रविवार, 30 नवंबर 2014

प्रेम पर साम्प्रदायिक राजनीति


   इधर शब्द ‘‘लव जेहाद’’ अख़बारों से लेकर घर-आँगन तक इतना घूमा कि जिगर मुरादाबादी का यह शेर याद आ गयाः
‘‘यह इश्क नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजै
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है’’

    अब प्रेम अगर आग का दरिया है तो प्रेम करने से ज्यादा बड़ा और ज्यादा कठिन जेहाद और क्या हो सकता है? यों भी, प्रेम से बड़ा धर्म और क्या हो सकता है जो रूह को तरबतर कर दे और जिसके लिए कोई आग की नदी भी तैरना क़बूल कर ले! तो यह ‘‘लव जेहाद’’ तो न मालूम कब से चला आ रहा है। समाज द्वारा पूज्य कितनी ही देवियों ने अपने इष्ट को पाने के लिए बड़े कठिन तप किए। खाना छोड़ा, पानी छोड़ा, खाली पत्तों पर जीवन बिताया और जब इष्ट इतने पर भी नहीं पिघले तो पत्ते खाना भी छोड़ दिया। इनमें से एक इसी कारण ‘अपर्णा’ भी कहलाईं। ऐसी तमाम कहानियाँ हमारी संस्कृति की माइथोलोजी (मिथकों) में हैं। उसी संस्कृति के मिथकों में जिसका गुणगान करते वे लोग नहीं थकते जो प्रेम के कट्टर दुश्मन हैं और प्रेम को अनैतिक मानते हैं।
    कबीर ने तो भक्ति और ज्ञान के बीच में प्रेम का ही पुल बनाकर दोनों को एक कर दिया था।
‘‘पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’’।

     यह ढाई आखर पढ़ना अपने आप में शायद इतना कठिन न होता कि शायर को इस पढ़ाई की उपमा आग की नदी से गुजरने से देनी पड़ती, लेकिन चाहे वह शिव-पार्वती का जमाना हो या शीरी-फरहाद का, ऐसे लोग हर जमाने में रहे हैं जो पूरे समाज के निजाम और व्यवस्था को, यहाँ तक कि लोगों के दिलो-दिमाग को, अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहते हैं और जिन्दगी की हर खूबसूरत और खुशनुमा चीज को तहस-नहस करना चाहते हैं। यह लोग पूरे समाज को एक मिलिट्री रेजीमेंट में तब्दील करना चाहते हैं और उस रेजीमेंट के ताउम्र कमाण्डर खुद बने रहना चाहते हैं। ऐसे लोगों के हाथ में अक्सर ताकत और पैसा भरपूर होता है और इसीलिए इस तरह के जहरीले और मानवता विरोधी प्रचार बखूबी कर लेते हैं जिससे समाज की आपसी समझ और सम्वेदना खत्म हो जाए और लगातार नफरत और टकराव का आलम बना रहे। तानाशाही और लोकतंात्रिक मूल्यों के बीच यह संघर्ष बहुत पुराना है जो कबीलाई समाज से लेकर सामन्ती समाज से गुजरते हुए आज तथाकथित लोकतांत्रिक देशों में भी चला आ रहा है। यह संघर्ष सम्वेदना, मानवीयता, खुली जहनियत, खूबसूरत अहसास और समन्वयकारी भावना का है जो विभिन्न स्तरों पर अनेक रूपों में इंसानियत के पैरोकार लड़ते रहे हैं। फिर भी, आज जिस तरह ‘लव जेहाद’ का विरोध हो रहा है, वह दूसरे समयों के तानाशाही दमन से कुछ फर्क है और कहीं ज्यादा भयानक भी है क्योंकि शब्द ‘‘लव जेहाद’’ ईजाद ही किया गया है एक खास धार्मिक पहचान के लोगों को बदनाम करने और सताने के लिए और बहुंसख्यकों के दिल में उनके प्रति डर और नफरत बढ़ाने के लिए। जिन लोगों ने इस शब्द को बनाया वे यांे तो अपने हिन्दी प्रेम का इजहार बढ़ चढ़कर करते हैं लेकिन अंग्रेजी और उर्दू के इस मिले जुले फिकरे को इस्तेमाल करने के पीछे भी नफरत और संकीर्ण मानसिकता की एक सोची समझी राजनीति है। शब्द ‘‘प्रेम’’ ‘‘अनुराग’’, इत्यादि उतनी ज्यादा दुर्भावना के शिकार नही हैं जितना शब्द ‘‘लव’’ क्योंकि इस शब्द के साथ ‘‘पराई संस्कृति’’ के प्रति प्रचारित दुर्भावना जोड़ना आसान है। इससे बदतर हाल शब्द ‘‘जेहाद’’ का है। हालाँकि ‘‘धर्मयुद्ध’’ की मान्यता हिन्दू धर्म में बखूबी है, इसी अर्थ के शब्द जेहाद के साथ इस्लामी संस्कृति और धर्म जुड़ा होने के कारण नफरत की राजनीति करने वालों ने इसकी लगातार मनमानी व्याख्या की है। इस तरह शब्द ‘‘लव जेहाद’’ को अल्पसंख्यकों के खिलाफ डर, नफरत और गुस्सा भड़काने के लिए रखा गया और इसके माध्यम से लगातार यह प्रचार किया जा रहा है कि देश में मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के रहते हिन्दू ‘‘बहू-बेटियाँ’’ सुरक्षित नहीं हैं। बहू बेटियों की यह चिंता वे लोग दिखा रहे हैं जिन्होनें महिलाओं और बच्चियों पर होने वाली किसी भी हिंसा पर कभी कोई चिन्ता नहीं जताई। उल्टे, साम्प्रदायिक दंगों में बहू बेटियों का बलात्कार करने-कराने वालों की पक्षधरता भी की और उन्हें सम्मानित भी किया।
    ‘‘लव जेहाद’’ का झूठा और मनगढ़ंत मुद्दा उठाने वालों की विभाजनकारी मानसिकता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे सिर्फ मुसलमान लड़कांे और हिन्दू लड़कियों के प्रेम के खिलाफ हैं। अगर लड़की मुसलमान हो और लड़का हिन्दू तो उन्हें इतनी ज्यादा शिकायत नहीं होती। क्योंकि यह मुद्दा ‘‘बेटी-बहू की इज्जत’’ जैसा सम्वेदनशील और भड़काऊ नहीं बनता, हिन्दू सर्वसाधारण के दृष्टिकोण से।
    जहाँ तक प्रेम में धोखे की बात है या जबरदस्ती ‘‘फँसाने’’ की बात है, हर धर्म में ऐसा करने वाले हैं। हर तरह के उदाहरण मौजूद हैं। हिन्दू लड़के द्वारा हिन्दू लड़की से धोखा, हिन्दू लड़के द्वारा किसी दूसरे धर्म की लड़की से धोखा, गैर हिन्दू लड़के द्वारा गैर हिन्दू लड़की से धोखा और गैर हिन्दू लड़के द्वारा हिन्दू लड़की से धोखा। हर तरह के धर्म आधारित रिश्तों में हमें ईमानदारी बेईमानी दोनों मिल जाते हैं, खुशी के रिश्ते भी मिलते हैं और दुख व हिंसा से भरपूर भी, चाहंे वह एक ही धर्म का जोड़ा हो या विभिन्न धर्मों का।
    रिश्तों की ईमानदारी और समझ एक बड़ा मुद्दा है सभी के लिए, हर धर्म के इंसान के लिए और इसकी चर्चा भड़काने के लिए नहीं बल्कि तसल्ली से गंभीरता पूर्वक होनी चाहिए। लेकिन ‘‘लव जेहाद’’ का शोर मचाने वालों का तो एजेण्डा ही कुछ और है। वे किसी भी मुद्दे को न तो समझना चाहते हैं और न ही उसके प्रति गंभीर होना चाहते हैं। समाधान तो वह बिल्कुल भी नहीं चाहते। समाधान हो जाएगा तो नफरत की राजनीति का आधार फिर क्या होगा?
    चिंता की बात यह है कि पूरा प्रशासन और राजनीति के दूसरे धड़े इस तरह के फूट डालने वाले और हिंसक नफरत फैलाने वाले लोगों को पूरी छूट दिए हुए हैं और इसके परिणाम स्वरूप होने वाली बरबादी की परवाह किए बिना मौन बैठे हैं, यह बात कि ऐसे शैतानों का प्रचार आम जनता भी गले उतार रही है, यही दिखाना है कि हमारा लोकतंत्र अभी भी कितना कागजी है, कि हमारी मानसिकता में लोकतांत्रिक मूल्यों का अभी भी कितना अभाव है।
    इस निराशाजनक मंजर के बावजूद वह चीज जिसे प्रेम कहें या इश्क या लव, रुकेगी तो नहीं। जिस तरह जीवन नही रुकेगा, समय नही रुकेगा, ठीक उसी तरह इश्क या लव रुकेगा तो नहीं। लड़के लड़कियाँ इश्क करते रहेंगे क्योंकि वहाँ जीवन है, वहाँ खूबसूरत अहसास है। इसके खिलाफ नफरत फैलाना और जुल्म करना तो आसान है लेकिन इसे रोकना आसान नहीं है। बकौल गालिब-
इश्क पर जोर नहीं, है ये वो आतिश गालिब
कि लगाये न लगे, और बुझाये न बुझे।’’

- प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा
मोबाइल: 09335905337
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
दिसम्बर --2014

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