गुरुवार, 5 सितंबर 2024

दीनदयाल उपाध्याय -- जनसंघ के सर्वोच्च विचारक की मौत का अनसुलझा रहस्य...

दीनदयाल उपाध्याय -- जनसंघ के सर्वोच्च विचारक की मौत का अनसुलझा रहस्य... मोदी सरकार को 10 साल से ज्यादा हो गये दिल्ली की सरकार पर बैठे हुये. ये लोग जब सरकार में नही रहे तब गला फाड़ फाड़़ कर सुवाष चंद्र बोस की फाईल खोलने तथा लाल बहादुर शास्त्री की मौत की जांच करने की मांग करते नही थकते थे. बीच बीच में दीन दयाल उपाध्याय की मौत की जांच की मांग करते रहे . जब मोदी जी दिल्ली की कुर्सी पर बहुमत की सरकार में आकर बैठे , बैठते ही सुबाष बाबू की फाईल खोले . उसमे सुबाष बाबू की नेहरू के नाम एक चिट्ठी मिली, उसमे पहले पन्ने पर ही लिखा था कि , " आर. एस. एस . एक सांप्रदायिक संगठन है, बापू के हत्या में इनका हाथ है, इसे किसी भी कीमत पर माफ़ नही किया जाना चाहिये. देश के बंटवारे के लिये ये ही जिम्मेदार हैं " । इतना पढते ही मोदी जी ने फाईल को बंद करके ऐसा गायब किये कि आजतक उस फाईल का पता नहीं कहां गायब है। शास्त्री जी की फाईल उसी दिन से बंद हो गयी जबसे मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल के नाम पर रख दिया गया, जबकि जनसंघ श्रीमती गांधी सेबहुत पहले से मांग करता रहा था कि मुगलसराय का शस्त्री जी के नाम पर किया जाय । रही दीनदयाल उपाध्याय की मौत की जांच की बात. .. 2015 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की भतीजी मधु शर्मा व बीना शर्मा व भतीजे विनोद शुक्ला ने सरकार से पंडित जी की मौत के सच का पता लगाने के लिए फिर से नया आयोग या एस आई टी बना कर जांच करवाने की मांग की। उसी तरह 2018 में पंडित जी की रहस्यमय मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए पंडित जी की एक अन्य भतीजी सीमा शर्मा ने मोदी जी को पत्र लिखकर पुन: जांच की मांग की । पर दीनदयाल उपाध्याय को अपना सर्वोच्च विचारक मानने वाली भाजपा सरकार जिसने ज्यादातर योजनाओं का नामकरण पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से किया है उन्हीं की मौत की जांच को पैसे और समय की बरबादी बता कर किसी भी तरह की जांच करवाने से स्पष्ट इन्कार कर दिया । इन से पहले भी सुब्रमण्यम स्वामी औऱ बलराज मधोक ने भी इस हत्या या मौत की जांच करवाने की मांग की थी । पर इस सब पर विस्तार से जाने से पहले आइये दीनदयाल उपाध्याय के मौत के मामले के तथ्यों की जानकारी लें फिर उस पर बात करेंगें .. 11 फरवरी 1968 को ठंडी सुबह के 3.30 पर लीवरमेन ईश्वरदयाल ने खंभा ( पोल ) नंबर 1276 पर एक शव पङे होने की सुचना स्टेशन मास्टर को दी , उस के करीब दो घंटे बाद इसी स्टेशन पर काम करने वाले वनमाली भट्टाचार्य ने उस शव की पहचान भाजपा के पूर्व संस्करण भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित जी के नाम से जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के रूप में की । पंडित जी 10 फरवरी 1968 को सियालदह एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना के लिए रवाना हुए थे ,उन्हें जौनपुर में आखिरी बार जीवित अवस्था में देखा गया था। पटना में उन के स्वागत के लिए कैलाशपति मिश्र स्टेशन आये थे पर उन की सीट खाली थी, लखनऊ में पडित जी अपनी धर्म बहन लता खन्ना के यहां ठहरे थे तब 12 फरवरी को भाजपा संसदीय दल की मीटिंग थी पर ठीक उसी दिन उन्हें पटना में कार्यकर्ताओं की बैठक में आने का आमंत्रण मिला, तब तत्कालीन जनसंघ के महासचिव सुंदरसिंह भंडारी से कह कर उन्होंने संसदीय दल की बैठक में ना जाकर पटना जाने का फैसला किया था। तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने शाम सात बजे पठानकोट स्यालदह एक्सप्रेस से प्रथम श्रेणी के टिकट पर यात्रा शुरू की , उन्हें यूपी की तत्कालीन संविद सरकार के उपमुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त स्टेशन पर छोड़ने आये थे, उन के साथ यूपी के ही विधानपरिषद सदस्य पिताम्बर दास भी थे। इसी बोगी में एक सीट पर जिओग्राफिकल सर्वे आफ इंडिया के अधिकारी एमपी सिंह भी थे ,इसी बोगी की B श्रेणी में तब के कांग्रेस के विधानपरिषद के सदस्य गोरीशंकर भी थे । ट्रेन के चलने के कुछ ही समय बाद दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी सीट गोरीशंकर जी से बदल ली अब वे गोरीशंकर की सीट पर थे ट्रेन जब जौनपुर पहुंची तो उस समय रात के 12 बजे जौनपुर के महाराजा का निजी खत लेकर उन का कर्मचारी कन्हैया पंडित जी से मिला, तब पंडित जी ने खत पढ कर बाद में डाक से उस का जवाब भेजने की बात कन्हैया से कही थी। बनारस होती हुई ये ट्रेन रात दो बजे मुगलसराय पहुंची ,ट्रेन सीधे पटना नहीं जाती थी यहां से उस का डिब्बा दिल्ली हावङा एक्सप्रेस से जुङना था । 2.50 पर यहां से चली ट्रेन जब 06.00 बजे सवेरे पटना पहुंची तब पंडित जी उस में नहीं थे । इधर मुगलसराय स्टेशन पर पोल के पास पङी लाश को पहचाना गया , 3.30 बजे मिली लाश को दो घंटे बाद रेलवे के डाक्टर ने आलमोस्ट डेड लिख कर 5.30 का समय डाल दिया जिसे बाद में काटकर 3.30 किया गया था। शव को देख कर डाक्टर ने लिखा शायद पोल से टकराने के कारण मौत हुई तब उपाध्याय के पास जो सामान नोट किया गया वो था - 1- प्रथम श्रेणी का टिकट जो दीनदयाल उपाध्याय के नाम से था के साथ आरक्षण की रशीद. 2- हाथ पर बंधी घङी जिस पर नानाजी देशमुख का नाम लिखा हुआ था. 3- 26 रूपये नगदी. उन के एक हाथ में पांच रूपये का नोट कसकर पकङा हुआ था. इस बीच जब ट्रेन मुकामा पहुंची थी तब वहां से चढे यात्री को एक सूटकेश लावारिस मिला था, जिसे उस ने रेलवे पुलिस को सौंप दिया था ।अधिकारी एमपी सिंह ने बताया की जब वे मुगलसराय पर टॉयलेट करने गए तो 20-22 साल का एक लङका पंडित जी का बिस्तर समेट कर ले जा रहा था तब उन्होंने उसे बतलाया तो उस ने कहा उस के पिता उतर गये थे और वो उन का बिस्तर ले जा रहा था बाद में इस लङके को पुलिस ने पकड़ लिया तब लालता नाम के उस लङके ने बताया की उसे राम अवध नाम के आदमी ने कहा था की वो बिस्तर लावारिस था तब लालता ने उस बिस्तर का सौदा एक अंजान आदमी से चालीस रूपये में कर उसे उठाने के लिए आया था। इसी तरह भरत लाल नाम के एक सफाईकर्मी के पास पंडित जी का जैकेट व कुर्ता बरामद किया गया , पटना स्टेशन पर ही भोला नाम के एक सफाई कर्मी ने बयान दिया की उसे एक आदमी ने बोगी की अच्छी तरह सफाई करने को कहा जब की वो आदमी बोगी में चढा ही नहीं। उपाध्याय के हाथ में मिले पांच के नोट का कोई कारण समझ में नहीं आया, लालता नाम के युवक ने भी तब बिस्तर चुराया जब गाङी प्लेटफार्म पर पहुंच चुकी थी । राम अवध व भरत लाल ने अपने इकबालिया बयान में कहा की वे चोरी कर रहे थे तब दीनदयाल उपाध्याय ने उन्हें रंगे हाथों पकङ लिया था तब उन दोनों ने दीनदयाल उपाध्याय को पकड़ कर खिंच कर ले जाकर चलती ट्रेन से धक्का दे दिया तब पंडित जी सामने सीधे पोल से टकराये और वहीं उन की मौत का कारण बना सीबीआई जांच में भी ये ही सब पाया गया तब सीबीआई ने राम अवध व भरतलाल पर इरादातन हत्या व चोरी का केस कोर्ट में पेश किया तब सेशन कोर्ट ने इन दोनों का हत्या के इल्जाम में सबूत ना होने पर बरी कर दिया व चोरी का आरोपी माना राम अवध पहली चोरी व इतने दिन जेल में रहने के कारण बरी कर दिया पर भरत लाल पर पहले भी चोर होने में सजा होने के कारण चार साल की सजा दी गई। तब 70 सांसदों ने इस मौत के रहस्य की जांच करवाने को कहा तब जस्टिस वाई वी चंद्रचुङ ने इस की जांच की । जांच में कहा की राम अवध और भरत लाल की तो एन्ट्री ही हत्या या मौत के बाद होती है वे हत्यारे नहीं हो सकते है , उपाध्याय के शरीर पर चोट का एक ही निशान था वो भी इस तरह था की जो डिब्बे में नहीं आ सकती थी। नई कहानी इस के बाद शुरू हुई जब उपाध्याय के पूर्व जनसंघ के अध्यक्ष रहे बलराज मधोक ने इसे राजनितिक हत्या बताया और सीधे तौर पर इस के लिए नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लिया , उन्होंने कहा की इन दोनों को पंडित जी ने पार्टी में कोई पद नहीं दिया इसलिये भाङे के हत्यारों से इन्होंने हत्या करवाई । वैसे अपने पहले बयान में बलराज मधोक ने कहा था की दीनदयाल उपाध्याय शराबी और औरत खोर था B श्रेणी के डिब्बे में एक औरत सवार थी जिसे उपाध्याय ने देख लिया और उस पर लट्टु हो गया इसी कारण उस ने कांग्रेसी विधायक गोरीशंकर से सीट बदली थी रात में उस महिला ने किसी तरह अपने परिजनों को बुला लिया और उपाध्याय की गंदी हरकतों की शिकायत की तब उस महिला के परिजनों ने उपाध्याय से मारपीट कर के उस की हत्या कर दी । बाद में बलराज मधोक अपनी जीवन कथा जिंदगी का सफर के तीसरे खंड में लिखते है की दीनदयाल उपाध्याय अटल बिहारी वाजपेयी व नानाजी देशमुख पक्के रंडीबाज थे और दिन रात अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय निवास 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड पर पङे रहते थे और इस घर में रातदिन संदिग्ध प्रकार की औरतें आती जाती थी अध्यक्ष रहते मधोक ने वाजपेयी और नानाजी देशमुख को इन गंदी आदतों को छोड़ ने व शादी करने को कहा तो मधोक आगे बताते है की वाजपेयी की बात सुन कर वो आवाक रह गए जब अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाब में उन्हें कहा की जब बाजार में दूध मिलता है तो घर पर भैंस रखने की क्या जरुरत है ये सुन कर मधोक सन्न रह गए मधोक ने आगे कहा की वाजपेयी की यही बात आगे चल कर हर व्याभिचारी के लिए अपने व्याभिचार को सही कहने का एक हथियार बन गई। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर डाक्टर सुब्रमण्यम स्वामी ने गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह को ज्ञापन दे कर दीनदयाल उपाध्याय की मौत की जांच एक बार फिर एक आयोग बना कर कराने को कहा सुब्रमण्यम स्वामी ने कारण बताते हुए कहा की इन तीनों दीनदयाल उपाध्याय अटल बिहारी वाजपेयी व नानाजी देशमुख के दिल्ली की उच्च स्तर के घराने की महिला से नाजायज संबंध थे वो महिला राजनितिक ही नहीं उधोगपति घरानों से भी संबधित थी और उसी कारण इन तीनों में उपाध्याय वाजपेयी व देशमुख में लङाई हुई उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के कारण वाजपेयी व देशमुख पर भारी पङते थे और उस औरत पर एकाधिकार जमाने की कौशिश करते थे। हालांकि वो महिला ऐसा नहीं चाहती थी वो तीनों से संबंध बनाये रखना चाहती थी पर उपाध्याय लगातार हावी हो रहे थे और उन्होंने वाजपेयी व देशमुख को पार्टी से कोई इल्जाम लगाकर बाहर करने तक की धमकी दी, सुब्रमण्यम स्वामी के अनुशार तब वाजपेयी व देशमुख ने उपाध्याय का पत्ता साफ करवाने का निश्चय किया और भाङे के हत्यारों से उपाध्याय की हत्या करवा दी स्वामी आगे कहते है की तब के विदेशमंत्री वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी ने जांच करवाने नहीं दी । यहां ये भी उल्लेखनीय है की जब बलराज मधोक ने ये मांग उठाई तो उन्हें भारतीय जनसंघ से बाहर कर दिया गया इसी तरह जनता पार्टी शासन के बाद जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आई तो सुब्रमण्यम स्वामी ने उन्हें चौधरी चरण सिंह को दिये गए अपने ज्ञापन पर जांच की मांग की तब 1980 में सुब्रमण्यम स्वामी को भी भारतीय जनता पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मैं अटल बिहारी वाजपेयी जी का बहुत बङा प्रशंसक हूं सरल सोम्य राजनीति के वे उदाहरण है कोई एक गलत आदत उन में हो सकती है पर हत्या जैसी किसी बात को कोई भी जागरूक मनुष्य सोच भी नहीं सकता है भारतीय राजनीति को एक पहचान अटल जी ने दी है और उसे सिद्धांतों की नई उंचाईयों पर ले जाने का श्रेय भी वाजपेयी जी को है ये सब जो मैं ने लिखा है ना मेरे निजी विचार है ना मैं मधोक व स्वामी के इन विचारों से सहमत हूं मैं ने सिर्फ उन विचारों को आप तक पहुंचाने का कार्य किया है। अच्छा होता मोदी जी एक आयोग इस पर बैठा कर जांच करवा लेते हालांकि इतने साल बाद कुछ भी सामने आना मुश्किल है और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने इस पर एक जांच शुरू भी करवाई है पर पहले ही दौर में उन्हें मुगलसराय के पुलिस मुख्यालय में वो फाईल ही गायब मिली जिस में 1968 की उस मौत की प्राथमिकी दर्ज थी....जय जगन्नाथ... drbn singh.

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