बुधवार, 17 सितंबर 2025
रावण की कल्पित कहानी _______________
रावण की कल्पित कहानी
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आज लंका में काफी चहल-पहल है। कारण ;आज रावण का जन्मदिन है।
सारे दरबारी इधर से उधर दौड़ रहे हैं। सुबह शाम एक किए हुए हैं।
जन्मदिन की पूर्व संध्या पर रावण ने अपने जन्मदिन को लोक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी। फिर रात्रि को लंकावासियों को अचानक सूचना मिली कि जन्मदिन लोक दिवस के बजाय, अब डंका दिवस के नाम से मनाया जाएगा।
दूर देश के कई जाने-माने असुरों को बुलावा भेजा गया। उनके स्वागत की अभूतपूर्व तैयारियां हुईं। रावण के लिए नए परिधान बने। महल सज गया। राज्य में जगह-जगह बैनर और पोस्टर लग गए। सारी व्यवस्था हो गई। सुरक्षा चौकस हो गई।
बर्थ डे का स्पेशल केक बनाने के लिए पता नहीं किस द्वीप से एक्सपर्ट बुलाया गया। जबकि मंदोदरी का कहना था कि केक की जगह हलवा होना चाहिए । यह हमारी संस्कृति और सभ्यता को सूट करता है।
इस बात पर रावण चिढ़ते हुए बोला था कि कोई बजट पेश हो रहा है क्या जो हलवा बने।।
जन्मोत्सव के इस चकाचौंध में सबकी आँखें चौंधियां गईं। लंका में कुछ ऐसे भी थे,जो खुश नहीं थे,जिनमें एक त्रिजटा भी थी। उसका मानना था कि राज्य का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा,जबकि यहां ढंग की मेडिकल फैसिलिटी ही नहीं। अगर इनमें इन्वेस्ट होता, तो बहन सुपर्णखा के नाक-कान की प्लास्टिक सर्जरी हो सकती थी। राजा अपनी प्रजा को नहीं अपनी ध्वजा को मजबूत करता है। अशोक वाटिका में बैठे-बैठे वह बड़बड़ाई!
बहरहाल,रात को रावण का जन्म दिन सेलिब्रेट होने लगा। केक लाया गया। केक क्या था कि पूरा पहाड़ था। सारे वी आई पी असुर आँखें फाड़कर ' हे गाइज! क -कहकर केक का साइज देखने लगे। उन्होंने यह भी देखा कि केक पर किसी दूसरे राष्ट्र का नक्शा बना हुआ है। सारे असुर रोमांचित हो गए। वे पल भर में ही तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगे। विभीषण ने जब यह देखा तो उसका मूड ऑफ हो गया।
विभीषण से रहा नहीं गया। वह रावण के पास गया।
अभी रावण ने केक काटने के लिए तलवार मंगाया ही था कि विभीषण बोला,'सुकामना बड़े भाई! आज का दिन तो प्रेम और सौहार्द से मनाना चाहिए... न की वैमनस्य से! आज जो शत्रु है,कल को मित्र भी हो सकता है! हर बात को पॉलिटिकल रंग देना ठीक नहीं...'
विभीषण की बात को रावण ने अपने बीसों कानों से अनसुना कर दिया। रावण ने चमकती तलवार से केक का बलपूर्वक विच्छेदन कर दिया। केक कटते ही उसको' हैप्पी बर्थ डे ' विश करने की जगह, पता नहीं कौन-कौन से नारे लगने लग गए। कुछ नारे तो बेहद चीप थे।
वहां आए सभी मेहमानों को सुनाते हुए रावण बोला,' काटने का अपना मजा है! क्यों मित्रों!'
' निसंदेह!' सभी असुरों ने हुंकार भरी।
कुंभकरण ने मारे खुशी से थाल से बड़ा सा पीस उठाया। मेहमानों को सुनाते हुए बोला,' आपको काटने में .. पर.मुझे तो बांटने में बहुत मजा आता है भ्राता श्री!'
सारे असुरों ने कुंभकरण के इस वक्तव्य का ताली बजाकर जोरदार स्वागत किया। केक का थाल घूम रहा था। जिसको जितना मन करता था,उतना हिस्सा उठा ले रहा था। विभीषण कोने में असहाय खड़ा सब देख रहा था।
केक का वह पीस कुंभकरण के हाथ से छीनते हुए मेघनाद हँसते हुए बोला,'बांट- बांटकर ही तो खाने में असली मजा है चाचा श्री!'
जब कुंभकरण ने मेघनाद का यह संवाद सुना, तो वह थम-सा गया।।
वह रावण के पास गया और धीरे से बोला,' आपने सुना! अभी बाबू मेघनाद ने क्या कहा!'
रावण भरे गले से बोला, ' हां,बांट-बांटकर ही तो खाने में असली मजा है ....'
कुछ पल बाद दोनों एक साथ बोले,' बड़ा हो गया है। '
'क्यों न अब युवराज का राज्याभिषेक करा दिया जाए! राजा बनने की सारी अहर्ताएं तो पूरी कर लीं!' थाल से केक उठाकर रावण के मुँह में भरते हुए कुंभकरण बोला।
रावण के नौ के नौ मुँह हँस पड़े।
अनूप मणि त्रिपाठी
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