जम्मू एवं कश्मीर के बारे में बोलते हुए कहा कि उन्होंने दो बार राज्य का दौरा करने का प्रयास किया परन्तु दोनों बार भाजपा सरकार और राज्यपाल ने उन्हें हवाई अड्डे से बाहर नहीं जाने दिया और उन्हें हिरासत में लेकर वापस लौटने को मजबूर किया। हवाई जहाज में यात्रा कर रहे चन्द स्थानीय यात्रियों ने उन्हें बताया कि पूरे राज्य में हालात बहुत खराब है जबकि सरकार परिस्थितियों के सामान्य होने का दावा कर रही है। सह यात्रियों के अनुसार जीवन रक्षक दवाईयां, चिकित्सा सुविधायें तक आम नागरिकों को नहीं मिल रही है। तनाव के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि अगर स्थितियां सामान्य हैं तो उस राज्य के राजनैतिक नेताओं को रिहा क्यों नहीं किया जा रहा है और वहां पर आम नागरिकों का जीवन सामान्य क्यों नहीं किया जा रहा है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 💃
के नव निर्वाचित महासचिव डी. राजा, सांसद ने लखनऊ में पार्टी के राज्य परिषद सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का कृत्य असंवैधानिक और गैर प्रजातांत्रिक है। संसद के बजट सत्र को लम्बा खीच कर सरकार ने 30 बिलों को बिना चर्चा किये और नियमों के खिलाफ जाकर अपने संख्या बल के आधार पर पारित करा लिया। यहां तक कि उस राज्य का केवल एक भाजपाई सांसद ही संदन में उपस्थित था और बाकी को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। इस तरह संसद जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का वजूद समाप्त करने और उन्हें बेमतलब कर देने के प्रयास चल रहे हैं। इस तरह प्रजातंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर के विशेष प्राविधान केवल जम्मू एवं कश्मीर राज्य की जनता को ही नहीं प्राप्त हैं बल्कि देश के अन्य तमाम राज्यों को भी संविधान के अनुसार प्राप्त हैं। उसके दुष्परिणाम और बेचैनी देश के दूसरे भागों में भी दिखने लगी हैं। भारत राज्यों का एक गणतंत्र है और उस ढ़ाचे को ही समाप्त करने की साजिश चल रही है। सरकार ने कश्मीर की जनता, वहां के राजनैतिक नेताओं को विश्वास में लेने का प्रयास क्यों नहीं कर रही है और मानवीय मूल्यों की बर्बर हत्या कर रही है।
उन्होंने बसपा सुप्रीमों मायावती पर कश्मीर मामले में संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. अम्बेडकर को गलत तरीके से उद्घृत करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि डा. अम्बेडकर की सहमति से ही अनुच्छेद 370 संविधान में शामिल किया गया था। मूलतः डा. अम्बेडकर ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस तथा हिन्दू महासभा की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग को ठुकरा दिया था और उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र बनाने का समर्थन किया था।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने आसाम के एनआरसी का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे तरीकों से भाजपा और आरएसएस पूरे देश के माहौल को साम्प्रदायिक कर अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के प्रयास कर रहे हैं। एनआरसी के प्रकाशन से कई तरह के सवाल पैदा हो गये हैं और सरकार उनके हल के कोई प्रयास नहीं करना चाहती। क्या होगा, यह अभी तक अनिश्चित है। सरकार को इस मामले पर भी राजनैतिक दलों के नेताओं को विश्वास में लेना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख आरक्षण पर बहस की मांग कर रहे हैं। पहले उन्होंने इस समाप्त करने की मांग की थी। आरएसएस शुरूआती दौर से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों तथा महिलाओं को समाजिक न्याय का विरोध करती रही है। बहस का उनका मंतव्य मूलतः आरक्षण को समाप्त करवा देने का है। हालात यह है कि सरकारी नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, भर्ती नहीं की जा रही है और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण कर उनमें भी आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने प्रश्न खड़ा किया कि कितने लोगों को आरक्षण का लाभ इस समय मिल पा रहा है? इस प्रकार मोदी सरकार आरएसएस के दिशानिर्देशन में उसकी हिन्दू राष्ट्र और पूजीपतियों के हितों को पूरा करने की दिशा में ही आगे बढ़ रही है।
भाकपा महासचिव ने कहा कि नोट बंदी और जीएसटी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंस चुकी है। इन कदमों से अनौपचारिक क्षेत्र और छोटे एवं मध्य उद्योग पहले ही बर्बाद हो चुके थे। मोदी ने सत्ता में आने पर हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने का वायदा किया था परन्तु वास्तविकता है कि साढ़े पांच साल के शासन में उन्होंने बेरोजगारी की दर को आजादी के बाद पहली बार चरम पर पहुंचा दिया है। कृषि पहले से ही घाटे का सौदा बन चुकी है। अर्थव्यवस्था को संभालने के बजाय सरकारी खर्चे के लिए सरकारी सम्पदाओं तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निजी पूंजी के हाथों बेच रही है और भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व को भी खाली कर दिया गया है। सरकारी बैंकों के विलय की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वीकार किया कि आर्थिक मंदी के हालात हैं और भारतीय रूपया विश्व बाजार में अपनीे कीमत खोते हुए इस स्तर पर आ गया है कि 1 अमरीकी डालर को खरीदने के लिए आपको 72 से ज्यादा भारतीय रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वे वादा करती हैं कि इससे निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा लेकिन आयात की कीमत हमें कितनी ज्यादा देने होगी, उसका जिक्र नहीं करती है।
बेपरवाह (reckless) विनिवेश की प्रक्रिया चल रही है और सकल उत्पादन जीडीपी भी अपने न्यूनतम स्तर पर है। औद्योगिक उत्पादन तो ऋणात्मक हो चुका है। अगर सरकार के आकड़ों को सही मान लिया जाये तो औद्योगिक उत्पादन की दर आधा प्रतिशत रह गयी है।
उन्होंने कहा कि बैंकों में बड़े पूजीवादी घरानों के ऋण एनपीए होते चले जा रहे हैं, लोगों को देश छोड़ कर भागने दिया गया। उन्होंने 10 सरकारी बैंकों का विलय कर 4 बैंक कर देने की भी निन्दा की कि इससे अंततः बेरोजगारी की गति और बढ़ेगी। उन्होंने सरकारी दावों पर प्रहार करते हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण देने की क्षमता बढ़ाने का क्या उद्देश्य है? यह केवल बड़े पूंजीपतियों को और ऋण देने तथा पुराने एनपीए को बट्टे खाते डालने की साजिश के तौर पर किया गया है। इससे किसानों और छोटे व्यापारियों को तो सुविधायें नहीं बढ़ेंगी बल्कि शाखाओं के बंद होने के कारण और बेरोजगारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को याद रखने की कोशिश नहीं कर रही है कि 2008 की वैश्विक मंदी से भारत अगर बचा रहा था तो उसका एकमात्र कारण भारत का मतबूत सरकारी वित्तीय क्षेत्र था जिसे गर्त की ओर ढकेला जा रहा है।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक शक्तियों का आवाहन किया कि वे आरएसएस/भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुट हों।
उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य पर बोलते हुए भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में घोर साम्प्रदायिक और अपराधियों को संरक्षण देने वाली नीतियों को लागू किये हुए जिसका परिणाम मॉब लिंचिंग, दलितों और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार और बलात्कार के बाद हत्या की घटनाएं अपनी ऐतिहासिक ऊंचाईयों को छू चुकी है। पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल है। उन्होंने रविदास मंदिर, सोनभद्र, उन्नाव जैसी तमाम घटनाओं का उल्लेख किया।
एक प्रश्न के जवाब में होने कहा कि भाकपा उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में 7-8 जगहों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। एक दूसरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि नरेश अग्रवाल का विधायक पुत्र पार्टी बदल कर भाजपा में चला गया परन्तु न तो अखिलेश यादव ने विधान सभा अध्यक्ष को उसकी सदस्यता रद्द करने का पत्र भेजा और न ही विधान सभा अध्यक्ष ने इस बात का संज्ञान लिया। इसी तरह भाजपा के उन्नाव के विधायक की गिरफ्तारी पर उसे भाजपा से निष्कासित कर दिया परन्तु उसकी भी सदस्यता अभी तक समाप्त नहीं की गयी है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 💃
के नव निर्वाचित महासचिव डी. राजा, सांसद ने लखनऊ में पार्टी के राज्य परिषद सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का कृत्य असंवैधानिक और गैर प्रजातांत्रिक है। संसद के बजट सत्र को लम्बा खीच कर सरकार ने 30 बिलों को बिना चर्चा किये और नियमों के खिलाफ जाकर अपने संख्या बल के आधार पर पारित करा लिया। यहां तक कि उस राज्य का केवल एक भाजपाई सांसद ही संदन में उपस्थित था और बाकी को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। इस तरह संसद जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का वजूद समाप्त करने और उन्हें बेमतलब कर देने के प्रयास चल रहे हैं। इस तरह प्रजातंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर के विशेष प्राविधान केवल जम्मू एवं कश्मीर राज्य की जनता को ही नहीं प्राप्त हैं बल्कि देश के अन्य तमाम राज्यों को भी संविधान के अनुसार प्राप्त हैं। उसके दुष्परिणाम और बेचैनी देश के दूसरे भागों में भी दिखने लगी हैं। भारत राज्यों का एक गणतंत्र है और उस ढ़ाचे को ही समाप्त करने की साजिश चल रही है। सरकार ने कश्मीर की जनता, वहां के राजनैतिक नेताओं को विश्वास में लेने का प्रयास क्यों नहीं कर रही है और मानवीय मूल्यों की बर्बर हत्या कर रही है।
उन्होंने बसपा सुप्रीमों मायावती पर कश्मीर मामले में संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. अम्बेडकर को गलत तरीके से उद्घृत करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि डा. अम्बेडकर की सहमति से ही अनुच्छेद 370 संविधान में शामिल किया गया था। मूलतः डा. अम्बेडकर ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस तथा हिन्दू महासभा की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग को ठुकरा दिया था और उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र बनाने का समर्थन किया था।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने आसाम के एनआरसी का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे तरीकों से भाजपा और आरएसएस पूरे देश के माहौल को साम्प्रदायिक कर अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के प्रयास कर रहे हैं। एनआरसी के प्रकाशन से कई तरह के सवाल पैदा हो गये हैं और सरकार उनके हल के कोई प्रयास नहीं करना चाहती। क्या होगा, यह अभी तक अनिश्चित है। सरकार को इस मामले पर भी राजनैतिक दलों के नेताओं को विश्वास में लेना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख आरक्षण पर बहस की मांग कर रहे हैं। पहले उन्होंने इस समाप्त करने की मांग की थी। आरएसएस शुरूआती दौर से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों तथा महिलाओं को समाजिक न्याय का विरोध करती रही है। बहस का उनका मंतव्य मूलतः आरक्षण को समाप्त करवा देने का है। हालात यह है कि सरकारी नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, भर्ती नहीं की जा रही है और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण कर उनमें भी आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने प्रश्न खड़ा किया कि कितने लोगों को आरक्षण का लाभ इस समय मिल पा रहा है? इस प्रकार मोदी सरकार आरएसएस के दिशानिर्देशन में उसकी हिन्दू राष्ट्र और पूजीपतियों के हितों को पूरा करने की दिशा में ही आगे बढ़ रही है।
भाकपा महासचिव ने कहा कि नोट बंदी और जीएसटी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंस चुकी है। इन कदमों से अनौपचारिक क्षेत्र और छोटे एवं मध्य उद्योग पहले ही बर्बाद हो चुके थे। मोदी ने सत्ता में आने पर हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने का वायदा किया था परन्तु वास्तविकता है कि साढ़े पांच साल के शासन में उन्होंने बेरोजगारी की दर को आजादी के बाद पहली बार चरम पर पहुंचा दिया है। कृषि पहले से ही घाटे का सौदा बन चुकी है। अर्थव्यवस्था को संभालने के बजाय सरकारी खर्चे के लिए सरकारी सम्पदाओं तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निजी पूंजी के हाथों बेच रही है और भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व को भी खाली कर दिया गया है। सरकारी बैंकों के विलय की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वीकार किया कि आर्थिक मंदी के हालात हैं और भारतीय रूपया विश्व बाजार में अपनीे कीमत खोते हुए इस स्तर पर आ गया है कि 1 अमरीकी डालर को खरीदने के लिए आपको 72 से ज्यादा भारतीय रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वे वादा करती हैं कि इससे निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा लेकिन आयात की कीमत हमें कितनी ज्यादा देने होगी, उसका जिक्र नहीं करती है।
बेपरवाह (reckless) विनिवेश की प्रक्रिया चल रही है और सकल उत्पादन जीडीपी भी अपने न्यूनतम स्तर पर है। औद्योगिक उत्पादन तो ऋणात्मक हो चुका है। अगर सरकार के आकड़ों को सही मान लिया जाये तो औद्योगिक उत्पादन की दर आधा प्रतिशत रह गयी है।
उन्होंने कहा कि बैंकों में बड़े पूजीवादी घरानों के ऋण एनपीए होते चले जा रहे हैं, लोगों को देश छोड़ कर भागने दिया गया। उन्होंने 10 सरकारी बैंकों का विलय कर 4 बैंक कर देने की भी निन्दा की कि इससे अंततः बेरोजगारी की गति और बढ़ेगी। उन्होंने सरकारी दावों पर प्रहार करते हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण देने की क्षमता बढ़ाने का क्या उद्देश्य है? यह केवल बड़े पूंजीपतियों को और ऋण देने तथा पुराने एनपीए को बट्टे खाते डालने की साजिश के तौर पर किया गया है। इससे किसानों और छोटे व्यापारियों को तो सुविधायें नहीं बढ़ेंगी बल्कि शाखाओं के बंद होने के कारण और बेरोजगारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को याद रखने की कोशिश नहीं कर रही है कि 2008 की वैश्विक मंदी से भारत अगर बचा रहा था तो उसका एकमात्र कारण भारत का मतबूत सरकारी वित्तीय क्षेत्र था जिसे गर्त की ओर ढकेला जा रहा है।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक शक्तियों का आवाहन किया कि वे आरएसएस/भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुट हों।
उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य पर बोलते हुए भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में घोर साम्प्रदायिक और अपराधियों को संरक्षण देने वाली नीतियों को लागू किये हुए जिसका परिणाम मॉब लिंचिंग, दलितों और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार और बलात्कार के बाद हत्या की घटनाएं अपनी ऐतिहासिक ऊंचाईयों को छू चुकी है। पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल है। उन्होंने रविदास मंदिर, सोनभद्र, उन्नाव जैसी तमाम घटनाओं का उल्लेख किया।
एक प्रश्न के जवाब में होने कहा कि भाकपा उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में 7-8 जगहों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। एक दूसरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि नरेश अग्रवाल का विधायक पुत्र पार्टी बदल कर भाजपा में चला गया परन्तु न तो अखिलेश यादव ने विधान सभा अध्यक्ष को उसकी सदस्यता रद्द करने का पत्र भेजा और न ही विधान सभा अध्यक्ष ने इस बात का संज्ञान लिया। इसी तरह भाजपा के उन्नाव के विधायक की गिरफ्तारी पर उसे भाजपा से निष्कासित कर दिया परन्तु उसकी भी सदस्यता अभी तक समाप्त नहीं की गयी है।
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-08-2019) को "बप्पा इस बार" (चर्चा अंक- 3447) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
बेखयाली में भी तेरा ही ख्याल आये क्यूँ बिछड़ना है ज़रूरी ये सवाल आये
विपक्ष विहीन सरकारें तानाशाह होती है नियन्त्रण विहीन सरकारें संख्या बल के आधार पर कुछ भी कर सकती है ।कमजोर विपक्षी दल सी बी आई ,आई टी ,ई डी जैसे संगठनों की कार्यवाही से बचने के लिए स्वतः ही सरकार की शरण मे चले जाते है । मायावती सहित कई उदाहरण भारतीय जनता के सामने है ?
वे संगठित होकर अपना काम कर रहे हैं,
संगठन यहां तक कि फौजी ट्रेनिंग कैंप भी चला रहे हैं,
उन्हें किसी और चीज से कोई मतलब नहीं
बस हर हाल में सत्ता चाहिए
और वे इसे हासिल किए, कर रहे हैं!...
आप सब क्या कर रहे हैं?
सोचिए और कुछ बेहतर कीजिए!...
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