मंगलवार, 29 मई 2012
महिला सशक्तिकरण वर्तमान संदर्भ में
सशक्तिकरण का अर्थ किसी कार्य को करने या रोकने की क्षमता से है, जिसमें महिलाओं को जागरूक करके उन्हें आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौतिक, मानसिक एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी साधनों को उपलब्ध कराया जाए, ताकि उनके लिए सामाजिक न्याय और महिला पुरूष समानता का लक्ष्य हासिल हो सके। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिला को आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास प्रदान करना। यदि कोई महिला अपने और आपने अधिकारों के बारे में सजग है, यदि उसका आत्मसम्मान बढ़ा हुआ है तो वह सशक्त है, समर्थ है।
स्त्री और पुरूष एक ही इकाई के दो हिस्से हैं। तथापि इनमें असीम असमानता बनी हुई है। वैदिक युग से लेकर आज तक भारतीय समाज की धुरी पुरूष ही रहा है। मानव विकास के सभी मुख्य मानदण्डों ज्ञान, कला, संस्कृति, साहित्य, राजनीति, उद्योग, कृषि, व्यापार, युद्ध आदि का संचालन और उसका मूल्यांकन उसी के अनुपात होता आया है। किन्तु पिछली सदी से मानव चेतना में बाहरी एवं भीतरी स्तर पर व तीव्र आंदोलन हुए हैं।
पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण को व्यापक नीतिगत समर्थन मिला है। किन्तु प्रान अभी भी बना हुआ है कि हम इन उद्देशों और विभिन्न सामाजिक समूहों और क्षेत्रों में महिलाओं की आवश्यकताओं को कहां तक प्राप्त कर सके हैं। उपलब्धियों और विकास एवं उत्थान के लम्बे सफर के बावजूद अभी भी लाखोंकरोड़ों महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। इनमें ग्रामीण महिलाओं की संख्या ज्यादा है, चूंकि उनमें साक्षरता, जागरूकता की कमी है। केन्द्र सरकार ने ऐसी महिलाओं को ही लक्षित कर कल्याणकारी योजनाएं बनायी हैं। जहां गर्भवती महिलाओं के लिए गोदभराई योजना॔, पूरक पोषक आहार योजना॔, जननी सुरक्षा योजना॔ जैसी कई योजनाएं हैं, वहीं लाडली और लक्ष्मी योजना॔ लड़कियों को इक्षित और आत्मनिर्भर जीवन देने की सार्थक कोशिश है। गांव की प्रतिभाशाली बेटी और उच्च शिक्षा के लिए गाँव की बेटी योजना॔ और गरीब बालिकाओं के लिए साइकिल प्रदाय योजना॔ अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल हैं। इसीप्रकार राष्ट्रीय बाल नीति के तहत भी बालिकाओं को सशक्त करने हेतु लगभग 4600 परियोजनाएं दो भर में चल रहीं हैं।
निश्चित रूप से आज यह कहा जा सकता है कि महिला को सशक्त करने के प्रयासों को और तेज करना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज नारी की जागरूकता शिक्षा, कार्योजन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बढ़ रही है पर फिर भी समाज में उन्हें सशक्त बनाने के लिए स्वस्थ्य मानसिकता की जरूरत है तथा हमारी सरकार को भी यह देखना होगा कि उसके द्वारा चलाये गये विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, अभियानों का लाभ वास्तव में महिलाएं उठा पा रही हैं या नहीं। इसके लिए जरूरत है चुस्त, दुरूस्त और ईमानदार प्रशासन की।
लेकिन वास्तविकता यह है कि सशक्तिकरण की सभी योजनायें कागज पर ही चल रही हैं और उनका जोर शोर से ढिंढोरा पीटने के लिये इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया का सहारा लिया जा रहा है वस्तुस्तिथि यह भी है कि सम्पूर्ण बजट भी इन योजनाओं का भी घोटाले में जा रहा है।
संजय कुमार,
शोध छात्र, समाजास्त्र विभाग, बी0एच0यू0, वाराणसी
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