गुरुवार, 23 जुलाई 2020

रेणु चक्रवर्ती एक असाधारण कम्युनिस्ट नेता, संगठनकर्ता और भाकपा की सांसद थीं।रेणु चक्रवर्ती एक असाधारण कम्युनिस्ट नेता, संगठनकर्ता और भाकपा की सांसद थीं।







रेणु चक्रवर्ती एक असाधारण
कम्युनिस्ट नेता, संगठनकर्ता और भाकपा की सांसद थीं।


उन्होंने कम्युनिस्ट और महिला आंदोलनों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
उनका जन्म 21 अक्टूबर  1 917 को कलकत्ता में हुआ था। उनका परिवार ब्राह्मो परंपरा में पला हुआ था। पिता का नाम साधनचंद्र राय और माता का ब्रह्मकुमारी था।
रेणु उनकी एकमात्र संतान थी।
प्रकाशचंद्र राय और अघोर कामिनी देवी उनके दादा-दादी थे। वे सभी काफी संभ्रात और शिक्षित थे। रेणु के पति सुप्रसिद्ध ( कम्युनिस्ट पत्रकार निखिल चक्रवर्ती थे। सुमित उनके एकमात्र पुत्र जानी-मानी अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिक ‘मेनस्ट्रीम’ के संपादक हैं।
इंगलैंड में कम्युनिस्ट बनना व रेणु दी गीत-संगीत में भी निपुण थीं। उन्होंने कलकत्ता के लॉरेटो  कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की जिसमें
‘डिस्टिन्क्शन’ मिला। फिर वे विक्टोरिया कॉलेज में भर्ती हो गईं। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंगलैंड भेज दिया गया। उन्होंने कम्ब्रिज के न्यूनहैम, कॉलेज में
दाखिला लिया।
कैम्ब्रिज में वे 1937 से 1939
तक पढ़ी और उन्हें अंग्रेजी साहित्य
में ‘टाइपॉस’ की डिग्री मिली। इंगलैंड
में वे प्रसिद्ध ( कम्युनिस्ट रजनी पामदत्त के संपर्क में आईं। इसके अलावा वे वहां रह रहे कई भारतीय कम्युनिस्टों से भी मिलीे। रेणु दी ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी में काम करने लगीं।
इंगलैंड में निवास के दौरान रेणु रॉय को कई देश घूमने का मौका मिला। उन्हें बर्लिन के ‘उन्टेर डेर लिन्टेन’ ;वहां का प्रमुख राजमार्ग पर नाजी युवा सैनिकों द्वारा ‘गूज-स्टेप’
;मार्च करते हुए अपनी आंखों से देखने
को मिला। उन्होंने नाजी जर्मनी द्वारा
ऑस्ट्रिया पर हमला करते हुए देखा
जहां वे कुछ ही महीने पहले गई थीं।
इस संदर्भ में उन्हें मिमि शेन्केल की
याद आई जो सुभाषचंद्र बोस की
सचिव और भावी पत्नी थीं। इसी वक्त
चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण और
सुडेटेनलैंड पर कब्जे की घटनाएं
घटीं। इन घटनाओं से उनके मन में
फासिज्म के प्रति घृणा पैदा हो गई। वे
हिटलर द्वारा महिलाओं के लिए दिए गए ‘किन्डर, किर्शे, कुएशे’ के नारे
से भी घृणा करने लगीं अर्थात महिलाएं
बच्चा पैदा करें, रसोई घर में रहें
ओर केवल चर्च जाएं।
रेणु रॉय को प्रसिद्ध ( मार्क्सवादी
सिध्दांतकार जॉन स्टैªची का
समाजवाद तथा अन्य विषयों पर
व्याख्या सुनने का भी अवसर मिला।
रेणु दी ‘फेडिन्ड’ ;फेडरेशन ऑफ
इंडियन स्टूडेंट्स सोसायटीज इन
इंगलैंड एंड आयरलैंड की संस्थापक
महासचिव भी थीं। उन्होंने 1938 में
अमेरिका में आयोजित विश्व युवा
कांग्रेस में भी हिस्सा लिया। प्रो. हीरेन
मुखर्जी कहते हैं कि उन्होंने पहली
बार रेणु रॉय के बारे में कैम्ब्रिज में
1939 में सुना। उस समय वे विश्व
विद्यार्थी सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप
में गई थीं। उस समय नारा थाः
‘‘केवल लाल झंडा, दूसरा कोई
नहीं।’’
भारत में आंदोलन में शामिल
रेण चक्रवर्ती लिखती हैंः ‘‘जब मैं
भारत लौटीं तो देश की आजादी की
लड़ाई में भाग लेने की संभावना से
खूब उत्साहित हो गई।’’ उन्होंने
कलकत्ता विश्वविद्यालय में 1940
से 1947 तक अंग्रेजी साहित्य में
लेक्चरर के पद पर काम किया। साथ
ही वे पार्टी और जन कार्यों में भी
सक्रिय हिस्सा लेती रहीं।
1940 के आरंभ में रेणु रॉय ने
दिल्ली में संपन्न ए.आई.एस.एफ.
सम्मेलन में भाग लिया। बंगाल में
गर्ल स्टूडेंट्स कमेटी का गठन किया
गया जिसे संगठित करने में रेणु रॉय,
कनक दासगुप्ता तथा अन्य ने सक्रिय
भाग लिया। 1940 में लखनऊ में
महिला विद्यार्थियों का अखिल भारतीय
सम्मेलन आयोजित किया गया। इसकी
अध्यक्षता रेणु रॉय ने कीं। एक गर्ल
स्टूडेंट्स ऐसोसिएशन का गठन किया
गया। इस प्रकार युवा महिला
विद्यार्थियों ने महिला आंदोलन की नींव
रखी।
रेणु रॉय की मुलाकात इंगलैंड में
निखिल चक्रवर्ती से हुई उनका विवाह
भारत लौटकर 3 जनवरी 1942
को संपन्न हुआ।
अकाल और महिला
आत्मरक्षा समिति
रेणु रॉय ने द्वितीय विश्वयुद्ध के
दौरान बर्मा के सीमावर्ती इलाकों में
ब्रिटिश और अमरीकी सैनिकों द्वारा
महिलाओं पर ढाए जा रहे अत्याचारों
के खिलाफ वाइसरॉय को दिए जाने
वाले मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर इकट्ठा
किए। अंग्रेज प्रशासन सीमा-स्थित
गांवों को ढहा दे रहा था। इसके
खिलाफ रेणु तथा अन्य ने जोरदार
अभियान चलाया। साथ ही बढ़ती
जापानी सेनाओं से आत्मरक्षा की
तैयारियां कीं। इसके अलावा अकाल
की स्थितियां भी पैदा हो रही थीं।
महिला आत्म-रक्षा समिति का
जन्म इन्हीं परिस्थितियों मंे महिलाओं
के व्यापक जनसंगठन के रूप में हुआ।
जापानी फासिस्टों ने 20 दिसंबर
1942 को कलकत्ता पर बमबारी
आरंभ कर दी थी। बमबारी बाद के
दिनों में बढ़ती गई और कई अन्य
शहर इसके चपेट में आ गए, जैसे
विशाखापट्नम, चटगांव इत्यादि।
इसके फलस्वरूप बड़े पैमाने पर लोगों
का पलायन होने लगा जिसमें
महिलाओं और बच्चों को विशेष कष्ट
होने लगा। रेणु दी तथा महिला समिति
की अन्य महिला नेताओं ने
जगह-जगह रिलीफ और मदद के
लिए दौड़ लगाई।
अप्रैल 1942 में रेणु चक्रवर्ती
तथा अन्य नेत्रियों ने आपसी
विचार-विमर्श कर महिला समिति
निर्मित करने के लिए एक संगठन
समित गठित की। इला रीड को
संगठन सचिव बनाया गया। रेणु
चक्रवर्ती, मणिकंुतला सेन, इला रीड
तथा अन्य नेत्रियों ने एक प्रभावशाली
संगठन बना लिया जो समूचे प्रदेश मे
फेल गया। हजारों महिलाएं सदस्य
बन गई।
साथ ही नारी सेवा संघ का भी
गठन किया गया। इसने अत्यंत ही
गरीब महिलाओं के पुनर्वासित किया।
रेणु दी की माता ब्रह्म कुमारी रॉय
इसके केन्द्र में थी । वे ऑल इंडिया
वीमेन्स कॉन्फ्रेंस मेंभी सक्रिय थीं। निखिल चक्रवर्ती की
माता शैलजा चक्रवर्ती भी महिला
पुनर्जारण के काम में सक्रिय थीं।
कलकत्ता महिला आत्मरक्षा
समिति का प्रथम सम्मेलन 27-28
अप्रैल 1943 को आयोजित किया
गया। इसमें रेणु चक्रवर्ती का भाषण
भी हुआ। इस महिला समिति का प्रथम
प्रादेशिक सम्मेलन 8 मई 1943
को कलकत्ता में संपन्न हुआ। इसका
बड़ा ही जीवंत वर्णन रेणु दी ने किया
है
महिला समिति ने 5000
महिलाओं का जुलूस असेम्बली
बिल्डिंग के सामने निकला। वे
अकाल-राहत की मांग कर रही थीं।
रेणु चक्रवर्ती ने नागरिक प्रतिरक्षा,
फर्स्ट एड केंद्र और राहत किचन
गठित करने का काम किया।
मणिकुंतला सेन ने अपने संस्मण
‘शेदिनेर कथा’ ; उन दिनों के बारे में
में लिखा हैः ‘‘कार्यकर्ताओं की बैठक
बुलाने का निर्णय किया गया....मैंने
वक्ता की ओर देखा....वह अभी-अभी
इस उम्र में इंगलैंड से लौटी थी!......
.मुझे उसका नाम का पता लगा -रेणु।
वह सुप्रसिद्ध  डॉ. बिधानचंद्र रॉय की
भतीजी थी......ऐसे परिवारों के
लड़के-लड़कियां भी पार्टी में शामिल
हो रहे थे। मैं बड़ी खुश हुई। यह वही
रेणु थी जो मेरे राजनैतिक जीवन में
मेरी नजदीकी कार्यकर्ता, सहयोगी,
मित्र और सहायक बनी, पार्टी और
बाहर की दुनिया में जानी-मानी रेणु
चक्रवर्ती।’’
रेणु चक्रवर्ती ने ‘छात्री संघ’
;लड़कियों का विद्यार्थी संगठन के
1940 के सम्मेलन की अध्यक्षता
की। इसमें सरोजिनी नायडू मुख्य
अतिथि थीं।
रेणु चक्रवर्ती ने 1946-47 के
दंगों के दौरान नोआखाली तथा अन्य
जगहों में सक्रिय कार्य किया। वे
लिखती हैंः मेरा छोटा बच्चा मात्र एक
साल का था ;सुमित-लेखक।
हालांकि उसे छोड़ने में दिल कट रहा
था, नोआखाली की पीड़ित बहनों की
आवाजें मुझे घर बैठने नहीं दे रही
थी।’’
एन.एफ.आई.डब्ल्यू का संगठन
रेणु चक्रवर्ती ए.आई.डब्ल्यू.सी.
की कार्यकारिणी की सदस्य थीं। कई
अन्य कम्युनिस्ट और वामपंथी
महिलाएं भी इस संगठन मे सक्रिय
थींऋ लेकिन धीरे-धीरे संगठन में
राजनैतिक-वैचारिक मतभेद उभर
आए।
वीमेन्स इंटरनेशनल डेमोक्रटिक
फेडरेशन का संस्थापना कांग्रेस पैरिस में
नवंबर-दिसंबर 1945 में आयोजित
की गई। महिला आत्मरक्षा समिति
इससे संबद्ध हो गई। डब्ल्यू.आई.डी.
एफ. जून 1953 में कोपनहेगन में
होने वाले विश्व महिला सम्मेलन के
लिए भारत की महिलाओं को भी
आमंत्रित किया। यह आमंत्रण विदेश
अनिल राजिमवाले
रेणु चक्रवर्ती
रेणु चक्रवर्तीः असाधारण कम्युनिस्ट...
से भारत लौटते हुए रेणु चक्रवर्ती लाई थीं। उनसे अनुरोध किया गया था कि
वे वीमेन्स इंटरनेशनल का प्रचार करें। साथ ही वे विश्व सम्मेलन के लिए
भारत से 30 महिलाओं का प्रतिनिधिमंडल गठित करें।
रेणु चक्रवर्ती ने 10 मार्च 1953 को दिल्ली मे एक बैठक में भाग लिया
जिसमें इन प्रस्तावों पर विचार किया गया। डब्ल्यू.आई.डी.एफ. की अपील
पर रेणु चक्रवर्ती, अरूणा आसफ अली तथा 12 राज्यों के प्रतिनिधियों ने
हस्ताक्षर किए। नई दिल्ली के बंगाली मार्केट में तैयारी समिति का कार्यालय
खेाला गया। राष्ट्रीय तैयारी सम्मेलन 9 मई 1953 को दिल्ली में संपन्न
हुआ। इसमें ही अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आयोजित करने के लिए
एक राष्ट्रीय समन्वय समिति का गठन किया गया।
रेणु चक्रवर्ती एन.एफ.आई.डब्ल्यू. के प्रथम सम्मेलन संबंधी अपने संस्मरण
;एन.एफ.आई.डब्ल्यू स्मारिका, 1974, अंग्रेजी में लिखती हैं कि समन्वय
समिति जुलाई 1953 से जून 1954 तक सक्रिय रही।
एन.एफ.आई.डब्ल्यू. का संस्थापना सम्मेलन 4 जून 1954 को आरंभ
हुआ। इसमें एन.एफ.आई.डब्ल्यू. की स्थापना की गई। रेणु चक्रवर्ती संगठन
की उपाध्यक्ष बनाई गई। उन्होंने ही इसका संविधान भी तैयार किया था। एन.
एफ.आई.डब्ल्यू. के 1962 के सम्मेलन में उनहें संगठन का महासचिव
बनाया गया। इस पद पर वे 1970 तक बनी रहीं।
संसद में रेणु चक्रवर्ती 1948-51 के पार्टी में संकीर्णतावादी दौर में
गुप्त रूप से काम करती रही। अपनी लाईन बदलते हुए पार्टी ने 1952 के
आम चुनावों में हिस्सा लेने का फैसला लिया। उन्हें पार्टी की ओर से
बशीरहाट क्षेत्र से लोकसभा के लिए खड़ा किया गया। लोकसभा का यह
चुनाव वे जीत गईं। लोकसभा में वे बंगाल से एकमात्र महिला सदस्य थीं। वे
दूसरे और तीसरे आम चुनावों में भी लोकसभा सीट के लिए चुनी गईं
1962 के चुनावों मे उन्हें पूरे देश में लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक वोट
मिले। उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र की जनता की अनदेखी कभी नहीं की।
इसलिए आम आदिवासी और सामान्य जनता उन्हें बहुत चाहती थी।
ससंद मे उस दौर में एक दिलचस्प घटना घटी। लोकसभा मे किसी
सामान्य-से विषय पर तीखी बहस और तनातनी हो गई। इससे प्रधानमंत्री
नेहरू बड़े ही विचलित हो गए। उन्हें औरों का व्यवहार तो समझ में आ रहा था
लेकिन कम्युनिस्ट सदस्य एक छोटी-सी बात पर इतने नाराज क्यों हो गए,
यह समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने एक नोट भेजकर रेणु चक्रवर्ती को बुला
भेजा। वे उस वक्त लोकसभा में कम्युनिस्ट ग्रुप की उपनेता थीं। रेणु दी ने कहा
कि ऐसा स्पीकर के अड़ियलपन और रूखेपन के चलते हुआ। फिर विषय
बदलने के लिए रेणु दी ने कमरे में लगे नेहरूजी की तस्वीर की प्रशंसा की।
मुलाकात खत्म होने पर नेहरू ने फोटो पर हस्ताक्षर करके रेणु चक्रवर्ती को
भेज दिया और साथ ही बहस पर एक नोट भी!
रेणु चक्रवर्ती 1969 मे बंगाल कांग्रेस के अजय मुखर्जी के नेतृत्व में
बनी दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार में सहकारी मामलों की मंत्री भी बनीं।
पार्टी नेतृत्व में रेणु चक्रवर्ती भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 1958 में संपन्न अमृतसर पार्टी कांग्रेस में राष्ट्रीय परिषद में चुनी गईं। 1962 में हुए चीनी आक्रमण की
उन्होंने दो-टूक शब्दों में निंदा की। पार्टी में विभाजन के बाद उन्हें सेंटल
कंट्रोल कमिशन का सदस्य बनाया गया। वे जमशेदपुर तथा अन्य स्थानों में
चल रहे मजदूर आंदोलन में भी सक्रिय थीं। इस सिलसिले में उन्हें जेल की
सजा भी भुगतनी पड़ी।
उनकी पुस्तक ‘कम्युनिस्ट इन इंडियन वीमेन्स मूवमेंट’ ;भारतीय महिला
आंदोलन में कम्युनिस्ट 1940 से 50 के महिला आंदोलन के इतिहास
संबंधी अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है। इसके लिए उन्होंने काफी शोधकार्य किया
और शोध-सामग्री जुटाई।
1970 के बाद पुरानी हृदय की बीमारी से उनका स्वास्थ्य खराब रहने
लगा। उनका ‘ओपन हार्ट सर्जरी’ हुआ, फिर भी वे सक्रिय रूप से बनी रहीं।
लेकिन बाद में उन्हें ‘ब्रेन हेमोरेज’ हो गया।
उनका देहान्त 16 अप्रैल 1994 को हो गया।
-अनिल राजिमवाले

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |