image source: people's democracy
कामरेड ज्योति बसु एक गंभीर प्रवृत्ति सदा जीवन और बयानबाजी या नारों के स्थान पर सदा कार्य को प्रधानता देने वाले राज़नीतज्ञ थे। उन्होंने बंगाल को नक्सल समस्या से निदान देने के लिए पंचायत राज व्यवस्था कानून का क्रियान्वित पारदर्शी ढंग से करा कर गरीब किसानो को मूल भूत सुविधाएं देकर हथियार के स्थान पर उन्हें हल पकड़ने की तरफ आकर्षित कराया और उन्हें पार्टी का कैडर भी बनाया। साथ ही पश्चिम बंगाल में धर्मनिरपेक्षता का एक अभेद किला उन्होंने बना कर तैयार कर दिया जहाँ स्वतंत्रता के पश्चात अनेको सांप्रदायिक दंगे होते रहे थे।
जिस समय विश्व में कम्युनिस्ट सरकारों का पतन हो रहा था और साम्यवादी सत्ता सोवियत यूनियन की ईंट से ईंट, लोकतंत्र की लुभावनी दुनिया दिखा कर पूंजीवादी राष्ट्रों ने मिल कर बजा दी थी उस समय पश्चिम बंगाल में लाल झंडा मजबूती से गडा हुआ था। कांग्रेस से लेकर भाजपा ने अनेको हमले लाल झंडे को पश्चिम बंगाल के उखाड़ देने के लिए किये परन्तु ज्योति बसु के लौह व्यक्तित्व से टकरा कर सारी शक्तियां चूर-चूर हो गयीं। देश के सबसे लम्बे समय तक मुख्य मंत्री रहने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने पूरे 23 वर्षों तक पश्चिम बंगाल पर सत्ता संभाली फिर स्वास्थ्य की खराबी के कारण उन्होंने स्वेच्छा से मुख्य मंत्री पद का त्याग कर राजनीति से सदैव के लिए सन्यास वर्ष 2000 में लिया।
ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल की बागडोर वर्ष 1967 में बतौर उपमुख्यमंत्री, अजय मुखर्जी के नेतृत्व में बनी संयुक्त मोर्चा की सरकार के गठन के उपरांत संभाली थी। वह उस मंत्रिमंडल में गृहमंत्री भी थे। उस समय कांग्रेस के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे प्रफुल्ल चन्द्र सेन की गलत नीतियों के कारण जहाँ एक ओर प्रान्त के किसानो की समस्याएं चरम सीमा पर थी तो वहीँ मुस्लिम समुदाय के साथ बरते गए उनके दुर्भावना व सांप्रदायिक पूर्ण सुलूक से हिन्दू और मुसलमानों के बीच लम्बी खाई बन गयी थी। ज्योति बसु ने गृहमंत्री बन्ने के पश्चात पहला काम यह किया कि जो क्षेत्र सांप्रदायिक हिंसा की दृष्टिकोण से संवेदनशील थे वहां के थानों पर मुस्लिम पुलिस अधिकारियो व प्रशासनिक अधिकारियो की तैनाती कर दी। ताकि मुसलमानों में शासन प्रशासन के प्रति विश्वास पैदा हो सके और पक्षपात पूर्ण रवैये से उनकी सुरक्षा भी हो। बाद में यही नुस्खा आजमा कर वर्ष 1971 में मुख्य मंत्री बने सिद्धार्थ शंकर रे ने मुसलमानों का दिल जीता जब एक समय में कलकत्ता शहर में तीन ए.सी.पी पुलिस मुस्लिम समुदाय के उन्होंने तैनात कर दिए। परन्तु किसानो की समस्याओं को वह सुलझा न सके और नक्सलियों की समस्या बढती गयी जिसको उन्होंने बलपूर्वक दबा कर अपनी प्रशासनिक योग्यताओं का लोहा इंदिरा गाँधी जैसी आयरन लेडी के मन में स्थापित कर लिया बताते हैं देश में आंतरिक सुरक्षा के बिगड़ते हालात से निपटने के लिए आपातकाल लगाने की सलाह भी सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गाँधी को दी थी और बाद में आपातकाल के दुष्परिणामो के कारण कांग्रेस के पतन की भी सजा उन्ही को दी गयी।
परिणामस्वरूप 1977 में वाम पंथियों ने पश्चिम बंगाल पर लाल झंडा गाड़ दिया। जिसका नेतृत्व ज्योति बसु के मजबूत हाथो में दिया गया। वाम पंथी दलों को एकजुट रख कर पश्चिम बंगाल में इतने दिनों तक सत्ता चलाने का कीर्तिमान ज्योति बसु ने स्थापित कर देश के युवा राजनीतज्ञों के सामने एक मिसाल रख दी है कि यदि इमानदारी के साथ सच्चे दिल से वह जनता की समस्याओं के लिए लड़ेंगे तो जनता कभी ऐसे लोगो को निराश नहीं करेगी।
मोहम्मद तारिक खान
जिस समय विश्व में कम्युनिस्ट सरकारों का पतन हो रहा था और साम्यवादी सत्ता सोवियत यूनियन की ईंट से ईंट, लोकतंत्र की लुभावनी दुनिया दिखा कर पूंजीवादी राष्ट्रों ने मिल कर बजा दी थी उस समय पश्चिम बंगाल में लाल झंडा मजबूती से गडा हुआ था। कांग्रेस से लेकर भाजपा ने अनेको हमले लाल झंडे को पश्चिम बंगाल के उखाड़ देने के लिए किये परन्तु ज्योति बसु के लौह व्यक्तित्व से टकरा कर सारी शक्तियां चूर-चूर हो गयीं। देश के सबसे लम्बे समय तक मुख्य मंत्री रहने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने पूरे 23 वर्षों तक पश्चिम बंगाल पर सत्ता संभाली फिर स्वास्थ्य की खराबी के कारण उन्होंने स्वेच्छा से मुख्य मंत्री पद का त्याग कर राजनीति से सदैव के लिए सन्यास वर्ष 2000 में लिया।
ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल की बागडोर वर्ष 1967 में बतौर उपमुख्यमंत्री, अजय मुखर्जी के नेतृत्व में बनी संयुक्त मोर्चा की सरकार के गठन के उपरांत संभाली थी। वह उस मंत्रिमंडल में गृहमंत्री भी थे। उस समय कांग्रेस के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे प्रफुल्ल चन्द्र सेन की गलत नीतियों के कारण जहाँ एक ओर प्रान्त के किसानो की समस्याएं चरम सीमा पर थी तो वहीँ मुस्लिम समुदाय के साथ बरते गए उनके दुर्भावना व सांप्रदायिक पूर्ण सुलूक से हिन्दू और मुसलमानों के बीच लम्बी खाई बन गयी थी। ज्योति बसु ने गृहमंत्री बन्ने के पश्चात पहला काम यह किया कि जो क्षेत्र सांप्रदायिक हिंसा की दृष्टिकोण से संवेदनशील थे वहां के थानों पर मुस्लिम पुलिस अधिकारियो व प्रशासनिक अधिकारियो की तैनाती कर दी। ताकि मुसलमानों में शासन प्रशासन के प्रति विश्वास पैदा हो सके और पक्षपात पूर्ण रवैये से उनकी सुरक्षा भी हो। बाद में यही नुस्खा आजमा कर वर्ष 1971 में मुख्य मंत्री बने सिद्धार्थ शंकर रे ने मुसलमानों का दिल जीता जब एक समय में कलकत्ता शहर में तीन ए.सी.पी पुलिस मुस्लिम समुदाय के उन्होंने तैनात कर दिए। परन्तु किसानो की समस्याओं को वह सुलझा न सके और नक्सलियों की समस्या बढती गयी जिसको उन्होंने बलपूर्वक दबा कर अपनी प्रशासनिक योग्यताओं का लोहा इंदिरा गाँधी जैसी आयरन लेडी के मन में स्थापित कर लिया बताते हैं देश में आंतरिक सुरक्षा के बिगड़ते हालात से निपटने के लिए आपातकाल लगाने की सलाह भी सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गाँधी को दी थी और बाद में आपातकाल के दुष्परिणामो के कारण कांग्रेस के पतन की भी सजा उन्ही को दी गयी।
परिणामस्वरूप 1977 में वाम पंथियों ने पश्चिम बंगाल पर लाल झंडा गाड़ दिया। जिसका नेतृत्व ज्योति बसु के मजबूत हाथो में दिया गया। वाम पंथी दलों को एकजुट रख कर पश्चिम बंगाल में इतने दिनों तक सत्ता चलाने का कीर्तिमान ज्योति बसु ने स्थापित कर देश के युवा राजनीतज्ञों के सामने एक मिसाल रख दी है कि यदि इमानदारी के साथ सच्चे दिल से वह जनता की समस्याओं के लिए लड़ेंगे तो जनता कभी ऐसे लोगो को निराश नहीं करेगी।
मोहम्मद तारिक खान
1 टिप्पणी:
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बासु जी को श्रधांजलि अर्पित करती हूँ!
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