बुधवार, 30 जुलाई 2025
न डरो न डराओ
शुक्रिया राहुल
चंचल बी एच यू
फर्स पर पिन गिरती तो भी आवाज सुनायी देती , कल संसद के अंदर यही सन्नाटा था । पक्ष और प्रतिपक्ष की बेंच की एकाग्रता इतिहास दर्ज कर गया -
“ खामोश ! सुनो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी बोल रहा है “
वह शब्द नहीं बोल रहा था , लफ्फाजी नहीं थी , सत्ता की चतुर्दिक विफलता पर गुस्सा था , सत्ता की पाखंडी प्रवृत्ति पर जोरदार हमला था , राहुल का भाषण सत्ता की कुनीति की चहुदिशा खुलासा था । देश की आर्थिक विपन्नता का विरोध भर नहीं था , उसकी केंद्रीय कारण की नीति पर सघन चोट भर नहीं था बल्कि भारत के विश्वशक्ति बनने का खाका भी था । राहुल के भाषण में केवल सीमा नीति की फटी हुई अनुदान भोगी प्रवृति का उलाहना भर नहीं था , विदेशनीति को शिखर पर पुनर्स्थापित करने की कुंजी भी साथ में थी । इतिहास कहता है -
“भारत की संसद अपने लंबे इतिहास में सत्तापक्ष को कभी भी इतना बेबस , अपाहिज और अपराध भाव में डूबा नहीं देखा है , जैसा कल का मंजर था । “
यह कोई रटा हुआ शब्दजाल नहीं था , न ही किसी शाब्दिक शोध का तर्जुमा , यह आवाम की आवाज थी , अवाम का गुस्सा , उसका दर्द , सत्ता पक्ष की सनक से गढ़ा गया दिक्कतों का जंजाल जिसने आम आदमी डूब उतरा रहा है , उसका बयान था , भाषण में गुस्सा ही नहीं , करुणा की अथाह धारा थी । इतिहास दर्ज कर गया -
“ कल संसद में एक नेता खड़ा था । “
इस “ नेता “ को केवल संसद की परिधि में नहीं देखा गया , उसे तो समूचा देश और दुनिया देख रही थी । राहुल ने एक झटके में बुद्ध , गांधी , नानक को खड़ा कर दिया
भारत का वांग्मय खोल दिया -
“ अभय मुद्रा “
न डरो , न डराओ
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