सोमवार, 25 मई 2009

कुछ अपने लिए ,कुछ दूसरो के लिए...

हो रोशन चिराग ,जिन्दा दिली भरा,।
तो जरूरी नही सूरज ही हो
रौशनी के लिए
ख्वाब हो,ख़याल हो दुरुस्त ,जज्बात हो
इरादे हो पुख्ता
कर्म की तलवार से ,काट दो अभाग्य को
आधा पानी में रहो
रहो आधा रेत पर
थोड़ा बुद्ध हो जाओ
थोड़ा चावार्क बन
जिंदगी को जियो ,जीने के लिए
कुछ अपने लिए ,कुछ दूसरो के लिए

दिनेश अवस्थी
इलाहाबाद बैंक
उन्नाव

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

waah waah ........kya baat hai
umda kavita
badhai

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