नौकरी के समय जन्मतिथि के आधार पर सारे कागजात तैयार होते हैं लेकिन जब रिटायर्मेंट का समय आता है तब नौकरशाह अपनी उम्र को लेकर स्वयं विवाद खड़ा करते हैं और उस समय उनके तर्क यह होते हैं कि उनके संरक्षक या पिता ने उम्र ज्यादा लिखा दी है इसलिए उनकी जन्मतिथि सही कर दी जाए। इसका फायदा देश में कई नौकरशाह पहले भी प्राप्त कर चुके हैं। सवाल यह है कि खुद की जन्मतिथि आप सही नहीं लिख सके तो क्या अपने पूरे सेवाकाल में सिर्फ वेतन ही लेते रहे और कोई कार्य करने की क्षमता नहीं थी। हद तो तब हो गयी जब थल सेना अध्यक्ष श्री वी.के सिंह एक वर्ष का सेवाकाल बढ़ने के सम्बन्ध में स्वयं विवाद खड़ा कर दिया और माननीय उच्चतम न्यायालय तक गुहार लगायी। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने जन्मतिथि सुधरने का आदेश पारित करने के बजाये उन्ही से सवाल पूछ लिये और जिसका वह समुचित उत्तर नहीं दे सके। ऐसे अधिकारीयों की इन हरकतों से समाज व सेना को क्या सन्देश जायेगा इस बात की भी कल्पना सेनाध्यक्ष ने नहीं की होगी। वरिष्ठ पदों पर रहने वाले अधिकारीयों को अपनी जीवनशैली से, अपने आचरण से समाज के सामने आदर्श पेश करना चाहिए जिससे उस पद आने वाले लोग उनका उदहारण पेश कर सके लेकिन दुर्भाग्य है, चाहे वह नौकरशाह हों या राजनेता या न्यायविद पदलोलुपता के आगे और कुछ क्षणिक सुखों के लिये आदर्श और नैतिकता से उन्होंने दुश्मनी ले रखी है।
2 टिप्पणियां:
अब बात तो विवाद लायक है ही। मेरे पिता के साथ यह घटना घटी। लेकिन वे 2 साल पहले सेवानिवृत्त हुए हैं... लेकिन हम नहीं समझते कि अगर सबूत या दस्तावेज हैं तो यह हक माँगना गलत है! क्योंकि आपके पिता के गलती की सजा आप क्यों भुगते ?
Suman ji shayad aapko jan VP singh ji ki poori kahani nahi maloom apni sarvice me na jaane kitni bar unhone jantithi ko lekar guhar lagaai unke pas saboot aur dastavejon ki kami nahi hai usi ke dam par vo court gaye the aapko nahi maaloon bhrasht sarkar ki bahut badi saajish ka hissa bane hain vo janta ke saamne sarkar ka asli chehra samne laane ke liye hi unhone yeh kadam uthaya.
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