रहमत अली पंजाब के लुधियाना जिले के हलवासिया ग्राम के रहने वाले थे | सामान्य शिक्षा ग्रहण करके वे फ़ौज में भर्ती हो गये | अपने उत्साह और समझदारी के कारण शीघ्र ही फ़ौज में हवलदार हो गये | वे ' मलय स्टेट गाइड ' में तैनात थे | मलय - स्टेट गाइड की टुकड़ी ( सिंगापुर ) में तैनात थी |
प्रथम विश्व युद्ध का समय था | अमेरिका स्थित गदर पार्टी में कार्यरत प्रवासी भारतीय क्रांतिकारी स्वतंत्रता आन्दोलन में जुटे हुए थे | अपने प्रचार के लिए यह पार्टी क्रान्तिकारियो को हांगकांग , शघाई , बर्मा, रंगून, स्याम, आदि देशो में भेज रही थी | बर्मा भी अंग्रेजो के अधीन था | वहा भी भारतीय सैनिको वाली अंग्रेजी सैनिको के बल पर ही राज कर रहे थे |
गदर पार्टी के प्रचारको ने रहमत अली से सम्पर्क स्थापित किया | उन्हें अंग्रेजो से मुक्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों की सूचना दी और उन इस कार्य में सहायता मांगी | उनसे कहा ' अंग्रेज इस समय अपनी ही लड़ाई में फंसे हुए है | यही वक्त है , जब हम अपनी स्वतंत्रता पा सकते है | तुम इसके लिए अपने साथियो को तैयार करो | ' रहमत अली की देश प्रेम की भावना जाग उठी | उन्होंने वचन दिया की वे हर कुर्बानी देने के लिए तैयार है | थोड़े दिनों में उन्होंने अन्य साथियो को भी तैयार कर लिया |
गदर पार्टी के सारे कार्य सुनियोजित ढंग से हो रहे थे | फरवरी 1915 का महीना था | फरवरी की 21 तारीख को वर्मा , सिंगापुर सहित सारे भारत में क्रान्ति निश्चित की गयी | क्रान्ति की सभी तैयारिया करीब -- करीब पूरी हो गयी थी |सभी कुछ अनुकूल था | अनुकूलता में प्रतिकूलता थी तो गद्दारों की , जिससे भारत का बनता भाग्य बार - बार बिगड़ जाता था | क्रान्तिकारियो के बलिदान व्यर्थ हो जाते थे | यदि देश पर कुर्बान होने वालो की बड़ी तादाद थी , तो देशद्रोहियों ,गद्दारों और स्वार्थियो की भी कमी नही रही | पंजाब का सैनिक कृपाल सिंह क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हो गया था | असल में वह पुलिस का जासूस था | पैसो के लिए उसने देशद्रोह स्वीकार किया था | उसने मालूम कर लिया की 21 फरवरी , 1915 को क्रांतिकारी सैन्य युद्ध का निर्णय लिया गया है | देश की सेनाये बगावत कर देंगी | अंग्रेजो के आदेश को नही मानेगी और विद्रोहियों का साथ देंगी | उसने यह सूचना पुलिस को दे दी | परिणाम स्वरूप समस्त भारत में धर -- पकड तलाशिया और गिरफ्तारिया हुई | पार्टी ने सैन्य विद्रोह की तारीख 21 के स्थान पर 19 कर दी , लेकिन इस बदली हुई तारीख की सूचना इतनी जल्दी संभव नही थी | अतत: अंग्रेजी राज के विरुद्ध सैन्य संघर्ष विफल हुआ | अनेक क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए , कुछ भूमिगत हुए तो कुछ काबुल आदि की तरफ भाग निकले |
रहमत अली के पास बदली हुई तारीख की कोई सूचना नही थी | वे तो 21 तारीख की राह देख रहे थे | 21 फरवरी 1915 के दिन मलय स्थित सेना की उस टुकड़ी ने बगावत कर दी , जिसके नायक रहमत अली हवलदार थे | इसी समय पांचवी नेटिव साईट इन्फैट्री ने भी बगावत कर दी | सेना के इन दोनों विभागों द्वारा विद्रोह कर देने से वातावरण गंभीर हो गया | दूसरी टुकड़ी से बागियों पर गोली चलाने को कहा गया , उन्होंने साफ़ मना कर दिया | इस अनुशासन हीनता का परिणाम कठोर दण्ड है , यह उन्हें मालूम था |
रहमत अली और उनकी टुकड़ी ने न तो अधिकारियों के आदेश का पालन किया और न ही हथियार डाले | परिणाम स्वरूप इन पर आज्ञा उल्लघन के साथ दूसरे सैनिको को भडकाने का अपराध घोषित हुआ | पांच सैनिको - रहमत अली , अब्दुल गनी , सूबेदार ददु ख़ा, चिश्ती ख़ा , और हाकिम अली का कोर्ट मार्शल किया गया | 23 मार्च , 1915 को सिंगापुर छावनी के सभी फौजियों को मार्च करते हुए परेड मैदान में पहुँचाया गया | उद्देश्य था - बागी सैनिको के मृत्यु दण्ड को दिखाकर सैनिको में दहशत फैलाना |
'' मलय स्टेट गाइड्स '' के पांचो अभियुक्तों को एक दीवार के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया गया | उन लोगो के हाथ पीठ की तरफ बंधे हुए थे और पांचो को एक साथ एक बल्ली के सहारे ही बाँध दिया गया | उनकी पीठ के पीछे निशानेबाजो को खड़ा कर दिया गया | वे पांचो चिल्लाकर बोले ''हम देशभक्त है" | गोलियाँ छातियो पर झेलना चाहते है पीठ पर नही '' फ़ौज के अधिकारियों ने उनकी बात मान ली और उनके मुँह निशानेबाजो की ओर कर दिए | निशानेबाजो की गोलियों से पांचो सैनिक शहीद हुए | रहमत अली उनके अगुवा थे | बहादुर रहमत अली अपने वतन से बहुत दूर सिंगापुर में 23 मार्च , 1915 के दिन अपने साथियो के साथ वतन के लिए कुर्बान होकर गदर पार्टी के क्रांतकारी संघर्ष के उद्देश्य और उसके क्रियान्वयन का बड़ा सबूत प्रस्तुत कर दिया | ऐसे थे हमारे देश के क्रांतिकारी शहीद।
-सुनील दत्ता
पत्रकार
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