शनिवार, 3 जुलाई 2010

नये विचारों की रोशनी में


संघर्ष
देखा है मैंने तुम्हें
ताने सुनते/जीवन पर रोते
देखा है मैंने तुम्हे सांसों-सांसों पर घिसटते
नये रूप / नये अंदाज में
देखा है मैंने तुम्हें
पल-पल संघर्ष में उतरते
मानो कह रही हो तुम
बस - बस -बस
अब बहुत हो चुका ?
सहेंगे अत्याचार, सुनेंगे ताने
हर जुल्म का करेंगे प्रतिकार
नये विचारों की रोशनी में।

-सुनील दत्ता

3 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

जुल्म और अत्याचार के खिलाफ जगाती ऐसी ही प्रेरक कवितायें चाहिए आज.. बेहतरीन.. जुर्म को जुल्म लिखियेगा सर..

निर्मला कपिला ने कहा…

न सहेंगे अत्याचार, न सुनेंगे ताने
हर जुल्म का करेंगे प्रतिकार
नये विचारों की रोशनी में।
बहुत सुन्दर प्रेरक पोस्ट। शुभकामनायें

Shah Nawaz ने कहा…

"न सहेंगे अत्याचार, न सुनेंगे ताने
हर जुल्म का करेंगे प्रतिकार
नये विचारों की रोशनी में"

बेहतरीन रचना...... बहुत खूब!

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