शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

नहीं नहीं राष्ट्रपति जी यह नहीं

नहीं नहीं राष्ट्रपति जी यह नहीं! -कनक तिवारी राष्ट्रपति जी! आपने बंगाल में हुई एक मासूूम डाॅक्टर के रेप और मर्डर की घटना को लेेकर गहरी निजी निराशा और डर ज़ाहिर किया है। इस वीभत्स घटना को लेकर कोई संवेदनशील नागरिक नहीं होगा जिसने इसका विरोध न किया हो। चाहे वह बंगाल की सरकार की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का ही सदस्य क्यों न हो। देश इस घटना की पूरी निन्दा कर रहा है और इसकी कड़ाई से जांच की मांग भी। सीबीआई इसमें जुटी हुई है। देश भर के डाॅक्टरों ने इसे ड्यूटी पर डाॅक्टरोे की सुरक्षा का सवाल बनाया है। जिन हालातों में डाॅक्टर अपना काम करते हैं। उसका कर्तव्यपरक संज्ञान लेना हर संवेदनशील सरकार का फर्ज़ है। बंगाल में चूक तो हुई। पुलिस ने भी गफ़लत की है। वरना मामला इतना तूल नहीं पकड़ता। सत्ताधारी भाजपा को राजनीति चमकाने का सुनहरा अवसर मिला है। सुप्रीम कोर्ट में जो निर्देश दिए गए। उसके बाद सभी पक्षों को मिलकर प्रशासनिक गडबड़ियों को दूर करना था। लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की कब परवाह रही है। वह तो उसके हर संवैधानिक फैसले को पलट रही है। चाहे दिल्ली सरकार का अधिकार छीनना हो। या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हो। उसे अपने संसदीय बहुमत का काफी गुरूर है। उनका तो कहना है हम बंगाल के खैरख्वाह हैं। वहां रेप और मर्डर नहीं होना चाहिए। बाकी देश में हो तो होता रहे। जब जनता ने बताया कि 400 से 240 ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। तब से आसमान में सत्ता के बादल गरजकर बरसने से संकोच कर रहे हैं। राष्ट्रपति जी! इस दरमियान आपके मन में खौफ़ पैदा हो गया है। उससे संविधान के सामने सवाल खड़े हुए हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति तो राष्ट्रपति में निहित है। वह सत्ता का सर्वप्रमुख है। नरेन्द्र मोदी मंत्रिपरिषद तो सहायक है। राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्ति करने का अधिकार है। वह सेना का भी सर्वोच्च अधिकारी है। संसद को संबोधित करने का अधिकार रखता है। देश में कितनी भी मुसीबत हो। राष्ट्रपति को ही चट्टान की तरह अविचल रहना है। उसमें इतना धीरज, सहनशीलता और विवेक है कि वह देश की चिंता को अपने व्यक्तित्व में जज़्ब कर लेता है। अब तक तो राष्ट्रपतियों ने ऐसा ही किया है। जब मंत्रिपरिषद सलाह दे तो राष्ट्रपति को वह बात माननी पड़ती है। लेकिन यह संवैधानिक कामों के लिए होता है, राजनीतिक हालातों के लिए नहीं। राष्ट्रपति जी! आपको अलग से निजी चिंता नहीं करनी चाहिए थी। आप करोड़ों के ऊपर हैं। देश की शान, प्रतिष्ठा और पहचान हैं। अफवाह तो यह भी है कि आपके वक्तव्य, पत्र और विचार तक प्रधानमंत्री कार्यालय तय करता है। डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद, डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन जैसे राष्ट्रपति इतिहास की इबारत लिख गए हैं। उन्हें कार्यालय निर्देर्शित करे। किसकी हैसियत थी? आप अशेष बौद्धिकों में नहीं हैं। लेकिन आपको सलाह देने अलग टीम तो है। खुदा करे यह झूठ है। राष्ट्रपति जी! संविधान के एक अनुच्छेद में लिख दिया गया है। लेकिन वह मरा मरा सा है। उसे जिलाइए। अनुच्छेद 78 में लिखा है संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी प्रस्थापनाओं के संबंध में जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे, उसे देना प्रधानमंत्री का कर्तव्य होगा। मणिपुर से ज़्यादा भीषण, भयानक, हिंसात्मक और बर्बर घटनाएं भारतीय आज़ादी के वर्षोंं में नहीं हुई हैं। देश जानना चाहता है। इस अनुच्छेद के तहत आपने प्रधानमंत्री से मणिपुर को लेकर जानकारी मांगी भी है या नहीं। मांगी है तो क्या दी गई है या नहीं। अगर मिल गई है। तो उस जानकारी का आपके कार्यालय से क्या किया गया। देश को चिंता है। बंगाल की एक घटना से जो निःसंदेह चिंतनीय है आप इतना घबरा गईं कि आपने जाहिर कर दिया कि आप निराश और भयभीत हैं। राष्ट्रपति को तो किसी भी प्रदेश सरकार को भंग करने का अधिकार है और खुद हुकूमत करने का। शक्तिसंपन्न राष्ट्रपति भयभीत और निराश कैसे हो सकता है। सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी चाहे जितनी हुड़दंग करे। ममता सरकार बर्खास्त नहीं की जा सकती। तो क्या भूमिका बनाने के लिए किसी कच्चे दिमाग ने ये समझाइश दे दी? आपकी कलम में इतनी ताकत है कि कोई भी प्रदेश की सरकार बर्खास्त हो सकती है। आपकी वाणी में भी इतनी ताकत है कि आप प्रधानमंत्री से अधिकारपूर्वक जानकारी मांग सकती हैं। डर तो हम जैसे आम आदमियों को है इस सरकार से। उसकी हिन्दू- मुसलमान फिरकापरस्ती से। बेरोजगारी और नौकरियों की कमी से। महंगाई से। स्त्रियों की असुरक्षा से और तमाम तकलीफों से। राष्ट्रपति जी! आपको इसी अनुच्छेद के तहत प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए कि सरकार क्या कर रही है कि देश में महंगाई कम नहीं हो रही। सरकार अपने वायदे के बावजूद रोजगार और नौकरियां क्यों नहीं पैदा करतीं? देश बहुत परेशान है। इसलिए ऐसे सवाल पूछे जाने चाहिए। हिंसक घटनाओं का मुकाबला तो बंगाल प्रशासन पुलिस एजेंसियों से करवा रहा है और वे कर रहे हैं। आप परेशान न हों राष्ट्रपति जी! आप भयभीत न हों। आप अवाम की आशा और उम्मीद हैं। भारत के संविधान की रक्षक हैं। जो लोग आपके कान भरें। चाहे आपके मातहत ही क्यों न हों। वे देश का भला नहीं कर रहे हैं। राष्ट्रपति जी! हम छत्तीसगढ़ के पीड़ित निवासी अनुरोध करते हैं कि आप प्रधानमंत्री से पूछें कि हमारे छत्तीसगढ़ के हसदेव इलाके में अदाणी को अभी और कितने लाख पेड़ काटने की अनुमति है। जिससे हमारी जमीन खोखली न हो जाए। उन्हें और कितना कोयला इसी धरती से चाहिए ताकि वे सत्ता की संपत्ति की धधकती आग को वर्षों तक जलाते रहें। हम लोग निराश और भयभीत हैं। छत्तीसगढ़ के करोड़ों लोग बल्कि देश के भी और देश के बाहर के भी। असली निराशा और भय तो यह है। बंगाल की बेटी को तो न्याय सरकारी मशीनरी दिलाएगी। लेकिन हमारे छत्तीसगढ़ के खासतौर पर आदिवासी किसानों और रहवासियों की जिंदगी प्रधानमंत्री के आदेश के कारण अदाणी तबाह कर रहे हैं। हमारी उस निराशा और डर को आप दूर कर दीजिए राष्ट्रपति जी इतिहास में आप सफल हो जाएंगी।

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