शनिवार, 7 सितंबर 2013

सीरिया के विरूद्ध सैनिक कार्यवाही युद्ध अपराध होगी

सीनेट की एक कमेटी ने अमरीकी सरकार को सीरिया के विरूद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए अधिकृत कर दिया है। सीनेट की इस महत्वपूर्ण समिति ने सीरिया के विरूद्ध 60-दिवसीय सैनिक कार्यवाही की इजाजत देने वाले प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही, सीरिया पर सैनिक हमले की सम्भावना और बढ़ गई है। विदेशी मामलों की सीनेट समिति ने राष्ट्रपति बराक ओबामा को अधिकृत कर दिया है कि वे सीरिया के सैनिक ठिकानों पर अगले 60 दिनों में सैनिक हमले किए जाने का आदेश दे सकते हैं। कुछ परिस्थितियों में इस अवधि को 30 दिन तक बढ़ाया भी जा सकता है।
अमरीका का दावा है कि 21 अगस्त को दमिश्क के नजदीक, सीरिया की सरकार का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर रासायनिक हथियारों से हमला किया गया। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जोर देकर कहा, ‘‘हम काफी विश्वास से यह कह सकते हैं कि सीरिया ने रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिसमें हजारों लोग मारे गए।’’ अमरीकी विदेश मंत्री जाॅन केरी का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रपति बशर-अल-असद की सरकार ने, पिछले महीने, नागरिकों पर रासायनिक हथियारों से हमला किया जिसमें दमिश्क के नजदीक 1429 लोग मारे गए। फ्रांस, अमरीकी सरकार के इस दावे से सहमत नहीं है कि सीरिया में रासायनिक हथियारों से ‘हजारों’ लोगों को मारा गया है। फ्रांस के प्रधानमंत्री का दावा है कि उनकी सरकार के पास ऐसा वीडियो उपलब्ध है जिससे यह जाहिर होता है कि हमले में 281 लोग मारे गए थे। इन विरोधाभासी आंकड़ों और ‘विश्वास’ न कि ‘सुबूत’ की बिना, पर, अमरीका, सीरिया के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करना चाहता है। रूसी विदेश मंत्री सरगेई लेबरो ने असद द्वारा रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के संबंध में अमरीका द्वारा जुटाए गए सबूतों को पूरी तरह ‘अविश्वसनीय’ बताया है।
अमरीका के नेतृत्व में ईराक पर इस आधार पर सैनिक हमला किया गया था कि वहां की सद्दाम हुसैन सरकार के पास महासंहारक अस्त्र हैं। परन्तु युद्ध के बाद ऐसे कोई अस्त्र वहां नहीं मिले। उस समय भी अमरीका ने बिना किसी सबूत के कार्यवाही की थी। सीरिया के मामले में तो अमरीकी दावों में ही विरोधाभास है। जहां राष्ट्रपति ओबामा कहते हैं कि हजारों लोग मारे गए वहीं विदेश मंत्री जाॅन केरी मृतकों की संख्या 1429 बताते हैं। अगर अमरीका, सीरिया के खिलाफ एकतरफा और गैरकानूनी सैनिक कार्यवाही करता है तो इसमंे सैंकड़ों निर्दोष नागरिकों के मारे जाने की सम्भावना है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रपट के अनुसार, सन् 2011 में सीरिया में हुए विद्रोह के बाद से, लगभग 20 लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं और इस साल के अंत तक यह आंकड़ा 35 लाख तक पहुंचने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार, यह पिछले 20 सालों की सबसे बड़ी शरणार्थी समस्या है। इसके पहले, इतनी बड़ी संख्या में लोगों के अपना देश छोड़ने की घटना, 1994 में रवाण्डा में हुए कत्लेआम के बाद हुई थी। राष्ट्रपति असद के खिलाफ मार्च 2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध में अब तक एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
 युद्ध विरोधी कार्यकर्ता नोएम चोमोस्की, सीरिया के खिलाफ किसी भी सैनिक कार्यवाही को गैरकानूनी बताते हैं। वे कहते हैं कि ‘‘संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्वीकृति के बगैर किसी भी तरह का हमला एक गंभीर युद्ध अपराध होगा। पिछले अपराधों का हवाला देकर इसे औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता।’’ एसोसिएटेड प्रेस और रूस के राजकीय चैनल वन टेलीविजन को दिए गए एक साक्षात्कार में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अमरीका को संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष ‘विश्वसनीय’ सबूत प्रस्तुत करने चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह के सबूत प्रस्तुत किए जाते हंै तो वे सीरिया के खिलाफ, संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा अधिकृत बलप्रयोग का समर्थन करने की संभावना से इंकार नहीं करते। परन्तु उन्होंने अमरीका को, संयुक्त राष्ट्रसंघ की इजाजत के बगैर, ऐसा कोई भी कदम उठाने के खिलाफ चेताया। ‘‘केवल संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ही किसी सार्वभौमिक राष्ट्र के विरूद्ध बल के इस्तेमाल की इजाजत दे सकती है। अन्य किसी भी आधार पर या किसी अन्य तरीके से एक स्वतंत्र सार्वभौमिक राज्य के विरूद्ध बलप्रयोग को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता और उसे हमले के अतिरिक्त और कोई संज्ञा नहीं दी जा सकती।’’
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव बान की मून ने कहा कि सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल एक ‘जघन्य युद्ध अपराध’ है। उन्होंने सुरक्षा परिषद का आव्हान किया कि वह अपराधियों को उचित जवाब देने के लिए ‘एकमत से उपयुक्त रणनीति’ बनाए। स्पष्टतः, वे अमरीका द्वारा एकतरफा सैनिक कार्यवाही का समर्थन नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ घोषणापत्र के अनुरूप, इस समस्या का राजनैतिक हल खोजा जाना चाहिए। उन्होनंे चेतावनी देते हुए कहा कि रासायनिक हमले के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा देने के लिए बलप्रयोग तब तक वैध नहीं होगा जब तक कि उसे संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्वीकृति प्राप्त न हो। ‘‘यह सीरिया में चल रहे आंतरिक संघर्ष से बड़ा मुद्दा है। यह मानवता की सामूहिक जिम्मेदारी से जुड़ा मुद्दा है।’’ संयुक्त राष्ट्रसंघ के विशेषज्ञ दिन-रात यह पता लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं कि दमिश्क के आसपास के इलाकों में 21 अगस्त को रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था या नहीं। परन्तु उनकी जांच अभी अधूरी है।
पिछली आधी सदी में अमरीका ने कम से कम 50 मौकांे पर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सैनिक कार्यवाहियां कीं-अर्थात औसतन एक वर्ष में एक से ज्यादा बार। इनमें वियतनाम, ईराक व अफगानिस्तान में की गई बड़ी सैनिक कार्यवाहियों से लेकर दूर दराज के कुवेत, बोसनिया, पाकिस्तान, लीबिया, ग्रेनाडा, हायती व पनामा में छोटे पैमाने पर चलाए गए सैनिक अभियान शामिल हैं। वियतनाम में अमरीकी सेना ने नेप्लाम बमो का इस्तेमाल किया था। वियतनाम युद्ध में नेप्लाम बम अमरीकी सैनिक कार्यवाही का प्रमुख हिस्सा थे। ऐसा बताया जाता है कि 1963 से 1973 के बीच अमरीका ने क्षेत्र में 3,88,000 टन नेप्लाम बम गिराए। अमरीकी वायुसेना और नौ-सेना ने सैनिक दस्तों, टेंकों, भवनों, जंगलों और ट्रेन की सुरंगों पर ये बम गिराए। इन बमों से केवल शारीरिक हानि नहीं हुई बल्कि इनका दूरगामी मनावैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ा।
सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद ने रासायनिक हथियारों के प्रयोग से इंकार किया है और यह आरोप लगाया है कि विद्रोहियों ने इन हथियारों का इस्तेमाल किया। वस्तु स्थिति यह है कि यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया या नहीं और यदि हां तो किस पक्ष द्वारा। राष्ट्रपति असद ने इन आरोपों की संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जांच का विरोध नहीं किया है। स्पष्टतः बेहतर यह होगा कि पहले जांच की जाए, सुबूत इकट्ठे किए जायें और तत्पश्चात कार्यवाही की जाए। परन्तु अमरीका संयुक्त राष्ट्र संघ की रपट आने के पहले ही सैनिक कार्यवाही करना चाहता है। एकतरफा सैनिक कार्यवाही पर अमरीका जिस तरह जोर दे रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह सैनिक कार्यवाही करने की पूर्व नियोजित योजना को अंजाम देने के लिए बैचेन है। उसे इंतजार केवल एक बहाने का था जो उसे ‘दावों’ से मिल गया है, फिर चाहे ये दावे परस्पर विरोधाभासी क्यों न हों। सैनिक कार्यवाही करने के राष्ट्रपति ओबामा के निर्णय को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त नहीं है।
सैनिक कार्यवाही का असली उद्देश्य
सैनिक कार्यवाही के पीछे अमरीका का उद्देश्य न तो रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए राष्ट्रपति असद की सरकार को सजा देना है और ना ही असद सरकार के अत्याचारों से सीरिया की जनता की सुरक्षा करना। अमरीका का छुपा हुए एजेण्डा है बलप्रयोग के द्वारा सीरिया में तख्तापलट करवाना। सीरिया में अमरीका द्वारा समर्थित गृहयुद्ध काफी लम्बे समय से चल रहा है और भारी संसाधनों के खर्च के बावजूद उसके कोई नतीजे सामने नहीं आए हैं। अमरीकी सैनिक कार्यवाही में सीरिया की सेना के तोपखानों, युद्धक हवाईजहाजों, राकेट प्रणालियों और मिसाइल उत्पादन इकाइयों पर हमला शामिल होगा। यह भी हो सकता है कि सैनिक मुख्यालयों और सरकारी इमारतों को इस आधार पर उड़ा दिया जाए कि वे सीरिया के रसायनिक हथियार कार्यक्रम के केन्द्र हैं। अगर सीरिया के तोपखाने और हवाईजहाजों को नष्ट कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति असद की विद्रोहियों से मुकाबला करने की क्षमता मंे भारी कमी आ जाएगी और पासा विद्रोहियों के पक्ष में पलट जायेगा। विद्रोहियों में अलकायदा के कई पूर्व लड़ाके शामिल हैं। राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि असद सरकार के खिलाफ सैनिक कार्यवाही एक ‘व्यापक रणनीति’ का हिस्सा है जिसका उद्देश्य सीरिया मे ंचल रहे गृहयुद्ध को खत्म करना है। उन्होंने साफ कर दिया है कि उनका इरादा विद्रोहियों की मदद कर सीरिया को ‘स्वयं स्वतंत्र करने’ में मदद करना है।
अमरीका के इस इरादे से दुनिया को सावधान रहने की जरूरत है। अमरीका और फ्रांस ने लीबिया में विद्रोहियों की गृहयुद्ध मंे विजय प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास किया और इजराईल में विपक्ष को कमजोर करने के लिए भी इन दोनों देशों ने अपनी सैनिक शक्ति का इस्तेमाल किया। लीबिया में विद्रोहियों की मदद करने के लिए अमरीका और फ्रांस ने ‘नो फ्लाय जोन’ घोषित किया। इस समय लीबिया के लोग आंदोलनरत हैं और वे जानना चाहते हैं कि 103 बिलियन अमरीकी डाॅलर का बजट कहां गायब हो गया। वे लीबिया से तेल की चोरी पर भी प्रश्न उठा रहे हैं।
इसमेें कोई संदेह नहीं की गद्दाफी तानाशाह से और इसमंे भी कोई संदेह नहीं की अगर सीरिय में स्वतंत्र और निश्पक्ष चुनाव होंगे तो राष्ट्रपति असद का पुनःनिर्वाचन असंभव होगा। परन्तु मुद्दा यह है कि सीरिया के नागरिकों को उनके देश में प्रजातंत्र की स्थापना के लिए स्वयं संघर्ष करने दिया जाना चाहिए। यह स्पष्ट है कि किसी भी देश में विदेशी हस्तक्षेप से प्रजातंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता।
इजराईल भी सीरिया पर सैनिक कार्यवाही की वकालत कर रहा है। इजराईल ने सीरिया के गोलान हाईट्स इलाके पर कब्जा कर सन् 1981 में इस इलाके को अपने देश में मिला लिया था। सीरिया की शिया अल्वाईट सरकार को इजराईल अपने हितों के विरूद्ध मानता है। सीरिया लेबनाम में हिजबुल्ला आंदोलन की मदद करता रहा है। इस शिया आंदोलन का नेतृत्व हसन नसरूल्लाह के हाथों में है। ईरान भी हिजबुल्लाह आन्दोलन को सहायता प्रदान करता रहा है। अमरीका का असली उद्देश्य ईरान-सीरान-हिजबुल्लाह के शिया गठबंधन को तोड़ना है जिससे इजराईल मजबूत हो फिलीस्तीनी आन्दोलन और कमजोर पड़ जाए। असर बार-बार यह चेतावनी दे रहे हैं कि सैनिक हस्तक्षेप से पूरे क्षेत्र में अराजकता मच जाऐगी। मध्यपूर्व की तुलना बारूद के एक पहाड़ से करते हुए उन्होंने कहा कि अगर इसमें आग लगी तो पूरे क्षेत्र में विस्फोट होगा।
सीरिया की समस्या को विद्रोहियों व सरकार के बीच वार्ताओं द्वारा सुलझाया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को इस तरह की वार्ताओं को प्रोत्साहन देना चाहिए और यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए कि वहां लोकप्रिय सकरार की स्थापना हो, व आमजनों की स्वतंत्रताएं सुरक्षित रहें और उनके मानवाधिकारों का सम्मान हो। अगर वार्ताओं से कोई नतीजा नहीं निकलता, केवल उसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को ठोस जांच और सुबूतों के आधार पर दंडात्मक कार्यवाही की बात सोची जाना चाहिए और यह दंडात्मक कार्यवाही भी ऐसी होनी चाहिए जिसमें सभी संबंधित पक्षों के मानवाधिकार और मानवीय गरिमा सुरक्षित रहे। सीरिया में किसी एकतरफा कार्यवाही के लिए कोई कार्यवाही स्थान नहीं है।

 -इरफान इंजीनियर

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