शुक्रवार, 22 मई 2009

सदा ही रहो चलते

''बिना रुके ,
मंजिल की और रहो बढ़ते
पर्वत श्रृंखालाओ को जीतने की
गर है चाहत ,
एक-एक करके ,चोटियों पर
सदा रहो चढ़ते
सबक अच्छाईयों के सीखने
के लिए
सद साहित्य को हरदम
रहो पढ़ते।
सफलता पाने का बस
रास्ता है यही
गिर-गिर के संभलो
मगर
सदा ही रहो चलते ''

दिनेश अवस्थी
इलाहाबाद बैंक
उन्नाव

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