोंकने वाले मोदी के तलुये चाट रहे हैं। जिस दिन अयोध्या मे मस्जिद गिरायी गयी थी उस दिन मैने देखा था 100% ब्राह्मणवादियों के घर घी का दिया जलाया जा रहा था और छत पर चढकर घंटा - घड़ियाल बजाया जा रहा था। उसमें हिंदू नेशनलिस्ट मालवीय के बंशज सबसे आगे थे। आर एस एस ने मालवीय को भारत रत्न देकर उनका कर्ज चुकाया। मदन मोहन मालवीय कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष रहे और गांधी से 8 साल बड़े रहे। नेहरे से28 साल बड़े थे । लेकिन कांग्रेस के किसी नेता ने उनको भारत रत्न तो दूर उनको पूछा तक नही। क्यों ? क्यूंकि कांग्रेस के निगाह मे वो कट्टर हिंदू नेशनलिस्ट थे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी थे, वही हिंदू महासभा जिसने गांधी हत्या की साजिश रची थी और आज उनका तथाकथित हिंदू विश्वविद्यालय फासिज्म का ट्रेनिंग सेंटर बना हुआ है। और अभी तो काशी मथुरा बाकी है ।।।।मालवीय का विश्वविद्यालय आज पूरी तरह से फसिज्म का केंद्र बन चुका है , रात दिन संघ का पद संचलन जारी है, विरोधी विचारधारा वालों के बोलने या गोष्ठी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब २०२२ में उ.प्र. सरकार बन गयी है , जोगी जी बुल्डोजर चरम गति से चल रहा है और २०२४ मे दिल्ली में मोदी की लंगड़ी सरकार बन चुकी है तो अगली शुरूवात काशी हिंदू वि.वि. और काशी विश्वनाथ मंदिर को केंद्र मे रखकर ग्यानवापी की मस्जिद पर हमला हो सकता है। हिंदू राष्ट्र का सपना साकार ले रहा है....दलित गले मे हंडिया और कमर ने झाड़ू लटकाने के लिये तैयार रहें। obc तलुआ चाटकर केवट की तरह राम का तलुआ धोकर अमृतपान करके जय श्री राम का नारा बुलंद करने के लिये तैयार हो जाय। ... drbn singh.

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सुमन
लोकसंघर्ष