शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

क्रांति के अग्रदूत सच्चिदानंद विष्णु घाटे -अनिल राजिमवाले

 S.V. Ghate : our first general secretary


 सच्चिदानंद विष्णु घाटे का जन्म14  दिसंबर  1896  को  मंगलौर;कर्नाटक के  एक  निम्न  मध्य वर्गीय परिवार में हुआ। उनके बड़े भाई तथा पिता पुरोहित थे। चारां ओर सनातनी पुरातनपंथी  वातावरण  व्याप्त  था।प्रतिक्रिया स्वरूप उन्होंने विद्रोही रूप धारण  कर  लिया।  वे  पहले  तो गैर-सनातनी बन गए, फिर नास्तिक।वे  पुरोहिती  वातावरण  को  पूरी  तरहना पसंद करने लगे। उन्होंने अपनी टीक;चोटीद्ध काट डाली और अंग्रेजी स्टाइलमें  बाल  रखने  लगे।  उनकी  चाची  ने उनका बाथरूम जाना बंद कर दिया।विरोध में उन्होंने गरम पानी से नहाना बंद कर दिया जो मृत्यु-पर्यन्त उनका कार्यक्रम रहा! एक बार पूजा के बाद उन्होंने शालिग्राम पत्थर फेंक दिया।वे जानवरों को पसंद किया करते थे। स्कूल में उनका एक प्रिय बछड़ा था जो उनके पीछे-पीछे जाया करता था।  मेरठ  जेल  में  भी  उनका  अपना हिरण था।सच्चिदानंद ने के.ई.एम. हाईस्कूल से 1914 में मैट्रिक पास किया। वे वाद-विवाद समिति के सचिव थे। फिर वे  सेंट  एलोयसियस  कॉलेज  में  भर्ती हुए  और  वहां  से  1917  में इंटरमीडिएट  पास  किया।  उस  समय एनी बेसेंट के नेतृत्व में ‘होम रूल लीग’का आंदोलन चल रहा था। सच्चिदानंद ने उनके दैनिक अखबार ‘न्यू इंडिया’का प्रचार किया।फिर वे बंबई के सिडेन हैम कॉलेज में बी.कॉम में भर्ती हो गए जबकि उन्हें गणित से सख्त नफरत थी! वे ही बादमें भा.क.पा. के कोषाध्यक्ष बने! बीमार  पड़ने  के  कारण  वे अहमदाबाद  चले  गए  और  पूरा  एक साल ;1918 बिताया। वहां उनकी मुलाकात सी.जी. शाह से हुई जो बाद में उनके सहयोगी बने।समाजवाद की ओर1919 में वे बंबई वापस आ गए और एक बीमा कंपनी में नौकरी कर ली। कंपनी दिवालिया हो गई। इस बीच उनकी  मुलाकात  मंगलौर-निवासी गोपाल भट से हुई जो गिरगांव के श्रीकृष्ण लॉज के मालिक थे। उन्होंने घाटे कोमैनेजर नियुक्त किया। उन्हें ग्राहकों केबिल  जमा  करने  होते  थे  और  फिर सिनेमा जाने की पूरी आजादी थी! वे सेंट जेवियर कॉलेज में भर्ती हो  और  वहां  से  1923  में  बी.ए.;ऑनर्स किया।इस  बीच  सी.जी.  शाह  बंबई  आ गए थे और स्कूल टीचर का काम कर रहे थे। वे आर.बी. लोटवाला के निजी सचिव  और  लाइब्रेरी  के  इन्चार्ज  थे।लोटवाला अकसर ही विदेश जाया करतेऔर वहां से पुस्तकें लाया करते। इससे घाटे का सम्पर्क समाजवादी साहित्य से हुआ। वे बहुत तेजी से ढेर सारी पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ते। सी.जी. शाह और घाटे ने एक अध्ययन मंडली बनाई। कुछ समय बाद घाटे ने एस.ए. डांगे द्वारा प्रकाशित द सोशलिस्ट पढ़ा और बड़े ही प्रभावित हुए। उन्होंने डांगे को बुला  भेजा।  डांगे  उस  समय  ‘कामतचाल’ में रहा करते। दोनों में खूब बातें हुई।जल्द ही वे दोनों तथा उनका ग्रुप बंबई कांग्रेस में काम करने लगा। वे कांग्रेस में मूलगामी दल बन गए। एम.एन.राय मास्को से भारतीय कम्युनस्टिं को नियंत्रित करने और मनमाना आदेश देने की कोशिश कर रहे थे। घाटे समेत भारतीय कम्युनिस्टों को यह सब पसंद नहीं था।लॉज में घाटे की स्थिति पार्टी द्वारा गुप्त कार्य के अनुकूल थी। घाटे को विदेशी संपर्क बनाने तथा कॉमिन्टर्न से संपर्क  में  रहने  का  काम  दिया  गया।उन्होंने साथ ही संगठन और साहित्य का  इंतजाम  शुरू  किया।  इस  प्रकार घाटे का निवास अंडरग्राउंड क्रांतिकारियों  और कम्युनिस्ट गतिविधियों का केंद्र बन गया। विदेशों में संदेश और व्यक्ति भेजे जाते।मार्च 1924 में डांगे को कानपुर षड्यंत्र  केस  में  गिरफ्तार  कर  लिया गया।  घाटे  ने  जोगलेकर,  निम्बकर,मिरजÛकर, वी.एच. जोशी, इ. के साथमिलकर डिफेंस कमिटि बनाई।कानपुर स्थापना सम्मेलन, 19251925 के आरंभ में सत्यभक्त ने सभी  कम्युनिस्टों  से  संपर्क  स्थापित करना आरंभ किया। अ.भा. कम्युनिस्ट सम्मेलन  25  दिसंबर  1925  से कानपुर में आरंभ हो गया। इसमें एस.वी. घाटे प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। सम्मेलन में केंद्रीय कार्यकारिणी और पदाधिकारी चुने गए। घाटे और बगरहट्टा पार्टी के दो महासचिव चुनेगए।  प्रमुख  भूमिका  घाटे  की  थी। 1927 में बंबई में कार्यकारिणी की विस्तारित बैठक में पार्टी का संविधान बदला गया और घाटे पार्टी के एकमात्र महासचिव बनाए गए।सम्मेलन के बाद मजदूर किसान पार्टियों का गठन किया गया। बंगाल मेंफरवरी 1926 में इसकी स्थापना कीगई। घाटे की देखरेख में बंबई में मजदूरकिसान पार्टी का गठन 1927 में किया गया जिसमें मिरजÛकर, निम्बकर तथाअन्य  साथियों  का  भी  योगदान  रहा।वास्तव में यह ग्रुप बंबई कांग्रेस प्रदेशकमेटी के अंदर एक सोशलिस्ट ग्रुप केरूप  में  काम  कर  रहा  था।  1927आते-आते  इस  ग्रुप  ने  मजदूरों  केविभिन्न तबकों में अपना प्रभाव बनालिया था और उनकी ट्रेड यूनियनों कागठन कर लिया था।1927 के आरंभ में टेक्सटाइलमजदूरों के बीच हलचल शुरू हो गईथी और उनकी हड़तालें होने लगी थी।इन हड़तालों ने 1928 आते-आतेबडे़ आंदोलन का रूप धारण कर लियाथा।  अप्रैल  1928  में  लगभग  डेढ़लाख  मजदूरों  ने  6  महीने  हड़तालेआरंभ कर दी। इन सारी गतिविधियोंमें पार्टी के महासचिव के रूप में एस.वी. घाटे की महत्वपूर्ण भूमिका रही।1927 में मजÛदूर किसान पार्टीकी ओर से बड़े पैमाने पर मजदूर दिवस मनाया गया। 1927 में ही भारत में साईमन कमिशन आया। उसके विरोधमें बंबई में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन औ रहड़तालों  का  तांता  लग  गया।  बंबई कई दिनों तक बंद रही और साईमन कमिशन  ने  शहर  में  प्रवेश  करने  की हिम्मत नहीं की। वह बाहर-बाहर सेही पूना चला गया। कमिशन के सात सदस्यों का विरोध करने के लिए सात पुतले जलाए गए, साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी ने 50,000 हजÛार मजÛदूरों काविशाल जुलूस निकाला। घाटे इन सारीगतिविधियों के केंद्र में रहे।जनवरी  1927  में  शापुरजी सकलतवाला बंबई आए वे इंगलैंड से आए थे और तब तक ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बन चुके थे। घाटे औरमिरजÛकर ने उनसे मुलाकात की औरउनके सम्मान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया।घाटे  संयुक्त  हड़ताल  कमेटी  के सदस्य थे जिसमें एन.एम.जोशी, डांगे,जोगलेकर तथा अन्य सदस्य भी शामिल थे। घाटे गिरणी कामगार यूनियन के केंद्र के इंचार्ज थे और कोषाध्यक्ष भी थे।1928  के  दिसंबर  में  अखिल भारतीय मजदूर और किसान पार्टी का सम्मेलन कलकत्ता के अल्बर्ट हॉल मेंहुआ, उसके साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी की  भी  बैठक  हुई।  इस  सम्मेलन  में घाटे  की  महत्वपूर्ण  भूमिका  रही  और उन्होंने  सही  तरीके  से  दिशा निर्देशनकिया।मेरठ षड््यंत्र केस 1929-331929 के मार्च महीने में समूचे भारत से 32 कम्युनिस्ट एवं मजदूरनेताओं को गिरफ्तार कर मेरठ जेल में बंद  कर  दिया  गया।  उन्हें  वहां अलग-अलग सेलों में डाला गया जहां परिस्थितियां अत्यंत ही खराब थी। कई सप्ताह के संघर्ष के बाद ही कैदियों को एक  जगह  रहने  की  इजाजत  मिली।इन गिरफ्तार साथियों में एस.वी. घाटे भी  थे,  उन्हें  12  साल  के  कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। बाद मेंये सजÛा घटा दी गई। घाटे तथा अन्य साथियों को 1933 के अंत में रिहाकर दिया गया। महात्मा गांधी कम्युनिस्टोंसे मिलने मेरठ आए। जनवरी 1934में घाटे बंबई वापस आ गए। मेरठ से रिहा होने के बाद कम्युनिस्ट आंदोलन का पुनर्गठन किया गया। 1934 में घाटे को फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी तबियत खराब रहने लगी।1935  में  पी.सी.  जोशी  पार्टी  के महासचिव बनाये गए। इस बीच घाटे ने जेल से भागने की कोशिश की, उन्हें छः महीने सतारा के जेल में रहना पड़ा जहां वो बिल्कुल ही अकेले रहते थे।रिहा होने के बाद वे मद्रास चले गए।मद्रास में गतिविधियां इस बीच कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी;सी.एस.पी. का गठन 1934 में किया गया। एस.वी. घाटे इस पार्टी के अखिल भारतीय  नेतृत्व  में  आ  गए।  घाटे  ने दक्षिण  भारत  में  सी.एस.पी.  और कम्युनिस्ट पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। द. भारत में कम्युनिस्ट पार्टी  का  गठन  घाटे  के  जीवन  का महत्वपूर्ण अंग है। एम-सिंगारवेलु के साथ  मिलकर  उन्होंने  पार्टी  की  कई इकाइयों  का  गठन  किया।  साथ  हीउन्होंने  कई  ट्रेड  यूनियन  संगठन  भी बनाए।  उस  समय  मद्रास  में  न्यूएज नामक  मासिक  पत्रिका प्रकाशित हुआ करती थी। घाटे ने इसका प्रकाशन  अपने  हाथों  में  ले  लिया।आखिरकार घाटे, सिंगारवेलु और आमिर हैदर खान की कोशिशों के फलस्वरूप मद्रास प्रेसीडेंसी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी क गठन किया गया।1940  में  उन्हें  गिरफ्तार  करमंगलौर में नजरबंद कर दिया गया।फिर वेल्लोर जेल भेज दिए गए। इसके बाद  1940  में  ही  उन्हें  कोटा  केनजदीक देवली कैम्प स्थानांतरित करदिया गया। वहां उनकी मुलाकÛात बाबासोहन सिंह भकना, धनवंतरी, सोहनसिंह जोश, इ. से हुई। घाटे ने देवली मेंपंजाब के भाकपा के कम्युनिस्टों और‘कीर्ति  कम्युनिस्टों’  के  बीच  मतभेदोंऔर विवादों को हल करने में महत्वपूर्णभूमिका  अदा  की।  इसके  फलस्वरूपकीर्ति पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीमें शामिल हो गई।1942 में घाटे को राजामुंदरी जेलऔर  फिर  वेल्लोर  जेल  स्थानांतरितकिया  गया।  उन्हें  अप्रैल  1944  मेंरिहा  किया  गया।  इस  बीच  पार्टी  केप्रथम कांग्रेस बंबई ;1943द्ध में हुई।अपनी अनुपस्थिति में ही पार्टी की केंद्रीयसमिति  का  सदस्य  चुन  लिया  गया।जेल से छूटने के बाद वे बंबई आ गए।वहां  वे  पार्टी  के  वित्तीय  मामलों  कीदेखरेख करने लगे।आजÛादी के बादआजÛादी के बाद नई परिस्थिति मेंजोशी  के  नेतृत्व  में  पार्टी  ने  देश  कीआजÛादी का स्वागत किया। लेकिन जल्दही  पार्टी  पर  वाम  संकीर्णतावादीदुस्साहसिक लाइन हावी हो गयी। जोशीकी जगह रणदिवे पार्टी के महासचिवबने। घाटे ने बी.टी.आर. लाइन का विरोध किया। इस बीच घाटे को अंडरग्राउंडजाना पड़ा। वे गिरफ्तार कर लिये गए।उन्हें 1950 में रिहा किया गया। घाटे,अजय घोष और डांगे ने पार्टी नेतृत्वद्वारा अपनाई गई नीतियों का विरोधकिया।सितंबर 1950 में घाटे, डांगे औरअजय  घोष  ने  पार्टी  की  नीतियों  कीआलोचना करते हुए और बेहतर दिशादर्शाते हुए एक दस्तावेज तैयार किया।इसे ‘‘थ्री पीजÛ लेटर’ कहते है। इसकेबाद  अप्रैल  1951  में  पार्टी  का कार्यक्रम तैयार हुआ। इस प्रकार पार्टी धीरे-धीरे सही दिशा की ओर चल पड़ी।घाटे अपने संस्मरणों में कहते हैपार्टी को पूंजीवादी जनवादी क्रांति की वास्तविकता स्वीकार करनी चाहिए थी।रणदिवे द्वारा यह कहना कि देश को आजÛादी नहीं मिली है गलत नीति थी।केंद्रीय समिति के सदस्य के रूप में घाटे अपनी आंशिक गलती स्वीकार करते हैं।घाटे 1948 की दूसरी पार्टी कांग्रेस की तैयारियों के लिए पहले ही कलकत्तापहुंचे।जनवरी 1950 में मास्को से प्रकाशित कॉमिन्फॉर्म की पत्रिका ‘फॉर एलास्टिंग पीस’ में प्रकाशित संपादकीय बी.टी.आर. की लाइन से अलग था। इसतथा अन्य घटनाओं के फलस्वरूप बी.टी.आर. को इस्तीफा देना पड़ा औरराजेश्वर राव थोड़े समय के लिए महासचिव बने। पार्टी की हालत बदहाल थी।कोई किसी से बात नहीं करता था। पार्टी हेडर्क्वाटर समाप्त-प्राय हो चुका था।सभी निराश और पस्त हो गए थे।ऐसे में घाटे सभी से मिलकर उन्हें काम के लिए प्रोत्साहित किया करते। घाटेलिखते हैं कि वे, डांगे और अजय घोष पार्टी के बचे-खुचे अवशेषों से पार्टी कोफिर से जीवित करने में लग गए। पार्टी का अंडरग्राउंड सम्मेलन 1951 मेंकिया गया जिसमें घाटे उपस्थित थे। पार्टी का कोषाध्यक्ष होने के अलावा घाटे नेप्रकाशन विभाग और प्रेस भी संभाला। वे लगातार नेतृत्व में बने रहे।पार्टी में फूट ;1964द्धघाटे ने अक्टूबर 1962 में किए गए चीनी आक्रमण का जोरदार विरोधकिया। जून 1963 में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने घाटे के नेतृत्व में केंद्रीयकंट्रोल कमिशन को पार्टी में चल रही समानांतर सांगठनिक गतिविधियों औरगुटबाजी की रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा। घाटे ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल1964 तक तैयार कर ली। पूरे दस महीनों तक घाटे और उनके साथियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर सबूत इकट्ठा किए। उन्होंने गुटबाजी का पूरा पर्दाफाश किया। अप्रैल 1964 में ही पार्टी में फूट पड़ गई।घाटे  निरंतर  पार्टी  की  केंद्रीय  समिति  में  रहे।  अमृतसर  ;1958  से  वे राष्ट्रीय परिषद और केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। वे पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे और केंद्रीय कंट्रोल कमिशन के सदस्य भी।वे कई भाषाएं जानते थेः मराठी, बंगला, कन्नड़, तमिल, हिन्दी, अंग्रेजी, इ।उनकी मृत्यु 28 नवंबर 1970 के दिल्ली में लंबी बीमारी के बाद हो गई।

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