भालचंद्र त्रिवेदी का जन्म 13फरवरी 1923 को गुजरात में हुआथा। भालचंद्र कुल पांच भाई-बहन थेःदो भाई तीन बहनें। उनके पिता का नाम था बापूजी श्री हरिशंकर आत्माराम त्रिवेदी। वे एक गुजराती स्कूल मेंप्रिंसिपल थे। माता श्रीमती सुलीबा चाहती थीं कि भालचंद्र संस्कृत पढ़े।
शुक्ल तीर्थ के गुजराती स्कूल में भालचंद्र की आरंभिक शिक्षा हुई। बाद
में अंकलेश्वर के गुरुकुल नर्मदा हाई
स्कूल में उसकी पढ़ाई हुई। भालचंद्र
की कम उम्र में ही पिता की मृत्यु हो
गई। पिता की मृत्यु के करीब एक साल
बाद उसके बड़े भाई रामचंद्र उसे बड़ौदा
ले आए। इस प्रकार भालचंद्र का
अधिकतर बचपन अंकलेश्श्वर में गुजरा
और विद्यार्थी जीवन बड़ौदा में। उनके
बड़े भाई रामचंद्र ने उन्हें बड़ौदा के
श्राॅफ मेमोरियल स्कूल में भर्ती करा
दिया। फिर उनकी भर्ती जयश्री माॅडल
हाई स्कूल में करा दी गई। 1940 में
उन्होंने मैट्रिक परीक्षा प्रथम नंबर से
पास की। उनमें उसी समय से
नेतृत्वकारी गुण थे। स्कूल में पढ़ते वक्त
ही उनमें आजादी के प्रति लगाव पैदा
हो गया और वे खादी पहनने लगे।
वे मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आए।
आगे चलकर उन्होंने 1939 में माॅडल
हाई स्कूल में स्टूडेंट्स यूनियन बनाई।
इंटर-साइंस की परीक्षा के बादवह आशा
की जा रही थी कि भालचंद्र को
अहमदाबाद मेडिकल काॅलेज में
एडमिशन मिल जाएगा। विद्यार्थियों की
संख्या भी बहुत कम थी परंतु एडमिशन
नहीं होने का कोई कारण नहीं था।
अगर उसने दूसरों की सलाह मान ली
होती तो एडमिशन मिल जाता। क्या
थी सलाह? खादी मत पहनो! लेकिन
भालचंद्र कहां मानने वाला था? वह
खादी पहने-पहने ही इंटरव्यू बोर्ड के
सामने उपस्थित हुआ! नतीजा वही हुआ
जो होना था। उसका एडमिशन नहीं
हुआ। भालचंद ने युवा-अवस्था में ही
जनेऊ और चोटी काट डाली जबकि
लोगों ने बहुत मना किया।
वे पढ़ाई में काफी तेज थे। लेकिन
वे उस पर ध्यान नहीं देते थे। हालांकि
वे खुद नहीं चाहते थे, वे परिवार को
नाखुश नहीं करना चाहते थे, इसलिए
बड़ौदा काॅलेज में आगे पढ़ाई जारी
रखी। यह काॅलेज बाम्बे यूनिवर्सिटी से
सम्ब( था।
भालचंद्र त्रिवेदीः गुजरात तथा भारत में टी.यू.
एवं कम्युनिस्ट आंदोलन के निर्माता
राजनीति में
उनमें गरीबी और अन्याय के
खिलाफ बड़ा गुस्सा था तथा वे हमेशा
इन्कलाब की बात किया करते। वे
कामगारों के बीच समय बिताने लगे।
उन्हंे माक्र्स और लेनिन की रचनाएं
पसंद आने लगीं।
भालचंद्र 1942 से ए.आई.एस.
एफ. में सक्रिय हो गए। उनके काॅलेज
के दिनों के सहयोगी दीनानाथ प्रधान
के अनुसार, भालचंद्र परीक्षा मे सर्वप्रथम
आया करते लेकिन पढ़ाई में उनका
मन नहीं था। प्रधान उनके साथ ए.
आई.एस.एफ. में काम किया करते।
1943 में वे भा.क.पा. के सदस्य
बन गए।
भालचंद को प्रशासन के रूप में
नौकरी मिली लेकिन उन्होंने लेने से
इंकार कर दिया। गायकवाड़ी बड़ौदा
स्टेट ;जी.बी.एसद्ध रेलवे में भालचंद्र ने
रेलवे मेन्स यूनियन गठित करने में
महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस काम
में उन्हांेने रसूल खान पठान, एस.आर.
गोखले; जो बाद में केंद्रीय कानून मंत्री
बनेद्ध, पोंतदार, चीमनभाई अम्बालाल
पटेल, जोशी, शांताराम सबनीस, इ.
के साथ काम किया।
भालचंद्र त्रिवेदी लिखते है कि
उस जमाने में धर्म का उतना महत्व
नहीं था। जी.बी.एस. रेलवे मेन्स यूनियन
के अध्यक्ष रसूल खान कुछ समय बाद
बडौदा के गायकवाड़ी राज्य में ‘स्थानीय
दीवान’ बनाए गए। पहला काम उन्हांेने
किया कि वह यह कि उन्होंने सारे
बर्खास्त लोगों को वापस काम पर ले
लिया। यूनियन के जनरल सेक्रेटरी
जोशी और अन्य कइयों कां काम पर
वापस ले लिया गया। यूनियन की ओर
से रखी गई मांगें भी गायकवाड़ सरकार
ने मान ली।
30 जनवरी 1948 को गांधीजी
की हत्या की खबर पहुंची। चारों ओर
तहलका मच गया। प्रोग्रेसिव यूथ
यूनियन ने विरोध प्रदर्शन निकाला। यह
बहत बड़ा प्रदर्शन था। उस समय
गायकवाड़ी शासन जारी था और
रजवाड़े अभी भारत में नहीं मिले थे।
भालचंद्र, मनुराव, वसंत जोगलेकर,
शांताराम सबनीस, गोखले वगैरह
गिरफ्तार हो गए। उन्हें सैनिक कारावास
में डाल दिया गया। अगले दिन वे सेंट्रल
जेल स्थानांतरित कर दिए गए। आर.
एस.एस. के लोगों ने हमला किया था।
महारानी शांतिदेवी टाॅकीज के पास
पुलिस ने प्रगतिशील युवा संघ का जुलूस
रोकने की कोशिश की। फायरिंग में
चंद्रकांत आजाद की मृत्यु हो गई।
भालचंद्र त्रिवेदी का विवाह सुशीला
बेन से 1961 में हुआ। सुशीला बेन
के पिता दत्तात्रेय अमृतराव पेटीवाले
गायकवाड़ी राज्य में जेलर थे। जब
उन्हें एक कम्युनिस्ट से विवाह करने
की अपनी बेटी के इरादों का पता चला
तो बड़े ही नाराज हुए। सुशीला अड़
गई और आखिरकार उनके पिता को
झुकना पड़ा तथा उनका विवाह हो गया।
भालचंद्र का विवाह 40 वर्ष की आयु
में हुआ।
आगे चलकर उन्होंने ‘कम्युनिज्म’
को ही अपनंी राष्ट्रीयता, जाति और
धर्म बताया। उनको संक्षेप में ‘भाल’
कहा जाता कभी-कभी उनको ‘‘भाला’’
भी कहा जाता है शोषकों के खिलाफ
चलाया जानेवाला ‘‘भाला’।
टेªड यूनियन और रेलवे यूनियन में
भालचंद्र त्रिवेदी आजादी से पहले
ही आॅल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन
;ए.आई.अर.एफ.द्ध में सक्रिय हो गए थे।
1 जनवरी को अखिल भारतीय रेलवे
हड़ताल का नारा दिया गया। भालचंद्र
ने इसमें खूब काम किया। इस काम में
वे भरूच से बड़ौदा साइकिल से गए!
1944 में अलेम्बिक, इंडियन
ह्यूम पाइप तथा अन्य जगहों में यूनियनें
बनाईं।
भालचंद्र ने व्यापक तौर पर मीटिंगें
संबोधित कीं, खासकर बिलिमारा और
नवसारी में। वे ए.आई.आर..एफ. में
सक्रिय काम करने लगे। वे जयप्रकाश
नारायण और ज्योति बसु के संपर्क में
आए। ए.आई.आर.एफ. का सम्मेलन 6
और 7 जून 1947 को गोरखपुर मे
संपन्न हुआ। इसमंे भालचंद्र त्रिवेदी ने
बड़ी ही सक्रियता से हिस्सा लिया। इस
सम्मेलन में जयप्रकाश नारायण ए.आई.
आर.एफ. के अध्यक्ष चुने गए। ज्योति
बसु उपाध्यक्ष थे।
ए.आई.आर.एफ. ने 27 जून
1947 को ‘‘रेलवे मजदूर दिवस’’
के रूप में मनाया। इसमें भालचंद्र बड़े
ही सक्रिय रहे।
भालचंद्र ने 1945 में
गायकवाड़-बड़ौदा स्टेट ;जी.बी.एस.द्ध
रेलवे में रेलवे मेन्स यूनियन स्थापित
करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
रसूल खान यूनियन के अध्यक्ष थे।
इस यूनियन के 1947 में 1000
से भी अधिक सदस्य थे। हड़ताली
मजदूरों का उत्साह बनए रखने के लिए
भालचंद्र रात मे घर-घर जकर मजदूरों
से मिला करते। उन दिनों बड़ौदा के
गरबा, बजवा, कराचिया, उन्देश, इ.
गांवों को जोड़नेवाले रास्ते कच्चे और
ऊबड़-खाबड़ हुआ करते। भालचंद्र इन
कच्चे और अंधेरे रास्तों से इधर-उधर
आया-जाया करे। उन दिनों वहां सांप
और बिच्छू घूमा करते। साथी साइकिलों
पर भी घूमा करते। 1945 में बड़ौदा
राज्य के बिलिमोर में सि(पुर में 22
मिलों में एक महीने तक हड़ताल का
नेतृत्व किया।
भालचंद्र त्रिवेदी के नेतृत्व में यह
हड़ताल चार दिनों तक चली। बड़ौदा
के इतिहास में यह पहली हड़ताल थी।
1950 आते-आते क्षेत्रीय तथा
रजवाड़ों की रेलवे भारतीय रेल में शामिल
कर ली गई।
भालचंद्र ने ‘इलेम्बिक’ कंपनी में
भी लाल-झंडा यूनियन का गठन कर
लिया। कंपनी संस्थापक भाई लाल
अमीन चकित रह गए। उन्होंने यूनियन
तोड़ने की भरपूर कोशिश कीं। लेकिन
असफल रहे ं‘लाल बावटा’ यूनियन
को मान्यता मिलने का सवाल ही नहीं
था!
1948 में भालचं्रद अंडरग्राउंड
;गुप्तप्रवासद्ध में चले गए और 1951
तक रहे। बाहर निकलने पर बड़ौदा के
मजदूरों ने भारी संख्या में उनका स्वागत
किया।
अंडरग्राउंड दिनों मे भालचंद्र
‘डेविड’ के नाम से घूमा करते। बाद में
भी क्रिश्चियन इलाकों में ‘डेविड भाई’
ही कहलाया करते! उन्हें रविवार को
चर्च कभी जाना पड़ता था। वे और
चंद्रकांत मजदूर बस्तियों में रहा करते।
वे भेष बदलकर रहा करते।
उन्हें वसंत जोगलेकर नामक साथी
को गुप्त रूप से भगाना था। उसके
लिए मनुभाई दवे नाम के रेलवे गार्ड
की सहायता ली गई। भालचंद्र और
जोगलेकर गार्ड कि डिब्बे में बैठ गए।
उन्होंने अपना भेष इतना बदल लिया
था कि बिल्कुल ही पहचान में नहीं आ
रहे थे।
भालचंद्र त्रिवेदी ने अलेम्बिक वर्कर्स
यूनियन के अलावा इंडियन ह्यूम पाइप
यूनियन की स्थापना की। अलेम्बिक
की हड़ताल बहुत बिलिमारा और
नवासारी मिलों में लंबी हड़तालें चलीं।
महागुजरात आंदोलन में सक्रिय
वे सत्याग्रहियों के दूसरे ग्रुप के नेता
थे। वे जेल से भाग निकले। इंदुलाल
याज्ञनिक इस आंदोलन के नेता थे। वे
समूचे गुजरात में प्रसि( हो गए।
पार्टी में स्थान
भालचंद्र त्रिवेदी भा.क.पा. के राज्य
नेतृत्व में इसी दौर में चुने गए। इसके
बाद वे लगातार चुने जाते रहे। उन्होंने
पार्टी के मदुरै महाधिवेशन
;1953-54द्ध में गुजरात के
प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया।
उन्होंने बाद के भी अधिवेशनों में भाग
लिया। वे पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में
भी चुने गए।
वे गुजरात पार्टी की राज्य
कार्यकारिणी में लगातार चुने जाते रहे।
भलचंद्र त्रिवेदी ने 1964 में भा.
क.पा. में फूट पड़ने के बद भा.क.पा. में
ही रहने का फैसला किया और भा.क.
पा. ;माद्ध ;सी.पी.एम.द्ध में नहीं गए।
उन्होंने पार्टी के कोचीन ;1971द्ध,
विजयवाड़ा ;1974द्ध, भठिंडा
;1978द्ध और वाराणसी ;1981द्ध
अधिवेशनों में हिस्सा लिया। भठिंडा
कांग्रेस में वे पार्टी की राष्ट्रीय परिषद में
चुने गए। वे गुजरात राज्य परिषद,
भाकपा, के सचिव चुने गए। उनके
नेतृत्व में पार्टी ने सफल बंद आंदोलनों
मे हिस्सा लिया।
उन्हांेने सोवियत संघ, पूर्वी जर्मनी,
नेपाल, क्यूबा, हंगरी, स्विट्जरलैंड, इ.
देशों की यात्रा की। गुजरात क्षेत्रीय
एटक परिषद का तीसरा सम्मेलन मई
1945 में अहमदाबाद में संपन्न
हुआ। इसमें 19 यूनियनों से 80
प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। प्रस्तावों
के जरिये गुजरात के टेक्सटाइल उद्योग
में ठेका मजदूरी समाप्त करने, बड़ौदा
और काठियावाड़ के रजवाड़ों में ब्रिटिश
भारत की तर्ज पर श्रम कानून लागू
करवाने, मूल वेतन में 33ø वृ(ि
करने और जीने लायक न्यूनतम वेतन
लागू करने की मांग की गई।
इन घटनाओं में भालचंद्र त्रिवेदी
की सक्रिय भूमिक रही।
हड़तालों का नेतृत्व
भालचंद्र त्रिवेदी ने गुजरात टैªक्टर्सलाॅक-आउट के खिलाफ हड़ताल का नेतृत्व किया। उन्होंने नोवीनो बैटरीज में
हड़ताल का मार्गदर्शन किया। मकरपुरा दो बार बंद हुआ। हिन्दुस्तान ब्राउन
बाॅवेरी में संगठन, आंदोलन और हड़ताल का नेतृत्व किया। ई.ई.सी में इंटक का
नेतृत्व असफल होने के बाद भालचंद्र के नेतृत्व में एटक ने आंदोलन संभाला।
1981 में साराभाई मशीनरी के मजदूरों ने सात दिवसीय हड़ताल की, फिर
त्रिवेदी ने 15 दिनों की भूख-हड़ताल आरंभ की। उनके समर्थन में बड़ौदा बंद
आयोजित किया गया। स्टार स्टील में लाॅक-आउट के खिलाफ संघर्ष का उन्होंने
नेतृत्व किया।
औपचारिक कमिटियों में हिस्सेदारी
भालचंद्र गुजरात राज्य श्रम सलाहकार बोर्ड के सदस्य थेऋ फैक्टरी सलाहकार
बोर्ड के सदस्य थेऋ इंजीनियरिंग उद्योग में न्यूनतम वेतन तय करने संबंधी
त्रिपक्षीय सलाहकार समिति में वे मजदूर प्रतिनिध थे। वे गुजरात प्रोविडेंट फंड के
सदस्य थे। साथ ही कई अन्य कमिटियों में भी थे।
भालचंद्र वल्र्ड माक्सिस्ट रिव्यू’ ;विश्व सै(ांतिक पत्रिकाद्ध के गुजराती संस्करण
के संपादक भी थे। उन्होंने ‘नवी दुनिया’ और ‘श्रमयुग’ पत्रिकाओं में सहायता
की।
वे ‘इस्कस’; भारत -सोवियत सांस्कृतिक मैत्री संघद्ध के उपाध्यक्ष थे उन्होंने
आॅल इंडिया रेडियो और मास्को रेडियो तथा टी.वी. में भाषण दिया।
वे वल्र्ड फेडरेशन आॅफ टेªड यूनियन्स के साथ जुड़े रहे।
उनकी मृत्यु 23 सितंबर 1992 को हे गई।
अनिल राजिमवाले
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