३० सितम्बर ,१९३० को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिबुनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की मांग की |सरदार किशनसिंह स्वय देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे |
पिता द्वारा दी गयी अर्जी से भगत सिंह की भावनाओ को भी चोट लगी थी ,लेकिन अपनी भावनाओ को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतो पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को यह पत्र लिखा जो उसके पिता को देर से मिला | ७ अक्टूबर ,1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया |
4 अक्टूबर 1930
पूज्य पिताजी ,
मुझे यह जानकर हैरानी हुई की आप ने मेरे बचाव -पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा हैं |यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे ख़ामोशी से बर्दाश्त नही कर सका |इस खबर ने मेरे भीतर कि शांति भंग कर उथल -पुथल मचा दी हैं |मैं यह नही समझ सकता कि वर्तमान इस्थितियो में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं ?
आप का पुत्र होने के नाते मैं आपकी पैतृक भावनाओ का पूरा सम्मान करता हूँ कि आप को साथ सलाह -मशविरा किये बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नही था |आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं |में आप कि सहमती या असहमति का ख्याल किये बिना सदा स्व्तन्त्र्तापुर्वक काम करता रहा हूँ |
मुझे यकीन हैं कि आपको यह बात याद होगी कि आप आरम्भ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते हैं कि में अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करू| लेकिन आपको यह भी मालूम है कि में सदा इसका विरोध करता रहा हूँ | मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नही की और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया हैं |
मेरी जिन्दगी इतनी कीमती नही जितनी कि आप सोचते हैं |कम -से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नही कि इसे सिद्धांतो को कुर्बान करके बचाया जाये |मेरे अलावा मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन है जितना कि मेरा मुकदमा | हमने सयुक्त योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे | हमे इस बात कि कोई परवाह नही कि हमे व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा |
पिता जी मैं बहुत दुःख का अनुभव कर रहा हूँ |मुझे भय हैं ,आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आप के इस काम कि निन्दा करते हुए मैं कंही सभ्यता कि सीमाए न लाघ जाऊ और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हो जाये |लेकिन में स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूँगा |यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता |लेकिन आप के सन्दर्भ में मैं इतना ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी है -निचले स्तर कि कमजोरी |
यह एक ऐसा समय था जब हम सब का इम्तहान हो रहा था |में यह कहना चाहता हूँ कि आप इस इम्तहान में नाकाम रहे है |में जनता हूँ कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है जितना कि कोई और व्यक्ति हो सकता हैं |में जनता हूँ कि आपने अपनी पूरी जिन्दगी भारत कि आज़ादी के लिए लगा दी हैं |लेकिन इस अहम मौड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई ,यह बात में समझ नही सकता |
अन्त में मैं आपसे ,आपके अन्य मित्रो व मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वालो से यह कहना चाहता हूँ कि में आपके इस कदम को नापसंद करता हूँ |में आज भी अदालत अपना बचाव प्रस्तुत करने के पक्ष में नही हूँ |अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकर्ण आदि के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन को मंजूर कर लेती , तो भी में कोई स्पष्टीकर्ण प्रस्तुत न करता |
मैं चाहूँगा की इस समबन्ध में जो उलझने पैदा हो गयी हैं ,उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाये |इसलिए में आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप जल्द से जल्द यह चिठ्ठी प्रकाशित कर दें |
आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह
पिता द्वारा दी गयी अर्जी से भगत सिंह की भावनाओ को भी चोट लगी थी ,लेकिन अपनी भावनाओ को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतो पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को यह पत्र लिखा जो उसके पिता को देर से मिला | ७ अक्टूबर ,1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया |
4 अक्टूबर 1930
पूज्य पिताजी ,
मुझे यह जानकर हैरानी हुई की आप ने मेरे बचाव -पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा हैं |यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे ख़ामोशी से बर्दाश्त नही कर सका |इस खबर ने मेरे भीतर कि शांति भंग कर उथल -पुथल मचा दी हैं |मैं यह नही समझ सकता कि वर्तमान इस्थितियो में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं ?
आप का पुत्र होने के नाते मैं आपकी पैतृक भावनाओ का पूरा सम्मान करता हूँ कि आप को साथ सलाह -मशविरा किये बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नही था |आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं |में आप कि सहमती या असहमति का ख्याल किये बिना सदा स्व्तन्त्र्तापुर्वक काम करता रहा हूँ |
मुझे यकीन हैं कि आपको यह बात याद होगी कि आप आरम्भ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते हैं कि में अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करू| लेकिन आपको यह भी मालूम है कि में सदा इसका विरोध करता रहा हूँ | मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नही की और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया हैं |
मेरी जिन्दगी इतनी कीमती नही जितनी कि आप सोचते हैं |कम -से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नही कि इसे सिद्धांतो को कुर्बान करके बचाया जाये |मेरे अलावा मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन है जितना कि मेरा मुकदमा | हमने सयुक्त योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे | हमे इस बात कि कोई परवाह नही कि हमे व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा |
पिता जी मैं बहुत दुःख का अनुभव कर रहा हूँ |मुझे भय हैं ,आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आप के इस काम कि निन्दा करते हुए मैं कंही सभ्यता कि सीमाए न लाघ जाऊ और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हो जाये |लेकिन में स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूँगा |यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता |लेकिन आप के सन्दर्भ में मैं इतना ही कहूँगा कि यह एक कमजोरी है -निचले स्तर कि कमजोरी |
यह एक ऐसा समय था जब हम सब का इम्तहान हो रहा था |में यह कहना चाहता हूँ कि आप इस इम्तहान में नाकाम रहे है |में जनता हूँ कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है जितना कि कोई और व्यक्ति हो सकता हैं |में जनता हूँ कि आपने अपनी पूरी जिन्दगी भारत कि आज़ादी के लिए लगा दी हैं |लेकिन इस अहम मौड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई ,यह बात में समझ नही सकता |
अन्त में मैं आपसे ,आपके अन्य मित्रो व मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वालो से यह कहना चाहता हूँ कि में आपके इस कदम को नापसंद करता हूँ |में आज भी अदालत अपना बचाव प्रस्तुत करने के पक्ष में नही हूँ |अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकर्ण आदि के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन को मंजूर कर लेती , तो भी में कोई स्पष्टीकर्ण प्रस्तुत न करता |
मैं चाहूँगा की इस समबन्ध में जो उलझने पैदा हो गयी हैं ,उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाये |इसलिए में आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप जल्द से जल्द यह चिठ्ठी प्रकाशित कर दें |
आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह
सुनील दत्ता
9415370672
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी जानकारी आपका आभार
महत्त्वपूर्ण और आवश्यक...
jee bahut good...
अच्छी जानकारी, बहुत धन्यवाद
जाने किस मिटटी की बने थे वो दीवाने
aadarniy sunil ji , main bahut der aapki liklhi hui saari posts padh raha tha. bahut si jagah par mera man bhar aaya . aapne bahut hi jatan se ye poora research kiya hai . aapko lakh lakh badhayi , kyonki bahut se aise pahlu hai , jo logo ko ab tak malum nahi hai . aur apke dwara ab maalum honga .
sir main aapse nivandan karta hoon ki aap mujhe apne saare lekh avashya bheje .
aapka bahut bahut dhanywad.
jai hind
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