शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

बी.वी. काक्लियाः सभी तबकों द्वारा सम्मानित नेता-अनिल राजिमवाले

 कर्नाटक के सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता बेविन्जे विष्णु काक्लिया का जन्म  11 अप्रैल 1919 के बेविन्जे नामक
गांव में हुआ था। यह स्थान उत्तर केरल के कासरगोड तालुक में चेरकला ग्रामके पास पायसविनी ;चंद्रगिरी नदी
किनारे स्थित है। यह नदी मलयालम-भाषी तथा टुलु-भाषी लोगों की परम्परागत सीमा है लेकिन इस पूरे क्षेत्र पर कन्नड़-भाषी शासकों का आधिपत्य रहा है। बी.वी. काक्लिया विष्णु काक्लिया नामक एक धनी जमींदार और गंगम्मा के सबसे छोटे बेटे थे। उन्हें अपने पिता का ही नाम ‘विष्णु’ दिया गया।
ऐसा माना जाता है कि ‘काक्लिया’ नाम कासरगोड तालुक के मुलियार ग्राम के ‘कक्कोल’ नामक स्थान से आया
है। काक्लिया वंश के लोग ‘कुम्बले सीमे’ के राजाओं के सलाहकार हुआ करते थे।
आरंभिक जीवन एवं शिक्षा
बी.वी. काक्लिया के पिता का निधन उसी वक्त हो गया जब विष्णु मात्र वर्ष की उम्र का था। उसकी देखभाल माता ने ही की। साथ ही उसके सबसे बड़े भाई सुबराया काक्लिया ने भी सहायता की। विष्णु ने एस.एल.एल.सी. तक की
पढ़ाई कासरगोड में ही की। फिर उसका दाखिला 1937 में मंगलौर के सेंट अल्योसिस कॉलेज में कर दिया गया।
यहां उसने इंटरमीडियट की पढ़ाई की। फिर रसायन शास्त्र ;केमिस्ट्रीद्ध में गरेज्युएशन किया। इसके बाद विष्णु
कर्नाटक में ही रह गया। इस बीच विष्णु काक्लिया का संपर्क आजादी के आंदोलन और फिर कम्युनिस्ट आंदोलन से हुआ। विष्णु ने विद्यार्थी आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और ए.आई.एस.एफ. में शामिल हो गया। वह ए.आई.एस.एफ का जिला सचिव बन गए।
विष्णु काक्लिया ने 1942 के आंदोलन में भी सक्रिय हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुआ।
इस बीच मंगलौर में सी.एस.पी. ;कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ। इस सिलसिले में युसुफ मेहर अली, अशोक मेहता, सोली बाटलीवाला तथा अन्य नेता वहां गए। सी.एस.पी.वी. की प्रमुख नेता कमला देवी चट्टोपाध्याय थीं। एस.वी. घाटे भी मंगलौर के ही थे। उनका विद्यार्थियों पर गहरा असर था।
काक्लिया भी उनके प्रभाव में आए। विद्यार्थी बड़ी संख्या में आंदोलन में शामिल हुए। काक्लिया विद्यार्थी
आंदोलन के अलावा मजदूरों और किसानों के बीच काम करने लगे।
1935 से 45 के दौरान उन्होंने खपरैल ;टाइल, बीड़ी, कॉफी, काजू, हैंडलूम, इ. मजदूरों के बीच काम किया
तथा उनके संगठन गठित करने में हिस्सा लिया।
वे औपचारिक रूप से 1939 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए।
जनता के बीच काम
1943 के बंगाल के महा अकाल के दौरान काक्लिया ने रिलीफ का बड़ा काम किया। उन्होंने कालेबाजारियों और जमाखोरों के खिलाफ व्यापक आंदोलन संगठित किया। 1946 में मद्रास प्रदेश के गवर्नर आर्किबाल्ड नी ;छमल मंगलौर पहुंचे। सरकार ने राशन में 2 औंस की कटौती कर दी थी। इससे व्यापक रोष फैला हुआ था। नी उसी सिलसिले में आए थे। कम्युनिस्ट पार्टी ने व्यापक आंदोलन छेड़ दिया जिसमें विष्णु काक्लिया ने सक्रिय भाग लिया। लगभग 30 हजार लोग पुलिस थाने गए और कैदियों को छुड़ा लिया। काक्लिया गिरफ्तार कर कन्नूर जेल में रखे गए। उन्हें 15 अगस्त 1947 को रिहा किया गया।
काक्लिया 1948 में अंडरग्राउंड चले गए। उस वक्त पार्टी पर संकीर्णतावादी ‘बी.टी.आर.लाईन’ हावी हो गई थी। 1950 में वे देवनगिरी में गिरफ्तार हो गए। उन्होंने दक्षिण कन्नड़ जिला में पार्टी में एकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
विधायिका में
विष्णु काक्लिया 1952 से 1954 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। वे 1952 में मद्रास प्रदेश से कर्नाटक ;तत्कालीन मैसूर का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 1972 में वे बंतवाल से सबसे अधिक अंतर से एम. एल.ए. चुने गए और 1978 तक रहे। फिर विट्ठल से वे 1978 से 1983 तक एम.एल.ए. रहे। विधायक के रूप में उन्होंने कर्नाटक भ्ूमि सुधार अधिनियम 1974 तैयार करने में सक्रिय भूमिका अदा की। इस काम में उन्होंने मुख्यमंत्री देवराज अर्स की सक्रिय सहायता की। अर्स द्वारा गठित भूमि सुधार संबंधी सलाहकार समिति में वे बड़े ही सक्रिय रहे। वे बंतवाल में भूमि ट्रिब्यूनल के सदस्य थे। वे विधायिका के पब्लिक एकाउंट्स कमिटि के अध्यक्ष भी चुने गए।
भूमि सुधारों के लिए संघर्ष
जैसा कि पहले हम देख आए हैं, काक्लिया ने भूमि सुधार कानूनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
उनके तथा अन्य कइयों के प्रयत्नों के फलस्वरूप कर्नाटक में बड़े पैमाने पर भूमि-सुधार लागू हुए। केवल दक्षिण
कन्नड़ जिले में ही एक लाख से भी अधिक परिवारों का इससे फायदा पहंचा। उनके सदस्यों और बच्चों की
शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा देने एवं सुधारने में बड़ी सहायता मिली। इन मूलभूत परिवर्तनों के फलस्वरूप पढ़े-लिखे
मध्यमवर्ग के परिवार उभर आए। काक्लिया ने बंगलौर, कोलार, श्रीरंगापट्टनम, हम्पी तथा गुलबर्गा में किसान सभा के कन्वेंशन आयोजित किए। काक्लिया और श्रीनिवास गुडी ने अन्य के साथ मिलकर कर्नाटक राज्य
रैयत संघ गठित किया। जनवरी-फरवरी 1979 में रैयत संघ ने धान, गन्ना, कपास, मूंगफली, इ. उत्पादों के लिए
लाभकारी मूल्यों की मांग करते हुए राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ दिया।
गोवा मुक्ति आंदोलन में
बी.वी. कक्लिया ने 15 अगस्त 1955 को एक 50-सदस्यीय जत्थे का बंगलौर से गोवा जाने में नेतृत्व किया। वे चुपके से गोवा के अंदर ‘इद्दुस’ नामक गांव में प्रवेश कर गए और तिरंगा फहरा दिया। फलस्वरूप पुर्तगाली
पुलिस ने काक्लिया तथा अन्य की जमकर पिटाई कर दी।
ट्रेड यूनियन आंदोलन में
काक्लिया ने बीड़ी तथ खपरैल ‘टाईल’ मजदूरों को उनके अधिकार दिलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा
की। इससे उन्हें कई कानूनी अधिकार और संरक्षण मिले। उन्होंने मंगलौर के खपरैल/टाइल मजदूरों की समस्याएं
प्रकाश में लाईं। इसके अलावा उन्होंने कॉफी, इलायची, बागानों, इ. के श्रमिकों की समस्याएं भी उठाईं। उन्होंने 1943 से ही दक्षिण कन्नड़ जिले के बुनकरों तथा अन्य मजदूरों की मांगों क लिए संघर्ष किया।
कर्नाटक राज्य पुनर्गठन
आंदोलन

बी.वी. काक्लिया अखंड कर्नाटक निर्माण परिषद के महासचिव थे। उन्होंने कन्नड़भाषी क्षेत्रों का कर्नाटक में विलय करने का संघर्ष चलाया। ब्रिटिश शासन के दौरान कासरगौड तत्कालीन दक्षिण कनारा जिले का एक तालुका था। नए कर्नाटक राज्य से इसे अलग रखकर 1956 में केरल में मिला दिया गया।
विष्णु काक्लिया को 1 नवंबर 2006 को सुवर्ण कर्नाटक एकीकरण अवार्ड से नवाजा गया। इस अवसर पर
उन्होंने राजाओं, सामंतों और सरकारों के खिलाफ एकीकृत कर्नाटक के लिए लंबे संघर्षोंं का जिक्र किया। उन्होंने
कहा कि छोटे अनावश्यक मुद्दों को लेकर राज्य की एकता को हानि नहीं पहुंचाईजानी चाहिए।
सक्रिय लेखक
बी.वी. काक्लिया ने कई सारे लेख और पुस्तक-पुस्तिकाएं लिखीं। यह इस बात के बावजूद कि वे आम जनता के
बीच सक्रिय कार्य में लगे रहते। उन्हें अपनी साहित्यिक रचनाओं के लिए
कन्नड़ साहित्य एकेडेमी अवार्ड दिया गया। उन्हेंने एम.एस.कृष्णन, एस.एमनाय क तथा अन्य साथियों के साथ
मिलकर नव कर्नाटक पब्लिकेशन्स प्रालि. की स्थापना की। वे इसके अंतिम समय तक अध्यक्ष पद पर रहे।
उनकी कुछ रचनाएं इस प्रकार थींः ‘कम्युनिज्म’, ‘भारतीय चिंतने, हिन्दू धर्म, कम्युनिज्म‘, ‘भूमि माथु आकाश’, इ.। उन्होंने सच्चर कमिटि रिपोर्ट तथा कई अन्य पुस्तकों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद किया। उन्होंने आत्मजीवनी भी लिखी जिसका शीर्ष थाः ‘बारेयादा दिनचर्या’ मारेदा पुतागालु’ ;अप्रकाशित डायरी के अनजान पन्ने।
1983 और 86 के बीच उन्होंने मार्क्स और एंगेल्स की जीवनियां लिखीं। कार्ल मार्क्स संबध्ां उनकी रचना को
1986 में ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’ मिला। फ्रेडरिक एंगेल्स की जीवनी संबंधी उनकी रचना को कर्नाटक
साहित्य एकेडेमी से अवार्ड मिला।
उनकी पत्नी अहिल्या का 21 जून 1998 को देहान्त हो गया। वे श्री नारायण सोमैय्याजी की सबसे छोटी
बेटी थीं। श्री नारायण स्वतंत्रता सेनानी थे। अहिल्या ने ही मुख्यतः अपने चार बेटों की देखभाल की।
राज्य पार्टी सचिव के रूप में
1962 को काक्लिया को एम. एस.कृष्णन, एम.सी. नरसिम्हा, सी.आरकृष्ण् ा राव, वासन, गोविन्दन तथा अन्य
के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 1964 में पार्टी में फूट पड़ने तथा सी.पी.एम. बनने के बाद बी.वीकाक्लिय
ा राज्य भा.क.पा. के सचिव बनाए गए। इस पद पर वे 1972 तक बने रहे। वे भा.क.पा. की 7वीं कांग्रेस ;बंबई,1964 में क्रिडेन्शियल कमिटि में शामिल किए गए। वे पार्टी की पांचवीं ;अमृतसर, 1958, छठी ;विजयवाड़ा, 1961, सातवीं ;बंबई,1964द्ध और आठवीं ;पटना,1968द्ध कांग्रेसों में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य के रूप में चुने गए।
वे 1986 से 1991 तक राज्य पार्टी के मुखपत्र ‘केम्बावटा’ के संपादक रहे।
1980 के दशक में उन्होंने कई सारे जन-आंदोलनों में हिस्सा लिया।
इनमें एक बड़ा आंदोलन 1982 में हुआ। किसानों का एक विशाल मार्च नारागुंड से बंगलौर तक निकाला गया
जिसका नेतृत्व काक्लिया, देवराज अर्स, डी.बी. चंद्रगौड़ा तथा अन्य कर रहे थे।
काक्लिया को कम्युनिस्ट आंदोलन में उनके योगदान के लिए इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मकि्र्सस्ट थियोरी,
धारवाड की ओर से कार्ल मार्क्स अवार्ड प्रदान किया गया।
उनके सम्मान में 22 मार्च 2009 को बंगलौर स्थित एम.एस. कृष्णन मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा एक सादा समारोह
आयोजित किया गया। इस अवसर पर एन.सी. नरसिम्हन ने उन्हें ‘निरंतर’ नामक सम्मान पुस्तक प्रदान किया।
इसमें उनसे संबंधित लेख एवं सामग्री एकत्र की गई है। वे लेख और भाषण भी हैं जो ‘काक्लिया-90ः युवा पीढ़ी
के साथ विमर्श’ के अवसर पर दिए गए थे।
उन्हें 25 अक्तूबर 2006 को तुलू साहित्य अकादमी द्वारा तुलू भाषा, साहित्य एवं संस्कृति में योगदान के
लिए सम्मानित किया गया। बिगड़ते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने पार्टी द्वारा विट्ठल मलिकुडिए तथा
उसके पिता लिंगन्ना मालेकुडिए की रिहाई के आंदोलन में हिस्सा लिया।
उक्त दोनों पर नक्सलपंथी संबंध होने का आरोप लगाया गया था। यह उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थिति साबित हुई।
10 और 11 अगस्त 2019 को मंगलौर ;मंगलुरूद्ध में दो-दिवसीय ‘बी.वी. काक्लिया शती समारोह’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उनके सम्मान में लेक्चर और संस्मरण प्रस्तुत किए गए। उनके योगदान के विभिन्न पहलू रखे गए। भा.क.पा. नेता सिद्दनगौड़ा पाटिल ने ‘बी.वी. काक्लियाः मलाबार से कर्नाटक असेम्बली’ विषय
पर व्याख्यान दिया।
यह आयोजन संयुक्त रूप से एम. एस. कृष्णन मेमोरियल ट्रस्ट, मासिक पत्रिका ‘होसाथु’, नवकनार्टक प्रकाशन
और समदर्शी वेदिके की ओर से संयुक्त रूप से किया गया। इसमें भाग लेने वालों में अमरजीत कौर, कन्हैय, प्रोतेलतुम्बडे, प्रो. चंद्र पुजारी, दिनेश मट्टू, पी.वी. लोकेश, डॉ. टी.एसवेण् ागोपाल, डॉ. विजय थम्बंदा, टी.एमकृष्ण्
ान तथा अन्य ने हिस्सा लिया।
बी.वी. काक्लिया की मृत्यु लंबी बीमारी के बाद ‘ब्रेन हेमरेज’ के कारण 4 जून 2012 को मंगलौर में हो गया था

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |