रविवार, 2 मई 2010

मजदूर दिवस


~~ मजदूर दिवस~~
सपने
किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोयी आग को
सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुईं
हथेली के पसीने को
सपने नहीं आते
सेल्फों में पड़े
इतिहास ग्रन्थों को
सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाजिमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की न$जर होनी लाजमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते।
----पाश
Sunil Dutta

2 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बेहद शानदार कविता पढाई आपने ..
मजदूर दिवस पर एक नायब तोहफे की तरह..
सच है कि सपने उसी को आ सकते हैं जिनके सीने में जलती रहती है आग.

arvind ने कहा…

सपने
किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोयी आग को
सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुईं
हथेली के पसीने को .....शानदार कविता .

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