अगर इन सभी समाचारों का विश्लेषण किया जाय तो कई प्रकार के सवाल खड़े होते हैं। पहला तो यह कि डॉक्टर शाहनवाज और असदुल्ला को धमाके से जोड़ने का आधार क्या है? यदि इण्डियन मुजाहिदीन के ईमेल को आधार माना जाय तो आरोप रियाज भटकल और इकबाल भटकल पर जाता है जैसा कि मुम्बई पुलिस आयुक्त के बयान से जाहिर होता है। दिल्ली पुलिस को कामन वेल्थ खेलों से पहले अगर कोई इनपुट्स मिले थे तो उँगली इण्डियन मुजाहिदीन पर जरूर उठती है परन्तु उक्त दोनांे युवकों को इस आधार पर जिम्मेदार मानने का कोई कारण नहीं दिखाई देता। इसके अतिरिक्त देश की सुरक्षा से जुड़ी इस महत्वपूर्ण जानकारी से दिल्ली पुलिस ने उ0प्र0 पुलिस को उस समय आगाह क्यों नहीं किया? दिल्ली पुलिस की बगैर किसी सुबूत के डाॅ0 शाहनवाज और असदुल्ला का नाम धमाके से जोड़ने में दिलचस्पी के अपने कारण हो सकते हैं। बटाला हाउस काण्ड को लेकर उठने वाले सवाल और बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा उसे फर्जी मुठभेड़ों की सूची में शामिल किए जाने पर अपने केस को पुख्ता बनाने के लिए, वहाँ आरोपी बनाए गए युवकों के खिलाफ उनके आतंकवादी
गतिविधियों में लिप्त होने के नवीन पूरक साक्ष्यों की जरूरत है। वाराणसी विस्फोट में डाॅ0 शाहनवाज या असदुल्ला को आरोपी बनाए जाने की सूरत मंे उसकी राह आसान हो सकती है। इसके अलावा अमर उजाला में चण्डीगढ़ से आशीष शर्मा की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है (कराँची में रियाज और शारजाह में शहनवाज ने मिल कर रची साजिश) ब्लास्ट के पीछे गजनी माड्यूल, रिपोर्ट में कहा गया है......... बनारस ब्लास्ट के पीछे मुजाहिदीन (आई0एम0) के नए माड्यूल ‘‘गजनी’’ का हाथ है..........इस बात के संकेत बनारस की जाँच कर रहे एक अधिकारी ने दिए हैं। उनके मुताबिक बटाला हाउस इन्काउन्टर के दौरान पकड़े गए आतंकी सैफ ने बताया था कि आई0एम0 ने भारत मंे तबाही मचाने के लिए तीन माड्यूल बनाए थे। एक महाराष्ट्र और गुजरात के लिए, दूसरा साउथ के लिए और तीसरा उत्तर भारत के लिए। पहले दो को ध्वस्त करने मंे गुजरात और महाराष्ट्र पुलिस ने सफलता प्राप्त कर ली थी लेकिन तीसरे सबसे महत्वपूर्ण गजनी का सुराग नहीं लग पाया था।
इसे आपरेट करने की जिम्मेदारी आजमगढ़ के डाॅ0 शाहनवाज के पास थी.....अधिकारी का यह भी कहना है कि बनारस धमाके से पहले करीब 25 सदस्यों ने रेकी की थी इनमें वे भी शामिल हैं जो अहमदाबाद ब्लास्ट के बाद से फरार चल रहे हैं (अमर उजाला 13 दिसम्बर पृष्ठ 18)। इस रिपोर्ट में भी डाॅ0 शाहनवाज को कटघरे मेें खड़ा किया गया है परन्तु रियाज भटकल के साथ। ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस की थ्योरी और मुम्बई पुलिस आयुक्त के बयान में सामंजस्य उत्पन्न करने का प्रयास करने वाली इस रिपोर्ट से मात्र बनारस धमाके का मामला ही हल नहीं हो जाता बल्कि उत्तर भारत में यदि भविष्य में ऐसी कोई वारदात होती है तो उसकी जिम्मेदारी आसानी से इण्डियन मुजाहिदीन के इसी गजनी माड्यूल के सिर थोपी जा सकती है। रिपोर्ट मंे जिस गजनी माड्यूल का सुराग उस समय न मिल पाने की बात कही गई है उसका नाम गुजरात पुलिस महा निदेशक द्वारा उसी समय लिया गया था जब उन्होंने आई0एम0 के अस्तित्व और उसे सिमी से जोड़ने का (सिमी के पहले एस. और बाद के आई को निकालकर) नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया था।
बनारस धमाके के बाद इण्डियन मुजाहिदीन समेत जिन संगठनों पर शक जाहिर करते हुए अधिकारियों, सुरक्षा एजेंसियों तथा खुफिया सूत्रों के हवाले से समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित हुए उसमें आतंकवादियों का सम्बन्ध मुस्लिम समुदाय से होना ही जाहिर होता है। साधारण नागरिक के लिए इसमें एक बड़ा सवाल है। सम्भवतः इसके तीन प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला यह कि घटना के तुरन्त बाद आई0एम0 ने ईमेल भेज कर विस्फोट की जिम्मेदारी कबूल की और इससे जुड़े आतंकियों का सम्बन्ध इसी समुदाय से माना जाता है। हालाँकि इस संगठन के अस्तित्व को लेकर लगातार संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। दूसरा कारण विस्फोट का एक हिन्दू धर्म स्थल पर होना और तीसरा निहित कारणों से सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों में बैठे साम्प्रदायिक मानसिकता के लोगों की कारस्तानी तथा धु्रवीकरण की राजनीति। जहाँ तक इण्डियन मुजाहिदीन द्वारा ईमेल भेजकर घटना की जिम्मेदारी लेने का सवाल है तो इसमें इस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जाँच की दिशा को एक खास रुख देने के लिए किसी और ने इण्डियन मुजाहिदीन के नाम से यह ईमेल भेजा हो। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जब विस्फोट करने वालों ने ऐसे प्रयास किए हैं जिससे आरोप मुस्लिम युवकों पर लगने का मार्ग प्रशस्त हो सके। नांदेड़ में बम बनाते हुए बजरंग दल के कार्यालय में हुए विस्फोट में उसके कार्यकर्ताओं की मौत के बाद वहाँ से नकली दाढ़ी, टोपी और ऐसे वस्त्रों का बरामद होना जो आम तौर से मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है ऐसे ही षड्यन्त्र का एक हिस्सा था। मालेगाँव बम धमाके में जिस बाइक का प्रयोग किया गया और जाँच के बाद जिसका सम्बन्ध प्रज्ञा सिंह ठाकुर से स्थापित हुआ उस पर ऐसे स्टीकर चिपकाए गए थे जिससे विस्फोट में सिमी का हाथ होना साबित हो। आतंकी इस प्रयास में उस समय सफल भी रहे थे। कानपुर में बम बनाते समय हुए धमाके में विश्व हिन्दू परिषद के सदस्यों का मारा जाना और भारी मात्रा में गोला बारूद का बरामद होना एक महत्वपूर्ण संकेत था कि उ0प्र0 में भी हिन्दूवादी संगठनों से जुड़े अतिवादी सोच के लोग सक्रिय हैं और इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दे सकते हंै। यह घटना चूँकि उ0प्र0 में ही हुई थी इस लिहाज से पिछले धमाकों के अवलोक में इसको अवश्य शामिल किया जाना चाहिए था। परन्तु किसी भी समाचार पत्र में यह देखने को नहीं मिला। इसी प्रकार यह मान लेना कि बनारस विस्फोट एक हिन्दू धर्म स्थल पर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान हुआ इसलिए इसमें सनातन संस्थान, अभिनव भारत या संघ से जुड़े अन्य संगठनों के चरम पंथियों का हाथ नहीं हो सकता। इसी वजह से शक सिर्फ इण्डियन मुजाहिदीन, हूजी या लश्कर जैसे संगठनों पर किया जाना चाहिए तो यह तर्क मान्य नहीं हो सकता।
-मसीहुद्दीन संजरी
क्रमश:
गतिविधियों में लिप्त होने के नवीन पूरक साक्ष्यों की जरूरत है। वाराणसी विस्फोट में डाॅ0 शाहनवाज या असदुल्ला को आरोपी बनाए जाने की सूरत मंे उसकी राह आसान हो सकती है। इसके अलावा अमर उजाला में चण्डीगढ़ से आशीष शर्मा की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है (कराँची में रियाज और शारजाह में शहनवाज ने मिल कर रची साजिश) ब्लास्ट के पीछे गजनी माड्यूल, रिपोर्ट में कहा गया है......... बनारस ब्लास्ट के पीछे मुजाहिदीन (आई0एम0) के नए माड्यूल ‘‘गजनी’’ का हाथ है..........इस बात के संकेत बनारस की जाँच कर रहे एक अधिकारी ने दिए हैं। उनके मुताबिक बटाला हाउस इन्काउन्टर के दौरान पकड़े गए आतंकी सैफ ने बताया था कि आई0एम0 ने भारत मंे तबाही मचाने के लिए तीन माड्यूल बनाए थे। एक महाराष्ट्र और गुजरात के लिए, दूसरा साउथ के लिए और तीसरा उत्तर भारत के लिए। पहले दो को ध्वस्त करने मंे गुजरात और महाराष्ट्र पुलिस ने सफलता प्राप्त कर ली थी लेकिन तीसरे सबसे महत्वपूर्ण गजनी का सुराग नहीं लग पाया था।
इसे आपरेट करने की जिम्मेदारी आजमगढ़ के डाॅ0 शाहनवाज के पास थी.....अधिकारी का यह भी कहना है कि बनारस धमाके से पहले करीब 25 सदस्यों ने रेकी की थी इनमें वे भी शामिल हैं जो अहमदाबाद ब्लास्ट के बाद से फरार चल रहे हैं (अमर उजाला 13 दिसम्बर पृष्ठ 18)। इस रिपोर्ट में भी डाॅ0 शाहनवाज को कटघरे मेें खड़ा किया गया है परन्तु रियाज भटकल के साथ। ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस की थ्योरी और मुम्बई पुलिस आयुक्त के बयान में सामंजस्य उत्पन्न करने का प्रयास करने वाली इस रिपोर्ट से मात्र बनारस धमाके का मामला ही हल नहीं हो जाता बल्कि उत्तर भारत में यदि भविष्य में ऐसी कोई वारदात होती है तो उसकी जिम्मेदारी आसानी से इण्डियन मुजाहिदीन के इसी गजनी माड्यूल के सिर थोपी जा सकती है। रिपोर्ट मंे जिस गजनी माड्यूल का सुराग उस समय न मिल पाने की बात कही गई है उसका नाम गुजरात पुलिस महा निदेशक द्वारा उसी समय लिया गया था जब उन्होंने आई0एम0 के अस्तित्व और उसे सिमी से जोड़ने का (सिमी के पहले एस. और बाद के आई को निकालकर) नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया था।
बनारस धमाके के बाद इण्डियन मुजाहिदीन समेत जिन संगठनों पर शक जाहिर करते हुए अधिकारियों, सुरक्षा एजेंसियों तथा खुफिया सूत्रों के हवाले से समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित हुए उसमें आतंकवादियों का सम्बन्ध मुस्लिम समुदाय से होना ही जाहिर होता है। साधारण नागरिक के लिए इसमें एक बड़ा सवाल है। सम्भवतः इसके तीन प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला यह कि घटना के तुरन्त बाद आई0एम0 ने ईमेल भेज कर विस्फोट की जिम्मेदारी कबूल की और इससे जुड़े आतंकियों का सम्बन्ध इसी समुदाय से माना जाता है। हालाँकि इस संगठन के अस्तित्व को लेकर लगातार संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। दूसरा कारण विस्फोट का एक हिन्दू धर्म स्थल पर होना और तीसरा निहित कारणों से सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों में बैठे साम्प्रदायिक मानसिकता के लोगों की कारस्तानी तथा धु्रवीकरण की राजनीति। जहाँ तक इण्डियन मुजाहिदीन द्वारा ईमेल भेजकर घटना की जिम्मेदारी लेने का सवाल है तो इसमें इस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जाँच की दिशा को एक खास रुख देने के लिए किसी और ने इण्डियन मुजाहिदीन के नाम से यह ईमेल भेजा हो। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जब विस्फोट करने वालों ने ऐसे प्रयास किए हैं जिससे आरोप मुस्लिम युवकों पर लगने का मार्ग प्रशस्त हो सके। नांदेड़ में बम बनाते हुए बजरंग दल के कार्यालय में हुए विस्फोट में उसके कार्यकर्ताओं की मौत के बाद वहाँ से नकली दाढ़ी, टोपी और ऐसे वस्त्रों का बरामद होना जो आम तौर से मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है ऐसे ही षड्यन्त्र का एक हिस्सा था। मालेगाँव बम धमाके में जिस बाइक का प्रयोग किया गया और जाँच के बाद जिसका सम्बन्ध प्रज्ञा सिंह ठाकुर से स्थापित हुआ उस पर ऐसे स्टीकर चिपकाए गए थे जिससे विस्फोट में सिमी का हाथ होना साबित हो। आतंकी इस प्रयास में उस समय सफल भी रहे थे। कानपुर में बम बनाते समय हुए धमाके में विश्व हिन्दू परिषद के सदस्यों का मारा जाना और भारी मात्रा में गोला बारूद का बरामद होना एक महत्वपूर्ण संकेत था कि उ0प्र0 में भी हिन्दूवादी संगठनों से जुड़े अतिवादी सोच के लोग सक्रिय हैं और इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दे सकते हंै। यह घटना चूँकि उ0प्र0 में ही हुई थी इस लिहाज से पिछले धमाकों के अवलोक में इसको अवश्य शामिल किया जाना चाहिए था। परन्तु किसी भी समाचार पत्र में यह देखने को नहीं मिला। इसी प्रकार यह मान लेना कि बनारस विस्फोट एक हिन्दू धर्म स्थल पर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान हुआ इसलिए इसमें सनातन संस्थान, अभिनव भारत या संघ से जुड़े अन्य संगठनों के चरम पंथियों का हाथ नहीं हो सकता। इसी वजह से शक सिर्फ इण्डियन मुजाहिदीन, हूजी या लश्कर जैसे संगठनों पर किया जाना चाहिए तो यह तर्क मान्य नहीं हो सकता।
-मसीहुद्दीन संजरी
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