शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

क्रांति की मशाल ः डॉ जेड ए अहमद


डॉ. जेड.ए. अहमद के परदादा का
नाम रामसिंह चौहान था। यह राजपूत
परिवार जालंधर में रहा करता था।
शुरू में वे राजस्थान की एक रियासत
में बड़े ओहदे पर थे। फिर जम्मू-कश्मीर
में मीर मुंशी के पद पर रहे।
1830 में उनकी मुलाकात एक
मुसलमान फकीर से हो गई और उन्होंने
इस्लाम कबूल कर लिया तथा
मुसलमान बन गए। उनकी तस्स्वीर
आज भी लौहार के चीफ्स कॉलेज में
लगी हुई है।
जेड.ए. अहमद के पिता जियाउद्दीन
अहमद थे। उनकी मां इकबाल बेगम
थीं जो जाट परिवार की थीं। अहमद
का जन्म उमरकोट, सिंध, जिला
थरपारकर ;आजकल पाकिस्तान में
में 29 सितंबर 1907 को हुआ था।
उनके पिता बड़े उदार थे जिनकी
बदौलत जेड.ए. अहमद राष्ट्रवादी और
कम्युनिस्ट बन गए। जेड.ए. अहमद
का पूरा नराम जैनुल आबदीन अहमद
था।
पिताजी ने जैनुल के इस्लामी
मदरसे में भेजने का विरोध किया
क्योंकि वह कठमुल्लापन का अड्डा
हुआ करते। प्राइवेट ट्यूटर का इंतजाम
कर अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू कर दी।
1914 में गोधरा ;गुजरात  में ट्रांसफर
के बाद जैनुल म्युनिसिपल स्कूल में
भर्ती हो गए। फिर सिंध वापस, वहां
हैदराबाद से मैट्रिक ;सातवीं क्लास
ओर फिर ‘जैन’ ;जैनुल को अलीगढ़
यूनिवर्सिटी में भर्ती करा दिया गया।
बी.ए. में अंग्रेजी, इतिहास और
अर्थशास्त्र पढ़ा। ‘फ्रांसीसी क्रांति’ ऑनर्स
का विषय था।
अलीगढ़ में सैद्धांतिक बहसों में भाग
लिया और शापुरजी सकलतवाला को
सुनने का मौका मिला। यहां जेड़.ए.
अहमद ने अपने कुछ साथियों के साथ
मिलकर रेडिकल पार्टी बनाई जो
समाजवादी क्रांति के पक्ष में थी।
अलीगढ़ में रहते हुए उन्होंने के.एस.
अशरफ को भी अपनी ओर खींच लिया।
1921 में ही जैनुल ने अपने
पिता के हाथों में लेनिन की एक जीवनी
देखी। पिता ने उन्हें बताया कि लेनिन
एक महान पुरूष थे और एक नए
समाज को बनाने में लगे हुए थे। बी.ए.
ऑनर्स करने के बाद जैनुल की
इच्छानुसार उन्हें 1928 में उच्च शिक्षा
के लिए इंगलैंड भेज दिया गया।
लंदन की पढ़ाई के लिए मुस्लिम
एजुकेशन ट्रस्ट से लंदन के थॉमस
कुक एंड संस के जरिए 250/ -प्रति
माह का खर्चा मिलने लगा। यह कर्ज
था जिसे लौटाना था लेकिन देश के
विभाजन के बाद ट्रस्ट पाकिस्तान चला
गया और बात खत्म हो गई। लंदन में
मौलाना मुहम्मद अली के साथ रहने
का मौका मिला।
कम्युनिस्ट नेताओं की जीवनी -17
डॉ. जेड.ए. अहमदः बहुमुखी प्रतिभा
लंदन में जैनुल  शापुरजी
सकलतवाला से मिले। वे एक फ्लैट में
परिवार सहित रहा करते, साधारण
अवस्था में। यदि शापुरजी कम्युनिस्ट
नहीं होते तो टाटा खानदान के मुखिया
बन सकते थे! लेकिन कम्युनिस्ट बनने
के बाद उनकी सारी दौलत जब्त कर
ली गई। वे ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी की
ओर से 1927 में बैटरसी से एम.पी.
चुने गए।
सकलतवाला जेड.ए. अहमद लंदन
स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में पढ़े। वहां
उनका परिचय फेबियन सोशलिज्म तथा
वैज्ञानिक समाजवाद से हुआ।
ऑक्सफोर्ड यूनिवसिर्टी में सज्जद जहीर
एक कम्युनिस्ट ग्रुप का नेतृत्व कर रहे
थे। लंदन ग्रुप में अहमद, अशरफ,
शौकत उमर, निहरेन्दु दत्त मजूमदार,
बनर्जी इ. साथी थे।
ब्रिटिश कम्युनिस्ट सिद्धांतकार राल्फ
फॉक्स ने मार्क्सवाद संबंधी नियमित
लेक्चर दिए। बेन ब्रैडले ने भी क्लास
लिया। भारत नामक एक पत्रिका भी
निकाली गई। ग्रुप ने एक और महत्वपूर्ण
काम किया। गोलमेज सम्मेलनों में आए
लोगों के हाथों मार्क्सवादी साहित्य भारत
पहुंचाया गया क्योंकि उनकी जांच नहीं
होती थी। उसमें से एक बंडल
घूमते-घामते इलाहाबाद के आनंद
भवन पहुंच गया। इंदिरा गांधी ने वर्षों
बाद सूचना दी कि मार्क्स और लेनिन
संबंधी वे किताबें नेहरू जी की निजी
लाइब्रेरी में सुरक्षित हैं!
लंदन निवास के दौरान अहमद,
गुप्ता और शौकत उमर ने योरोप के
कई देशों की यात्रा साइकिल से कीः वे
हॉलैंड से चलकर घूमते-घामते ढाई
महीनों में इटली पहुंचे और रातों में
किसानों के घर ठहरते रहे। 1932
में उन्हें, सज्जाद जहीर और हाजरा
बेगम को ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी का
गुप्त सदस्य बनाया गया।
अहमद को 1931 में लंदन
स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से बी.एस.
सी ;अर्थशास्त्र डिग्री मिली। आई.
सी.एस. की संभावना होते हुए भी वे
शामिल नहीं हुए। उन्होंने ‘‘महिला और
बाल श्रमिकों की स्थिति’’ पर पी.एच.
डी. की और इस सिलसिले में फील्ड
वर्क के लिए 6 महीने भारत-यात्रा
की। इस बीच बंबई में एक कॉलेज में
पढ़ाया भी। 1935 में उन्हें पी.एच.
डी.की डिग्री मिल गई।
1935 में ब्रिटिश भाकपा के
महासचिव हैरी पॉलिट ने उन्हें बुलाकर
फासिज्म विरोधी मोर्चे की चर्चा की।
कॉमिन्टर्न की सातवीं कांग्रेस के संदर्भ
में ऐसे मोर्चे की जरूरत थी। अहमद
की मुलाकात मौरिस डॉब, प्रो. लास्की
तथा अन्य सुप्रसिद्ध व्यक्तियों से हुई।
1934 में वे ब्रसेल्स में फासिज्म और
युद्ध विरोधी सम्मेलन में शामिल हुए
जिसे कुछ युवा-विद्यार्थी संगठनों ने
आयोजित किया था। उनके साथ हाजरा
बेगम और दो बंगाली साथी भी गए।
सम्मेलन से वे काफी उत्साहित हुए।
भारत वापसी
डॉ. अहमद 1936 में भारत लौट
आए। बंबई में एस.जी. सरदेसाई तथा
अन्य साथियों से मिले। बी.टी.रणदिवे
के साथ उनकी मुलाकात निराशाजनक
रही और रणदिवे सख्त रहे। वे कॉमिन्टर्न
के सातवें सम्मेलन ;1935 के फैसलों
से सहमत नहीं थे। अहमद के साथ
महमुदुज्जफर भी थे।
वे कराची पहुंच गए। उनके पिता
उनके विचारों के बारे में सब जानते
थे। वे डी.आई.जी. थे और उनके पास
गुप्त रिपोर्टें आया करतीं। भविष्य के
बारे में बातें होने लगीं। अहमद को
कॉलेजों से नौकरी के प्रस्ताव आने लगे।
वे सिंध में एक कॉलेज में लेक्चरर बन
गए लेकिन मन नहीं लगा। इस कॉलेज
के विकास में काफी काम किया।
इस बीच 1936 में सज्जाद
जहीर ने पत्र के जरिए उन्हें लखनऊ
बुला लिया। वहां लंदन ग्रुप इक्ट्ठा हो
रहा था। कांग्रेस का अधिवेशन भी हो
रहा था जो बड़ा शानदार था। अहमद
ने कॉलेज से इस्तीफा दे दिया और
सज्जाद जहीर से मिलने इलाहाबाद
चले गए। फिर लखनऊ में पी.सी जोशी
से मिले और भविष्य में योजनाएं में
काम करने की सलाह दी। संयुक्त मोर्चे
का संदेश जनता तक पहुंचाना है। इसी
वक्त भा.क.पा. की केंद्रीय समिति की
बैठक लखनऊ में ;1936 हुई। पी.
सी. जोशी ने अहमद से पार्टी सदस्यता
का फॉर्म भरवाया। पी.सी. जोशी ने एक
विशेष कुर्सी लगवाकर अहमद को मंच
पर बिठाया। उन्हें केंद्रीय समिति का
आमंत्रित सदस्य बनाया गया।
जेड.ए. अहमद फिर नेहरू से
इलाहाबाद में मिले। नेहरू ने उनके
विचार और योजनाएं पूछने के बाद
अहमद को 50/-रु. माहवार पर
आनंद भवन में होलटाइमर रख लिया।
शादी के बाद यह 75/-रु. हो जाता!
के.एम. अशरफ पहले ही कांग्रेस में
शामिल हो चुके थे। अहमद आनंद
भवन में ही रहने लगे।
इस बीच हाजरा बेगम के साथ
उनका विवाह हो गया।
कांग्रेस में काम
नेहरू की देखरेख में विभिन्न विभागों
का गठन किया गया। डॉ. जेड.ए. अहमद
को आर्थिक विभाग की जिम्मेदारी दी
गई। उन्होंने कृषि और आर्थिक
समस्याओं पर कई पुस्तिकाएं प्रकाशित
कीं। इनमें एक थी ‘एग्रेरियन प्राब्लेम्स
इन इंडिया’ ;भारत में कृषि समस्याएं।
यह पुस्तक खूब प्रसिद्ध हुईं। नेहरू
इतने खुश हुए कि अहमद का हाथ
पकड़कर उन्हें गांधी जी से मिलवाया।
पुस्तक की बात सुनकर गांधीजी ने
उनहें गले लगा लिया। इसके अलावा
कई अन्य पुस्तकें भी तैयार की गईं।
इस बीच जेड.ए. अहमद ने प्रेस
वर्कर्स यूनियन, गवर्नमेंट प्रेस वर्कर्स
यूनियन तथा अन्य प्रेस तथा दूसरे
मजदूरों की यूनियनें बनाईं। दो वर्षों में
इलाहाबाद में कम्युनिस्ट पार्टी की यूनिट
भी बना ली गई। 1937 में उनकी
मुलाकात आर.डी. भारद्वाज से गुप्त रूप
से हुई। जेड.ए. अहमद को आगे सी.
एस.पी.;कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी;कांग्रेस
के अंदर गठित का महासचिव नियुक्त
किया गया।
1937 से 1939 के बीच जेड.
ए. अहमद यू.पी. प्रदेश कांग्रेस कमेटी
के सचिव थे। साथ-साथ वे कम्युनिस्ट
पार्टी का काम भी करते रहे। उन्होंने
उन जिलों का भी दौरा किया जहां
कम्युनिस्ट पार्टी के ग्रुप बन चुके थे।
1938 में वे चौरी-चौरा गए जहां
जबर्दस्त किसान आंदोलन चल रहा
था। शिब्बन लाल सक्सेना और मुंशी
कालिका प्रसाद के साथ कई दिनों तक
गांवों की यात्रा की। आर.डी. भाद्वाज के
साथ घूमकर कई जगह कम्युनिस्ट पार्टी
की इकाइयां बनाई। 1936 से
1940 के बीच कानपुर में मजदूरों
का जबर्दस्त संघर्ष चले। इसमें मौलाना
संत सिंह युसुफ तथा अन्य नेता थे।
अहमद की मुलाकात इस बीच रमेश
सिन्हा, शिवदान सिंह चौहान, एम.एन.
टंडन, भट्टाचार्य, रफीक नकवी,
अयोध्या प्रसाद, नारायण तिवारी इत्यादि
साथियों से हुआ।
1937 में उन्होंने यू.पी. प्रादेशिक
कांग्रेस कमेटी के सम्मेलन में भाग
लिया। वे ए.आई.सी.सी के महासचिव
में से एक बनाए गए।
उन्हीं दिनों बिहार के मोतीहारी में
किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए
उन्हें बुलावा आया। सम्मेलन के
संचालक राहुल सांकृत्यायन थे। बाद
में राहुल जी 1939 में इलाहाबाद में
अहमद के साथ 20-25 दिन रहे।
उनके लिए एक विशेष झोंपड़ी बनवा
दी गई। संभवतः वहां राहुलजी ने अपनी
सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा’’ के
कुछ अंश लिखे। राहुलजी को वहीं से
गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में जेड.
ए. अहमद को भी गिरफ्तार कर लिया
गया। लगभग डेढ़ महीने बाद देवली
कैम्प भेज दिया गया।
देवली कैम्प में
यह विशेष जेल थी जिसमें सबसे
खतरनाक समझे जानेवाले कैदियों को
रखा जाता था। इसका निर्माण 1857
के गदर के कैदियों के लिए किया गया
था। बंद किए जाने के बाद 1880
में इसे फिर से खोला गया। 1940
में 20-20 की टोलियों में कैदियों
को पहुंचाया गया। यह गर्म रेगिस्तान
के बीच कोटा ;राजस्थान से लगभग
60 कि.मी. दूर कंटीले तारों और वॉच
टॉवरों से घिरा हुआ था जहां से कोई
भाग नहीं सकता था। इसकी देखभाल
सेना करती थी। डॉ. जेड.ए. अहमद
को वहीं ले जाया गया। वहां बड़ी संख्या
में कम्युनिस्ट तथा अन्य नजरबंद थे।
वहां बड़ी संख्या में अन्य पार्टियों के
लोग कम्युनिस्ट पार्टी में भर्ती हो गए।
देवली कैम्प में समय और संख्या
का सदुपयोग करते हुए मार्क्सवाद की
क्लासें चलाई गईं। एस.ए. डांगे ने डॉ.
जेड.ए. अहमद को आर्थिक प्रश्नों पर
लेक्चर देने के लिए कहा जो काफी
पसंद किए गए।
जब बीच में परिवार और अन्य
लोगों पर मिलने की पाबंदी लगा दी
गई तो कैदियों ने भूख-हड़ताल कर
दी जिसमें अहमद भी शामिल थे। यह
भूख हड़ताल 2 अक्टूबर 1941 को
आरंभ हुई। मांगों में आश्रितों को भत्ता,
अपने-अपने प्रदेशों की जेलों में भेजने
की मांगें भी शामिल थीं। जबरन खिलाने
की कोशिशें की गई। अहमद
भूख-हड़ताल के दौरान काफी कमजोर
हो गए। मिरजकर और नरेन्द्र शर्मा को
अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।
भूख-हड़तालियों पर दमन का सारे
भारत में विरोध किया गया। महिलाओं
का एक प्रतिनिधिमंडल गृहसचिव
मैक्सवेल से मिला जिसमें हाजरा बेगम,
फरीदा बेदी तथा अन्य शामिल थीं।
महिलाओं ने चेतावनी दी कि कैदियों
के समर्थन में वे भी भूख-हड़ताल पर
बैठ जाएंगी। मांगें मान लीं गई और
भूख-हड़ताल समाप्त कर दी गई।
जनवरी 1942 के प्रथम सप्ताह में
कैम्प बंद करने की तैयारियां शुरू हो
गई। जेड.ए. अहमद को बरेली सेंट्रल
जेल भेज दिया गया। अप्रैल 1942
में उन्हें रिहा कर दिया। वे लाहौर अपने
परिवार से मिलने चले गए।
पार्टी पर से पाबंदी हटा दी गई
थी। लाहौर में एक नया दफ्तर भी
कायम कर लिया गया। अहमद की
मुलाकात हरकिशन सिंह सुरजीत,
मंसूर, सोहन सिंह जोश, इ. से हुई।
पेरिन भी सक्रिय थीं। हाजरा ने
राजनैतिक शिक्षा का काम संभाला।
जल्द ही अहमद और हाजरा यू.
पी. में किसान सभा और पार्टी का काम
करने चले गए।
प्रकाशन केंद्र
1942 में जेड.ए. अहमद ने
इंडिया पब्लिशिंग हाउस की स्थापना
की। इसके तहत ‘सोश्लिस्ट बुक क्लब’
की स्थापना की गई जिसमें पांच सौ
आजीवन सदस्य बनाए गए। इसके बाद
प्रकाशन का काम आरंभ किया गया।
सुभाष बोस, जयप्रकाश नारायण और
कई अन्य को भी जोड़ा गया। हाजरा
की देखरेख में प्रगतिशील लेखक संघ
से भी काफी सहायता मिली। छह-सात
महीनों में क्लब के इर्द-गिर्द
बुध्दि जीवियों का एक अच्छा-खासा ग्रुप
संगठित हो गया। जेड.ए. अहमद ने
स्वयं कई पुस्तकें, और छोटी पुस्तिकाएं
लिखीं। उनकी सरल भाषा में लिखित
‘सोशलिज्म की पहली किताब’ बड़ी
लोकप्रिय हुई।
इस कार्य से अहमद की आर्थिक
समस्याएं काफी हद तक हल हो गईं।
इलाहाबाद के मजदूरों में काम
जेड.ए. अहमद ने कानपुर में प्रेस
मजदूरों को संगठित कर प्रेस वर्कर्स
यूनियन का गठन किया। इलाहाबाद में
हाजरा ने रेलवे कुलियों की यूनयिन
बनाई। कुली संगठन भी बनाया। इसके
अलावा अहमद ने बीडी, टिन,
इक्का-तांगा, रिक्शा चालकों, दुकान
मजदूरों तथा अन्य मजदूरों के संगठन
बनाए।
इनके अलावा छिवकी सेंट्रल
ऑर्डिनेस डिपो में यूनियन बनाई जहां
1200 मजदूर काम करते थे। इसके
अलावा मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस की
भी यूनियन गठित की। अहमद के साथ
इस काम में के.जी. श्रीवास्तव भी थे
जो आगे चलकर एटक के महासचिव
बने। उन्हें अहमद ने ही पार्टी में लाया।
इसके अलवा 1944 में बनारस
में हथकरघा मजदूर सम्मेलन में उन्होंने
हिस्सा लिया। इसे रूस्तम सैटिन ने
आयोजित किया था। इस प्रकार अहमद
ने बुनकरों के बीच काम किया। इस
काम में अब्दुल बाकी और खैरूल बशर
उनके साथ थे। गांव-गांव घूमकर
उन्होंने बुनकारों को संगठित किया।
उन्हें राजनैतिक दिशा दी। जेड.ए.
डॉ. जेड.ए. अहमदः बहुमुखी प्रतिभा
अहमद ने मऊ को अपना केंद्र बनाया।
उनका इरादा एक छोटा-सा घर बनाकर
वहीं बस जाने और आजीवन बुनकरों
के बीच कार्य करने का था। लेकिन
पार्टी ने मानने से इंकार कर दिया।
बुनकर आंदोलन पूरे पूर्वी उत्तरप्रदेश
में फैल गया। पार्टी की मजबूती के
पीछे बुनकर आंदोलन की भूमिका रही।
अ.भा. किसान सभा में
1936 में 11 अप्रैल को
लखनऊ में सारे भारत में किसान
प्रतिनिधि इकट्ठा हुए। यह अ.भा.
किसान सभा का प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन
था। इसी में अ.भा. किसान सभा की
स्थापना हुई। इस सम्मेलन में जेड.ए.
अहमद दर्शक प्रतिनिधि के रूप में
उपस्थित थे। उनकी मुलाकात
उच्च-स्तरीय सुप्रसिध्द किसान नेताओं
से हुई। इनमें इन्दूलाल याज्ञनिक और
एन.जी.रंगा से हुई। उन्होंने जेड.ए.
अहमद का स्वागत करते हुए कहाः
‘‘अब तुमको कहीं जाने की जरूरत
नहीं है। सीधे किसान सभा में आ जाओ
और हिन्दी-भाषी क्षेत्रों में किसान सभा
को संगठित करो।’’
अहमद ने यू.पी. और बिहार में
किसान सभा गठित करने एवं प्रसारित
करने में सक्रिय भूमिका अदा की।
किसान सभा के सिलसिले में उन्हें सारा
देश घूमने का मौका मिला। वे 1938
में अ.भा. किसान सभा की केंद्रीय
कार्यकारिणी में आ गए। जयबहादुर
सिंह, सरजू पांडे और जेड.ए. अमद
को ‘त्रिगुट’ कहा जाता था।
अवध प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी
किसान सभा के विकास में जेड.ए.
अहमद ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
मुंशी कालिका प्रसाद और बाबा
रामचन्दर ने इस इलाके में काफी काम
किया। जेड.ए. अहमद मुंशी कालिका
प्रसाद को पार्टी में लाने में सफल रहे।
1946 में उन्होंने साथियों में सक्रियता
से काम किया।
1943 में जेड.ए. अहमद ने भा.
क.पा. की प्रथम कंग्रेस में बंबई में भाग
लिया।
अलीगढ़ इलाके में 1944-45
कि दौरान किसान सभा का गठन हुआ
और किसान आंदोलन तेज हुआ।
कांग्रेसजनों का एक बड़ा ग्रुप कम्युनिस्ट
पार्टी में शामिल हो गया। हाजरा बेगम
ने विशेष सक्रियता से काम कियाः फंड
जमा करने के लिए एक नारा खूब
प्रसिद्ध हो गया-‘‘आ गई हाजरा, दे
दो बाजरा’’!किसान सभा के कार्य के
दौरान अहमद को स्वामी सहजानंद
की नाराजगी दूर करने बिहटा ;बिहार
जाना पड़ा। फिर अहमद को मालाबार
;आज केरल में का दौरा करना पड़ा,
जहां किसान आंदोलन तेज हो रहा
था। वहां नम्बूदिरीपाद से मुलाकात हुई।
फिर अहमद बंबई आ गए। जोशी ने
पत्र के जरिये उन्हें तुरंत बंगाल जाने
के लिए कहा। बंगाल में भुखमरी और
अकाल छाया हुआ था। 1946 में
बंगाल में ऐतिहासिक तेभागा आंदोलन
में जेड.ए. अहमद ने भाग लिया।
आजादी के बाद
1948 में अहमद ने कलकत्ता
पार्टी कांग्रेस में भाग लिया। उस वक्त वे
यू.पी. पार्टी के सचिव थे। सरकार ने
पार्टी पर पाबंदी लगा दी। इस समय
पार्टी पर ‘बी.टी.आर. लाईन’ हावी थी।
रातों-रात 60-70 लोगों ने एक
विश्वस्त सूचना के आधार पर दफ्तर
खाली कर दिया। दो-तीन दिन फिरोज
कोठी में रहने के बाद शौकत उमर ने
ट्रेन से दिल्ली जाने का इंतजाम कर
दिया। वे एक फौजी वर्दी में छिपकर
गए। अगले दिन डाकोटा प्लेन से लाहौर
चले गए। पाकिस्तान में भी उनकी
गिरफ्तारी कर वारंट जारी कर दिया
गया था। फिर वहां से उनके भाई साहब
ने कराची रवाना कर दिया। वहां उनके
भाई जफरूद्दीन अहमद डी.आई.जी. थे,
इसलिए पुलिस की गाड़ी में ही घर
पहुंच गए! उनके डी.आई.जी. भाई ने
पुलिस वालों को साफ कहा कि अहमद
वहीं ठहरे हैं, ठहरेंगे और आप निगरानी
बंद करें!
हैदराबाद ;सिंध से वे धनी व्यापारी
के भेष में जोधपुर चले आए। फिर
बंबई चले गए। फिर कुछ समय बाद
इलाहाबाद आ गए।
बी.टी.आर. लाईन और तौर-तरीकों
की जेड.ए. अहमद ने तीखी आलोचना
की है। पार्टी ‘डेन’ में वे रहने लगे। बी.
टी.आर. ने आदेश दिया कि उनसे केवल
शारीरिक काम कराया जाय अर्थात खाना
पकाने और बर्तन धोने का!
इसमें अलावा बी.टी.आर. ने आदेश
दिया कि हाजरा जेड.ए. अहमद को
तलाक दे दें क्योंकि वे कम्युनिस्ट नहीं,
सुधारवादी और संशोधनवादी हो गए
हैं! उन दोनों ने मानने से इंकार कर
दिया।
इस बीच ‘कॉमिन्फार्म’ ;विश्व
कम्युनिस्ट सूचना ब्यूरो-मास्को के
अखबार का संपादकीय शिवकुमार मिश्र
दौड़े-दौड़े लेकर आए। सभी भौंचक्के
रह गए क्योंकि वह पार्टी लाईन से
बिल्कुल अलग था-भारत को आजादी
से मिली, अर्थव्यवस्था मजबूत करें,
जन कल्याणकारी कामों में हिस्सा लें,
इ.। राज्य पार्टी की आपात बैठक
बुलाकर नया नेतृत्व चुना गया और
 पहले शिव कुमार मिश्र, और फिर जेड.ए. अहमद को सचिव बनाया गया।
1951 में कलकत्ते में पार्टी की गुप्त
सम्मेलन हुआ। अहमद छिपकर पुलिस
को चकमा देते हुए कलकत्ता और वहां
से गन्तव्य स्थान पहुंचे। पार्टी सम्मेलन
में अजय घोष को नया महासचिव बनाया
गया। जेड.ए. अहमद को 21 सदस्यीय
नई केंद्रीय समिति ;सीसी का सदस्य
बनाया गया। वे मदुरई ;1953-54
कांग्रेस में चुनी गई सी.सी. के भी सदस्य
थे। पालघाट ;1956 की पार्टी की
पार्टी कांग्रेस में बनी सी.सी. और पॉलिट
ब्यूरो में अहमद को शामिल कर लिया
गया। 1958 ;अमृतसर कांग्रेस में
बनी सेक्रेटरिएट में उन्हें शामिल किया
गया। उसके बाद 1964 तक वे
सेक्रेटरिएट में रहे।
1968 में पटना कांग्रेस में उन्हें
केंद्रीय कार्यकारिणी में लिया गया। वे
1992 तक इसके सदस्य रहे।
जेड.ए. अहमद 1958 से
1962, 1966, 72,
1972-78 और 1990 से
1994 तक राज्य सभा के मेंबर बने
रहे। बीच में वे विधान परिषद के भी
सदस्य रहे। वे 1952 का लोकसभा
चुनाव इलाहाबाद से लड़े लेकिन हार
गए।
जेड.ए. अहमद का देहान्त 17
जनवरी 1999 को हो गया।
-अनिल राजिमवाले

डॉ जेड ए अहमद अपनी पत्नी हाजरा बेगम व पुत्री सलीमा रजा
डॉ जेड ए अहमद व विश्व नाथ प्रताप सिंह

डा जेड ए अहमद व हाजरा बेगम 

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