आतंकी हिंसा, पिछले लगभग दो दशकों में, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के एक नए हथियार के रूप में उभरी है।
मुंबई में सन् 1992.93 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पश्चात भड़के दंगों व गुजरात के 2002 कत्लेआम के बादए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए थे। इसके अलावा, कसाब और उसके साथियों ने 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमला किया था। ये तथ्य यह बताते हैं कि आतंकी हिंसा के कई चेहरे हैं और वह कई कारणों से उभरती है। इसी तरह की घटनाएं देश के अन्य स्थानों पर भी होती रही हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जानें गवाईं हैं। संकटमोचन मंदिर, मालेगांवए अजमेर, मक्का मस्जिद आदि में हुए आतंकी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया था।
इन हमलों की जांच की एक अलग ही कहानी है। जांच प्रक्रिया पर पूर्वाग्रह हमेशा हावी रहे। चूंकि जांच प्रक्रिया को रहस्य के घेरे में रखा गया इसलिए आतंकी हमले करने वालों और उसके पीछे के कारणों के बारे में मीडिया और आमजनों में तरह.तरह के कयास लगाए जाते रहे। जहां तक आतंकी हमले करने वालों की पहचान का सवाल है, इस मामले में हर टिप्पणीकार और हर राजनेता की अलग.अलग राय रहती हैए जो अक्सर तथ्यों पर नहीं वरन् संबंधित की विचारधारा या एजेन्डे पर आधारित होती है।
हाल में ;8 जुलाई 2013 बोधगया के पवित्र तीर्थस्थल में 9 धमाके हुए। सौभाग्यवश, इन धमाकों में किसी की जान नहीं गई और केवल दो बौद्ध भिक्षु घायल हुए। धमाकों के तुरंत बाद से यह कहा जाने लगा कि ये धमाके म्यंनमार में बौद्धों द्वारा, रोंहिग्या मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिएए इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किए गए हैं। यह घटनाचक्र पिछले कुछ वर्षों में कई बार दुहराया जा चुका है। पहले किसी धमाके के लिए किसी पाकिस्तानी या मुस्लिम संगठन को दोषी ठहराया जाता है और बाद में यह सामने आता है कि उसके पीछे स्वामी असीमानंद या उनके जैसे अन्य लोग थे। जो लोग आतंकी हमलों का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करते रहे हैं, उनका कहना है कि बोधगया पर आतंकी हमले का नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने से कुछ संबंध हो सकता है। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का मुखिया नियुक्त किए जाने के विरोध में एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था। हम सब जानते हैं कि इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा, मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना दावेदार घोषित करेगी। जहाँ तक इंडियन मुजाहिदीन का सवाल है, उसका नाम बम धमाकों के कुछ ही घंटों बाद सामने आ गया था और भाजपा ने उसे खुशी.खुशी लपक लिया। इंडियन मुजाहिदीन की क्या भूमिका है? उसपर किसका नियंत्रण है? आदि जैसे मूल प्रश्नों का उत्तर आज तक नहीं मिल सका है। कुछ सालों पहले तकए इंडियन मुजाहिदीन की बजाए हर हमले के पीछे सिमी का हाथ बताया जाता था। सिमी पर प्रतिबंध भी लगाया गया और जब प्रतिबंध को अदालत में चुनौती दी गई तो न्यायमूर्ति लता मित्तल अधिकरण ने पाया कि संस्था पर प्रतिबंध लगाने का कोई कारण नहीं था। परंतु लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया था कि सिमी एक आतंकवादी संगठन है। कसाब जैसे लोग एक अलग श्रेणी में आते हैं जो पाकिस्तानी सेना और अल्कायदा की धुन पर नाच रहे हैं। अल्कायदा का जन्म भी अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे से निपटने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा था।
जांच एजेन्सियों के सिर पर अल्कायदा का भूत इस कदर सवार था कि 9/11 के डब्लूटीसी हमले के बाद अमेरिकी मीडिया द्वारा गढ़े गए इस्लामिक आतंकवाद शब्द को साम्प्रदायिक ताकतों और मीडिया के एक हिस्से द्वारा इस सिद्धांत में बदल दिया गया कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं परंतु सभी आतंकवादी मुसलमान हैं। अप्रैल 2006 के नांदेड़ धमाकों से लेकर मालेगांव, मक्का मस्जिद,अजमेर और समझौता एक्सप्रेस धमाकों तक . सभी में पूर्वाग्रहग्रस्त जांच एजेसिंयों ने इसी सिद्धांत के अन्तर्गत सैकड़ों निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कियाए उनके कैरियर बर्बाद किए और पूरे मुस्लिम समुदाय का दानवीकरण किया। इसी सिद्धांत के चलते ही फर्जी मुठभेड़ों का सिलसिला शुरू हुआ, जिनमें भाजपा.शासित गुजरात सबसे आगे था। इशरत जहां को गुजरात में सरेराह मार डाला गया और बहाना यह बनाया गया कि वह और उसके साथीए पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से जुड़े हुए थे और गुजरात के मुख्यमंत्री की हत्या करने के इरादे से आए थे। इसी तरह,कई अन्य युवकों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। मोदी.पूजक कई पुलिस अधिकारी,जिन्होंने यह सब किया था, अब जेल की सलाखों के पीछे हैं। हेमंत करकरे ने इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने में आंशिक सफलता पाई जब मालेगांव धमाकों की जांच के दौरान उन्होंने असली दोषियों को ढूंढ निकाला। बाल ठाकरे, मोदी आदि द्वारा उन्हें देशद्रोही बताए जाने पर भी करकरे ने अपना काम जारी रखा।
धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए, बोधगया धमाकों को म्यंनमार के घटनाक्रम से जोड़ा जा रहा है। इस दुष्प्रचार का एक उद्धेश्य बौद्धों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काना भी है। यह प्रचार जोरशोर से जारी है और कई अखबारों ने अपनी आठ कालम की बैनर हेडलाईनों में इस आशय की घोषणाएं की हैं। भाजपा .जिसके कई सहयोगी संगठनों के सदस्य आतंकी हमलों में संलिप्तता के कारण जेल में हैं .की ओर से रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मीडिया के अनुसार, बेकरी मामले में शामिल आतंकियों ने बोधगया के मंदिर में रैकी की थी। कई चेताविनयां दी गईं परंतु सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए। यह भी कहा गया कि बिहार की सरकार ने कोई एहतियाती कदम नहीं उठाए। यह साफ है कि इस घटना को म्यंनमार के त्रासद घटनाक्रम से जोड़ने की कोशिश हो रही है। इसके विपरीत, कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि यह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास है और यह भी कि गैर.भाजपा सरकारों और विशेषकर नीतीश कुमार को बहुत सावधान रहना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन दिनों भाजपा का एकमात्र लक्ष्य 2014 के चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारना है। मोदी को पार्टी का नेता घोषित कर भाजपा ने अपने कई गठबंधन साथियों को नाराज कर लिया है। इसलिए अब सत्ता में आने के लिए उसे स्वयं ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। भाजपा जानती है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही वह सीढ़ी है जो उसे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा सकती है। देश में जैसे.जैसे साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ती गईए वैसे.वैसे भाजपा की चुनावी सफलता का ग्राफ भी ऊंचा होता गया। अब भाजपा आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल भी धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए कर रही है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा वोट कबाड़ सके। आखिर क्या कारण है कि हम इतनी जल्दी में रहते हैं? आखिर क्या कारण है कि हम किसी संगठन या व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए इतने व्यग्र रहते हैं कि जांच एजेन्सियों को अपनी प्राथमिक जांच पूरी कर लेने का समय भी नहीं देना चाहते? बिना जांच के परिणाम सामने आए कयास लगाने के अपने खतरे हैं। सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि घटना के तार म्यंनमार से जोड़े जाने से रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार और बढ़ जाएंगे। हमने देखा है कि किस प्रकार इस तरह की बैसिरपैर की बयानबाजी के कारण हर आतंकी हमले का खामियाजा मुस्लिम समुदाय को भुगतना पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी अपराध की जांच के दौरान संभावित दोषियों की सूची बनाई जाती है। परंतु अगर इस सूची को बनाने वाले पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होंगे तो इसके नतीजे में निर्दोषों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस घटना का एक पहलू, जिसे लगभग नजरअंदाज किया जा रहा है यह है कि विनोद मिस्त्री नाम के एक बढ़ई का बैग और आईडी कार्ड घटनास्थल से बरामद हुआ है। इस बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहना जाने वाला पारंपरिक परिधान पाया गया है। इससे हम क्या नतीजा निकाल सकते हैं?निर्दोष मुसलमानों की मदद करने के लिए गठिन संगठन रिहाई मंच कहता हैए जिस तरह से इस मामले में विनोद मिस्त्री का नाम सामने आ रहा है और यह पता चला है कि उसके बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़े भी पाए गए हैं और जिस प्रकार उर्दू में लिखे गए पत्र मंदिर से मिले हैं उससे ऐसा लगता है कि बोधगया में एक और मालेगांव हुआ है। मालेगांव में भी घटनास्थल से एक नकली दाढ़ी जब्त की गई थी और अंत में यह पता चला कि इसके पीछे आरएसएस के लोग थे।
भारतीय राजनीति में हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से प्रेरित कई संगठन आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं। स्वामी असीमानंद,स्वामी दयानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह और उनके साथी ऐसे लोगों में शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, यह गलत धारणा किसभी आतंकी मुसलमान होते हैं ने बरसों तक उन्हें बचाए रखा। निश्चित तौर पर इस मामले में निष्पक्षता से और सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जांच किए जाने की आवश्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भगवान गौतम बुद्ध से जुड़े एक पवित्र स्थान को हिंसा का निशाना बनाया गया है। इसके दोषियों को सजा जरूर मिलनी चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि जब तक कोई ठोस सबूत न मिल जाएं तब तक इस घटना को रोंहिग्या मुसलमानों से जोड़ने से हम सब परहेज करें।
-राम पुनियानी
मुंबई में सन् 1992.93 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पश्चात भड़के दंगों व गुजरात के 2002 कत्लेआम के बादए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए थे। इसके अलावा, कसाब और उसके साथियों ने 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमला किया था। ये तथ्य यह बताते हैं कि आतंकी हिंसा के कई चेहरे हैं और वह कई कारणों से उभरती है। इसी तरह की घटनाएं देश के अन्य स्थानों पर भी होती रही हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जानें गवाईं हैं। संकटमोचन मंदिर, मालेगांवए अजमेर, मक्का मस्जिद आदि में हुए आतंकी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया था।
इन हमलों की जांच की एक अलग ही कहानी है। जांच प्रक्रिया पर पूर्वाग्रह हमेशा हावी रहे। चूंकि जांच प्रक्रिया को रहस्य के घेरे में रखा गया इसलिए आतंकी हमले करने वालों और उसके पीछे के कारणों के बारे में मीडिया और आमजनों में तरह.तरह के कयास लगाए जाते रहे। जहां तक आतंकी हमले करने वालों की पहचान का सवाल है, इस मामले में हर टिप्पणीकार और हर राजनेता की अलग.अलग राय रहती हैए जो अक्सर तथ्यों पर नहीं वरन् संबंधित की विचारधारा या एजेन्डे पर आधारित होती है।
हाल में ;8 जुलाई 2013 बोधगया के पवित्र तीर्थस्थल में 9 धमाके हुए। सौभाग्यवश, इन धमाकों में किसी की जान नहीं गई और केवल दो बौद्ध भिक्षु घायल हुए। धमाकों के तुरंत बाद से यह कहा जाने लगा कि ये धमाके म्यंनमार में बौद्धों द्वारा, रोंहिग्या मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिएए इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किए गए हैं। यह घटनाचक्र पिछले कुछ वर्षों में कई बार दुहराया जा चुका है। पहले किसी धमाके के लिए किसी पाकिस्तानी या मुस्लिम संगठन को दोषी ठहराया जाता है और बाद में यह सामने आता है कि उसके पीछे स्वामी असीमानंद या उनके जैसे अन्य लोग थे। जो लोग आतंकी हमलों का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करते रहे हैं, उनका कहना है कि बोधगया पर आतंकी हमले का नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने से कुछ संबंध हो सकता है। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का मुखिया नियुक्त किए जाने के विरोध में एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था। हम सब जानते हैं कि इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा, मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना दावेदार घोषित करेगी। जहाँ तक इंडियन मुजाहिदीन का सवाल है, उसका नाम बम धमाकों के कुछ ही घंटों बाद सामने आ गया था और भाजपा ने उसे खुशी.खुशी लपक लिया। इंडियन मुजाहिदीन की क्या भूमिका है? उसपर किसका नियंत्रण है? आदि जैसे मूल प्रश्नों का उत्तर आज तक नहीं मिल सका है। कुछ सालों पहले तकए इंडियन मुजाहिदीन की बजाए हर हमले के पीछे सिमी का हाथ बताया जाता था। सिमी पर प्रतिबंध भी लगाया गया और जब प्रतिबंध को अदालत में चुनौती दी गई तो न्यायमूर्ति लता मित्तल अधिकरण ने पाया कि संस्था पर प्रतिबंध लगाने का कोई कारण नहीं था। परंतु लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया था कि सिमी एक आतंकवादी संगठन है। कसाब जैसे लोग एक अलग श्रेणी में आते हैं जो पाकिस्तानी सेना और अल्कायदा की धुन पर नाच रहे हैं। अल्कायदा का जन्म भी अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे से निपटने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा था।
जांच एजेन्सियों के सिर पर अल्कायदा का भूत इस कदर सवार था कि 9/11 के डब्लूटीसी हमले के बाद अमेरिकी मीडिया द्वारा गढ़े गए इस्लामिक आतंकवाद शब्द को साम्प्रदायिक ताकतों और मीडिया के एक हिस्से द्वारा इस सिद्धांत में बदल दिया गया कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं परंतु सभी आतंकवादी मुसलमान हैं। अप्रैल 2006 के नांदेड़ धमाकों से लेकर मालेगांव, मक्का मस्जिद,अजमेर और समझौता एक्सप्रेस धमाकों तक . सभी में पूर्वाग्रहग्रस्त जांच एजेसिंयों ने इसी सिद्धांत के अन्तर्गत सैकड़ों निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कियाए उनके कैरियर बर्बाद किए और पूरे मुस्लिम समुदाय का दानवीकरण किया। इसी सिद्धांत के चलते ही फर्जी मुठभेड़ों का सिलसिला शुरू हुआ, जिनमें भाजपा.शासित गुजरात सबसे आगे था। इशरत जहां को गुजरात में सरेराह मार डाला गया और बहाना यह बनाया गया कि वह और उसके साथीए पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से जुड़े हुए थे और गुजरात के मुख्यमंत्री की हत्या करने के इरादे से आए थे। इसी तरह,कई अन्य युवकों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। मोदी.पूजक कई पुलिस अधिकारी,जिन्होंने यह सब किया था, अब जेल की सलाखों के पीछे हैं। हेमंत करकरे ने इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने में आंशिक सफलता पाई जब मालेगांव धमाकों की जांच के दौरान उन्होंने असली दोषियों को ढूंढ निकाला। बाल ठाकरे, मोदी आदि द्वारा उन्हें देशद्रोही बताए जाने पर भी करकरे ने अपना काम जारी रखा।
धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए, बोधगया धमाकों को म्यंनमार के घटनाक्रम से जोड़ा जा रहा है। इस दुष्प्रचार का एक उद्धेश्य बौद्धों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काना भी है। यह प्रचार जोरशोर से जारी है और कई अखबारों ने अपनी आठ कालम की बैनर हेडलाईनों में इस आशय की घोषणाएं की हैं। भाजपा .जिसके कई सहयोगी संगठनों के सदस्य आतंकी हमलों में संलिप्तता के कारण जेल में हैं .की ओर से रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मीडिया के अनुसार, बेकरी मामले में शामिल आतंकियों ने बोधगया के मंदिर में रैकी की थी। कई चेताविनयां दी गईं परंतु सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए। यह भी कहा गया कि बिहार की सरकार ने कोई एहतियाती कदम नहीं उठाए। यह साफ है कि इस घटना को म्यंनमार के त्रासद घटनाक्रम से जोड़ने की कोशिश हो रही है। इसके विपरीत, कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि यह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास है और यह भी कि गैर.भाजपा सरकारों और विशेषकर नीतीश कुमार को बहुत सावधान रहना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन दिनों भाजपा का एकमात्र लक्ष्य 2014 के चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारना है। मोदी को पार्टी का नेता घोषित कर भाजपा ने अपने कई गठबंधन साथियों को नाराज कर लिया है। इसलिए अब सत्ता में आने के लिए उसे स्वयं ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। भाजपा जानती है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही वह सीढ़ी है जो उसे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा सकती है। देश में जैसे.जैसे साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ती गईए वैसे.वैसे भाजपा की चुनावी सफलता का ग्राफ भी ऊंचा होता गया। अब भाजपा आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल भी धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए कर रही है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा वोट कबाड़ सके। आखिर क्या कारण है कि हम इतनी जल्दी में रहते हैं? आखिर क्या कारण है कि हम किसी संगठन या व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए इतने व्यग्र रहते हैं कि जांच एजेन्सियों को अपनी प्राथमिक जांच पूरी कर लेने का समय भी नहीं देना चाहते? बिना जांच के परिणाम सामने आए कयास लगाने के अपने खतरे हैं। सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि घटना के तार म्यंनमार से जोड़े जाने से रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार और बढ़ जाएंगे। हमने देखा है कि किस प्रकार इस तरह की बैसिरपैर की बयानबाजी के कारण हर आतंकी हमले का खामियाजा मुस्लिम समुदाय को भुगतना पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी अपराध की जांच के दौरान संभावित दोषियों की सूची बनाई जाती है। परंतु अगर इस सूची को बनाने वाले पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होंगे तो इसके नतीजे में निर्दोषों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस घटना का एक पहलू, जिसे लगभग नजरअंदाज किया जा रहा है यह है कि विनोद मिस्त्री नाम के एक बढ़ई का बैग और आईडी कार्ड घटनास्थल से बरामद हुआ है। इस बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहना जाने वाला पारंपरिक परिधान पाया गया है। इससे हम क्या नतीजा निकाल सकते हैं?निर्दोष मुसलमानों की मदद करने के लिए गठिन संगठन रिहाई मंच कहता हैए जिस तरह से इस मामले में विनोद मिस्त्री का नाम सामने आ रहा है और यह पता चला है कि उसके बैग में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़े भी पाए गए हैं और जिस प्रकार उर्दू में लिखे गए पत्र मंदिर से मिले हैं उससे ऐसा लगता है कि बोधगया में एक और मालेगांव हुआ है। मालेगांव में भी घटनास्थल से एक नकली दाढ़ी जब्त की गई थी और अंत में यह पता चला कि इसके पीछे आरएसएस के लोग थे।
भारतीय राजनीति में हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से प्रेरित कई संगठन आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं। स्वामी असीमानंद,स्वामी दयानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह और उनके साथी ऐसे लोगों में शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, यह गलत धारणा किसभी आतंकी मुसलमान होते हैं ने बरसों तक उन्हें बचाए रखा। निश्चित तौर पर इस मामले में निष्पक्षता से और सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जांच किए जाने की आवश्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भगवान गौतम बुद्ध से जुड़े एक पवित्र स्थान को हिंसा का निशाना बनाया गया है। इसके दोषियों को सजा जरूर मिलनी चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि जब तक कोई ठोस सबूत न मिल जाएं तब तक इस घटना को रोंहिग्या मुसलमानों से जोड़ने से हम सब परहेज करें।
-राम पुनियानी
1 टिप्पणी:
kya aap left k log jasoos bhi ho.kyu ap log hindu se itni nafrat karte ho.malegaon aseemanand aur modi ki ghisi piti roti kab tak khaoge.vidhwa pralap se sach nahi badalta.itne sensitive issue pe itna gairzimmedar statement.kuch to parwah karye ye desh hi agar safe nahi raha to ap rotiyan kahan sekenge
एक टिप्पणी भेजें