भारत माता धरती माता
हम यह नहीं कहते कि सोना अपने घर, गांव, कस्बे, शहर तक महदूद रहे। लोहिया ने कहा था देश माता के साथ हर इंसान की एक धरती माता होती है। लोहिया ने स्टालिन की बेटी स्वेतलाना के भारत में बसने के अनुरोध का समर्थन किया था। यह कितनी सुंदर बात होगी कि सोना भारत माता के साथ धरती माता की बेटी बने। दुनिया के किसी भी कोने में जाए। घूमे, काम करे, सीखे, सिखाए, मित्र बनाए, मन करे तो वहीं शादी करे, भले ही बस जाए। ऐसा होने पर वह भारत माता के ज्यादा फेरे में न पड़े तो ही अच्छा है। बाहर अगर उसका निधन होता है तो अंतिम क्रिया वहीं संपन्न हो।अभी तक देश-विदेश के इक्का-दुक्का लोगों ने आदिवासी क्षेत्रों में रह कर वहां की लड़कियों से शादी की है। आदिवासी लड़कियां बाहर जा कर ऐसा करें तो बराबर की बात बनेगी। हम किसानों और मजदूरों की लड़कियों के लिए भी ऐसा सपना देखते हैं कि वे स्वतंत्रतापूर्वक बड़ी हों ओर और देश-दुनिया में अपनी जगह बनाएं। लेकिन समस्या यही है कि जब तक वे भारत माता की गोद से बहिष्कृत हैं, धरती माता की गोद उन्हें उपलब्ध नहीं हो सकती।
हमने ऊपर देखा कि भारत माता किस कदर घिर गई है। यह घेरा टूटे, इसके लिए हिंदुस्तान में एक बड़ी और बहुआयामी क्रांति की सख्त और तत्काल जरूरत है। उस क्रांति के कुछ सूत्र लोहिया ने दिए थे। लेकिन शासक वर्ग और उसका क्रीतदास बौद्धिक वर्ग प्रतिक्रांति पर डटा रहा। सत्ता के साथ मिल कर लोहिया के राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक-दार्शनिक-सांस्कृतिक चिंतन को स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक बहिष्कृत करके अपना ‘वाद’ बचा और चला लेने की खुशी पालने वाले लोगों ने हिंदुस्तान की क्रांति के साथ गहरी दगाबाजी की है। देश में उथल-पुथल है, उसका फायदा लेना चाहिए, कह कर टीम अन्ना और उसके आंदोलन में जुटे लोग भी जाने-अनजाने वही कर रहे हैं।
-प्रेम सिंह
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