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बुधवार, 5 अगस्त 2015

चुनौती ---------------शंकर शैलेन्द्र

चर्चिल  मांगे खून मजूर किसानो का,
ट्रूमन मांगे ताजा खून किसानो का | 

च्यांग गिरा मुह के बल ,पूरब में तूफान ,
जुल्मो की छाती पर इस्पाती इनसान ,
गरज वक्त की ,राज करे मजदूर  किसान ,
बनियों पर आ बनी ,अकल इनकी हैरान ,
सिकुड़ चला बाज़ार , आज धनवानों का ,

युक्ति निकाली है हिटलर के भाई ने , 
कुंद छुरों पर धर ली धार कसाई ने ,
कहे कि छेड़ो जंग और बेचो बन्दूक,
बेचो तोप, टैंक, बेचो गोला-बारूद,
करते जंग, या खून करो अरमानो का.

एटम बम अपना है, डॉलर संगी है,
टूट पड़ो धरती अबला है, नंगी है,
देर न करना, बुरा वक्त धर देगा लात,
उधर रूस, मेहनतकश जनता उसके साथ,
जंग एक हथियार हज़ार निशानों का.

आओ, आग लगाओ घिरी घटाओ में,
जंजीरें बांधो आंधी के पांवो में,
खौल रहा हर सागर, ढक्कन से  ढाको,
चढ़ी नदी में बाढ़, बांसों का पुल बाँधो,
राज रहे इंसानों पर हैवानो का,

हत्यारे हथियारबंद दलबंद हुए,
दंद -फंद में चतुर चोर गुटबंद हुए,
नयी ज़मी पर चरने की उम्मीद लिए,
मुक्ति गढ़ों पर चढ़ने की उम्मीद लिए,
खुश बौना बनिया काली दुकानों का.

खबरदार, ऐ मददगार गद्दारों के,
अधम पुजारी खून रँगी तलवारों के,
तुम सोवियत रूस पर हमला बोलोगे,
भर देंगे हम आग अगर मुंह खोलोगे,
हर घर दल हम हिम्मतवर मर्दानों का

रूस देश संघर्षों का, कुर्बानी का,
खून-पसीने की अनकही कहानी का,
वहां क्रांति की जीत, तुम्हारी पहली हार,
हमने अपनी हस्ती जानी पहली बार,
रूस ख्वाब के, इन्कलाब के गानों का .

वहां सुतार लुहार हुए मिल मेनेजर,
राजा नहीं रंक बैठा सिंहासन पर,
जिनका खून-पसीना, उनका राज बना,
स्वर्ग इसी धरती पर, नया समाज बना,
हुआ रूस में सच सपना इंसानों का.

इसीलिए सोवियत रूस हमको प्यारा है,
तुमको पुच्छल-तारा, हमको ध्रुव-तारा है.
अब तो दशों दिशाओं से होता है वार,
आप तुम्हारे सर पर लटकी है तलवार,
डगमग सिंहासन तुम बेईमानों का.

ठहरो, कहाँ चले यह फौज-पलाट लिए ?
कहाँ चले हर हिटलर जैसा ठाट किये ?
तुम सोवियत रूस पर हमला बोलोगे ?
भर देंगे हम आग अगर मुंह खोलोगे,
हर घर दल आजादी के दीवानों का.

-शंकर शैलेन्द्र

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