शनिवार, 9 मई 2009

ख़ुद को समझो खुदा समझ लोगे



दर्द समझो दवा समझ लोगे।
ज्योति समझो
दीया समझ लोगे ।
व्यर्थ देरी हरम में उलझे हो
-
ख़ुद को समझो खुदा समझ
लोगे

कंगन कभी टूटे ऐसा कोई हाथ नही है
चंदन कभी छूटे ऐसा कोई माथ नही है
चारो और भीड़ अपनों की लेकिन रिश्तो का-
बंधन कभी न टूटे ऐसा कोई साथ नही है ।


प्यार की पहचान लेकर जी रहा हूँ।
दर्द का उनमान लेकर जी रहा हूँ
जाति
भाषा धर्म से आहत हुआ -
अधमरा
इंसान लेकर जी रहा हूँ

ये
अहिंसा मेरा मन्दिर मेरी आजादी है
कर्म से भाग पाये वो मुनादी है

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

achhe muktak
achhi post
ACHHI BADHAI

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