चर्चित लेखिका अरुंधती राय ने अपने ताजा लेख में बताया है कि वे अन्ना बनना नहीं चाहेंगी, क्योंकि अन्ना की मांगे गांधीवादी नहीं हैं। जिस जनलोकपाल के लिये अन्ना अनशन पर बैठे हैं उसकी एक मांग यह है कि एन.जी.ओ को जांच के दायरे से मुक्त रखा जाए। प्रधानमंत्री को जांच के दायरे में रखा जाए और न्यायपालिका का उत्तरदायित्व निर्धारित किये जाने की मांग वामपंथी पार्टियाँ कर रही हैं किन्तु एन जी ओ को जांच के दायरे से बाहर रखे जाने की मांग का क्या औचित्य है? इसके लिये अनशन क्यों ?
इसका खुलासा करते हुए अरुंधती राय बताती हैं कि अन्ना ब्रांड को स्पोंसर करने वाली सब्सिडियरी कंपनियों (एन.जी.ओ) को कोका कोला, लेहमन ब्रदर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ मुक्त हस्त से चंदा देती हैं। अन्ना टीम के संचालक अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसौदिया की संस्था 'कबीर' ने पिछले तीन सालों में फोर्ड फ़ाउंडेशन से चार लाख डालर अर्थात दो करोड़ रुपयों से ज्यादा दान प्राप्त किया है। इसी तरह अरुंधती ने अपने आलेख में बताया है कि इंडिया अगेंस्ट करप्सन को भारी रकम का दान देने वालों की सूची में भारत की अलुमिनियुम कम्पनियाँ, स्पेशल इकोनोमिक जोंस की दैत्याकार कंपनियों के अलावा रियल इस्टेट बिजनेस की कम्पनियाँ हैं जिन्होंने देश में विराट वित्तीय साम्राज्य खड़ा कर लिया है। इनमें से कुछ के खिलाफ जांच भी चल रही है। फिर अन्ना आन्दोलन में इनके उत्साह का क्या कारण है ?
कारण स्पष्ट है। इन्होने सरकारी भ्रष्टाचार का बड़ा हो हल्ला मचाया है और उस हो हल्ला में कार्पोरेट भ्रष्टाचार का मुद्दा दब गया है। यही इनका निहित स्वार्थी है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा, यातायात, संचार आदि जनोपयोगी सेवाओं से सरकार अपना हाथ खींच रही है। इन सेवाओं को एन.जी.ओ और कार्पोरेट के हवाले किया जा रहा है। अन्ना सार्वजानिक सेवाओं के निजीकरण और उसके दुष्परिणामो के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं। अरुंधती बताती हैं कि जाता लोकपाल के दायरे में एन.जी.ओ/कार्पोरेट द्वारा दिए जाने वाले घूस को 'लोबियिंग फीस' का नया नाम देकर विधि सम्मत बनाया जा सकेगा।
-सत्य नारायण ठाकुर
क्रमश:
इसका खुलासा करते हुए अरुंधती राय बताती हैं कि अन्ना ब्रांड को स्पोंसर करने वाली सब्सिडियरी कंपनियों (एन.जी.ओ) को कोका कोला, लेहमन ब्रदर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ मुक्त हस्त से चंदा देती हैं। अन्ना टीम के संचालक अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसौदिया की संस्था 'कबीर' ने पिछले तीन सालों में फोर्ड फ़ाउंडेशन से चार लाख डालर अर्थात दो करोड़ रुपयों से ज्यादा दान प्राप्त किया है। इसी तरह अरुंधती ने अपने आलेख में बताया है कि इंडिया अगेंस्ट करप्सन को भारी रकम का दान देने वालों की सूची में भारत की अलुमिनियुम कम्पनियाँ, स्पेशल इकोनोमिक जोंस की दैत्याकार कंपनियों के अलावा रियल इस्टेट बिजनेस की कम्पनियाँ हैं जिन्होंने देश में विराट वित्तीय साम्राज्य खड़ा कर लिया है। इनमें से कुछ के खिलाफ जांच भी चल रही है। फिर अन्ना आन्दोलन में इनके उत्साह का क्या कारण है ?
कारण स्पष्ट है। इन्होने सरकारी भ्रष्टाचार का बड़ा हो हल्ला मचाया है और उस हो हल्ला में कार्पोरेट भ्रष्टाचार का मुद्दा दब गया है। यही इनका निहित स्वार्थी है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा, यातायात, संचार आदि जनोपयोगी सेवाओं से सरकार अपना हाथ खींच रही है। इन सेवाओं को एन.जी.ओ और कार्पोरेट के हवाले किया जा रहा है। अन्ना सार्वजानिक सेवाओं के निजीकरण और उसके दुष्परिणामो के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं। अरुंधती बताती हैं कि जाता लोकपाल के दायरे में एन.जी.ओ/कार्पोरेट द्वारा दिए जाने वाले घूस को 'लोबियिंग फीस' का नया नाम देकर विधि सम्मत बनाया जा सकेगा।
-सत्य नारायण ठाकुर
क्रमश:
3 टिप्पणियां:
He RAM !!
वाह ! अन्ना गाँधीवादी नहीं है चलो नक्सलियों का समर्थन करने वाली इस अरुंधती को फिर गाँधीवादी मान लेते है|
अन्ना टीम के एनजीओ को कहाँ से पैसा मिलता है वो तो अरुंधती ने खुलासा कर दिया अब जरा उससे कहिये कि उसे देश हितों के खिलाफ बयान बाजी करने के लिए कौन प्रायोजित करता है ?? वह भी बता दे |
जनोपयोगी जानकारी राष्ट्र-हित मे है,राष्ट्रद्रोही इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं।
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