शनिवार, 20 दिसंबर 2025
भौतिकवाद मानव समानता के लिए वैचारिक आधार प्रदान करता है - श्याम बिहारी वर्मा
भौतिकवाद मानव समानता के लिए वैचारिक आधार प्रदान करता है
दुनिया में मानव समाज के प्रारंभ से ही ,थोड़े लोगों के पास ही धन इकट्ठा होने एवं अधिकांश लोगों द्वारा घोर गरीबी में जीवन बिताने की विरुद्ध तमाम संतों एवं समाज सुधारकों द्वारा लिखा जाता रहा है,
स्पार्टा के प्रतिष्ठित नागरिक लाइक ग्रीस ने सारी जमीन को 39000 टुकड़ों में बांटकर उन टुकड़ों को किसानों में बराबर बराबर बांट दिया ,इनका कार्यकाल ईसा से 800 से 900 वर्ष पूर्व था ,
ईशा से तीसरी शताब्दी पूर्व स्पार्टा के राजघराने के एक युवक आगिस ने लाइकगेस के सुधारों को दोबारा लागू करने की कोशिश की, और मारा गया मैक्स बेवर ने उसे पहला "कम्युनिस्ट शाहीद " कहा है ,
आगिस की मौत के 5 साल बाद ईसापुर 235 से 222 में क्लिमोमेंस ने आगिस के सुधारो को बलपूर्वक लागू करने की कोशिश की ,कुछ ही समय में उच्च वर्ग के लोगों ने अपने वर्गीय हितों की रक्षा की खातिर साजिश करके मकदूनिया के राजा से स्पार्टा पर हमला कराकर सुधारों का को खत्म करा दिया,
ईशा से 435 से 447 वर्ष पूर्व अफलातून ने अपने उत्कृष्ट ग्रंथ रिपब्लिक में नजीर के तौर पर एक ऐसे समाज की मुकम्मल योजना बनाई थी , जिसमें उन्होंने एथेंस में उत्कृष्ट साम्यवाद की व्यवस्था स्थापित की थी ,
अफलातून के बाद जिन बुद्धिजीवियों ने काल्पनिक स्वर्ग के नक्शे बनाए वह सब पब्लिक से प्रभावित हैं ,
पाइथागोरस 582 से 507 ईसवी पूर्व में दक्षिणी इटली में प्रोटॉन के स्थान पर अपने शिष्यों और समर्थकों की एक बस्ती बसाई थी वहां लोग समाजवादी सिद्धांतों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते थे ,
प्रकृति ने समस्त वस्तुएं सभी मनुष्यों के एक समान उपयोग के लिए उपलब्ध की हैं, ईश्वर ने सभी वस्तुओं की रचना का आदेश दिया है ,ताकि सबको समान रूप से रोजी-रोटी मिले और जमीन सबकी सामूहिक संपत्ति हो, इसलिए प्रकृति की ओर से सबको समान अधिकार मिला हुआ है लेकिन लालच ने यह अधिकार केवल कुछ लोगों तक सीमित कर दिया है सुन्नत अमरोज 339 से 397 ई ,पादरियों के कर्तव्य पुस्तक एक अध्याय 26 ,
ईसा मसीह के खास शिष्य 12 थे उनमें कोई मछेरा था ( पत रस और ऐंडूज )कोई रंगरेज था ( लूका) और कोई चर्मकार यह सभी निकले वर्ग से संबंधित थे ,
यह नया धर्म खुलेआम धनवानो के खिलाफ था और ईसा मसीह साफ शब्दों में उनकी निंदा करते थे ,वह कहते थे कि तुम खुदा और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते, और उनका निर्णय था कि धनवान खुदा के राज्य में जाने के लायक नहीं है, उन्होंने एक धनवान को देखकर कहा,कि धनवान का खुदा के राज्य में शामिल होना कितना कठिन है, क्योंकि धनवान खुदा के राज्य में प्रवेश करें इससे सुई के छेद में से ऊंट का निकल जाना आसान है लूका अध्याय 18 ,
इसी तरह जस्टिन शहीद 100 से 145 इसवी, जिनको रूम में सलीब दी गई , लिखते हैं कि हम जो इससे पहले सब वस्तुओं से अधिक धन और स्वामित्व के रास्ते को पसंद किया करते थे ,अब सामूहिक तौर पर उत्पादन करते हैं , और लोगों में उनकी आवश्यकताओं के अनुसार बांट देते हैं ,
पादरी तस्तोलिन 150 से 230 ई, कहते थे कि हममे बीवी के अलावा सब चीजें सामूहिक हैं ,
पादरी संत सिवोरेन मृत्यु 258 इसवी, कहते थे की जो कुछ ईश्वर की ओर से दिया जाता है वह सबके सामूहिक प्रयोग के लिए है ,
संत बाजेल महान 330 से 379 ई भी धन को हेय दृष्टि से देखते थे, क्या तुम ( धनवान ) चोर और डाकू नहीं हो, तुम्हारे पास जो रोटी है, वह भूखों की संपत्ति है ,जो वस्त्र तुम पहने हुए हो, वह नंगे शरीरों की संपत्ति है ,जो जूता तुमने पहन रखा है, वह नंगे पैरों की संपत्ति है और जो चांदी का भंडार तुमने इकट्ठा किया है, वह जरूरतमंदों की संपत्ति है,
इतिहास गवाह है ईसा मसीह के समय से लगभग 400 वर्षों तक ऐसे अनगिनत मसीही धर्मगुरु हुए हैं, जो धन और धनवानो से नफरत करते थे ,वह भिक्षुकों जैसा सरल जीवन बिताते थे और उन्होंने अपने और अपने शिष्यों के लिए सामूहिक जीवन पद्धति को चुना था वह निजी संपत्ति को सभी खराबियों की जड़ समझते थे ,और ईसाइयों को निजी संपत्ति से दूर रहने के उपदेश देते थे ,
निसंदेहजब धीरे-धीरे धनवानो ने और खुद रोमन साम्राज्य के शासको ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया तब मसीही चर्च का चरित्र बदल गया ,परिणाम स्वरुप मसीही चर्च साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया, उसका हित साम्राज्य से संबद्ध हो गया और वह राज्य के अन्याय अत्याचार लूट खसोट को धार्मिक रूप से उचित ठहरने लगे ,वह जीवन शैली जिस पर मसीह के शिष्यों और दूसरे ईसाई धर्म गुरु चलते थे अब स्वप्न हो गई ,
इंग्लैंड के बुद्धि जीवी जान बाल कहते हैं , कि शुरू में ईश्वर ने सबको समान पैदा किया , निसंदेह ऊंच-नीच स्वार्थी मनुष्यों द्वारा बनाया गया ,तुम दासता की बेड़ियां तोड़ दो ,खेतों पर कब्जा कर लो, और उन लोगों को अपने रास्ते से हटा दो ,जो समता की राह में अवरोध पैदा करें , यह बगावती बातें थीं , नतीजतन जान बाल को 1381 में फांसी दे दी गई ,
ईरान के राजा कबाद 488 से 531 ई के समय में मजदक नाम के एक व्यक्ति अपनी बुद्धिमत्ता की वजह से राजा के करीबी हो गए ,वह कहते थे की धनी निर्धन सब बराबर हैं संपत्ति में सबको समान हिस्सा मिलना चाहिए उन्होंने सूखे की वजह से भूखे लोगों को अनाज के भंडारों से अनाज उठा लेने को कहा, कबाद में मजदक को नौशेरवां के हवाले कर दिया और नौशेरवां ने मजदक और उसके साथियों को जिंदा दफन कर दिया,
थॉमस मूर 1448 से 15 35 के विचार थे कि पूंजी पतियों तथा कथित राष्ट्र राज्य मेहनतकशों को लूटने और श्रम से अनुचित लाभ उठाने की सुव्यवस्थित साजिश है, बादशाह और उसके दरबारी सरकारी अधिकारी और अदालतें सब इस साजिश के कल पुर्जे हैं, रिश्वतखोरी बेईमानी भाई भतीजा बाद और चापलूसी इसका आचरण है,
फ्रांसिस बेकन 1561 से 1626 तक भौतिकवाद की कल्पना उतनी ही पुरानी है जितना मनुष्य का ज्ञान, सबसे पुराना भौतिकवादी दर्शन जो हमें ज्ञात है आर्यों की पवित्र पुस्तक ऋग्वेद की कुछ ऋचाओं में भी भौतिकवाद की झलक मिलती है इसके अलावा गौतम बुद्ध और चारबाक आदि की शिक्षाओं का कर भी भौतिकवाद ही है ,बल्कि कुछ विद्वानों का तो कहना है कि भौतिकवाद का दर्शन यूनानियों ने हिंदुस्तान से सीखा था ,
बेकन का ऐतिहासिक कार्य है कि उन्होंने भौतिकवादी दर्शन के आदिम प्रचलन को बहाल किया और प्रचलित अवधारणाओं को भौतिक सिद्धांतों की कसौटी पर परखा ,उन्होंने दावा किया कि प्रकृति परमाण्विक कणों से मिलकर बनी है और पदार्थ की आधारभूत व्यवस्था गति है ,
प्रकृति के स्वतंत्र अस्तित्व की स्वीकृति को भौतिकवाद कहते हैं भौतिकवादी दर्शन के अनुसार सूरज चांद जमीन नदी पहाड़ और समंदर पेड़ पौधे और जानवर यहां तक की दुनिया की सभी वस्तुएं वास्तव में भौतिक रूप में हमारे सामने मौजूद है ,यह हमारे विचारों द्वारा उत्पन्न नहीं है यह चीजें मनुष्यों से लाखों वर्ष पहले भी अस्तित्व में थी, जो बाद में पैदा हुए वह अपने से पहले पैदा होने वाले का कारण नहीं बन सकते, दूसरी बात यह है कि मनुष्य और उसका मस्तिष्क भी दूसरी वस्तुओं की तरह पदार्थ से ही बने हैं जिस वस्तु को हम विचार या आत्मा कहते हैं वह वास्तव में मनुष्य के मस्तिष्क का ही कार्य है, मस्तिष्क से बाहर विचार का कोई अस्तित्व नहीं है, पदार्थ की विशेषता यह है कि वह हर समय गतिशील एवं परिवर्तनशील रहता है वह कभी नष्ट नहीं होता निसंदेह उसकी आकृति और गुण परिवर्तित होते रहते हैं कैसे लकड़ी जलकर कोयला हो जाती है कोयला राख बन जाता है और राख के कण हवा में मिल जाते हैं ,या जमीन का हिस्सा बन जाते हैं ,नष्ट नहीं होते हैं,
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