अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गत् 19 मार्च को फरख़ंदा नामक· एक 27 वर्षीय मुस्लिम लड़की को स्वयं को धर्म के ठेकेदार बताने वाले मुस्लिम उन्मादियों की हज़ारों की भीड़ द्वारा जि़ंदा जला कर मार डाला गया तथा उसकी जली हुई क्षत-विक्षत लाश को काबुल नदी में इन्हीं उन्मादी आसामाजिक तत्वों द्वारा फेंक दिया गया। उन्मादियों का आरोप है कि इस युवती ने कुरान शरीफ को जलाकर इस धार्मिक किताब के साथ बेअदबी की थी। जबकि दूसरी ओर लड़की के भाई नजीबुल्ला मलिकज़ादा तथा फरख़ंदा के पिता ने ऐसे सभी आरोपों को झूठा करार दिया है। फरख़ंदा के परिजनों का कहना है कि वह पांचों वक्त की नमाज़ नियमित रूप से अदाक रती थी। उसने इस्लामिक स्टडीज़ में डिप्लोमा भीकर रखा था। इतना ही नहीं बल्कि वह नियमित रूप से कुरान शरीफ की तिलावत भी किया करती थी तथा अपने धर्म व धार्मि· पुस्तकों का दिल से सम्मान करती थी। लिहाज़ा उसपर लगाए जाने वाले सभी आरोप झूठे व निराधार हैं। कुरान शरीफ जलाए जाने की घटना से फरख़ंदा का कोई लेना-देना नहीं है। जबकि संयुक्त राष्ट्र ने इस घटना के संबंध में अपनी जांच के बाद यह पाया है कि फरखंदा मानसिक रोगी थी। इस युवती को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालने व उसके बाद उसे जलाए जाने व उसके शव को नदी में फेंके जाने जैसी अमानवीय घटना ने अफगानिस्तान सहित पूरे विश्व के मानवता प्रेमियों को विचलितकर दिया है। इस घटना के विरोध में अफगानिस्तान में उदारवादी वर्ग के लोग खासतौर पर महिलाओं द्वारा ज़बरदस्त रोष व्यक्त किया जा रहा है।
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का एक दु:खद पहलू यह भी था कि जिस समय धर्मांध लोगों कीउग्र भीड़ द्वारा फरखंदा को पीटा व जलाया जा रहा था उस समय अफगानिस्तान पुलिस के कर्मचारी तमाशाई बने इस पूरे घटनाक्रम को देख रहे थे। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गऩी ने भी इस घटना को एक जघन्य अपराध बताया है। तथा पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए आयोग गठित करने का आदेश दिया है। राष्ट्रपति गऩी ने यह भी स्वीकार किया कि जिस पुलिस ने तालिबानों के विरुद्ध संघर्ष करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है वही अफगान पुलिस ऐसी घटनाओं से निपटने हेतु पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अफगान पुलिस का 90 प्रतिशत ध्यान तालिबान विरोधी लड़ाई की ओर रहता है जबकि यह उनकी संवैधानिक भूमिका नहीं है। बहरहाल सूत्रों के मुताबिक· फरखंदा की इस बेरहम हत्या के आरोप में 21 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें 8 तमाशबीन पुलिस·र्मी भी शामिल हैं। इस घटना के विरुद्ध अफगानिस्तान की महिलाओं के गुस्से का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जो मुस्लिम महिलाएं आमतौर पर शव यात्रा में शामिल नहीं होतीं तथा किसी शव यात्रा में उन्हें मर्दों के साथ कब्रिस्तान में जाने की इजाज़त नहीं होती उन्हीं महिलाओं ने बड़ी संख्या में फरखंदा की शव यात्रा में न केवल शिरकत कीबल्कि उसके शव को नहलाने-धुलाने से लेकर उसके ताबूत को कंधा देने व उसके अंतिम संस्कार यानी कब्र में उतारने तक में आक्रोशित मुस्लिम महिलाएं नकाब पहने हुए अग्रणी भूमिका में रहीं। शव यात्रा के पूरे मार्ग में महिलाओं द्वारा अल्लाह ओ अकबर की सदाएं बुलंद की गईं तथा प्रदर्शन रूपी इस शव यात्रा में सरकार से यह मांग की गई की महिलाओं तथा मानवता के विरुद्ध इस प्रकार का जघन्य अपराध अंजाम देने वाले समस्त अपराधियों व उनके समर्थको को ·ड़ी सज़ा दी जाए। इस घटना से एक बात और साबित हो रही है कि अफगानिस्तान की जो पुलिस उन्मादी भीड़ के हाथों से एक लड़कीको जि़ंदा नहीं बचा सकी वह पुलिस तालिबानों अथवा अन्य समाज विरोधी दुश्मनों से अफगानिस्तान की जनता को आखिरकैसे बचा सकती है? इस घटनाका सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि पुलिस ऐसे हालात से निपटनेके लिए कतई सक्षम नहीं है।
कुरान शरीफ को जलाने अथवा इसके साथ बेअदबी करने के हादसे तथा ऐसी घटनओं के विरुद्ध जनता का उन्माद पहले भीकई बार दुनिया के कई देशों में भड़कते हुए देखा जा चुका है। अफगानिस्तान में ही अमेरिका द्वारा संचालित बगराम जेल में 2012 में कुरान शरीफ के जलाए जाने की घटना ने अमेरिकी सेना के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी हिंसा का रूप धारण कर लिया था। पांच दिनों तक यह हिंसा अफगानिस्तान के विभिन्न भागों में फैली हुई थी। इस हिंसा में 30 लोग मारे गए थे। इसी प्रकार नवंबर 2014में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में लाहौर से 60 किलोमीटर की दूरी परकोट राधा किशन नामक स्थान पर एक ईसाई दंपत्ति को मुसलमानों की उन्मादी भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाला गया तथा बाद में उनकी लाशों को ईंट के भट्टे में झोंककर जला दिया गया था। इस दंपत्ति पर भी यह आरोप था कि इसने कुरान शरीफ को जलाया तथा बाद में जले हुए कुरान के पन्नों को कूड़ेदान में फेंक दिया । हालांकि इस मामले ने भी बाद में एक विवाद का रूप ले लिया था। ऐसी खबरें आईं थीं कि ईसाई दंपति पर कुरान शरीफ के अपमान का आरोप लगाने वाले एक मौलवी ने जानबूझ कर रंजिश के तहत ईसाई दंपत्ति पर ऐसा इल्ज़ाम लगाया था। यह घटनाएं ये सोचनेके लिए मजबूर करती हैं कि क्या धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वाली उग्र भीड़ को यह अधिकार हासिल है कि वह जब चाहे किसी के भी विरुद्ध ऐसे गंभीर व संवेदनशील आरोप मढ़कर उसे सामूहिक हिंसा का निशाना बनाए? उसे पीट-पीट कर मार डाले और उसकी लाश को स्वयं आग के हवाले कर दे? यदि यह मान भी लिया जाए कि कुरान शरीफ का अपमान अथवा बेहुरमती करने वाले ऐसे अपराध करते भी रहे हैं तो भी क्या इस्लाम धर्म या इसकी शिक्षाएं इस बात की इजाज़त देती हैं कि कुरान शरीफ के साथ बदसलूकी करने वालों को किसी उग्र भीड़ द्वारा इसी प्रकार की कुर्र्ता पूर्ण सज़ाएं दी जाएं?
ऐसी घटनओं को रोकने के लिए विश्वस्तर पर मुस्लिम धर्मगुरुओं के संगठित होने तथा ऐसे उन्मादको रोकने हेतु अपने-अपने अनुयाईयों को नियंत्रित करने व उन्हें सहनशीलता का पाठ पढ़ाए जाने की बहुत सख्त ज़रूरत है। यदि कहीं इस प्रका र का ईश निंदा संबंधी अपराध होता भी है तो स्थानीय न्याय व्यवस्था तथा स्थानीय शासन व प्रशासन पर भरोसा करते हुए संबंधित घटना से कानूनी तौर पर निपटने की ज़रूरत है। निश्चित रूप से कुरान शरीफ इस्लाम का सबसे पवित्र व सम्मानित धर्म ग्रंथ है। इसका अपमान मुसलमानों में स्वभाविक रूप से ग़ुस्सा पैदा कर सकता है। परंतु यही इस्लाम धर्म और यहीकुरान शरीफ मानवता का पाठ भी पढ़ाता है। निहत्थे पर ज़ुल्म करने से भी रोकता है। महिलाओं पर अत्याचार करना या किसी के शव को जलाया जाना या उसे जि़ंदा जला दिया जाना इस्लामी शिक्षा का हिस्सा कतई नहीं है। न ही ऐसे घृणित अपराध अंजाम देकर दुनिया का कोई भी धर्मगुरु या कोई मुसलमान जन्नत में जाने या पुण्य ·मानने का दावा कर सकता है। ऐसे कृत्य पूरी तरह से इस्लाम विरोधी व मानवता विरोधी हैं।
-तनवीर जाफरी
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