गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

विदेशी शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश एवं संचालन कानून विधेयक 2010) भाग 2

अगर ऊपर के सारे सवालों को किनारे कर दिया जाए तो एक सवाल यह है कि ये विदेशी विश्वविद्यालय हमारी शिक्षा में किस तरह का योगदान दे सकेंगे। हमारे शिक्षक अपने देश के बारे में किसी भी विदेशी से बेहतर जानते हैं। अपनी संस्कृति और जमीनी हकीकत हमे ज्यादा पता है। ऐसे में हमारी रिसर्च के बारे में वे कितना बेहतर कर पाएँगे। क्या शोध की हमारी सामाजिक जरूरतों को कोई विदेशी विश्वविद्यालय पूरा कर पाएगा? कम से कम कला के विषयों में तो ऐसा नहीं लगता। जहाँ तक विज्ञान के विषयों की बात है तो उनमें हमारे पास पहले से ही बेहतर संस्थान हैं। हमारे यहाँ के आई0आई0टी0 विश्व के उच्चतम संस्थानो में शुमार किए जाते हैं।
एक बड़ी चर्चा यह भी है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने से भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा की भावना आएगी। लेकिन प्रतिस्पर्धा बराबरी में होती है। सरकार खुद मानती है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बेहतरीन शिक्षक पैदा नहीं कर पा रही है। हमारे पास तो शिक्षा के लिए कोई बेहतर आधारभूत ढाँचा तक नहीं है। प्राथमिक कक्षाओं में हम ड्रापआउट से जूझ रहे हैं। उच्च शिक्षा में हमारे पास कई सौ विश्वविद्यालयों की जरूरत है। आखिर किस आधार पर हमारे शिक्षा संस्थान विदेशी विश्वविद्यालयों से प्रतिस्पर्धा करेंगे। शिक्षकों की कमी तो प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों तक को है। जो प्राइवेट महाविद्यालय हैं, टंडन रिपोर्ट ने उनकी पोल खोल दी है। देश के सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए बनाई गई टंडन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 130 में से 44 डीम्ड विश्वविद्यालय इस खास दर्जे के अयोग्य हैं, इन्हें पारिवारिक कारोबार की तरह चलाया जा रहा है और इनके पीछे कोई अकादमिक नज़रिया नहीं है। वे सिर्फ डिग्री देने और पैसा बनाने के साधन बन गए हैं। जब शिक्षा का उद्देश्य ही पैसा बनाना हो तब बेहतरीन रिसर्च की उम्मीद आप कैसे कर सकते हैं। बेहतरीन अध्यापक तो तभी आएँगे जब आप उन्हें बेहतरीन सुविधाएँ देंगे। ऐसे में विदेशी विश्वविद्यालयों से प्रतिस्पर्धा की बात हास्यास्पद लगती है।
ऐसा नहीं है कि भारत में विदेशी विश्वविद्यालय पहली बार आ रहे हैं। फिलहाल करीब 150 विदेशी विश्वविद्यालय ऐसे हैं जो विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों के सहयोग से अपनी डिग्री प्रोग्राम चला रहे हैं। इस कानून के आने से सिर्फ यही होगा कि विदेशी विश्वविद्यालय भारत में स्वतंत्र रूप से अपने कैंपस स्थापित कर सकेंगे। इनको डीम्ड विश्वविद्यालया का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन इसके बावजूद यह संभावना लगातार बनी रहेगी कि लोग विदेशों में शिक्षा के लिए जाएँगे ही क्योंकि शिक्षा महज एक डिग्री नहीं है।

-अविनाश राय
मो0: 09910638355

1 टिप्पणी:

राज भाटिय़ा ने कहा…

हमारी सरकार को पकी पकाई खाने की आदत हे, ओर यह विदेशी विश्वविद्यालय आयेगे तो निओन नेतओ को कमीशन मिलेगा, ज्यादा ओर कुछ नही, अगर सरकार अपने देश के विश्वविद्यालयओ मे ही सुधार करे, पुरे शिक्षक भरती करे तो हमारे देश मै कोई कमी नही, हमारे शिक्षक दुनिया मै सब से अच्छे हे, लायक हे, लेकिन इन नेताओ को पेसा चाहिये... देखे आगे क्या होता हे

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