5 अप्रैल से 9 अप्रैल तक दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर जन लोकपाल विधेयक के लिए बहुप्रचारित आन्दोलन ,अनशन के बाद विधेयक के लिए सरकार ने सहमती प्रदान कर दी है |अंतिम प्रारूप तैयार करने के लिए सरकारी व् गैर सरकारी सदस्यों की समिति के गठन के साथ उसकी पहली बैठक भी हो चुकी है |इसे देश के भ्रष्ट्राचारजैसे मुद्दे पर जनता की जीत बताया जाता रहा है |गांधीवादी अन्ना हजारे के अनशन की जीत बताया जा रहा अहै |इसे तंत्र पर लोक की जीत के रूप में भी प्रचारित किया जाता रहा है |अपना अनशन तोड़ने के साथ ही श्री अन्ना हजारे ने यह घोषणा भी कर दी कि एडी संसद के मानसूत्र सत्र में (१५ अगस्त तक )जन लोकपाल विधेयक पारित नही होता है तो वे पुन: अनशन -आन्दोलन के रास्ते पर चल पड़ेगे |
श्री अन्ना हजारे द्वारा जन लोकपाल विधेयक के जरिये देश में धन के भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने के साथ -साथ दो -तीन अन्य माँगो को भी उठाया गया था |उसमे चुनाव में खड़े हुए जनप्रतिनिधियों के प्रति नकारात्मक राय जाहिर करने तथा चुने हुए प्रतिनिधियों के भ्रष्ट और नाकारा साबित होने पर उन्हें वापस बुलाने आदि कि माँग भी शामिल थी | भ्रष्ट्राचार के अलावा इन दुसरे मुद्दों पर प्रचार माध्यमो में कोई चर्चा नही हुई |इसीलिए ये मुद्दे लोगो में चर्चा के विषय भी नही बन पाए |
अब जंहा तक धन -पैसे के भ्रष्ट्राचार का मामला है ,तो सभी जानते हैं कि यह नाजायज या गैर क़ानूनी तरीके से धन -सम्पति बटोरने ,पैसा -पूंजी बढ़ाने का मामला है |इसे बढ़ाने के लिए दिए -लिए जाते रहे छूट व् अधिकार से जुडा मामला है |राष्ट्र व् राज्य में पद प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए अपनाये जा रहे भ्रष्ट हथकंडो का भी मामला है |फिर वर्तमान युग की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में चढने -बढने और उसकी होड़ -दौड़ में दुसरो से आगे निकलने का मामला भी है | इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि, समाज के धनहीनो ,सम्पत्तिहीनो अथवा छोटी व नाममात्र की सम्पत्तियों के मालिक देश में होने वाले धन ,पैसे के भ्रष्ट्राचार से जुड़े नही होते है |जबकि वर्तमान दौर की बाजारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नीचे से उपर उठता आदमी लगभग हर तरह के भ्रष्ट्राचार से जरुर जुड़ता जाता है ,चाहे उसके मामले उजागर हो या न हों |इसे आप अपने निकट के किसी आदमी के बढने -चढने में विद्यमान भ्र्ष्ठाचारी क्रिया -कलापों को देखकर तथा उसके बारे में पता करके आसानी से जान व समझ सकते है।
उससे यह भी समझ सकते है कि अब देश व समाज कि उँचाइयो तक पहुँचे और बैठे धनाढ्य व उच्च तबको में कितना सदाचार बाकी बचा होगा ?वर्तमान दौर में बढ़ते बाज़ार और बढ़ते भ्रष्ट्राचार के दौर में यह स्पष्ट है कि उच्च और उच्चतम स्तर कि क़ानूनी कमाई के साथ तरह -तरह की भ्रष्टाचारी कमाई भी जुडती गयी है |यह कर -चोरी ,घूसखोरी ,कमीशनखोरी आदि के रूप में हर स्तर पर विद्यमान है |लगातार बढती जा रही है |लेकिन भ्रष्ट्राचार की इन परिस्थितियों को समग्रता में देखने और उस पर गम्भीर चर्चा करने की जगह वर्तमान दौर का भ्रष्ट्राचार शासन -प्रशासन में बैठे मंत्रियों ,आला अधिकारियो ,सांसदों ,विधायको ,उच्चस्तरीय करमचारियो,द्वारा लिए जाते रहे घुस-घोटालो आदि को ही प्रमुखता से उठाता है |जन लोकपाल विधयेक के प्रारूप में भी कर्मचारियों ,अधिकारियो से लेकर सांसद ,विधायक ,सभासद ,मंत्री ,मुख्यमंत्री ,प्रधानमन्त्री ,निचले तथा उच्च व उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश को ही जाँच के दायरे में लाने का प्रस्ताव है | साफ़ मतलब है किइस जन लोकपाल विधेयक के अंतर्गत राज्य के तीनो अंगो विधायिका ,कार्यपालिका व न्यायपालिका के ऊँचे से नीचे तक के पदाधिकारियों द्वारा अपने पद का दुर्प्रयोग से किये जा रहे धन -पैसे के भ्रष्टाचार को जाँच के दायरे में लाने को प्रमुख लक्ष्य घोषित किया गया |
विधयेक में देश -दुनिया कि धनाढ्य कम्पनियों को अपना धन -पूंजी में वृद्धि कि दी जा रही नीतिगत व क़ानूनी छूटे व अधिकार पर और उसके जरिये उनकी बढती रही करोड़ो ,अरबो ,खरबों की पूंजियो व मुनाफो ,संसाधनों पर कोई सवाल नही उठाया गया है |जबकि सच्चाई यह है की धन -पैसे के करोड़ो -अरबो का भ्रष्ट्राचार पिछले बीस -पचीस सालो में इन्ही नीतिगत व क़ानूनी छुटो के साथ तेज़ी से बढ़ता रहा है |अस्सी के दशक के बोफोर्स तोप के साठ करोड़ घोटाले से लेकर इस समय के २ जी स्पेक्ट्रम के हजारो करोड़ के घोटालो आदि के रूप में भ्रष्ट्राचार की लम्बी लिस्ट इसके लगातार बढ़ते रहने का सबूत है |
कोई भी समझ सकता है की वैश्वीकरणवादी नीतियों के फलस्वरूप देश की धनाढ्य कम्पनियों के छुटो ,अधिकारों ने देश के बाज़ार में उनके विस्तार व प्रभुत्व की होड़ को भी खसा तेज़ कर दिया है |उसके लिए घूस ,घोटाले आदि के भ्रष्ट्राचारको भी आम आदमी के लिए अकल्पनीय आंकड़ो व उँचाइयो तक पहुंचा दिया है |अब समूचा धनाढ्य एवं उच्च हिस्सा ही भ्रष्ट्राचार में डुबकीलगा रहा है |एक दुसरे को भ्रष्ट्रचारी गतिविधियों में खिचता जा रहा है | शासकीय प्रशासकीय हिस्सों तथा न्यायिक हिस्सों को धनाढ्य एवं उच्च वर्गो ने अपने घूस कमिशन आदि से भ्रष्ट किया है |उनमे निजी आमदनियो ,स्म्मप्तियो ,सुविधाओ को बढाते जाने के लोभ व लालच को बेहिसाब बढ़ा दिया है |
फिर अब शासकीय -प्रशासकीय हिस्से व तबके अपनी सुनिश्चित रणनीतियो के अनुसार भ्रष्ट्राचारको कस्बे और गावं तक फैलाने में लगे हुए है |तमाम सरकारी योजनाओ के जरिये सरकारी धन बड़े अफसरशाहो ,फिर छोटे अफसरों ,सरकारी कर्मचारी से होता हुआ ग्रामप्रधान स्तर तक पहुंचता हुआ इन सभी हिस्सों में भ्रष्ट्राचार को बढ़ाअत जा रहा है | सांसद निधि ,विधायक निधि आदि के जरिये भी जन प्रतिनिधि से लेकर आम समाज के थोडा आगे बढ़े हिस्सों को कमीशन देने -लेने आदि के विविध तरीको से भ्रष्ट बनाया जा रहा है |
आप ही सोचिये कि जिस समाज में माल -मुद्रा ,धन पैसे का बोलबाला हो गया हो |उसमें हर तरह से पैसा कमाने ,उसे बढ़ाने की उपभोक्ता संस्कृति को फैलाया जा रहा हो |तब भला यह कैसे सम्भव है की धन का भ्रष्ट्राचार न चले , न बढ़े उस पर रोक लग जाए |
इसलिए बढ़ते भ्रष्ट्राचार को रोकने के नाम पर बनाये व लागू किये जाते रहे कानून ,उसकी जाँच के लिए बनाये जाते रहे आयोग व संस्थाए न केवल नाकारा साबित होती रही है ,बल्कि खुद भी भ्रष्ट्राचार में लिप्त होती गयी है | भ्रष्ट्राचार विरोधी कानूनों को लागू करने वाले अधिकारियो ,न्यायाधीशो ,आयौगो ,संस्थाओ के अधिकारी भी भ्रष्ट्रहोते गये है |1969 से ही लोक पाल विधयेक को भ्रष्ट्राचार रोकने का कारगर तरीका मानकर उसे उछाला जाता रहा है |
भविष्य के लिए छोड़ा भी जाता रहा है |अब जबकि बढ़ते विश्वीकृत बाज़ार वाद ने पुरे ऊपरी और मध्यमवर्गीय के हिस्सों को खासा भ्रष्ट बना दिया है ,तब लोक पाल विधेयक को इसकी रामवाण दवा के रूप में और योग गुरु बाबा रामदेव और गाँधी वादी और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और एनी कई हस्तियों को भ्रष्ट्राचार की बिमारी के चिकित्सक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है |पर जन लोकपाल विधियेक की स्मिति के बनते और उसकी बैठक के शुरुहोते ही भ्रष्ट्राचार के उपरोक्त चिकित्सको पर स्मिति के एनी सदस्यों पर भी आरोप लगने लगे हैं |उनकी करोड़ो -की कमाई ,विशाल सम्पत्तियों ,ट्रस्टो ,घोटालो के भ्रष्ट्राचार को लेकर सवाल खड़े किये जाने लगे है | स्सफ बात यह है कि देश -धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों के साथ में राह रहे तथा स्वंय भी धनाढ्य एवं उच्च बनते रहे शासकीय या गैर शासकीय हिस्सों से आप भ्रष्ट्राचार को हटाने -मिटने की उम्मीद नही कर सकते |कयोकि वे वर्तमान दौर में भ्रष्ट्राचार को दिन दूना रात चौगुना बढ़ावा देने वाली बाज़ार वादी ,विशिविकर्ण वादी नीतियों के भी विरोधी नही है| भ्रष्ट्राचार की बुनियाद में विद्यमान निजी धन सम्पत्ति को ,पूंजी को लगातार बढाती रही बाजारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विरोध की बात तो छोड़ ही दीजिए | कयोकि वे स्वंय भी धन -सम्पत्ति ,पैसा ,पूंजी पद प्रतिष्ठा की ऊँचाइयो पर चढ़ते हुए लोग है |
साथ ही वे बड़े धनाढ्य मालिको तथा राजनितिक एवं गैर राजनितिक उच्च तबको से हजारो सूत्रों से बंधे हुए लोग है |अंत: भ्रष्ट्राचार के बहुप्रचारित अभियानों ,अनशनो ,से उसे हटाने -मिटाने या उसका छोटे -बड़े प्रयास के चल पाने की जनसाधारण की आशा -विश्वास का भी टूटना व गलत साबित हो जाना निश्चित है |धन के इस भ्रष्ट्राचार पर थोडा बहुत भी अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है की उसे सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विश्वीकरण वादी नीतियों ,सुधारो का विरोध हो |विदेशी कम्पनियों और विदेशी पूंजी को तथा देश के चोटि की कम्पनियों के लिए अन्धाधुंध बढती रही छुटो व अधिकारों पर रोक लगाई जाए |उसे निरन्तर काटा व घटाया जाए |साथ ही देश के उच्च हिस्सों की आमदनियो,सुविधाओ पर रोक लगाई जाए |देश के जनप्रतिनिधियों को देश के औसत आदमी जैसा वेतन भत्ते और सुविधाए प्रदान की जाए |संस्कृति पर रोक लगाया जाए |अन्धाधुंध बाज़ार वादी भोगवादी संस्कृति पर रोक लगाया जाए |आवश्यकता अनुसार उपभोग की श्रम करने और उपभोग करने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए |भ्रष्ट्राचार को कम करने या घटाने के लिए ए उपाए भी छोटे है ,तात्कालिक है |पर इसे भी देश के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से या उनसे सहयोग लेते -देते लोग लागू नही कर सकते |उसे देश के निचले हिस्से ही संगठित होकर ,एकजुट होकर लागू कर सकते हैं |
सुनील दत्ता
09415370672
अब जंहा तक धन -पैसे के भ्रष्ट्राचार का मामला है ,तो सभी जानते हैं कि यह नाजायज या गैर क़ानूनी तरीके से धन -सम्पति बटोरने ,पैसा -पूंजी बढ़ाने का मामला है |इसे बढ़ाने के लिए दिए -लिए जाते रहे छूट व् अधिकार से जुडा मामला है |राष्ट्र व् राज्य में पद प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए अपनाये जा रहे भ्रष्ट हथकंडो का भी मामला है |फिर वर्तमान युग की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में चढने -बढने और उसकी होड़ -दौड़ में दुसरो से आगे निकलने का मामला भी है | इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि, समाज के धनहीनो ,सम्पत्तिहीनो अथवा छोटी व नाममात्र की सम्पत्तियों के मालिक देश में होने वाले धन ,पैसे के भ्रष्ट्राचार से जुड़े नही होते है |जबकि वर्तमान दौर की बाजारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नीचे से उपर उठता आदमी लगभग हर तरह के भ्रष्ट्राचार से जरुर जुड़ता जाता है ,चाहे उसके मामले उजागर हो या न हों |इसे आप अपने निकट के किसी आदमी के बढने -चढने में विद्यमान भ्र्ष्ठाचारी क्रिया -कलापों को देखकर तथा उसके बारे में पता करके आसानी से जान व समझ सकते है।
उससे यह भी समझ सकते है कि अब देश व समाज कि उँचाइयो तक पहुँचे और बैठे धनाढ्य व उच्च तबको में कितना सदाचार बाकी बचा होगा ?वर्तमान दौर में बढ़ते बाज़ार और बढ़ते भ्रष्ट्राचार के दौर में यह स्पष्ट है कि उच्च और उच्चतम स्तर कि क़ानूनी कमाई के साथ तरह -तरह की भ्रष्टाचारी कमाई भी जुडती गयी है |यह कर -चोरी ,घूसखोरी ,कमीशनखोरी आदि के रूप में हर स्तर पर विद्यमान है |लगातार बढती जा रही है |लेकिन भ्रष्ट्राचार की इन परिस्थितियों को समग्रता में देखने और उस पर गम्भीर चर्चा करने की जगह वर्तमान दौर का भ्रष्ट्राचार शासन -प्रशासन में बैठे मंत्रियों ,आला अधिकारियो ,सांसदों ,विधायको ,उच्चस्तरीय करमचारियो,द्वारा लिए जाते रहे घुस-घोटालो आदि को ही प्रमुखता से उठाता है |जन लोकपाल विधयेक के प्रारूप में भी कर्मचारियों ,अधिकारियो से लेकर सांसद ,विधायक ,सभासद ,मंत्री ,मुख्यमंत्री ,प्रधानमन्त्री ,निचले तथा उच्च व उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश को ही जाँच के दायरे में लाने का प्रस्ताव है | साफ़ मतलब है किइस जन लोकपाल विधेयक के अंतर्गत राज्य के तीनो अंगो विधायिका ,कार्यपालिका व न्यायपालिका के ऊँचे से नीचे तक के पदाधिकारियों द्वारा अपने पद का दुर्प्रयोग से किये जा रहे धन -पैसे के भ्रष्टाचार को जाँच के दायरे में लाने को प्रमुख लक्ष्य घोषित किया गया |
विधयेक में देश -दुनिया कि धनाढ्य कम्पनियों को अपना धन -पूंजी में वृद्धि कि दी जा रही नीतिगत व क़ानूनी छूटे व अधिकार पर और उसके जरिये उनकी बढती रही करोड़ो ,अरबो ,खरबों की पूंजियो व मुनाफो ,संसाधनों पर कोई सवाल नही उठाया गया है |जबकि सच्चाई यह है की धन -पैसे के करोड़ो -अरबो का भ्रष्ट्राचार पिछले बीस -पचीस सालो में इन्ही नीतिगत व क़ानूनी छुटो के साथ तेज़ी से बढ़ता रहा है |अस्सी के दशक के बोफोर्स तोप के साठ करोड़ घोटाले से लेकर इस समय के २ जी स्पेक्ट्रम के हजारो करोड़ के घोटालो आदि के रूप में भ्रष्ट्राचार की लम्बी लिस्ट इसके लगातार बढ़ते रहने का सबूत है |
कोई भी समझ सकता है की वैश्वीकरणवादी नीतियों के फलस्वरूप देश की धनाढ्य कम्पनियों के छुटो ,अधिकारों ने देश के बाज़ार में उनके विस्तार व प्रभुत्व की होड़ को भी खसा तेज़ कर दिया है |उसके लिए घूस ,घोटाले आदि के भ्रष्ट्राचारको भी आम आदमी के लिए अकल्पनीय आंकड़ो व उँचाइयो तक पहुंचा दिया है |अब समूचा धनाढ्य एवं उच्च हिस्सा ही भ्रष्ट्राचार में डुबकीलगा रहा है |एक दुसरे को भ्रष्ट्रचारी गतिविधियों में खिचता जा रहा है | शासकीय प्रशासकीय हिस्सों तथा न्यायिक हिस्सों को धनाढ्य एवं उच्च वर्गो ने अपने घूस कमिशन आदि से भ्रष्ट किया है |उनमे निजी आमदनियो ,स्म्मप्तियो ,सुविधाओ को बढाते जाने के लोभ व लालच को बेहिसाब बढ़ा दिया है |
फिर अब शासकीय -प्रशासकीय हिस्से व तबके अपनी सुनिश्चित रणनीतियो के अनुसार भ्रष्ट्राचारको कस्बे और गावं तक फैलाने में लगे हुए है |तमाम सरकारी योजनाओ के जरिये सरकारी धन बड़े अफसरशाहो ,फिर छोटे अफसरों ,सरकारी कर्मचारी से होता हुआ ग्रामप्रधान स्तर तक पहुंचता हुआ इन सभी हिस्सों में भ्रष्ट्राचार को बढ़ाअत जा रहा है | सांसद निधि ,विधायक निधि आदि के जरिये भी जन प्रतिनिधि से लेकर आम समाज के थोडा आगे बढ़े हिस्सों को कमीशन देने -लेने आदि के विविध तरीको से भ्रष्ट बनाया जा रहा है |
आप ही सोचिये कि जिस समाज में माल -मुद्रा ,धन पैसे का बोलबाला हो गया हो |उसमें हर तरह से पैसा कमाने ,उसे बढ़ाने की उपभोक्ता संस्कृति को फैलाया जा रहा हो |तब भला यह कैसे सम्भव है की धन का भ्रष्ट्राचार न चले , न बढ़े उस पर रोक लग जाए |
इसलिए बढ़ते भ्रष्ट्राचार को रोकने के नाम पर बनाये व लागू किये जाते रहे कानून ,उसकी जाँच के लिए बनाये जाते रहे आयोग व संस्थाए न केवल नाकारा साबित होती रही है ,बल्कि खुद भी भ्रष्ट्राचार में लिप्त होती गयी है | भ्रष्ट्राचार विरोधी कानूनों को लागू करने वाले अधिकारियो ,न्यायाधीशो ,आयौगो ,संस्थाओ के अधिकारी भी भ्रष्ट्रहोते गये है |1969 से ही लोक पाल विधयेक को भ्रष्ट्राचार रोकने का कारगर तरीका मानकर उसे उछाला जाता रहा है |
भविष्य के लिए छोड़ा भी जाता रहा है |अब जबकि बढ़ते विश्वीकृत बाज़ार वाद ने पुरे ऊपरी और मध्यमवर्गीय के हिस्सों को खासा भ्रष्ट बना दिया है ,तब लोक पाल विधेयक को इसकी रामवाण दवा के रूप में और योग गुरु बाबा रामदेव और गाँधी वादी और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और एनी कई हस्तियों को भ्रष्ट्राचार की बिमारी के चिकित्सक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है |पर जन लोकपाल विधियेक की स्मिति के बनते और उसकी बैठक के शुरुहोते ही भ्रष्ट्राचार के उपरोक्त चिकित्सको पर स्मिति के एनी सदस्यों पर भी आरोप लगने लगे हैं |उनकी करोड़ो -की कमाई ,विशाल सम्पत्तियों ,ट्रस्टो ,घोटालो के भ्रष्ट्राचार को लेकर सवाल खड़े किये जाने लगे है | स्सफ बात यह है कि देश -धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों के साथ में राह रहे तथा स्वंय भी धनाढ्य एवं उच्च बनते रहे शासकीय या गैर शासकीय हिस्सों से आप भ्रष्ट्राचार को हटाने -मिटने की उम्मीद नही कर सकते |कयोकि वे वर्तमान दौर में भ्रष्ट्राचार को दिन दूना रात चौगुना बढ़ावा देने वाली बाज़ार वादी ,विशिविकर्ण वादी नीतियों के भी विरोधी नही है| भ्रष्ट्राचार की बुनियाद में विद्यमान निजी धन सम्पत्ति को ,पूंजी को लगातार बढाती रही बाजारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के विरोध की बात तो छोड़ ही दीजिए | कयोकि वे स्वंय भी धन -सम्पत्ति ,पैसा ,पूंजी पद प्रतिष्ठा की ऊँचाइयो पर चढ़ते हुए लोग है |
साथ ही वे बड़े धनाढ्य मालिको तथा राजनितिक एवं गैर राजनितिक उच्च तबको से हजारो सूत्रों से बंधे हुए लोग है |अंत: भ्रष्ट्राचार के बहुप्रचारित अभियानों ,अनशनो ,से उसे हटाने -मिटाने या उसका छोटे -बड़े प्रयास के चल पाने की जनसाधारण की आशा -विश्वास का भी टूटना व गलत साबित हो जाना निश्चित है |धन के इस भ्रष्ट्राचार पर थोडा बहुत भी अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है की उसे सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विश्वीकरण वादी नीतियों ,सुधारो का विरोध हो |विदेशी कम्पनियों और विदेशी पूंजी को तथा देश के चोटि की कम्पनियों के लिए अन्धाधुंध बढती रही छुटो व अधिकारों पर रोक लगाई जाए |उसे निरन्तर काटा व घटाया जाए |साथ ही देश के उच्च हिस्सों की आमदनियो,सुविधाओ पर रोक लगाई जाए |देश के जनप्रतिनिधियों को देश के औसत आदमी जैसा वेतन भत्ते और सुविधाए प्रदान की जाए |संस्कृति पर रोक लगाया जाए |अन्धाधुंध बाज़ार वादी भोगवादी संस्कृति पर रोक लगाया जाए |आवश्यकता अनुसार उपभोग की श्रम करने और उपभोग करने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए |भ्रष्ट्राचार को कम करने या घटाने के लिए ए उपाए भी छोटे है ,तात्कालिक है |पर इसे भी देश के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से या उनसे सहयोग लेते -देते लोग लागू नही कर सकते |उसे देश के निचले हिस्से ही संगठित होकर ,एकजुट होकर लागू कर सकते हैं |
सुनील दत्ता
09415370672
2 टिप्पणियां:
भ्रष्टाचार तो बाजारवादी या पूंजीवादी लोकतंत्र के प्राण हैं। इसे मिटाना है तो जनवादी लोकतंत्र स्थापित करना होगा।
jab tak angrej ke waqt se chale aa rahe kanoon khatm hokar aam janta ke suvidha ke kanoon nahi bante tabtak Bhrashtachar khatam nahi ho sakta.
aap ki wajah se nayee soch janne ko mili Dhanywad.
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