मंगलवार, 4 सितंबर 2012

भारत में बांग्लादेशी मिथक व यथार्थ








असम में बोडो व मुसलमानों के बीच हिंसा, जिसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों का हाथ बताया जा रहा है, के कई दूरगामी परिणाम होंगें। इस हिंसा में लगभग अस्सी जानें गईं हैं। हिंसा अब भी जारी है और विस्थापितों की संख्या चार लाख से भी अधिक हो गई है। विस्थापित हुए लोगों में से कितने मुसलमान और कितने बोडो हैं, इस संबंध में कोई स्पष्ट आंकडे उपलब्ध नहीं हैं परंतु क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक कार्यकताओं का अनुमान है कि इनमें से अस्सी प्रतिशत मुसलमान व 20 प्रतिशत बोडो हैं. हिंसाग्रस्त क्षेत्र से जो थोड़ी बहुत जानकारी छन कर आ रही है, उससे ऐसा लगता है कि हिंसा पीडि़तों के लिए स्थापित किये गये शरणार्थी शिविरों में स्थितियां बहुत खराब हैं, विशेषकर मुस्लिम शरणार्थी अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए विवश हैं। इस बीच, इस घटनाक्रम के संबंध में कई अलग-अलग किस्म की रायें सामने आ रहीं हैं। भाजपा नेता जोर देकर कह रहे हैं कि हिंसा के पीछे बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। उनकी संख्या एक से लेकर दो करोड़ या उससे भी ज्यादा बताई जा रही है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि ये आंकडे कल्पना की उड़ान भर हैं. ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अतिक्रमण किया है, स्थानीय निवासियों की जमीनें छीन लीं हैं और इससे उपजे असंतोष के कारण ही, समाज में उनके प्रति घृणा का वातावरण बन गया है। यही नफरत हिंसा का मूल कारण है. दरअसल, असम का घटनाक्रम एक ऐसा उदाहरण है जहाँ हिंसा से भी अधिक भयावह है, हिंसा-जनित विस्थापन.
चुनाव आयुक्त एच.एस.ब्रहमा, जो कि स्वयं बोडो हैं, ने तो यहां तक कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या में भारी वृद्धि के कारण वे आक्रामक हो गये हैं और स्थानीय रहवासियों पर हिंसक आक्रमण कर रहे हैं। कुछ अन्य लोगों का कहना है कि बोडो स्वायत्तशासी क्षेत्रीय परिषद के गठन के बावजूद, अतिवादी बोडो समूहों ने अपने हथियार समर्पित नही किये हैं, जो कि परिषद के गठन की मांग को मंजूर करने की  आवश्यक शर्त थी। भाजपा नेतृत्व का एक हिस्सा इस विवाद को राष्ट्रीयता से जोड रहा है। इसका कहना है कि असम में चल रहा संघर्ष, भारतीयों और बांग्लादेशियों के बीच है। यह भी कहा जा रहा है कि इन बांग्लादेशियों से मताधिकार छीन लिया जाना चाहिए और उन्हें चुनावों में मत देने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.  वैसे भी, उनमें से अधिकाशं लोगों को “डी“ अर्थात डाउटफुल या संदेहास्पद मतदाता घोषित कर दिया गया है। भाजपा और उसके सहयोगियों का आरोप है कि कांग्रेस, घुसपैठियों को प्रोत्साहन दे रही है ताकि वह उनका इस्तेमाल वोट बैंक बतौर कर सके। कुछ बोडो संगठनों ने यह धमकी दी है कि शरणार्थी शिविरों में बड़ी संख्या में रह रहे मुसलमानों को उनके गांवों में लौटने नहीं दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रपट में कहा है कि असम में बांग्लादेशियों के बड़े पैमाने पर घुसपैठ की खबरों में सच्चाई नहीं है और असम की हिंसा, बोडो जातीय समूहों व असम में लम्बे समय से निवासरत मुसलमानों के बीच का विवाद है.
 इसके पहले कि हम इस मुद्दे पर चर्चा करें कि असम में रह रहे मुसलमान घुसपैठिये हैं, प्रवासी हैं या वहां लंबे समय से रह रहे बंगाली हैं, हम असम के घटनाक्रम के बाद हुई कुछ दुखद घटनाओं पर प्रकाश डालना चाहते हैं।
असम हिंसा के बाद, घृणा से लबरेज कई ई-मेलों व वेबसाइटो के माध्यम से, देश के अन्य हिस्सों में निवासरत उत्तर-पूर्व के रहवासियों को यह चेतावनी दी गई कि असम का बदला उनसे लिया जावेगा. नतीजे में देश के कई हिस्सों और विशेषकर बैंगलोर से बड़े पैमाने पर उत्तर-पूर्व के निवासी अपने गृह-प्रदेशों के लिए रवाना हो गये. जिन वेबसाइटों ने इन कुत्सित अफवाहें को हवा दी, उन्हें भारत सरकार द्वारा ब्लाक कर दिया गया। यह आरोप भी सामने आया कि इनसे बहुत सी वेबसाइटें पाकिस्तान से संचालित कीं जा रही थीं परंतु यह भी सही है कि कम से कम बीस प्रतिशत वेबसाइटें हिन्दुत्व समूहों द्वारा संचालित थीं. विहिप व अन्य हिन्दुत्व समूहों ने पर्चों के माध्यमों से यह दुष्प्रचार किया कि असम में बांग्लादेशी घुसपैठिये, हिन्दुओं पर हिंसक हमले कर रहे हैं। इस मामले में मुस्लिम कट्टरपंथी समूह भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने मुंबई के आजाद मैदान में एक विरोध रैली का आयोजन किया, जिसके दौरान भीड़ के एक हिस्से द्वारा टीवी चैनलों की ओ.बी वैनों में आग लगा दी गयी और पुलिसकर्मियों पर हमले किये गये। मुंबई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक ने स्थिति पर अत्यंत धैर्यपूर्वक और समझदारी से बहुत जल्द काबू पा लिया परंतु साम्प्रदायिक तत्वों और इस मुद्दे पर राजनीति करने के इच्छुक सत्ताधारी दल के एक तबके को यह रास नहीं आया और श्री पटनायक को उनके पद से मुक्त कर दिया गया.  धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं और मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा, श्री पटनायक द्वारा की गई प्रभावी व धैर्यपूर्ण कार्यवाही की प्रशंसा कर रहा है।
जहां तक बांग्लादेशी घुसपेठियों का मुद्दा है, कई अनुसंधानकर्ताओं ने पिछली सदी के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के विस्तृत अध्ययन व विश्लेषण द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि क्षेत्र में रह रहे मुसलमान या तो विभाजन के पूर्व बंगाल से आये रहवासी हैं या सन् 1947 में विभाजन के समय वहां बसे हुए लोग हैं या सन् 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान भारत भाग कर आये शरणार्थी हैं। सन् 1985 का असम समझौता इस क्षेत्र में रह रहे  सभी लोगों को वैध निवासी का दर्जा देता है और इस श्रेणी में अधिकांश मुसलमान भी आ जाते हैं। इसके बाद भी कुछ मुसलमान असम में आये हैं परन्तु ये सब आर्थिक बदहाली के चलते अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर हुए हैं.   
 असम की जनंसख्या के चरित्र में बदलाव पिछली एक सदी से भी लम्बे समय में आया है। अंग्रेज शासकों ने एक नीति के तहत, तत्कालीन बंगाल में खेती की जमीन पर बढते दबाव को कम करने के लिए, बंगालियों को असम में बसने के लिए प्रेरित किया था। असम में सन् 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय आखिरी बार बड़ी संख्या में नये प्रवासी बसे। उसके बाद से बहुत कम संख्या में नये प्रवासी असम में आये हैं. जहां तक बड़े पैमाने पर घुसपैठ का प्रश्न है, ऐसा होने के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। असम समझौते में यह प्रावधान है कि सन् 1971 के पहले तक वहां बसे सभी प्रवासी, वैध भारतीय नागरिक माने जायेंगे। अधिकांश मुसलमान इसी श्रेणी में आते हैं। जनगणना आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि सन् 1971 के बाद से क्षेत्र की जनसंख्या में कभी भारी वृद्धि दर्ज नहीं की गई। संपूर्ण भारत, असम राज्य व धूबरी, धीमाजी व करबी अबलोंग जिलों में सन् 1971 से 1991 के बीच की अवधि  में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर क्रमशः 54ण्51ए 54ण्26ए 45ण्65ए 107ण्50 एवं 74ण्72 रही है। सन् 1991 से 2001 के दशक में यही आंकडे 21ण्54ए 18ण्92ए 22ण्97ए 19ण्45 व 22ण्72 रहे. सन् 2001-2011 के लिये ये आंकडे क्रमशः 17ण्64ए 16ण्93ए 24ण्40ए 20ण्30 एवं  18ण्69 थे. “मिथ ऑफ बांग्लादेशी एण्ड वाइलेंस इन आसाम“ में शिवम विज कहते हैं कि असम में प्रवास एक लम्बे समय में, शनैः शनैः हुआ है और सन् 1971 के बाद जनसंख्या में वृद्धि थम गई है।
अगर हम असम के दो जिलों- धीमाजी व करबी अबलोंग - की दशकीय आबादी वृद्धि दर को देखें तो यह स्पष्ट हो जावेगा कि इन दोनों जिलों व पूरे असम में, आबादी “मुस्लिम-बहुल सीमावर्ती“ जिले धूबरी की तुलना में कहीं तेजी से बढ़ी है। इसके बावजूद, इन जिलों में बहुत कम मुस्लिम आबादी है। इन दो जिलों में हिन्दू आबादी का प्रतिशत क्रमशः 95ण्94 व 82ण्39 है। यद्यपि इन जिलों की आबादी में तेजी से वृद्धि हुई तथापि आज भी मुसलमान, आबादी का मात्र 1ण्84 व 2ण्22 प्रतिशत हैं। यह तब जबकि 1961ण्71 में धीमाजी की आबादी 103ण्42 प्रतिशत बढ़ी और 1951ण्61 में करबी अबलोंग की 79ण्21 प्रतिशत। इन आंकड़ों से यह दिन के उजाले की तरह साफ है कि असम की उच्च दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर के पीछे, बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ नहीं वरन् कोई और कारण है। असम के कोकराझार जिले- जो बोडो क्षेत्रीय परिषद का मुख्यालय है - में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है। सन् 2001-11 में कोकराझार की दशकीय वृद्धि दर सबसे कम, अर्थात 5ण्19 प्रतिशत थी। यह दर सन् 1991-2001 में 14ण्49 प्रतिशत थी।
यथार्थ को स्वीकार कर और असम की आबादी संबंधी आंकड़ों के गहरे विश्लेषण से ही हम असम हिंसा की प्रकृति को समझ सकते हैं। यह एक तरह का जातीय संघर्ष है जिसमें एक जातीय समूह दूसरे जातीय समूह का दमन कर इलाके में  अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है. आर्थिक विकास की कमी और  बढती बेरोजगारी ने खेती की जमीन पर दवाब बढा दिया है. और नतीजे में श्भूमि पुत्रश् आन्दोलन उठ खड़ा हुआ है. इस समय न केवल हिंसा पर रोक लगाने की जरूरत है वरन दोनों समुदायों के बीच सध्भव की कायमी और क्षेत्र में आधारभूत संरचना के विकास की भी आवश्कता है ताकि सभी नागरिकों को आगे बडगे के अवसर मिल सकें.


 -राम पुनियानी


5 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आभार |
सटीक -
तथ्यों पर आधारित बातें-

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सटीक सत्य जानकारी के लिये आभार,,,,,

RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

virendra sharma ने कहा…

न सिर्फ पटनायक को फटकार लगाईं गई पुलिस को यह भी धमकी सचिव महाराष्ट्र सरकार दवा दी गई यदि महारष्ट्र पुलिस बिहार, कादर खान के नेतृत्व में आये अन्य बिहारी मुसलमनों को गिरफ्तार करने गई तो पुलिस के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज़ किया जाएगा यह है इस कथित सेकुलर सरकार का असली चरित्र यहाँ मुसलमान बिहारी कहलाता है मुसलमान कहने में इन्हें डर लगता है सेकुलर वीरों को .बहर सूरत इस रिपोर्ट में सत्य का अंश है एसी और रिपोर्टें चाहिए असम के बाबत .जहां बोडो अपने खेत खलिहानों से सच मुच निष्कासित हैं .
मंगलवार, 4 सितम्बर 2012
जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें
जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें

यह वही जीवन शैली रोग है जिससे दो करोड़ अठावन लाख अमरीकी ग्रस्त हैं और भारत जिसकी मान्यता प्राप्त राजधानी बना हुआ है और जिसमें आपके रक्तप्रवाह में ब्लड ग्लूकोस या ब्लड सुगर आम भाषा में कहें तो शक्कर बहुत बढ़ जाती है .इस रोगात्मक स्थिति में या तो आपका अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हारमोन ही नहीं बना पाता या उसका इस्तेमाल नहीं कर पाता है आपका शरीर .

पैन्क्रिअस या अग्नाशय उदर के पास स्थित एक शरीर अंग है यह एक ऐसा तत्व (हारमोन )उत्पन्न करता है जो रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है और खाए हुए आहार के पाचन में सहायक होता है .मधुमेह एक मेटाबोलिक विकार है अपचयन सम्बन्धी गडबडी है ,ऑटोइम्यून डिजीज है .

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

इस समय न केवल हिंसा पर रोक लगाने की जरूरत है वरन दोनों समुदायों के बीच सध्भव की कायमी और क्षेत्र में आधारभूत संरचना के विकास की भी आवश्कता है ताकि सभी नागरिकों को आगे बडगे के अवसर मिल सकें.

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बेनामी ने कहा…

ASAAM HINSA ME MULIM HATH DIKHTE HI SABKO SAAMPRDAAYIK SAUHHARD KI YAAD AANE LAGI. WAAH RE BHARAT K SICULAR NETA LOG

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