प्रजातंत्र भी आग के समान है जो अत्यंत उपयोगी है और अत्याधिक खतरनाक भी। लोकतंत्र हो, भीडतंत्र हो, सर्वसम्मति हो, या बहुमत हो, ये सभी उस समय व्यक्ति या समाज के लिये घातक बनते हैं जब इस अस्त्र का इस्तेमाल करने वाले मन में खोट होती है या स्वार्थ भावना के अन्तर्गत फैसले किये जाते हैं। आप देखते ही है कि सुरक्षा परिषद में बेटों और आम राय के बहाने पांच स्थायी सदस्य कैसे कैसे खेल खेलते हैं तथा जनरल असेम्बली मूक दर्शक ही बनी रहती है।
दिल्ली की संसद हो या यू0पी0 की विधायिका इनमें भी पहले भी स्वार्थवश फैसले लिये गये और अब भी यही हो रहा है जो जनता को कभी पंसद नहीं आता, लेकिन बेचारा आम आदमी कर ही क्या सकता है, मीडिया उसकी आवाज को धार देने की कोशिश करता है लेकिन कुछ ही दिन में वह आवाज भी दब जाती है।
फरवरी सन 10 में यू0पी0 की बाते देखिये, पहली यह की वार्षिक बजट पेश किया गया, दूसरी यह कि बजट के केवल चार दिन बाद यानी आठ फरवरी को मुख्यमंत्री महोदया ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन एवं भत्तों में लगभग 67 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा कर दी। मंत्री जी को प्रतिमाह 32000 से बढ़कर अब 54000 अर्थात 22000 की बढ़ोत्तरी, विधायक महोदय की प्रतिमाह बढ़ोत्तरी 20,000 होगी अब उनका लाभ 30,000 के स्थान पर 50,000 प्रतिमाह होगा, पूर्व विधायकों के भी अनेक लाभ बढ़ाये गये। मजे़ की बात यह है कि पक्ष विपक्ष के सभी विधायक प्रसन्न हुए, केवल एक विधायक श्री मुन्ना सिंह चैहान ने यह जरूर कहा कि वेतन बढ़ाने के बजाय हैण्डपम्प देना चाहिये था ताकि भीषण गर्मी में ग्रामीण जनता की पेयजल समस्या का कुछ समाधान हो जाता।
ये शाहखर्ची जनता की गाढ़ी कमाई से उस समय हो रही है जब कि प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वर्ष 2010-11 के बजट में नौ हजार करोड़ से अधिक का घाटा हो रहा है और कर्ज का बोझ दो लाख करोड़ के करीब है। आपको याद होगा कि चुनाव के समय जब नामांकन पत्र दाखिल होते हैं तब आयोग प्रत्याशियों से जो आम और सम्पत्ति के ब्योरे मांगता है उनसे यह बात पूरी तरह खुल जाती है कि ये प्रत्याशी जो बाद में विधायक बनते हैं कितने अधिक धनी होते हैं, इसके बावजूद इनका स्वार्थ देखिये कि यह जनता को दोनों हाथों से लूटते हैं एक तरफ वेतन, भत्ते, सुख सुविधा हवाई व रेल यात्राओं के कूपन तथा दूसरी तरफ विधायक निधि की लूट खसोट। स्व0 राजीव गांधी ने एक बार यह सच बात कह दी थी कि विकास के लिये नीचे तक केवल रूपये में तेरह पैसे ही पहुंचते हैं, बाकी सब बीच ही में गायब हो जाता है।
यहां पर यह कहना असंगत न होगा कि हैण्ड टू माउथ राज्यकर्मचारियों को जब वेतन आयोग कोई जायज बढ़ोत्तरी की सिफारिश करती है तब यही सरकारें पैसे बढ़ाने में तरह-तरह के तर्क देकर आना कानी करती है और हाय तौबा मचाती है।
अतः मंत्रियों विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने के लिये कोई तंत्र होना चाहिये, इन्हें स्वयं अपने बारे में फैसला लेने से रोकने का कुछ वैधानिक उपाय तलाश करने की जरूरत है।
यदि यह रीति-नीति बनी रही तो बहुत समय से जो एक वाक्य प्रसिद्ध है, यानी ‘‘बहुमत का जुल्म’’ Tyranny of the Matority इससे हम बच नहीं पाये थे। प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि सुक़रात (Socretes) इसी अत्याचार का शिकार बन गया था, उर्दू शायर इक़बाल ने भी इसी प्रकार की जमहूरियत के बारे में यह कहा था-
जम्हूरियत एक तर्जे़ हुकूमत है कि जिसमें
बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।
-डा0 एस0एम0 हैदर
फोन: 05248-220866
दिल्ली की संसद हो या यू0पी0 की विधायिका इनमें भी पहले भी स्वार्थवश फैसले लिये गये और अब भी यही हो रहा है जो जनता को कभी पंसद नहीं आता, लेकिन बेचारा आम आदमी कर ही क्या सकता है, मीडिया उसकी आवाज को धार देने की कोशिश करता है लेकिन कुछ ही दिन में वह आवाज भी दब जाती है।
फरवरी सन 10 में यू0पी0 की बाते देखिये, पहली यह की वार्षिक बजट पेश किया गया, दूसरी यह कि बजट के केवल चार दिन बाद यानी आठ फरवरी को मुख्यमंत्री महोदया ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन एवं भत्तों में लगभग 67 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा कर दी। मंत्री जी को प्रतिमाह 32000 से बढ़कर अब 54000 अर्थात 22000 की बढ़ोत्तरी, विधायक महोदय की प्रतिमाह बढ़ोत्तरी 20,000 होगी अब उनका लाभ 30,000 के स्थान पर 50,000 प्रतिमाह होगा, पूर्व विधायकों के भी अनेक लाभ बढ़ाये गये। मजे़ की बात यह है कि पक्ष विपक्ष के सभी विधायक प्रसन्न हुए, केवल एक विधायक श्री मुन्ना सिंह चैहान ने यह जरूर कहा कि वेतन बढ़ाने के बजाय हैण्डपम्प देना चाहिये था ताकि भीषण गर्मी में ग्रामीण जनता की पेयजल समस्या का कुछ समाधान हो जाता।
ये शाहखर्ची जनता की गाढ़ी कमाई से उस समय हो रही है जब कि प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वर्ष 2010-11 के बजट में नौ हजार करोड़ से अधिक का घाटा हो रहा है और कर्ज का बोझ दो लाख करोड़ के करीब है। आपको याद होगा कि चुनाव के समय जब नामांकन पत्र दाखिल होते हैं तब आयोग प्रत्याशियों से जो आम और सम्पत्ति के ब्योरे मांगता है उनसे यह बात पूरी तरह खुल जाती है कि ये प्रत्याशी जो बाद में विधायक बनते हैं कितने अधिक धनी होते हैं, इसके बावजूद इनका स्वार्थ देखिये कि यह जनता को दोनों हाथों से लूटते हैं एक तरफ वेतन, भत्ते, सुख सुविधा हवाई व रेल यात्राओं के कूपन तथा दूसरी तरफ विधायक निधि की लूट खसोट। स्व0 राजीव गांधी ने एक बार यह सच बात कह दी थी कि विकास के लिये नीचे तक केवल रूपये में तेरह पैसे ही पहुंचते हैं, बाकी सब बीच ही में गायब हो जाता है।
यहां पर यह कहना असंगत न होगा कि हैण्ड टू माउथ राज्यकर्मचारियों को जब वेतन आयोग कोई जायज बढ़ोत्तरी की सिफारिश करती है तब यही सरकारें पैसे बढ़ाने में तरह-तरह के तर्क देकर आना कानी करती है और हाय तौबा मचाती है।
अतः मंत्रियों विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने के लिये कोई तंत्र होना चाहिये, इन्हें स्वयं अपने बारे में फैसला लेने से रोकने का कुछ वैधानिक उपाय तलाश करने की जरूरत है।
यदि यह रीति-नीति बनी रही तो बहुत समय से जो एक वाक्य प्रसिद्ध है, यानी ‘‘बहुमत का जुल्म’’ Tyranny of the Matority इससे हम बच नहीं पाये थे। प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि सुक़रात (Socretes) इसी अत्याचार का शिकार बन गया था, उर्दू शायर इक़बाल ने भी इसी प्रकार की जमहूरियत के बारे में यह कहा था-
जम्हूरियत एक तर्जे़ हुकूमत है कि जिसमें
बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।
-डा0 एस0एम0 हैदर
फोन: 05248-220866
3 टिप्पणियां:
Bahut achhi or utni hi sachhi post ke liye badhai.
Mahashivratri ki Hardik Shubhkamnayen.
जहां तक इन नेता लोगों की बात है यह वेतन कितना भी किया जा सकता है इसपर कोई बंधन नहीं है ..कौन पूछेगा इन्हें, खुद ही तो तय करना है खुद के लिए, उच्चतम न्यायालय को इस बारे में संविधान की पुनर्व्याख्या करनी होगी कि क्या इनहें इस प्रकार के असीमित अधिकार प्राप्त हैं ?...वर्ना ये तो सैंया भए कोतवाल की सी बात है.
ek M.L.A. ke liye jitni salery increase ki gai hai utne me to 2 berozgaro ko adjust kiya ja sakta tha.....
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