हम जो नजरो में सजने लगे ।बेवजह लोग जलने लगे॥पुश्त के जख्म रिसने लगे।दोस्ती हम समझने लगे ॥ये प्रजातंत्र क्या तंत्र है-खोटे सिक्के भी चलने लगे॥सच इतना संवारो नही -आइना भी मचलने लगे॥आह में वो कशिश लाइए-बुज का पत्थर पिघलने लगे॥जबसे वो प्यार करने लगे -हम मोहब्बत से डरने लगे॥डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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