बुधवार, 25 जुलाई 2012
उत्तर प्रदेश ................बजट में बुनियादी विकास का प्रश्न ?
1 जून को प्रदेश के नव निर्वाचित सरकार का पहला बजट प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री अखिलेश यादव ने ने प्रस्तुत किया | कुल बजट लगभग 2 लाख करोड़ रूपये का प्रस्तुत किया गया है | विभिन्न क्षेत्रो के लिए ऊँचे से नीचे के क्रमानुसार बजटीय धन आवंटन का मोटी -- मोटा लेखा -- जोखा इस प्रकार है |
(1 )------ शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार की योजनाओं के लिए 33 हजार करोड़ 263 करोड़ रूपये (2 ) सडक , सेतु , सिंचाई एवं ऊर्जा के विकास व के लिए 23 हजार 512 करोड़ रूपये (3 )-- समाज कल्याण की योजनाओं के लिए 14 .951 करोड़ रूपये (4 )----- चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 7 हजार 34 सौ करोड़ रूपये (5 )------- कृषि एकं सम्बद्ध सेवाओं के लिए (5 ) हजार 432 करोड़ रूपये (6 )--- दसवी एवं बारहवी कक्षा के छात्रो के लिए टैबलेट और लैपटाप के लिए 23 हजार 721 करोड़ रूपये (7 )--बेरोजगारी भत्ते के लिए 1 .100 करोड़ रूपये (8 )- किसानो की ऋण राहत योजना के लिए 500 करोड़ (9 )--- छात्राओं के कन्या विद्या धन योजना के लिए 446 .35 करोड़ रूपये ( 10 ) गन्ना किसानो के अवशेष बकाये के भुगतान के लिए 400 करोड़ रूपये (11 )--- बुनकरों के बकाया बिजली बिल माफ़ी के लिए 128 करोड़ रूपये | सभी जानता है यह प्रदेश कृषि -- प्रदेश के रूप में जाना जाता है | फिर यह बात भी सर्वविदित है की पश्चिमी उत्तर प्रदेश और किसी हद तक मध्य उत्तर प्रदेश को छोडकर बाकी का प्रदेश -- बुन्देलखण्ड से लेकर समूचा पूर्वी उत्तर प्रदेश पिछड़ा हुआ है | खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तो कई फसला उपज देने में सक्षम कृषि योग्य भूमि की मौजूदगी के वावजूद पिछड़ा हुआ है | पूरे प्रदेश का में औद्योगिक विकास की कमी के साथ कृषि प्रदेश का एक पिछड़े प्रदेश की ही पहचान देता आ रहा है | इसके वावजूद प्रदेश की सरकारे कृषि विकास को कोई प्राथमिकता नही प्रदान कर रही है | उदाहरण --- इस बजट में भी देख ले तो कृषि क्षेत्र को बजटीय आवंटन के क्रम में पांचवे पायदान पर अर्थात विकास के लिए बजटीय धन के सबसे निचले पायदान पर रखा गया है | फिर उसके नीचे तो बजटीय धन का आवंटन गैर विकास योजनाओं के लिए ही है | चाहे वह टैबलेट या लैपटाप देने का मामला हो या बेरोजगारी भत्ता या कन्या धन योजना आदि का मामला हो या फिर किसान कर्ज माफ़ी या बुनकरों की बिजली बिल के बकाये का मामला हो | ध्यान देने लायक बात यह है की कृषि क्षेत्र के लिए इस धन का आवंटन में कृषि से सम्बन्धित क्षेत्र भी है | इसमें बागवानी , मत्स्य पालन , मुर्गी पालन , सूअर पालन जैसे क्षेत्रो के साथ -- साथ अब आधुनिक तकनीकि वाला खाद्द एवं प्रसंस्करण क्षेत्र भी शामिल कर लिया गया है | इन क्षेत्रो को शामिल किए जाने के बाद शुद्ध रूप से कृषि क्षेत्र के लिए आवंटित धन निश्चित तौर पर और कम हो जाएगा | उल्लेख्य्नीय रूप से कम हो जाएगा | सरकार ने बजटीय घोषणा में सिंचाई को बुनियादी ढाचागत क्षेत्र में शामिल किया हुआ है | यह बात एकदम उचित भी है क्योंकि सिंचाई अपने आप में खेती के लिए ढाचागत विकास का मामला है | यहाँ भी एक बड़ी गड़बड़ी है | ढाचागत विकास के अन्य क्षेत्रो अर्थात सडक सेतु ऊर्जा के लिए तो सरकार स्वंय या फिर पब्लिक ( सरकार ) ( प्राइवेट ) पूंजीपतियों के पाट्नरशिप ( पी. पी .पी . ) के माध्यम से विकास करेगी लेकिन सिचाई के लिए वह बजटीय घोषणा अनुसार एक लाख चालीस हजार की नि: शुल्क बोरिंग का खर्च उठाएगी | साफ़ बात यह है की नि:शुल्क बोरिंग के अलावा सिचाई के लिए बाकी का सारा खर्च किसानो को ही करना पडेगा | इसके अलावा लोहिया राजकीय नलकूप योजना के तहत 748 नये ट्यूबेल लगाये जायेंगे | जाहिर सी बात है एक नलकूप एक गाँव के भी समूचे क्षेत्र की सिंचाई नही कर पायेगा | अर्थात अगर यह राजकीय ट्यूबेल लग भी जाए तो वह ज्यादा से ज्यादा प्रदेश के 748 गाँवों तक ही सीमित रहेगा जाता तक पुराने राजकीय टयूबेलो की बात है तो उनकी स्थिति पहले से बदहाल है | नहरों के नाम पर नई नहरों के विकास की कोई बात बजट में नही कही गयी है | नहरों के पानी को टेल तक पहुचाने और नहरों की सफाई की बात जरुर कही गयी है | पर इससे सिंचाई का ढाचागत विकास होने वाला नही है | खाद बीज के विक्रय और उत्पादों की खरीद के लिए ढाचागत विकास की कोई बात नही कही गयी है | अत: कृषि का सारा या प्रमुख बोझ बढ़ते लागत मूल्य से त्रस्त्र किसानो को ही ढोना है | जिसे वह पहले से ढोते चले आ रहे है | इसी के चलते वे खेती से अदायगी न कर सकने वाले कृषि ऋणों में फंसते भी रहे है ||
प्रदेश सरकार बजट में किसानो के ऋण माफ़ी के लिए 500 करोड़ रुपयेका धन आवंटित किया है | 2007 में केंद्र सरकार द्वारा किसानो की कर्जमाफी की घोषणा के बाद अब प्रदेश सरकार की यह कर्जमाफी भी उन्हें कृषि ऋण में फसने से रोक नही पाएगी | कयोंकि मामला ऋण माफ़ी का नही बल्कि श्रम व अन्य संसाधनों की लागत के हिसाब से कृषि उत्पादन को बढावा दिये जाने और फिर उसका उचित मूल्य भाव मिलने का है | उसके लिए तो इस बजट में न तो किसी समाधान की रूप रेखा है और न ही डंकल प्रस्ताव को लागू करती आ रही इस ( व अन्य ) प्रांत की पूर्वव्रती सरकारों के बजटो व घोषणाओं में उसके समाधान की कोई रूप रेखा है | बुनकरों के लिए जिस प्रमुख छुट की गयी है | वह है बकाया बिजली बिल की माफ़ी | इसके लिए सरकार ने 128 करोड़ की राशि आवंटित की है | कर्ज और माफ़ी की तरह ही असल मामला बिजली बिल बकाया और उसकी माफ़ी का नही है , बल्कि यह मामला भी बुनकरों के लिए सुता , बिजली आदि के बढ़ते लागत बड़ी मिलो के कपड़ो तथा विदेशो के आयातित कपड़ो से उनके कटते - - घटते बाजार का है | उसे दुरुस्त करने की घोषणा न तो इस सरकार ने की और न ही किसी पूर्व की सरकारों ने | उल्टे बड़े उद्यमियों और विदेशी आयातकों को और ज्यादा छूट जरुर मिलती रही है | पुरे बजट में उद्योगों के विकास और उसके लिए धन के आवंटन का मामला गायब है | जाहिर सी बात है की प्रदेश की इस सरकार और पूर्व की सरकारों ने भी उद्योगों के विकास को उद्योगपतियों के लिए छोड़ दिया है | इतना ही नही , बल्कि स्थिति यह भी है की सरकारों द्वारा संचालित उद्योग खस्ता हाल होते जा रहे है | प्रदेश के औद्योगिक नगर कानपुर से लेकर पूर्वांचल के विभिन्न शहरों की राजकीय औद्योगिक इकाइयों का हाल यही है | गोरखपुर खाद का कारखाना , आजमगढ़ जौनपुर की कई चीनी मिले मऊ, अकबरपुर की कताई मिले आदि बन्द पड़ी है | उसे सरकारे निजी मालिको को बेच रही है और औने-- पौने में बेच रही है |विकास की ऐसी स्थिति में ज्यादातर बेरोजगारों को रोजगार मिलने की उम्मीद तो कत्तई नही है | हां अगर एक हिस्से को बेरोजगारी भत्ता फिलहाल मिल भी जाए तो वह भी लम्बे दिनों तक मिलने वाला नही है | रह गयी बात टैबलेट व लैपटाप की तो उससे 10 वी 12 वी के बच्चो की मेधा के बढने की न के बराबर उम्मीद है पर टैबलेट और लैपटाप कम्पनियों की बिक्री बाजार व मुनाफे बढ़ने की सौ फीसदी गारंटी है |
-सुनील दत्ता
पत्रकार
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