सोमवार, 20 जून 2011

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह |

"कामायनी" के प्रकाशन को 75 वर्ष होने को हैं

महानतम रुसी कहानीकार ऐंटन चेखव के मुहावरे में कहें तो कामायनी समूचे छायावादी आन्दोलन का- प्रधान हस्ताक्षर -हैं | जिसके प्रकाशन को अब 75 वर्ष होने को जा रहे है |निःसंदेह कामायनी का रचनाकाल दूसरे विश्व -युद्ध से पहले का है |किन्तु किसी भी युद्धकाल में असहाय मानवता की जो भयावह स्थिति होती है ,उसका पूर्ण बोध प्रसाद जी की चेतना में अंतर्भूत था |ऋग्वेद की सुपरिचित कथा मनु -श्रद्धा के बहाने से प्रसाद जी ने सभ्यता के विनाश ( जल -प्रलय ) की भूमि पर नई सृष्टि के उदय का जो काव्य -रूपक रचा है , वह विश्व- साहित्य की अमूल्य निधि है | कामायनी के उद्देश्य को उसी के रचनाकार के शब्दों में देखिये ----
"वह कामायनी जगत की
मंगल -कामना अकेली |"
तो आइये ,कामायनी के प्रकाशन के इस अमृत -महोत्सव में हम आप को सादर आमंत्रित करते है | इस लिए कि हिंदी आलोचना में अबतक के मूल्याकनो के प्रकाश में हम सभी उन अनछुए रचना- तत्वों और मूल्याकन -मानदंडो को सामने ला सकें ,जो अब तक साहित्यिक परिदृश्य से बाहर है |
कामायनी की संरचना में प्रसाद जी ने उदभावना का वंही सहारा लिया है ,जंहा वह सहज रूप में आवश्यक है | भारतीय मिथकों ,दार्शनिक -पद्धतियों और इतिहास के संरचना -तत्वों का कवि ने अदभुत संयोजन किया है |प्रसाद जी वैदिक कर्मकांड के मानवीय पक्षों का समर्थन करते है ,उसके पाषंड का नही | यंहा वह बौद्ध- दर्शन के करुणावाद से व्यापक रूप में प्रभावित हैं |इस प्रभाव की अनुगूजे उनकी अनेक कविताओं और नाटकों में भी है |
कामायनी की संरचना में पशुबलि की क्रूरता को लाना कवि की व्यापक उदारता का परिचायक है | प्राचीन भारत के दो महानतम समाज सुधारको तीर्थंकर महावीर और तथागत बुद्ध के गौरवपूर्ण अवदानो से प्रसाद जी अनन्य रूप में प्रभावित रहे | सत्ता के मद में चूर शासको और निठल्ले पुरोहितो का गठबधन भी कवि के ध्यान में था | साम्राज्यवाद की विश्व -व्यापी ,दबंगई का तत्कालीन स्वरूप भी प्रसाद की चेतना में था | मनु के चरित्र में तानाशाही की इस निरंकुश प्रवृत्ति को ,शासक की प्रवृत्ति के रूप में देखा जाना चाहिए |


सुनील दत्ता - डॉ राम दरश सिंह
पत्रकार कवि- आलोचक

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

सच में कामायनी खुद में एक सम्पूर्ण रचना है ..कवी ने जिस तरह से जलनिमग्न भूमि और उस विभीषिका के बाद प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया है ...वह इसको सबसे दर्जे की रचना में रखता है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कामायनी के रचयिता को शत्-शत- नमन!

premlata pandey ने कहा…

"समरस थे जड़ या चेतन,
सुंदर साकार बना था,
चेतना एक विलसती,
आनंद अखंड घना था॥"

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

१९६३-६४ में शाहजहांपुर जिला वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के रूप में मुझे 'कामायनी'मिली थी -वह आज भी मेरा पसंदीदा काव्य-ग्रन्थ है.इसके प्रकाशन की हीरक जयंती पर 'जय शंकर प्रसाद'जी का स्मरण करके आपने पुनीत कार्य किया है.

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