सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,
आज दिनांक 14.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत चौदहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-
इमरोज़ मुबारक हो ! http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_13.html
एक रुपया कल और आज http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3329.html
वर्चुअल दुनिया का प्रभाव मानव मस्तिस्क पर स्थायी होता है - अम्बरीश अम्बर http://utsav.
" बाबू एक पैसा दे दे ..." गानेवाला भिखारी १० पैसे लौटाने लगा और अब ५ के नोट पर भी घूरता है. http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9930.html
डा. श्याम गुप्त का आलेख : हिन्दी-- एतिहासिक आइना एवं वर्त्तमान परिदृश्य http://utsav.
हज़ारों हज़ार सिक्के पाकर भी हाथ और मन खाली रह जाते हैं .
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दीपक मशाल की कविता : वो आतंकवाद समझती है...
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गुल्लक को फोड़ते उन एक रुपयों की चमक आँखों में उतर आती है
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शोभना चौधरी 'शुभि' की कविता : 'अजीब दस्तूर'
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एक का सिक्का जब हथेलियों में धरा जाता था तो क्या होता था पूछते हो तो सुनो .... http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3140.html
प्रवीन पथिक की कविता :चीत्कार भरी बाणी में धुन कैसे लाऊं
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भारतीय मुद्रा की इकाई बनता रुपया और गुमशुदा होता पैसा(एक व्यंग्य)------ दीपक 'मशाल' http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_244.html
रेखा श्रीवास्तव की कविता : शब्दों से गर मिटती नफरत !
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हिंदी के अनुकूल होती जा रही है आईटी की दुनिया : बालेन्दु शर्मा दाधीच http://shabd.parikalpnaa.com/
आत्मा और पैसा : एक दृष्टिकोण http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1127.html
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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।
-सुमन
loksangharsha.blogspot.com
1 टिप्पणी:
अच्छी प्रस्तुति। बधाई।
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