शुक्रवार, 27 मई 2011

दो अधिवक्ताओं की सी.बी.आई द्वारा गिरफ्तारी और फिर कस्टडी रिमांड

उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं के नाम पर एक बहुत बड़ी जमात में कुछ काली भेडें शामिल हो गयी हैंजिनका विधि व्यवसाय से कोई लेना देना नहीं है लेकिन बार कौंसिल बार एसोशिएसन के चुनाव में यह सभी मतदाता होने के कारण इन काली भेड़ों के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं हो पा रही थी किन्तु माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ ने 60-70 अधिवक्ताओं से सम्बंधित 11 मामलों की जांच सी.बी.आई को सौंप दी थीजिसकी प्रगति आख्या सी.बी.आई को 27 मई को माननीय उच्च न्यायालय को देनी थी
सी.बी.आई ने अदालत परिसर में तोड़फोड़, मारपीट सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में परशुराम मिश्रा मिर्जा तौसीफ बेग को गिरफ्तार कर लखनऊ की सी.बी.आई अदालत के समक्ष पेश किया और कस्टडी रिमांड की मांग की जिसको न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और 24 घंटे की कस्टडी रिमांड सी.बी.आई को दे दीलखनऊ, कानपुर में ऐसे पंजीकृत अधिवक्ता हैं जो बार कौंसिल में तो पंजीकृत हैं मगर उनका व्यवसाय विधि व्यवसाय नहीं है वरन वह लोग आये दिन मारपीट, दंगा-फसाद, मकान खाली करना, मकान कब्ज़ा करना, प्रोपर्टी डीलिंग जैसे कार्यों में लगे हुए हैंबहुत सारे पंजीकृत अधिवक्ता केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश की सरकारों में मंत्री हैं और उन्होंने नियमो के अनुसार बार कौंसिल को विधि व्यवसाय बंद करने की सूचना भी नहीं दी हैइस तरह से यह सब लोग विधि व्यवसाय से जुड़े हुए अधिवक्ताओं को अपने काले कारनामो से बदनाम भी करते हैं

सुमन
लो क सं घ र्ष !

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

शर्मनाक मामला।

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हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बार कौंसिलों को ऐसा सिस्टम बनाना पड़ेगा जिस से वास्तव में विधि व्यवसाय नहीं कर रहे अधिवक्ताओं की सदस्यता समाप्त की जा सके।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

हरेक इंसान को याद रखना चाहिए कि वह अपने जुर्म की सज़ा से बच नहीं पाएगा।

ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम आज्ञाकारी होते

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