केन्द्र में शासन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में लोकतांत्रिक संगठन का है। भारतीय जनता पार्टी प्रमुख विपक्षी दल है और उसका काम केवल विपक्ष की भूमिका अदा करना और अपने संगठन के सदस्यों को परामर्श देना और आवश्यकता पड़े तो विप जारी करना है। हां, गोधरा काण्ड के बाद गुजरात में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा को मुखर होना था लेकिन वह न तो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में और न ही विपक्ष में बोली, जबकि नरेन्द्र मोदी भाजपा के थे। अगर कोई कुछ बोला तो दबे स्वर में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी बोले और वह स्वर इतना दबा हुआ था कि भीड़ में खोकर रह गया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस समय केवल इतना कहा था कि तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री को राजधर्म का पालन करना चाहिए। राजधर्म का पालन करने का परामर्श श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसलिए दिया था कि उनको पता है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र में विश्वास रखता है और इस देश में हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सब को (कुछ क्षेत्रों में छोड़कर) तमाम अधिकार प्राप्त हैं। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, की समीक्षा इस समय नहीं कर रहा हूं क्योंकि इसके लिए काफी समय की आवश्यकता है।
देश आतंकवाद के दंश को झेल रहा है और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है, बल्कि आतंकवाद का हौवा खड़ाकर डराने वालों के डर से हमारी सरकार कुछ कर पाने में असमर्थ है। अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने मित्र राष्ट्रों की मदद से पूरी दुनिया पर हावी हो चुका है, अगर वह कह देता है कि आतंकवाद अमुक देश से निकलकर भारत के लिए खतरा बना हुआ है तो हममें यह साहस नहीं कि हम अमेरिका की इस कही बात को नकार सकें जबकि हमें पता है कि लीबिया के राष्ट्रपति पर अमेरिकी हमला गलत था, ईराक में घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर पूरी छानबीन कर लेने के बाद घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, अफगानिस्तान में वह आज भी तबाही मचा रहा है जबकि अफगानी आतंकवाद को पैदा करने वाला स्वयं अमेरिका ही है। मदद करने के नाम पर या मदद देकर अमेरिका ही पाकिस्तान की न केवल विदेशी नीति बल्कि आन्तरिक नीति भी तय करता है। इतना सब कुछ जानते हुए हमारी खामोशी अमेरिका को मूक समर्थन देती है बल्कि और सख्त ज़ुमला अगर इस्तेमाल किया जाए तो हमारे देश के लगभग सभी राजनीतिक दल अमेरिका के एजेन्ट का काम करते हैं।
लोकतंत्र में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार होती है लेकिन हमारी सरकारें जनता द्वारा चुनी अवश्य जाती हैं लेकिन न तो वह उनकी अपनी और उनके लिए यह सरकार होती है। चुनाव इतने खर्चीले हैं कि जन-साधारण चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता, जब तक कि उसकी मदद कारपोरेट स्वयं या कार्पोरेट के एजेन्ट के तौर पर काम करने वाले राजनीतिक दल उसकी मदद करें। मैं दलों को कारपोरेट का दलाल इसलिए मानता हूं कि जनता को उसके अपने देश की भूमि पर आज़ादी के साथ अपनी रोजी-रोटी कमाने का अवसर नहीं दिया जाता बल्कि उनसे उनकी जमीन छीनकर उन्हें काॅर्पोरेट के रहमोकरम पर भी नहीं रहने दिया जाता बल्कि उनको बेघर करके दर-दर के लिए भटकने को मजबूर कर दिया जाता है। 1960 की दहाई में सरकार ने जबरों को आगे बढ़ाया, दलितों को बेघर होने के लिए मजबूर किया, जबरों की सेना बनी तो उस पर अंकुश नहीं लगाया, इसीलिए नारा लगा कुछ सरफिरों की ओर से - ‘‘आमार बाड़ी तोमार बाड़ी नक्सल बाड़ी-नक्सल बाड़ी’’।
समय से बीमारी का इलाज नहीं किया गया बल्कि बीमारी को दबा देने की कोशिश की गई। नक्सलवाद बढ़ता गया और कभी पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से चलता रहा और कभी माओवाद के नाम से और आज जो आन्दोलन 1960 की दहाई में जन्मा उसने आज विकराल रूप ले लिया क्योंकि जिन अवयवों से इसका जन्म हुआ वह अवयव समाप्त नहीं किये गये बल्कि जुल्म को बढ़ने दिया गया, सरकारें भी जालिमों का साथ देती रहीं और नतीज़ा आज सामने है। अब भी समय है जुल्म को समाप्त करने का, जालिमों का पंजा मरोड़ने का और राजनीतिक दलों को काॅर्पोरेट का एजेन्ट न बनकर जन-प्रतिनिधि बनकर जन-साधारण के कल्याण के लिए काम करने का। अगर कोई देश का भला चाहता है तो किसी नेता को, मंत्री को या दल को इस तरह की सलाह देना होगा न कि अपने ही देश की जनता का दमन करने की सलाह। भाजपा की देश के गृहमंत्री को दी गई सलाह यह प्रकट करती है कि भाजपा भी देश के जन-साधारण के दमन के लिए तत्पर है, इसमें और कांग्रेस में कोई अन्तर नहीं है इसलिए कि इससे पहले भी महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस का साथ दे चुकी है।
मुहमद शुऐब एडवोकेट
देश आतंकवाद के दंश को झेल रहा है और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है, बल्कि आतंकवाद का हौवा खड़ाकर डराने वालों के डर से हमारी सरकार कुछ कर पाने में असमर्थ है। अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने मित्र राष्ट्रों की मदद से पूरी दुनिया पर हावी हो चुका है, अगर वह कह देता है कि आतंकवाद अमुक देश से निकलकर भारत के लिए खतरा बना हुआ है तो हममें यह साहस नहीं कि हम अमेरिका की इस कही बात को नकार सकें जबकि हमें पता है कि लीबिया के राष्ट्रपति पर अमेरिकी हमला गलत था, ईराक में घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर पूरी छानबीन कर लेने के बाद घातक हथियार रखने का आरोप लगाकर अमेरिका ने ईराक पर हमला किया, अफगानिस्तान में वह आज भी तबाही मचा रहा है जबकि अफगानी आतंकवाद को पैदा करने वाला स्वयं अमेरिका ही है। मदद करने के नाम पर या मदद देकर अमेरिका ही पाकिस्तान की न केवल विदेशी नीति बल्कि आन्तरिक नीति भी तय करता है। इतना सब कुछ जानते हुए हमारी खामोशी अमेरिका को मूक समर्थन देती है बल्कि और सख्त ज़ुमला अगर इस्तेमाल किया जाए तो हमारे देश के लगभग सभी राजनीतिक दल अमेरिका के एजेन्ट का काम करते हैं।
लोकतंत्र में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार होती है लेकिन हमारी सरकारें जनता द्वारा चुनी अवश्य जाती हैं लेकिन न तो वह उनकी अपनी और उनके लिए यह सरकार होती है। चुनाव इतने खर्चीले हैं कि जन-साधारण चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता, जब तक कि उसकी मदद कारपोरेट स्वयं या कार्पोरेट के एजेन्ट के तौर पर काम करने वाले राजनीतिक दल उसकी मदद करें। मैं दलों को कारपोरेट का दलाल इसलिए मानता हूं कि जनता को उसके अपने देश की भूमि पर आज़ादी के साथ अपनी रोजी-रोटी कमाने का अवसर नहीं दिया जाता बल्कि उनसे उनकी जमीन छीनकर उन्हें काॅर्पोरेट के रहमोकरम पर भी नहीं रहने दिया जाता बल्कि उनको बेघर करके दर-दर के लिए भटकने को मजबूर कर दिया जाता है। 1960 की दहाई में सरकार ने जबरों को आगे बढ़ाया, दलितों को बेघर होने के लिए मजबूर किया, जबरों की सेना बनी तो उस पर अंकुश नहीं लगाया, इसीलिए नारा लगा कुछ सरफिरों की ओर से - ‘‘आमार बाड़ी तोमार बाड़ी नक्सल बाड़ी-नक्सल बाड़ी’’।
समय से बीमारी का इलाज नहीं किया गया बल्कि बीमारी को दबा देने की कोशिश की गई। नक्सलवाद बढ़ता गया और कभी पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से चलता रहा और कभी माओवाद के नाम से और आज जो आन्दोलन 1960 की दहाई में जन्मा उसने आज विकराल रूप ले लिया क्योंकि जिन अवयवों से इसका जन्म हुआ वह अवयव समाप्त नहीं किये गये बल्कि जुल्म को बढ़ने दिया गया, सरकारें भी जालिमों का साथ देती रहीं और नतीज़ा आज सामने है। अब भी समय है जुल्म को समाप्त करने का, जालिमों का पंजा मरोड़ने का और राजनीतिक दलों को काॅर्पोरेट का एजेन्ट न बनकर जन-प्रतिनिधि बनकर जन-साधारण के कल्याण के लिए काम करने का। अगर कोई देश का भला चाहता है तो किसी नेता को, मंत्री को या दल को इस तरह की सलाह देना होगा न कि अपने ही देश की जनता का दमन करने की सलाह। भाजपा की देश के गृहमंत्री को दी गई सलाह यह प्रकट करती है कि भाजपा भी देश के जन-साधारण के दमन के लिए तत्पर है, इसमें और कांग्रेस में कोई अन्तर नहीं है इसलिए कि इससे पहले भी महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस का साथ दे चुकी है।
मुहमद शुऐब एडवोकेट
1 टिप्पणी:
बढिया लेख है। सरकार हर जगह नाकाम हुई है विपक्ष की भूमिका भी नकारा साबित हुई है,,ऐसे मे देश का भगवान ही मालिक है.....पता नही जनता द्वारा चुनी गई सरकारें जनता के हित मे कब काम करना शुरु करेगी???
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