31 अक्टूबर 2020 को भारत के पहले केंद्रीय मजदूर संगठन
ष्ऑल इंडिया ट्रेड युनियन काँग्रेसष् के गौरवशाली सौ साल पूरे हुए। एटक
की स्थापना 31 अक्टूबर 1920 को मुंबई मे हुई। इस स्थापना
सम्मेलन में देश के सभी राज्यों से विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूर
शामिल हुए थे। यह वह समय था जब देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के
खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो रहा था। जलियांवाला बाग कांड अभी
ताजा था जिसमें एक अँग्रेज आर्मी जनरल ने, बैसाखी मना रहे निहत्थे
लोगों पर अंधाधुंद गोलियां बरसा कर दर्दनाक तरीके से मौत के घाट उतार
दिया था। महात्मा गांधी ने तुरंत इस के बाद ब्रिटिश सरकार से असहयोग
और नागरिक अवज्ञा आंदोलन का आवाहन किया था। उस में जनता के
सभी तबके - देहात के किसान, शहरों क३
में वर्गचेतना दर्शाती हैं। पहला महायु( शुरू होने तक यह सिलसिला जारी
रहा।
1905 मे ब्रिटिश हुकूमत ने बढ़ते आंदोलन मे फूट डालने के इरादे
से बंगाल का विभाजन किया। नतीजा उलटा ही हुआ। मज़दूर और भी
तेजी से लामबंद होने लगे और अपनी संघटित ताकत स्वतंत्रता आन्दोलन
में उतारने लगे। हडतालों की लहर फिर उभरने लगी। इसमे उल्लेखनीय
छः दिन की हडताल है जो लोकमान्य तिलक को छः साल की की सजा
सुनाने के विरोध में मुंबई के मजदूरों ने 24 हे 28 जुलाई, 1908 में
की। मजदूर अंग्रेज पुलिस व अंग्रेज आर्मी से भीड़ गए।
लेनिन ने इस हड़ताल के बारे में लिखा, ष्भारतीय सर्वहारा वर्ग पहले
से ही सचेत और राजनीतिक जन संघर्ष छेड़ने के लिए पर्याप्त रूप से
परिपक्व हो चुका है, और यह मामला भारत में एंग्लो-रशियन तरीकों से
खेला जाता हैष्।
1914 से मजदूर वर्ग कई नये३
जैसा कानूनद्ध के खिलाफ हडताल हुई, जो राष्ट्रीय आंदोलन पर बहुत बड़ा
असर था। 1920 के पहले छः महिनों मे 200 हडताल हुईं जिसमें 15
लाख मजदूरों ने हिस्सा लिया। 1920 में मांगों में काम के घंटे दस हों
और महंगाई भत्ता मिलें आदि मांगे प्रमुख थी।
जुलाई 1920 से दिसम्बर 1920 तक 97 हडताले हुइंर् जिसमें
सिर्फ 31 नाकामयाब हुईं। बाकी सभी हडतालों से मजदूरों ने कुछ न कुछ
हासिल किया।
1920 में और कुछ युनियनों का गठन हुआ - जैसे जमशेदपूर लेबर
एसोसिएशन, अहमदाबाद वर्कर्स युनियन, इंडियन कोलियरी एम्प्लॉईज
एसोसिएशन, बंगाल-नागपूर रेलवे, इंडियन लेबर युनियन, ऑल इंडिया
पोस्टल त्डै युनियन, इंपीरियल बैंक स्टाफ एसोसिएशन, बर्मा लेबर
एसोसिएशन, हावड़ा लेबर युनियन, ओडिया लेबर युनियन, बंगाल अॅन्ड
नॉर्थ वेस्टर्न रेलवेमेन्स एसोसिएशन, ठठब् - प् रेलवे ३
अली जिन्ना, मिसेस अॅनी बेसंट, वि. जी. पटेल, बी. पी. वाडिया, जोसेफ
बाप्तिस्ता, लालूभाई सामलदास, जमनादास, द्वारकादास, बी. डब्ल्यू.
वाडिया, आर. आर. करंदीकर, कर्नल जे. सी. वेजवुड, जो ब्रिटिश ट्रेड
युनियन कौन्सिल के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मेलन में शरीक हुए। 43 ऐसी
युनियन थी जो परिषद मे हिस्सा नही ले पाई लेकिन उन्होने सम्मेलन के
प्रति अपनी सहमति घोषित की थी।
लाला लाजपत राय ने बंबई शहर में 10,000 कार्यकर्ताओं के जुलूस
का नेतृत्व किया। लाला लाजपत राय ने कहा था, वर्तमान के लिए हमारी
सबसे बड़ी जरूरत संगठन, आंदोलन और कार्यकर्ताओं को शिक्षित करना
है। हमें अपने कार्यकर्ताओं को संगठित करना होगा, उन्हें उनके वर्ग के प्रति
जागरूक करना होगा और उन्हें एक समान राष्ट्र के तरीकों और हित के
बारे में शिक्षित करना होगा ”।
उन्होंने यह भी कहा कि ष्श्रम आ३
बदौलत कई कानून हासिल किये गये - जैसे वर्कमेन्स कम्पनशेसन एक्ट
1923, ट्रेड युनियन एक्ट 1926 के कानून। तब तक भी एटक का
नेतृत्व मध्यमवर्ग या बु(ीजिवीयों के हाथों में ही था। वे परोपकार की भावना
से एटक में हिस्सा लिया करते थे। साथ ही, जो मार्क्सवाद और समाजवाद
में रूचि रखते थे वे भी युनियन बनाने मे दिलचस्पी ले रहे थे। एस. ए. डांगे
ने 1922 में "सोशलिस्ट" नाम से एक अंग्रेजी प्रकाशन प्रकाशित करना
शुरू किया।
1927 में पहली बार एटक ने अधिकृत रीत से अपनी संलग्न युनियन्स
को मई दिन मनाने का आवाहन किया। 1928 से 1931 के दरम्यान
मजदूर वर्ग राजनीत के क्षेत्र में बहुत सक्रिय रहा। समाजवादी विचारधारा
के लोग स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण बनते जा रहे थे। एटक के करीब
करीब सभी संम्मेलनों में आंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधी हिस्सा लेते थे या भाईचारे
के संदेश देते ३
के हिस्सा थे, उनकी खुद की काम की जगह पर मांगे तो थी तथा विदेशो
में जहां मजदूर नात्झी-फांसीवाद के शिकार हो रहे थे, उन्हे भी सहारा देना
था।
एटक ने विश्व फेडरेशन ऑफ ट्रेड युनियन्स ;ॅथ्ज्न्द्ध की स्थापना में
अहम भूमिका निभाई। फरवरी, 1945 में लंदन मे तैयारी के लिए एक
अंर्तराष्ट्रीय सभा का आयोजन किया गया, जिस में विश्व के कोने कोने
के 67 करोड़ मजदूरों के 204 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। एटक के
प्रतिनिधि एस. ए. डांगे, आर. के. खेडगीकर तथा सुधींद्र प्रामाणिक थे। इस
सभा ने मजदूरों का एक मांगपत्र तैयार किया। आखिरकार 3 अॅक्टूबर,
1945 को ॅथ्ज्न् की स्थापना हुई।
1947 में भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। मजदूर वर्ग ने साम्राज्यवादी
शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त की। एटक के नेतृत्व में मजदूरों के
अधिकारों के लिए आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम के लगभ्३
चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। दुनियाभर के लोगों के लिए ये उपलब्धियां
पूर्ववत हैं, उनके विकास, अर्थव्यवस्थाओं और विकास के लिए राष्ट्रों की
संप्रभुता को खतरा है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी का साम्राज्यवादी डिजाइन द्वारा प्राकृतिक संसाध्
ानों पर कब्जा करने, बाजार बनाने और उस पर कब्जा करने, अधिकतम
मुनाफा अर्जित करने और दुनियाभर में अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए
आर्थिक रणनीति विकसित की जा रही है। किसी भी विरोध को विभाजित
करने, उसे समाप्त करने और दबाने की प्रवृत्ति उस डिजाइन का हिस्सा है।
शासक वर्गों के समर्थन के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फासीवाद
रूझान बढ़ रहे हैं। एक देश से दूसरे देश इस तरह की योजना और
कार्यवाहियों का लक्ष्य मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया साम्राज्यवादी शक्तियों
के नीतिगत फ्रेम वर्क में रहे हैं।
भारत सरकार अंतर्राष्टी३
लगाने के नाम पर डिमोनेटाइजेशन, जीएसटी ने देश का आर्थिक परिदृश्य
बिगाड़ दिया है और सरकार की अक्षमता को उजागर किया है।
शिक्षा का व्यवसायीकरण और निजीकरण के माध्यम से स्कूल और
कॉलेजों की शिक्षा पर हमले तेज हो गये हैं। शिक्षा के निजीकरण की नीतियों
के विरोध और छात्रों और शिक्षकों के असंतोष की आवाज एवं विचारों को
रौंदा जा रहा है।
लेखक कलाकार, रंगमंच के व्यक्ति, पत्रकार, स्वतंत्र विचारक और
बुद्विजीवी सभी पर हमले हो रहे हैं। भारतीय संविधान में निहित मूल
सि(ांतों को कमजोर करते हुए विपक्ष को चुप कराने की राजनीति अक्रामक
तरीके से लागू की जा रही है। लोकतांत्रिक मुल्यों, आस्था, धर्म, भाषा, जीने
के तरीकों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विविधता पर आधारित
संपूर्ण सांस्कृतिक विरासत गंभीर खतरे में है।
श्रम संघ जो सामूहिकतावा३
मानवीय समस्या से लोगों को निजात दिलाने से अधिक अपने शोषण
और लाभ हेतु इस आपदा के अवसर का दुरूपयोग करने में लगा है। इस
अवधि में गैर लोकतांत्रिक और अमानवीय शासन की मजबूती हेतु शासन
निरंकुश एवं तानाशाहीपूर्ण तरीके से आगे बढ़ रहा है। ऐसा कई अन्य देशों
में भी देखने को मिला है परंतु भारत की सरकार दुनिया की सबसे खराब
उदाहरण के रूप में सामने आयी है। रोजी के लिए पलायन किये प्रवासी
मजदूरों, छात्रों, तीर्थयात्रियों और अन्य नागरिकों जो इलाज के लिए घरों
से दूर बाहर यात्रा पर थे या अस्पताल में थे उन्हें अचानक 4 घंटा के
सूचना पर पूर्ण बंदी कर उन्हें अपने घर वापसी तक का मौका दिये बिना
कू्रर यातना का शिकार बनाया गया। इस अचानक पूर्ण बंदी ;लॉकडाउनद्ध
के कारण लाखों लोगों की नौकरी, आजीविका यहां तक कि उनका रहने
का आश्रय तक छीन लिया गया एवं भूखे-प्यासे उनके नसीब पर छोड़
दिया गया। अपने घरों को लौटने को मजबूर साधन विहीन लोगों ने जीवन
जोखिम में डाल सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल
पड़ने पर उन्हें भयानक यातना का भी शिकार बनाया गया। बच्चे, बूढ़ों,
गर्भवती महिलाओं सहित परिवार के लाखों लोग निकल पड़े एवं उनकी
दयनीय हालत पर तरस के बदले उन्हें पीटा गया, अपमानित किया गया
और उन पर रसायनिक छिड़काव, चेहरे पर काली स्याही से ‘मैं लॉकडाउन
ब्रेकर हूं’ लिखे जाने का अमानवीय कार्य हुए। उनमें से सैंकड़ों लोग भूख,
अभाव, बीमारी में चिकित्सा की कमी, शरीर में पानी की कमी के शिकार
होने व आत्महत्या से मर गए। अनकही पीड़ा को और परिवार के कमाउ
सदस्य खोने की स्थिति एवं लॉकडाउन में शासन-प्रशासन की कमियों ने
जनआवाम को भारी नुकसान पहुंचाया।
मोदी सरकार ने 19 दिसंबर को बीमारी की प्रारंभिक खबर आने से
मार्च 2020 तक के चार माह में बीमारी की गंभीरता का संज्ञान लेकर,
स्वास्थ्य एवं उपचार की आपात स्थिति से निपटने की तैयारी के बदले
नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले डीएमए ;आपदा प्रबंधन अधि्
ानियमद्ध लगाने का रास्ता चुना। अचानक बंदी के क्रम में डीएमए का
उपयोग करना वास्तव में सरकार की एक सोची समझी राजनीति का हिस्सा
था जिसके द्वारा जनता को नियंत्रित करने के लिए इसे कानून व्यवस्था का
महामारी मजदूर वर्ग के संघर्ष के मादा को कम नहीं कर सकता है।
चिकित्सकों की सलाह को मानते हुए संयुक्त मई दिवस आयोजन सहित
कई आंदोलन किये गये हैं। 22 मई का राष्ट्रव्यापी विरोध, 3 जुलाई का
प्रतिरोध-दिवस, 9 अगस्त ;भारत बचाओ दिवस के रूप मेंद्ध, 23 सितंबर
राष्टीय विरोध दिवस आदि संघर्षों के आयोजन किये गये। केंद्रीय श्रम संघों
के हर अभियानों में भागीदारी बढ़ती गई। प्रतिरोध बढ़ रहे हैं। इस अवधि में
कोयला, बीपीसीएल, स्कीम वर्कर्स की हड़ताल की कार्रवाई आयोजित की
गई। रक्षा क्षेत्र में अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान समझौता प्रक्रिया
के क्रम में स्थगित किया गया है। ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के बीच
कार्रवाई की एकता विकसित हो रही है जो स्वागत योग्य दिशा है।
2 अक्तूबर को वेबिनार पर आयोजित केंद्रीय श्रम संघों के राष्ट्रीय
कन्वेंशन में 26 नवम्बर 2020 को एक दिवसीय राष्ट्रीय आम हड़ताल
की घोषणा की व्यापक सफलता का कार्यक्रम सामने है। हमें एटक के
शताब्दी वर्ष के अवसर पर ट्रेड यूनियनों की एकता और मजदूर, किसान
तथा आम जनता के साथ संघर्षों एवं कार्रवाईयों में एकजुटता का जमीनी
स्तर पर विस्तार का लक्ष्य पूरा करने के लिए संकल्प के साथ आसन्न
अभूतपूर्व चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम सांगठनिक शक्ति के रूप
में मजदूर वर्ग की एकता का निर्माण का लक्ष्य पूरा करना है।
हमें न्याय और समानता पर आधारित शोषणविहीन समाज के निर्माण
के संर्धष को आगे बढ़ाते हुए एटक के स्थापना के समय घोषित लक्ष्य की
पूर्ति हेतु मजदूर आंदोलन के इतिहास एवं एटक के 100 वर्षों के अनुभवों
से शिक्षा लेते हुए इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर आगे बढ़ने का संकल्प लेना
है।
दुनिया के मेहनतकशों एक हों
न्याय और समानता पर आधारित शोषणविहीन समाज निर्माण हेतु
मज़दूर वर्ग, किसान, छात्र, युवा-बेरोजगार एवं बु(जीवियों की
एकता जिंदाबाद।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें